घोष कहते हैं कि उन्होंने प्रोसेनजित चटर्जी, जिस्शु सेनगुप्ता, राइमा सेन और रिया सेन के अभिनय वाली इस फिल्म का निर्माण पूरा कर लिया है। इससे पहले 1947 में नितिन बोस इसी कहानी पर फिल्म बना चुके हैं। फिल्म का निर्माण बॉम्बे टाकीज ने किया था। टैगोर की कहानियों ने सत्यजित रे, तपन सिन्हा और ऋतुपर्णो घोष जैसे निर्देशकों को प्रभावित किया है। उनकी कहानियों में दृश्य कल्पना और नाटकीयता के आधिक्य के चलते सिनेमाई क्षमता प्राकृतिक है।
रे की फिल्म चारूलता (द लोनली वाइफ) टैगोर की लघु कहानी नष्टनीड़ (द ब्रोकन नेस्ट) पर आधारित थी। यह फिल्म स्वतंत्रता, परंपराओं और बौद्धिक जागरूकता के बीच 19वीं और 20वीं शताब्दी के बांग्ला युवाओं के द्वंद्व को प्रदर्शित करती है। यह फिल्म 1964 में प्रदर्शित हुई थी। रे ने टैगोर की कहानियों पर ही घरे बाहरे (होम एंड द वर्ल्ड) और तीन कन्या जैसी फिल्में बनाईं।
टैगोर की शेशर कविता (द लास्ट पोयम) को वर्ष 2008 में एक इंडो-फ्रेंच प्रयास के तहत शुभ्रजीत मित्रा ने समसामयिक काल्पनिक नाटक मॉन अमॉर: शेशर कविता रीविजिटेड के रूप में पेश किया। फिल्मकार तपन सिन्हा ने टैगोर की लघु कहानियों पर अतिथि, काबुलीवाला और द हंग्री स्टोन्स फिल्में बनाईं। वर्ष 1965 में प्रदर्शित हुई फिल्म अतिथि एक युवा ब्राह्मण लड़के पर आधारित है।
काबुलीवाला फिल्म 19वीं सदी के बंगाल के कठोर वातावरण को चित्रित करती है। इसमें बाल विवाह जैसी समस्याओं को भी उठाया गया है।
द हंग्री स्टोन (क्षुदित पाषाण) 1960 में प्रदर्शित हुई थी। स्पष्ट है कि टैगोर की रचनाओं में छुपे रहस्य भारतीय सिनेमा को रोमांचक बनाते रहे हैं।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को हम सब का शत शत नमन !!
मेरी तरफ़ से भी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी को का शत शत नमन
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