यह एक खतरनाक संकेत है। उठापटक से भरपूर शेयर बाजार किसी को सहारा नहीं दे रहा है। यह बाजार न तो छोटे खुदरा निवेशकों का बाजार है और न ही रोजाना ट्रेडिंग कर कमाने खाने वाले कारोबारियों का। कारोबार में उतार-चढ़ाव इतना ज्यादा है कि कोई नहीं समझ पा रहा कि बाजार की चाल आखिर कैसी रहने वाली है। हां, इतना जरूर है कि यह बाजार एक ऐसे बुलबुले में हवा भरता दिखाई दे रहा है, जिस पर बाजार की निगरानी रखने वाली सरकारी ताकतों की नजर जाना बेहद जरूरी है।
पिछले करीब एक महीने से बाजार हर रोज नई चाल दिखा रहा है। एक दिन दो सौ अंक ऊपर जाता है तो दूसरे दिन ढाई सौ प्वाइंट गिरता भी है। उसके अगले दिन फिर डेढ़ सौ प्वाइंट ऊपर जाकर दो दिन पुराने स्तर को पा लेता है। यानी घूम फिर कर बाजार फिर वहीं लौट आता है। जिस अंदाज और जहां से बाजार में पैसा आ रहा है, उसे देखकर अगर अभी बाजार नियंत्रक नहीं चौंक रहा है तो यह सबके लिए खतरनाक हो सकता है।
बाजार की यह हालत छोटे निवेशकों के लिए बहुत ज्यादा जोखिम भरी है। पिछली मंदी में भारी भरकम नुकसान उठाने के बाद खुदरा निवेशक बमुश्किल छह महीने पहले बाजार में लौटा है। लेकिन बाजार की स्थिति डांवाडोल होने के बाद अब फिर उसने अपने हाथ खींच लिये हैं। पिछले तीन-चार महीने में ऐसे छोटे निवेशकों की भागीदारी बाजार में तेजी से कम हुई है, जो नकद सौदे करके डिलीवरी लेने में यकीन रखते हैं। यही निवेशक बाजार को लंबे समय तक आधार प्रदान करते हैं। लेकिन शेयर बाजार के ऐसे नकद कारोबार को देखें तो पता चलता है कि इस साल जून के मुकाबले अक्टूबर में रोजाना औसतन कारोबार 10 से 12 फीसदी घट गया है। यानी शेयर बाजार में डिलीवरी लेने वाले सौदे कम हो रहे हैं।
दूसरी तरफ सटोरियों की जमात बढ़ रही है। वायदा सौदों का कारोबार शेयर बाजार में बढ़ रहा है। ऐसा कारोबार पिछले चार महीने में रोजाना औसतन 69,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 75,000 करोड़ रुपये से ऊपर निकल गया है। मतलब साफ है। निवेशकों का भरोसा बाजार में कम हो रहा है। नकद में डिलीवरी लेकर सौदे करने का मतलब है कि निवेशक में लंबे समय तक बाजार में टिकना चाहता है। यह तथ्य और भी दिलचस्प तब हो जाता है जब यह दिख रहा है कि इन चार महीने में शेयर बाजार के सूचकांक की रफ्तार काफी तेज रही है। इसके बावजूद लंबी अवधि वाले खुदरा निवेशक का भरोसा बाजार में नहीं बन पा रहा है।
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियां अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही हैं? या फिर भविष्य में उनके प्रदर्शन में सुधार की उम्मीद नहीं है? जी नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। दरअसल इसकी सबसे बड़ी वजह है विदेशी संस्थागत निवेशकों [एफआईआई] की बड़े पैमाने पर शेयर बाजार में मौजूदगी। बीते साल यानी 2008 में मंदी के चलते शेयर बाजार से एफआईआई गायब हो गये थे। लेकिन वर्ष 2009 की शुरुआत से ही भारतीय अर्थव्यवस्था के सकारात्मक संकेतों से वे फिर यहां लौटे हैं। लेकिन इस बार कुछ ज्यादा तेजी के साथ।
तमाम अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां मान रही हैं कि इस वक्त चीन और भारत दो अर्थव्यवस्थाएं ऐसी हैं, जो तेज रफ्तार से आगे बढ़ती दिखाई दे रही हैं। इन दोनों में भी एफआईआई रिटर्न के लिहाज से भारतीय शेयर बाजार को ज्यादा बेहतर मान रहे हैं। लिहाजा इस साल जनवरी से अब तक एफआईआई घरेलू शेयर बाजार में 15 अरब डालर झोंक चुके हैं। जाहिर है वे यह काम धर्माथ नहीं कर रहे हैं। उन्हें अपने निवेश पर मुनाफा चाहिए। लिहाजा वे खरीदो-बेचो-खरीदो की नीति पर चलते हुए बाजार में कृत्रिम उतार-चढ़ाव पैदा कर रहे हैं।
एफआईआई के निवेश में एक और पहलू भी उजागर हुआ है। और यह ज्यादा खतरनाक है। विदेशों से आने वाले इस निवेश में एक बड़ा हिस्सा पार्टिसिपेटरी नोट्स [पी नोट्स] के जरिए आया है। आइए पहले समझ लेते हैं कि पी नोट्स का निवेश क्या है? दरअसल घरेलू शेयर बाजार में वही एफआईआई निवेश कर सकते हैं जो सेबी के पास पंजीकृत होते हैं। लेकिन विदेशों में कई ऐसे बड़े निवेशक या फंड भी हैं, जो सेबी के पास पंजीकृत नहीं है। ऐसे निवेशकों के लिए बाजार नियामक ने पी नोट की सुविधा दी है। यानी सेबी के पास पंजीकृत ब्रोकर ऐसे विदेशी निवेशकों को पी नोट जारी करते हैं और वे इन ब्रोकरों के जरिए भारतीय बाजार में पैसा लगाते हैं।
सरकार भी मानती है कि पिछले दो महीने में भारत में आने वाले एफआईआई निवेश में पी नोट्स के जरिए आने वाले निवेश की हिस्सेदारी काफी बड़ी रही है। सितंबर और अक्टूबर में आए एफआईआई निवेश में तीसरा हिस्सा पी नोट्स का रहा है। सरकार ने भी माना है कि ऐसा निवेश बढ़ रहा है। अक्टूबर में यह राशि 1,24,575 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। जबकि अगस्त तक यह 1,10,355 करोड़ रुपये थी। हालांकि यह कहना काफी मुश्किल और गलत होगा कि पी नोट्स के जरिए घरेलू बाजार में आने वाला यह पूरा निवेश जोखिम भरा है। लेकिन हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि पिछले साल अक्टूबर में शेयर बाजार में जो कुछ हुआ, उसमें इस तरह के निवेश का बहुत बड़ा हाथ था।
लिहाजा यह वक्त है सचेत हो जाने का। बाजार नियंत्रक सेबी के लिए भी और छोटे व खुदरा निवेशकों के लिए भी, जो बाजार में निवेश करते हैं लंबी अवधि के अपने लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से। हम तो यही उम्मीद करेंगे कि ऐसा कुछ न हो जिसकी आशंका हम यहां व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन कहावत है कि दवा करने से अच्छा है परहेज कर लिया जाए। इसलिए अभी ऐसे निवेश की पहचान कर उसे बाजार से अलग कर देना चाहिए जो आने वाले समय में किसी तरह की दिक्कत पैदा करे।
- नितिन प्रधान