हर साल बच्चों के प्रिय चाचा जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बच्चों के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। बड़ी-बड़ी बातें की जाती है, लेकिन साल-दर-साल उनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
भारत में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगे 23 साल हो गए है, लेकिन विश्व में सबसे ज्यादा बाल मजदूर यहीं हैं। इनकी संख्या करीब छह करोड़ है। खदानों, कारखानों, चाय बागानों, होटलों, ढाबों, दुकानों आदि हर जगह इन्हें कमरतोड़ मेहनत करते हुए देखा जा सकता है। कच्ची उम्र में काम के बोझ ने इनके चेहरे से मासूमियत नोंच ली है।
इनमें से अधिकतर बच्चे शिक्षा से दूर खतरनाक और विपरीत स्थितियों में काम कर रहे है। उन्हें हिंसा और शोषण का सामना करना पड़ता है। इनमें से कई तो मानसिक बीमारियों के भी शिकार हो जाते हैं। बचपन खो करके भी इन्हे ढग से मजदूरी नहीं मिलती।
भारत में अशिक्षा, बेरोजगारी और असंतुलित विकास के कारण बच्चों से उनका बचपन छीनकर काम की भट्ठी में झोंक दिया जाता है। इसलिए जब तक इन समस्याओं का हल नहीं किया जाएगा, तब तक बाल श्रम को रोकना असंभव है। ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि सभी बच्चों को मुफ्त और बेहतर शिक्षा मिल सके। हर परिवार को कम से कम रोजगार, भोजन और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों। साथ ही बाल-मजदूरी से जुड़े सभी कानून और सामाजिक-कल्याण की योजनाएं कारगर ढंग से लागू हों।
देश में बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति भी बेहद चिंताजनक है। ब्रिटेन की एक संस्था के सर्वे के अनुसार पूरी दुनिया में जितने कुपोषित बच्चे हैं, उनकी एक तिहाई संख्या भारत में है। यहा तीन साल तक के कम से कम 46 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इसके अलावा प्रतिदिन औसतन 6,000 बच्चों की मौत होती है। इनमें 2,000 से लेकर 3,000 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है।
भारत में बच्चों का गायब होना भी एक बड़ी समस्या है। इनमें से अधिकतर बच्चों को संगठित गिरोहों द्वारा चुराया जाता है। ये गिरोह इन मासूमों से भीख मंगवाते हैं। अब तो मासूम बच्चों से छोटे-मोटे अपराध भी कराए जाने लगे है। पिछले एक साल में दिल्ली मे दो हजार से ज्यादा बच्चे गायब हुए। इन्हें कभी तलाश ही नहीं किया गया, क्योंकि ये सभी बच्चे बेहद गरीब घरों के थे।
यह स्थिति तो देश की राजधानी दिल्ली की है। पूरे देश की क्या स्थिति होगी, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। अगर गायब होने वाला बच्चा समृद्ध परिवार का होता है तो शासन और प्रशासन में ऊपर से लेकर नीचे तक हड़कंप मच जाता है।
यदि बच्चा गरीब घर से ताल्लुक रखता है तो पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती। पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी कि वह सिर्फ अमीरों के बच्चों को तलाशने में तत्परता दिखाती है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 80 प्रतिशत पुलिस वाले गुमशुदा बच्चों की तलाश में रुचि नहीं लेते। भारत में हर साल लगभग 45 हजार बच्चे गायब होते हैं और इनमें से 11 हजार बच्चे कभी नहीं मिलते।
संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव में 2007 मे भारत में बाल अधिकार संरक्षण आयोग गठित किया गया था। आयोग ने गुमशुदा बच्चों के मामले मे राच्य सरकारों को कई सुझाव और निर्देश दिए थे। इनमें से एक गुम होने वाले हर बच्चे की एफआईआर तुरंत दर्ज किए जाने के संदर्भ में था, लेकिन सच्चाई सबके सामने है।
बाल विवाह एक और बड़ी समस्या है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में जिन लड़कियों की बचपन में शादी कर दी जाती है, उनमें एक तिहाई से भी ज्यादा भारत से हैं। सालभर में लाखों बच्चिया इसके लिए अभिशप्त है। इन्हें भीषण शारीरिक और मानसिक यातना झेलनी पड़ती है।
बाल विवाह पर प्रतिबंध के बावजूद रीति-रिवाज, पिछड़ेपन ओर रूढि़वादिता के कारण अब भी देश के कई हिस्सों में लड़कियों को विकास का अवसर दिए बिना अंधे कुंए में धकेला जा रहा है। छोटी उम्र में विवाह से कई बार लड़कियों को बाल वैधव्य का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका जीवन मुसीबतों से घिर जाता है।
इसके अलावा बाल विवाह से कई बार वर-वधू के शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक विकास में विपरीत असर पड़ता है। बाल विवाह के कारण लड़कियों की पढ़ाई रुक जाती है। कम पढ़ी-लिखी महिला अंधविश्वासों और रूढि़यों से घिर जाती है। ऐसी पीढ़ी से देश व समाज हित की क्या उम्मीद की जा सकती है?
इससे दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है कि करीब 53 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण के शिकार हैं। इनमें केवल लड़किया ही नहीं, बल्कि लड़के भी हैं। पाच साल से 12 साल की उम्र के बीच यौन शोषण के शिकार होने वाले बच्चों की संख्या सबसे अधिक है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो बच्चों के मामले में भारत की स्थिति सबसे खराब है। प्रशासनिक अधिकारियों को इस तरह की कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती कि वह बच्चों के प्रति संवेदशनील होकर अपने दायित्व को समझें। बच्चे वोट बैंक नहीं होते इसलिए राजनीतिक पार्टिया दिखावे के लिए भी उनकी चिंता नहीं करतीं। सब बातें छोड़ भी दें तो सरकार बच्चों के लिए बेसिक शिक्षा तक नहीं उपलब्ध करवा पा रही है।
पूरे देश में स्कूलों का अब भी अभाव है। जहा स्कूल है भी, वहा कुव्यवस्था है। कहीं अध्यापकों की कमी है तो कहीं जरूरी सुविधाएं नहीं हैं। 10 सितंबर को दिल्ली के खजूरी खास स्थित राजकीय वरिष्ठ बाल/बालिका विद्यालय में परीक्षा से पूर्व मची भगदड़ में पाच छात्रों की मौत हो गई थी, जबकि 32 छात्राएं घायल हुई थीं। इसके पीछे मुख्य वजह कुव्यवस्था थी। यह स्थिति देश की राजधानी की है। इससे पता चलता है कि हम देश के भविष्य के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य संध्या बजाज का कहना है कि गुमशुदा बच्चों के अधिकाश मामलों में रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती। गुम होने वाले ज्यादातर बच्चे शोषण का शिकार होते है। इसलिए हर गुमशुदा बच्चे की रिपोर्ट जरूर दर्ज की जानी चाहिए। बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिलने से उनकी जिदंगी और बेहतर बन जाएगी।
हम उनसे सबक क्यों नहीं लेते
कई देशों में बच्चों के लिए अलग से लोकपाल नियुक्त हैं। सबसे पहले नार्वे ने 1981 में बाल अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक अधिकारों से युक्त लोकपाल की नियुक्ति की। बाद में आस्ट्रेलिया, कोस्टारिका, स्वीडन [1993], स्पेन [1996], फिनलैंड आदि देशों ने भी बच्चों के लिए लोकपाल की नियुक्ति की।
लोकपाल का कर्तव्य है बाल अधिकार आयोग के अनुसार बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा देना और उनके हितों का समर्थन करना। यही नहीं, निजी और सार्वजनिक प्राधिकारियों में बाल अधिकारों के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करना भी उनके दायित्वों में है। कुछ देशों में तो लोकपाल सार्वजनिक विमर्शो में भाग लेकर जनता की अभिरुचि बाल अधिकारों के प्रति बढ़ाते हैं और जनता व नीति निर्धारकों के रवैये को प्रभावित करते हैं।
बच्चों के शोषण एवं बालश्रम की समस्याओं के मद्देनजर भारत में भी बच्चों के लिए स्वतंत्र लोकपाल व्यवस्था गठित करने की मांग अक्सर की जाती रही है, लेकिन सवाल यह है कि इतने संवैधानिक उपबंधों, नियमों-कानूनों, मंत्रालयों और आयोगों के बावजूद अगर बच्चों के अधिकारों का हनन हो रहा है तो समाज भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
कल हर बच्चा अपनी पुरानी पीढ़ी से मांगेगा हिसाब
हर साल की तरह फिर से 14 नवंबर यानी बाल दिवस आ गया। हर साल की तरह बच्चों के मसीहा चाचा नेहरु को याद करने का दिन। बच्चों को देश का भविष्य और कर्णधार बताने, उनकी तरक्की और शिक्षा के नए वायदे करने, स्कूली बच्चों के बीच कार्यक्रम करके नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षा-व्यापारियों के फोटो खिंचवाने और अखबार में खबर छपवाने का दिन।
आखिर कब तक हमारा देश अपने आपको और उन मासूम बच्चों को धोखा देता रहेगा, जिन्हें अब तक वह भरपेट रोटी और आजादी जैसी बुनियादी चीजें भी मुहैया नहीं करा सका। शिक्षा, स्वास्थ्य, बचपन का स्वाभिमान और भविष्य की गारंटी तो दूर की बात है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 47 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। हाल ही में यूनीसेफ ने खुलासा किया है था कि दुनिया भर में पाच साल से कम उम्र में मौत के मुंह में समा जाने वाले लगभग 97 लाख बच्चों में से 21 लाख भारत के होते हैं। कम वजन के पैदा होने वाले साढ़े पंद्रह करोड़ शिशुओं में से साढ़े पाच करोड़ हमारे देश के होते हैं।
पाच से छह करोड़ बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं। लाखों बच्चे जानवरों से भी कम कीमत में एक से दूसरी जगह खरीदे और बेचे जाते हैं। 40-50 हजार बच्चे मोबाइल फोन, बटुए, खिलौने या किसी सामान की तरह हर साल गायब कर दिए जाते हैं। अकेले देश की राजधानी दिल्ली में हर रोज औसतन छह बच्चे गायब किए जाते हैं। सड़कों पर जबरिया भीख मंगवाने के लिए अंधा बनाकर या हाथ-पाव काटने की कहानी स्लमडाग मिलियनायर की कल्पना नहीं, बल्कि रोजमर्रा की असलियत है।
शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब किसी मासूम बच्ची से बलात्कार करने या उसकी हत्या कर देने की घटनाएं अखबारों में देखने को न मिलती हों। घरेलू बाल मजदूरी रोकने के लिए दो साल पहले एक कठोर कानूनी प्रावधान लाया गया था, लेकिन कभी किसी अदाकारा के घर तो कभी सरकारी अधिकारी और तथाकथित मध्यवर्गीय शिक्षित व्यवसायी के घर घरेलू बाल नौकरानियों को गर्म लोहे से दाग देने या बुरी तरह मारपीट करने की घिनौनी वारदातें आए दिन सामने आती हैं। मीडिया में थोड़ा बहुत शोर शराबा हो जाता है। अधिकारियों और स्वयंसेवी संगठनों के नेताओं के बाइट किसी चैनल में एक दो दिन चल जाते हैं और फिर वही ढाक के तीन पात।
बाल दिवस की रस्म अदायगी करने से पहले हमें अपने अंदर झाकना चाहिए। निजी सार्वजनिक और राजनैतिक ईमानदारी की भी जाच पड़ताल करनी चाहिए। अपनी खुद की संतानों के भविष्य को संवारने के लिए जो लोग घूसखोरी और भ्रष्टाचार तक में लिप्त पाए जाते हैं, वे दूसरों के बच्चों को गुलाम बनाने से नहीं कतराते। अपने बच्चों को महंगे से महंगे अंग्रेजी स्कूलों में दाखिल कराने के लिए जमीन-आसमान एक कर देते हैं, लेकिन किसी चाय के ढाबे पर बेशर्मी से बच्चे के हाथ की चाय पीते हुए या जूते पालिश कराते हुए उन्हें यह एहसास तक नहीं होता कि भारत का भविष्य सिर्फ उनके बाल-गोपाल ही नहीं, दूसरे बच्चे भी हैं।
सार्वजनिक जीवन में दोहरे मानदंड की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि नेता-अधिकारी और अधिकारों की बात करने वाले बुद्धिजीवी कुतर्को का अंबार लगा देते हैं। मसलन, गरीब का बच्चा काम नहीं करेगा तो भूखा मर जाएगा या लड़की वेश्यावृत्ति करने लगेगी, इसलिए बेहतर है कि वह बाल मजदूरी करे। कुछ लोग कहते हैं कि देश के पास इतने संसाधन कहा कि हर बच्चे का गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई मुहैया कराई जा सके। यदि गरीब बच्चों को मंहगे अंग्रेजी स्कूलों में जबरन भर्ती कराया जाएगा तो वहा शिक्षा का स्तर खराब हो जाएगा आदि।
आखिर हम कब तक बच्चों के वर्तामन और भविष्य के साथ पाखंड करते रहेंगे? कब तक उनको धोखा देते रहेंगे? यह सच है कि अधिकाश बच्चे आज अपने आकाओं से जवाब मागने का माद्दा नहीं रखते, लेकिन आने वाले कल की असलियत आज से एकदम अलग होगी यह तय समझिए। सदियों से चले आ रहे पाखंड और बचपन विरोधी परंपराओं को कुछ बच्चों ने चुनौती देना शुरू कर दिया है। यह सैलाब रुकने वाला नहीं हैं। कल हर बच्चा अपनी पुरानी पीढ़ी से हिसाब जरूर मागेगा, तब हम उन्हें क्या जवाब देंगे?
- अनुराग [लेखक सुपरिचित सामाजिक कार्यकर्ता हैं]
अगर वास्तव में बच्चे किसी देश का भविष्य है तो भारत का भविष्य अंधकारमय है। भविष्य का भारत अनपढ़, दुर्बल और लाचार है। कोई भी इनका अपहरण, अंग-भंग, यौन शोषण कर सकता है और बंधुआ बना सकता है।
जवाब देंहटाएंजिन वाक्यों से आपने अपना आलेख शुरू किया .. उस बात के पूरे प्रमाण आपके आलेख में ही मिल जाते हैं .. वास्तव में आम बच्चों के समक्ष बहुत ही चिंतनीय स्थिति है .. और इनकी समस्याओं को निबटाने में कौन आगे आए .. रोजी रोटी के साथ ही साथ अपनी बढती महत्वाकांक्षा को पूरी करने के लिए सभी एक अंधकार भरे रास्ते पर आगे चलते जा रहे हैं !!
शिवम् मिश्रा जी आप की एक एक बात से सहमत हुं, लेकिन आप भुल गये जो अमीर घरो के बच्चे है वो भी नालायक ही है आधे से ज्यादा, तो देश का भाविषया त्रो आप ने बता ही दिया..... बहुत सही लिखा आप ने धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंयह लिंक भी देख लें-
http://anand.pankajit.com/2009/11/blog-post_15.html