राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र के डॉक्टरों ने एक अनुसंधान के बाद कहा है कि हिंदीभाषी लोगों के लिए मस्तिष्क को चुस्त-दुरुस्त रखने का सबसे बढि़या तरीका यही है कि वे अपनी बातचीत में अधिक से अधिक हिंदी भाषा का इस्तेमाल करें और अंग्रेजी का इस्तेमाल जरुरत पड़ने पर ही करें। विज्ञान पत्रिका 'करंट साइंस' में प्रकाशित अनुसंधान के पूरे ब्यौरे में मस्तिष्क विशेषज्ञों का कहना है कि अंग्रेजी बोलते समय दिमाग का सिर्फ बायां हिस्सा सक्रिय रहता है, जबकि हिन्दी बोलते समय मस्तिष्क का दायां और बायां, दोनों हिस्से सक्रिय हो जाते हैं जिससे दिमागी स्वास्थ्य तरोताजा रहता है।
राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र की भविष्य में अन्य भारतीय भाषाओं के प्रभाव पर भी अध्ययन करने की योजना है। अनुसंधान से जुड़ी डाक्टर नंदिनी सिंह के अनुसार मस्तिष्क पर अंग्रेजी और हिंदी भाषा के प्रभाव का असर जानने के लिए छात्रों के एक समूह को लेकर अनुसंधान किया गया। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र द्वारा कराए गए इस अध्ययन के पहले चरण में छात्रों से अंग्रेजी में जोर जोर से बोलने को कहा गया और फिर हिंदी में बात करने को कहा गया।
इस समूची प्रक्रिया में दिमाग का एमआरआई किया जाता रहा। नंदिनी के अनुसार मस्तिष्क के परीक्षण से पता चला है कि अंग्रेजी बोलते समय छात्रों के दिमाग का सिर्फ बायां हिस्सा सक्रिय था, जबकि हिंदी बोलते समय दिमाग के दोनों हिस्से [बाएं और दाएं] सक्रिय हो उठे। अनुसंधान टीम का कहना है कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि अंग्रेजी एक लाइन में सीधी पढ़ी जाने वाली भाषा है, जबकि हिंदी के शब्दों में ऊपर-नीचे और बाएं-दाएं लगी मात्राओं के कारण दिमाग को इसे पढ़ने में अधिक कसरत करनी पड़ती है जिससे इसका दायां हिस्सा भी सक्रिय हो उठता है।
इन डाक्टरों की राय है कि हिंदीभाषियों को बातचीत में ज्यादातर अपनी भाषा का इस्तेमाल ही करना चाहिए और अंग्रेजी को जरुरत पड़ने पर संपर्क भाषा के रूप में। इस अनुसंधान के परिणामों पर जाने माने मनोचिकित्सक डा. समीर पारेख ने कहा कि ऐसा संभव है। उनका कहना है कि हिंदी की जिस तरह की वर्णमाला है, उसके मस्तिष्क को कई फायदे हैं।
ताज्जुब है .. वैज्ञानिक किसी भी क्षेत्र में जब भी नए शोध करते हैं .. हमारी भारतीय पद्धतियां ही तुलनात्मक ढंग से अच्छी सिद्ध हो जाती है .. और हम विदेशियों की नकल करना चाहते हैं !!
जवाब देंहटाएंसंभव हो तो इस लेख की एक प्रति ठाकरे बंधुओं को अवश्य भेज दें।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी।
हिन्दी कि लिपि देवनागरी है जो कि समस्त स्वर तन्त्रिकाओं को ध्यान में रख कर बनाई गई है। अतः हिन्दी बोलते समय मस्तिष्क पर इसका सर्वोत्तम प्रभाव होना स्वाभाविक है।
जवाब देंहटाएंतभी हिन्दी वाले इतने तेज होते हैं। अंशुमाली जी ने कहा कि राज ठाकरे को बता दिया जाए। बताने की आवश्यकता नहीं, हिन्दी न बोलने के कारण ही उनका दाया हिस्सा काम नहीं कर रहा। अब आपने सिद्ध किया जो सारा माजरा समझ आ गया। बढ़िया आलेख।
जवाब देंहटाएंखबर अच्छी है।
जवाब देंहटाएंतो इसका मतलब राज ठाकरे ने कभी हिन्दी बोली ही नहीं, वरना उसका दिमाग भी चुस्त रहना चाहिये था :)
जवाब देंहटाएंपहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट आई है।
जवाब देंहटाएंजानकारी देने के लिए शुक्रिया!
आप ज़रा यहीं ठहरिएगा, हम यह ख़बर राज ठाकरे को देकर आते हैं। हा हा।
जवाब देंहटाएंWaah !!! Yah rochak hi nahi utsaahjanak aur harshparak jankari bhi di aapne..aapka bahut bahut aabhar !!!
जवाब देंहटाएंIs tathy ka adhikadhik prachaar prasaar hona chahiye...
वाह बहुत ही बढ़िया और रोचक जानकारी दी है आपने ! मुझे इस बात का गर्व है की हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी है ! इस शानदार आलेख के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंहिंदी के विषय में एक और विशेष बात ये है कि विश्व की कोई भी भाषा बोली जाए उसका उच्चारण हिंदी में ही होता है.
जवाब देंहटाएंमसलन अंग्रेज कहेगा "व्हाट इस योर नेम?" आप खुद देखिये जो वर्ण बोले गए हैं वे किस भाषा के हैं.
ये हमारे देश की अन्य दूसरी भाषाओँ के साथ भी है...................
हम इसके बाद भी खुद को पिछडा मानते हैं.
हिंदी भाषा सबसे 'फोनेटिक' भाषा है....आप जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखते हैं...किसी भी तरीके से आप दूसरी तरह से नहीं लिख सकते....लेकिन अंग्रेजी में आप कहते हैं 'नो' और लिखते हैं 'कनो' KNOW...हजारों उदाहरण हैं....'निमोनिया' 'सैकोलोजी' इत्यादि.......फ्रेंच में लिखते हैं rendez vous लेकिन पढ़ते हैं 'रानडे वू'....जाहिर सी बात है...इतना कन्फुसियन दीमाग कहाँ झेल आएगा...इसीलिए हिंदी पढिये, हिंदी बोलिए और हिंदी देखिये...हमें नाज़ है हिंद और हिंदी पर...
जवाब देंहटाएंजय हिंद....
जय हिंदी...
हिन्दी को ऐसे ही टॉनिक की जरूरत है
जवाब देंहटाएंआपने अच्छी जानकारी दी
धन्यवाद।
(1) अंग्रेजी में जोर जोर से बोलने को कहा गया जब कि हिन्दी में बात करने को कहा गया। दोनो प्रक्रियाओं में फर्क है लिहाजा मस्तिष्क की सक्रियता में भी फर्क होगा। अंग्रेजी में भी बात करानी था तब तुलना करनी थी।
जवाब देंहटाएं(2) नागरी लिपि लिखने पढ़ने में मात्राओं के आगे पीछे, उपर नीचे वाली बात समझ में आती है लेकिन बोलते समय भी इसका प्रभाव होना चाहिए ऐसा समझ में नहीं आता।
सम्भवत: रिपोर्ट का प्रस्तुतिकरण ठीक नहीं है। वैसे मराठी की लिपि भी देवनागरी ही है। ...
अब मेरे उपर आप लोग जूते लेकर मत पड़ जाइएगा :)
भाई वाह बहुत उम्दा लिखा है अपने
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई
हिन्दी निस्संदेह एक वैज्ञानिक लिपि वाली भाषा है इसकी न जाने कितनी विशेषताएँ हैं।
जवाब देंहटाएं-डा० जगदीश व्योम