सदस्य

 

मंगलवार, 11 मई 2010

दमा को करे बेदम; इस से पहले कि हम हो बेदम


आंकड़े गवाह हैं कि दमा या अस्थमा का मर्ज विस्फोटक बिंदु पर पहुंच चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस समय लगभग 30 करोड़ दमा पीड़ित लोग दुनियाभर में मौजूद है। यही नहीं, प्रतिवर्षविश्वभर में 2 से 2.5 लाख लोगों की मौतें दमा के कारण होती हैं।

मर्ज क्या है

दमा श्वसन तंत्र की बीमारी है जो एलर्जी जनित विकार है। जब कभी भी यह एलर्जी पैदा करने वाले तत्व श्वसन या सांस नली के अंदर पहुंच जाते है तो सांस नली में सूजन और संकुचन पैदा हो जाता है। इस कारण वायु मार्ग संकरा होकर अवरोधित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है। आमतौर पर दमा बचपन में ही आरंभ होता है।

रोग के लक्षण

सामान्यतया दमे से पीड़ित मरीज को रात्रि में खांसी आती है।

मरीज को बार-बार सांस फूलने के दौरे पड़ते है।

सोते समय दम घुटने जैसा अहसास होता है।

बार-बार नाक व गले में संक्रमण होता है।

बच्चों में पसलियां चलनी शुरू हो जाती है। ये लक्षण पूरे साल में कभी भी प्रकट हो सकते हैं, लेकिन मौसम परिवर्तन पर इनकी संभावना अधिक होती है।

कारण

दमा संक्रमण की बीमारी नहीं है। इस मर्ज के मुख्य कारण पुष्प के परागकण, तेज गंध व स्प्रे, धूल या धुआं, धूम्रपान का धुआं, बिस्तर व तकिए की धूल, मौसम में परिवर्तन और इत्र व पाउडर का प्रयोग आदि हैं। माता पिता में अगर किसी को एलर्जी की शिकायत है तो संतानों में इस मर्ज की संभावना अधिक होती है।

उपचार

इनहेलेशन थेरैपी दमा के इलाज में वरदान साबित हुई है। इस थेरैपी का समुचित प्रयोग हो तो 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों में दमा पर पूर्णतया नियंत्रण पाया जा सकता है। पूरे विश्व में यह इलाज की पहली अवस्था है। इस विधि में मुख्यतया दो प्रकार की दवाइयों का प्रयोग होता है। एक वह जिसमें तुरन्त लाभ मिलता है जिसे ब्रॉन्कोडाइलेटर कहते है। दूसरी वह जो बीमारी को आगे बढ़ने से रोकती है और कुछ मरीजों में उसे समाप्त करने की भी क्षमता रखती है। इसके अन्तर्गत मुख्यतया 'इन्हेलर स्टेरॉयड' को शुमार किया जाता है। इन्हेलर्स का सबसे बड़ा लाभ यह है कि दवा सीधे सांस नली में पहुंचती है जबकि खाने वाली दवाएं शरीर के विभिन्न अंगों में जाकर नुकसान पहुंचा सकती है।

कैसे करे स्वयं नियंत्रण

कभी भी दमा के लक्षण प्रकट होने पर घबराएं नहीं, खुली खिड़की के पास खड़े हो जाएं, इन्हेलर का प्रयोग स्पेसर डिवाइस से करे। नेब्यूलाइजर भी ऐसी स्थिति में काफी उपयोगी होते है। अगर आराम नहीं मिलता है तो चिकित्सक से सम्पर्क करे।

नवीनतम पद्धति

विभिन्न शोध-अध्ययनों से यह पता चला है कि 10 प्रतिशत लोगों में दमा को नियंत्रित करना कठिन है। ऐसे मरीजों में नयी पद्धति जैसे थर्मल ब्रान्कोप्लास्टी, एण्डोब्रांकियल वाल्व प्लेसमेंट, एंटी आईजीई, एंटीबॉडीज, स्पेसिफिक मॉडीफाइड इम्यूनोथेरैपी का इस्तेमाल किया जा सकता है।

ऐसे करें बचाव

मौसम बदलने के चार-पांच सप्ताह पहले से ही सतर्क हो जाएं और विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें।

तेज हवा चलने पर खिड़कियों को बंद रखें। खासकर दोपहर में जब हवा में ज्यादा परागकण होते हैं।

सर्दी, जुकाम, गले की खराश या फ्लू जैसी बीमारी का तुरंत इलाज कराएं।

पालतू जानवर को शयन-कक्ष से बाहर रखें और उसे हफ्ते में कम से कम एक बार नहलाएं।

घर की सफाई, पुताई व पेंट के समय रोगियों को घर से बाहर रहना चाहिए या फिर वे मुंह व नाक पर कपड़ा बांध कर रखें।

धूल, धुआं वाले स्थानों से गुजरते समय नाक व मुंह को ढककर रखें।

धूम्रपान से परहेज करें।

फोम के तकिए का इस्तेमाल न करें। सेमल की रुई से भरे तकिए व गद्दे का इस्तेमाल न करें। रोगी के बिस्तर की चादर रोज बदलें।

ऐसे कारक जिनकी वजह से सांस की तकलीफ बढ़ती है, उनसे बचाव करना चाहिए।

बच्चों को रोएंदार कपड़े न पहनाएं और उन्हें खेलने के लिए रोएंदार खिलौने न दें।

रोगी कूलर या एयर-कंडीशनर वाले कमरे से अचानक गर्म हवा में न जाएं।

9 टिप्‍पणियां:

  1. काम की पोस्ट के लिए आपको ..शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुते उपयोगी जानकारी... आजकल त बिना उमर देखे ई बीमारी हो जाता है. कम से कम आप एतना काम का बात बताए...धन्यवाद!!

    जवाब देंहटाएं
  3. उपयोगी जानकारी, बहुत खूब शिवम बाबू...

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों की मुझे प्रतीक्षा रहती है,आप अपना अमूल्य समय मेरे लिए निकालते हैं। इसके लिए कृतज्ञता एवं धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।

ब्लॉग आर्काइव

Twitter