दकियानूसी विचारधारा के लोग आज भी उर्दू को मुसलमानों की तथा संस्कृत को हिंदुओं की जुबान मानते हैं। शहर से तीन किमी दूर किला रोड स्थित गाव अब्दुल्लापुर के सनबीम इंटर कालेज में इस संवाददाता के पहुंचने पर सातवीं कक्षा की सानिया नकवी कहती है-भवता स्वागतम् [आपका स्वागत है]। दूसरी छात्रा फरमान तुरंत बोली, श्रीमन भवान कुत्र आगतवान । संस्था संस्कृत भारती के प्रयास से 40 मुस्लिम छात्र देववाणी में पारंगत हो चुके हैं।
संस्कृत क्यों सीखी है? सानिया कहती है, भाषा पर हिंदू, मुसलमान किसी का अधिकार नहीं है। जिसे ज्ञान है, भाषा उसी की होती है। सीखने के बाद वह संस्कृत का प्रचार-प्रसार करेंगी और संस्कृत की शिक्षिका बनना चाहेंगी। इसी सवाल पर फरमान का जवाब था, संस्कृत में हर विधा का ज्ञान है, लिहाजा ऐसी भाषा सीखने में हर्ज क्या है। विद्यालय प्रबंधक तैयब अली की बेटी सोनी खान तो विद्यालय में शिक्षकों को नमस्कार के बजाय नमो नमाय बोलती है। वह तो घर में भी भाई-बहनों से संस्कृत में वार्तालाप करती है।
दसवीं की शाइस्ता कहती है कि उसके भाई हसीन पढ़े-लिखे नहीं हैं लेकिन उसने उन्हें भी संस्कृत के कुछ वाक्य सिखाए हैं। सातवीं कक्षा की सबीना जैदी ने खुद सीखने के साथ अपनी बहन शाइस्ता को भी संस्कृत सिखाई है। सबीना संस्कृत में एमए करके संस्कृत शिक्षिका बनने की ख्वाहिशमंद है। वसुधैव कुटुंबकम के श्लोक सुनाने वाले सलमान को देखकर संस्कृत का प्रकाड ज्ञानी का एहसास होता है। अजहरुद्दीन सैफी, बुशरा समेत अन्य बच्चे भी इसी प्रवाह में संस्कृत बोलते हैं। फरमान और सबीना को लघु नाटिका अतिथि देवो भव: का मंचन करते देखकर इनके धर्म और भाषाई दीवारों से ऊपर होने का खुद-ब-खुद एहसास हो जाता है।
उधर, विद्यालय प्रबंधक तैय्यब अली कहते हैं कि संस्कृत ही संस्कृति के विकास का आधार है। यदि बच्चे संस्कृत में कैरियर बनाएं, तो उनके लिए खुशी की बात है। संस्कृत भारती के जिला संयोजक मनोज कुमार का कहना हैं कि उनका प्रयास इनमें से कुछ बच्चों को संस्कृत की उच्च शिक्षा दिलाने का है। संस्कृत भारती के पश्चिम यूपी अध्यक्ष और मेरठ कालेज में संस्कृत रीडर डा. वाचस्पति कहते हैं कि संस्कृत विश्व की भाषा थी। बच्चों की यह ललक तारीफ के काबिल है।
भाषा पर हिंदू, मुसलमान किसी का अधिकार नहीं है। जिसे ज्ञान है, भाषा उसी की होती है। bahut sahi aur khari baat..... jaankari dene ke liye aapka aabhaari hoon....
जवाब देंहटाएंक्या धर्मांध लोग इससे कुछ सबक लेंगे ??
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने और बिल्कुल सही फ़रमाया है! भाषा से प्यार होनी चाहिए न की किसी को भेद भाव करनी चाहिए और न मज़हब को लाना चाहिए ! हमारे देश में अलग अलग राज्य में अलग अलग भाषा हैं पर ये नहीं की वो हिंदू के हैं या सिख के हैं! अगर कोई दूसरी भाषा सीखना चाहते हैं तो उससे बड़ी बात और कुछ नहीं!
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