बच्चन जी की यह कविता आप पर सटीक बैठती है सो पेश है .................
वृक्ष हो बड़े भले,
हो घने हो भले,
एक पत्र छाह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ अग्निपथ;
तू न थमेगा कभी तू न मुदेगा कभी तू न रुकेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.
ये महा दृश्य हैं,
चल रहा मनुष्य हैं,
अश्रु, स्वेत, रक्त से लथपथ लथपथ लथपथ ..
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.
- "बच्चन"
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आप बस युही हिंदी ब्लॉग जगत को मार्गदर्शित करते रहें ............यही दुआ है !!
आप बस युही हिंदी ब्लॉग जगत को मार्गदर्शित करते रहें ............यही दुआ है !!
बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंआभार!!
जवाब देंहटाएंशपथ शपथ शपथ!!!
:)
बहुत बढ़िया मिश्र जी ...
जवाब देंहटाएंबहती हो जब जगत में सुन्दर सुखद समीर!
जवाब देंहटाएंशुद्ध होय वातावरण, बहता निर्मल नीर!
अद्भुत। समयोचित। सटीक।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया शिवम भाई , बहुत ही उम्दा । आज के समय में सबसे सटीक
जवाब देंहटाएंअच्छा उद्गार …
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया रचना! लाजवाब!
जवाब देंहटाएंअब कुछ तो शर्म करो अनुप श्कुला ओर ज्ञनादद साहब.
जवाब देंहटाएंशुक्ला साहब आपने मुझसे फोन पर वादा किया था कि आप ब्लागिंग को छोड़कर हिल स्टेशन पर जा रहे है लंेकिन आपने वादा पूरा नहीं किया. आपका चेला सतीश सक्सेना तो दलाली करने का आरोप झेल नहीं पाया और विधेश ृभाग रहा है.
बढिया! मन में उर्जा का संचार करती ये पंक्तियाँ.....
जवाब देंहटाएंjai ho bhai..........
जवाब देंहटाएंbahut badhiya post
वाह वाह...
जवाब देंहटाएंएक पत्र छाह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ अग्निपथ;
ले ली शपथ.... ले ली शपथ....
यार वैसे बहुत कठिन है डगर ब्लाग्गर की....