सदस्य

 

गुरुवार, 27 मई 2010

एक रिपोस्ट :- 450 वी पोस्ट



















क्या हिंद का जिन्दा कॉप रहा है ????

गूंज रही है तदबिरे,


उकताए है शायद कुछ कैदी.......


और तोड़ रहे है जंजीरे !!!!!


दीवारों के नीचे आ आ कर यू जमा हुए है ज़िन्दानी .....


सीनों में तलातुम बिज़ली का,


आखो में जलाकती शमशीरे !!!!


क्या उनको ख़बर थी होठो पे जो मोहर लगाया करते थे ....


एक रोज़ इसी खामोशी से टपकेगी दहकती तकरीरे!!!


संभालो के वोह जिन्दा गूंज उठा,


झपटो के वोह कैदी छूट गए ,


उठो के वोह बैठी दीवारे ,


दौड्रो के वोह टूटी जंजीरे !!!!!










यह नज़्म आज़ादी से पहेले की है जिस में कि शायर देशवासियों को यह बता रहा है कि तैयार हो जाओ अपने जो साथी क़ैद में है वोह जल्द ही जिन्दा तोड़ कर, क़ैद से आजाद हो, आ जायेगे और तब हम सब मिल कर लड़ेगे और अपने हक की आवाज़ बुलंद करेगे |

आज आज़ादी के ६२ साल बाद भी क्या हम सब में इतना एका है की हम अपने हक कि आवाज को मिल कर बुलंद करे ????
आज हम में से हर एक अपनी - अपनी आवाज़ की बुलंदी की परवाह करता है | इतना समय किस के पास है की किसी और की ओर भी देख ले ?? क्या फर्क पड़ता है साहब, जो पड़ोसी किसी मुश्किल में है, हम तो ठीक है न बस इतना काफ़ी है | आज 'मैं , मेरा और मेरे लिए' का ज़माना है | अब 'हम' बहुवचन नहीं एकवचन हो गया है |

आज के समय की मांग है कि "हम" को दोबारा बहुवचन बनाया जाए | हम सब फ़िर मिले और सब का एक ही मकसद हो ------- देश की उन्नति में अपना योगदान देना | आज भी हम सब पूरे तरीके से आजाद नहीं है , आज भी हमारे कुछ साथी किसी न किसी जिन्दान में क़ैद है | यह क़ैद जाहिलपन की हो सकती है , यह क़ैद बेरोज़गारी की हो सकती है , यह क़ैद किसी भी तरह की हो सकती है | एसा नहीं है कि सिर्फ़ हमारे हुक्मरान ही हमारे उन साथियो को उनकी क़ैद से आजाद करवा सकते है .......हम सब भी अपने - अपने तरीके से उनकी आज़ादी के लिए बहुत कुछ कर सकते है बस जरूरत है सिर्फ़ एक जज्बे कि एक सोच , एक ख्याल कि मैं भी कुछ करना चाहता हूँ उन लोगो के लिए जो अपनी मदद ख़ुद नहीं कर पा रहे है |

आईये एक अहद करे अपने आप से कि जब जब मौका मिलेगा उन लोगो के लिए कुछ न कुछ करेगे जो किसी न किसी कारण से अपने लिए बहुत कुछ नहीं कर पा रहे है |

जय हिंद |

3 टिप्‍पणियां:

  1. सीनों में तलातुम बिज़ली का,
    आखो में जलाकती शमशीरे !!!!
    क्या उनको ख़बर थी होठो पे जो मोहर लगाया करते थे ....
    एक रोज़ इसी खामोशी से टपकेगी दहकती तकरीरे!!!
    अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ! मैं तो निशब्द हो गयी! उम्दा प्रस्तुती! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  2. अचानक कहाँ ग़ायब हो गये थे भाई... अऊर आने का भी कोनो खबर नहीं... चलिए जादा पर्सनल सवाल नहीं... बहुत जोशीला पोस्ट है!!! सायद सोए देस को जगा सके!!

    जवाब देंहटाएं
  3. आज फ़िर से जनता को जागना होगा, क्योकि अब तो हालात उस से भी बद्तर हो गये है, धन्यवाद इस सुंदर लेख ओर जोशिले शव्दो भरी कविता के लिये

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों की मुझे प्रतीक्षा रहती है,आप अपना अमूल्य समय मेरे लिए निकालते हैं। इसके लिए कृतज्ञता एवं धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।

ब्लॉग आर्काइव

Twitter