सभी ब्लॉगर मित्रों को प्रणाम !
आज सुबह ४ बजे मैनपुरी स्टेशन पर जब कलान्दी आ कर रुकी, तब यु लगा जैसे कितने सालो के बाद मैं अपने देश वापस लौटा हूँ ........हर एक आदमी अपना सा लगा, रोज़ जिन सडको की भीड़ मुझे परेशान करती थी.... उन्ही सड़को पर छाया भोर का सन्नाटा मुझे आज परेशान कर रहा था....क्यों खोज रहा था मैं किसी एसे को जो मुझे देखते ही बोले,"आ गए शिवम् !!" क्यों चाह रहा था मैं कि कोई साइकिल वाला या रिक्शा वाला मेरी गाड़ी के ड्राईवर को तेज़ चलने पर कुछ सुना दे ....क्यों थी यह ललक एक अदना से वार्तालाप की..............क्यों ???.............. शायद इसी को घर लौटना कहते है !!
पूरे दिन में हमारे साथ जो जो होता है उसका ही एक लेखा जोखा " बुरा भला " के नाम से आप सब के सामने लाने का प्रयास किया है | यह जरूरी नहीं जो हमारे साथ होता है वह सब " बुरा " हो, साथ साथ यह भी एक परम सत्य है कि सब " भला " भी नहीं होता | इस ब्लॉग में हमारी कोशिश यह होगी कि दिन भर के घटनाक्रम में से हम " बुरा " और " भला " छांट कर यहाँ पेश करे |
सदस्य
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरा परिचय
मेरे अन्य ब्लॉग
ब्लॉग आर्काइव
-
▼
2009
(393)
-
▼
नवंबर
(28)
- हर रोज नई चाल दिखा रहा है बाजार
- सरकारी फाइल और मुआवजे का मरहम
- रिकार्ड में बनाए दरोगा ई सिपाही क्या है भाई....??
- सच्चा प्यार चाहिए या नानवेज जोक..... ड़ाल करें .....
- टी आर पी की दौड़ में हारे क्विज शो: सिद्धार्थ बासु
- महारष्ट्र में मीडिया कर्मिओं पर हमले पर मैनपुरी की...
- महारष्ट्र में मीडिया कर्मिओं पर हमले पर मैनपुरी की...
- सिर्फ 19 रुपये में पुराना नंबर रखना संभव
- भव्यता का प्रतीक मानी जाती थी पेंसिल !!
- सचिन बने 30 हजारी
- कलाम ने टीपू को बताया था राकेट का अविष्कारक
- ९० के दशक के बाद बदलती देश की पत्रकारिता
- इंदिरा गांधी के फैसलों में होती थी हिम्मत !!
- अब सभी समझ पाएंगे काग की भाषा!
- मोहिंदर अमरनाथ कों वर्ष 2008-09 का 'लाइफटाइम अचीव...
- राजनीतिक अवसरवादिता - अब बस भी करो !!
- बस एक सवाल - कमेन्ट मोडरेशन सही या ग़लत ??
- बीसीसीआई और बाकी खेल जगत ने लगाई ठाकरे को फटकार
- ताज में दफन चार मुमताज
- सचिन से दूर अभी भी कई विश्व रिकार्ड
- कौन लिख रहा है इन नौनिहालों की तकदीर ??
- दिमाग को चुस्त बनाती है हिंदी !!
- एक ही कंठ में आयत और श्लोक
- स्वतंत्रा संग्राम में सुरेंद्र नाथ की भूमिका अहम
- क्रांतिकारी विचारों के जनक :- विपिन चंद्र पाल (०७/...
- मूर्धन्य पत्रकार प्रभाष जोशी नहीं रहे
- मेरी दिल्ली यात्रा !!
- शायद इसी को घर लौटना कहते है !!
-
▼
नवंबर
(28)
haaan! isey hi ghar lautna kahte hain ....Shivam ji.....
जवाब देंहटाएंAapka swaagat hai.........
Hum to aapko bahut miss kar rahe they.....
हाँ शायद इसी को...घर लौटना कहते हैं.
जवाब देंहटाएंभिलकुल ऐसी ही अनुभूती मुझे भी हुई थी जब हम तीन साल बाद कुवैत से लौटे थे लग रहा था जैसे सडक पर चलने वाला हर शख्स मेरा रिश्तेदार है । इसी को घर लौटना कहते हैं ।
जवाब देंहटाएंसही लिखा...इसी को कहते है घर लौटना...
जवाब देंहटाएंहा इसी को कहते है घर लोटना.... जब सब अपने लगे, दिल शोर मचाने को करे... बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंघर लौटने का यह अहसास बहुत ही सुखद होता है । मुझे शरद बिल्लोरे की एक् कविता याद आती है " हम नौकरी करने घर से बाहर निकलते है/ और फिर कभी घर लौट नही पाते
जवाब देंहटाएंबधाई हो जी!
जवाब देंहटाएंअब आपकी पोस्ट नियमित पढ़ने को मिलेंगी!