जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष और इतिहासकार चमन लाल का कहना है कि सांडर्स हत्याकांड में सुखदेव शामिल नहीं थे, लेकिन फिर भी ब्रितानिया हुकूमत ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। उनका कहना है कि राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की लोकप्रियता तथा क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेजी शासन इस कदर हिला हुआ था कि वह उन्हें हर कीमत पर फांसी पर लटकाना चाहता था।
अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और वे हर कीमत पर इन तीनों क्रांतिकारियों को ठिकाने लगाना चाहते थे। लाहौर षड्यंत्र [सांडर्स हत्याकांड] में जहां पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया, वहीं अंग्रेजों ने सुखदेव के मामले में तो सभी हदें पार कर दीं और उन्हें बिना जुर्म के ही फांसी पर लटका दिया।
अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और वे हर कीमत पर इन तीनों क्रांतिकारियों को ठिकाने लगाना चाहते थे। लाहौर षड्यंत्र [सांडर्स हत्याकांड] में जहां पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया, वहीं अंग्रेजों ने सुखदेव के मामले में तो सभी हदें पार कर दीं और उन्हें बिना जुर्म के ही फांसी पर लटका दिया।
उन्होंने कहा कि सांडर्स हत्याकांड में पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया और सुखदेव को इस मामले में बिना जुर्म के ही सजा दे दी गई। पंद्रह मई १९०७ को पंजाब के लायलपुर [अब पाकिस्तान का फैसलाबाद] में जन्मे सुखदेव भी भगत सिंह की तरह बचपन से ही आजादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। दोनों एक ही सन में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।
चमन लाल ने बताया कि दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के लिए जब हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी [एचएसआरए] की पहली बैठक हुई तो उसमें सुखदेव शामिल नहीं थे। बैठक में भगत ने कहा कि बम वह फेंकेंगे, लेकिन आजाद ने उन्हें इजाजत नहीं दी और कहा कि संगठन को उनकी बहुत जरूरत है। दूसरी बैठक में जब सुखदेव शामिल हुए तो उन्होंने भगत सिंह को ताना दिया कि शायद तुम्हारे भीतर जिंदगी जीने की ललक जाग उठी है, इसीलिए बम फेंकने नहीं जाना चाहते। इस पर भगत ने आजाद से कहा कि बम वह ही फेंकेंगे और अपनी गिरफ्तारी भी देंगे।
चमन लाल ने बताया कि अगले दिन जब सुखदेव बैठक में आए तो उनकी आंखें सूजी हुइ थीं। वह भगत को ताना मारने की वजह से सारी रात सो नहीं पाए थे। उन्हें अहसास हो गया था कि गिरफ्तारी के बाद भगत सिंह की फांसी निश्चित है। इस पर भगत सिंह ने सुखदेव को सांत्वना दी और कहा कि देश को कुर्बानी की जरूरत है। सुखदेव ने अपने द्वारा कही गई बातों के लिए माफी मांगी और भगत सिंह इस पर मुस्करा दिए। दोनों के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहा करते थे।
भारत माँ के इस सच्चे सपूत सुखदेव को उनके जन्मदिन के अवसर पर हम सब की ओर से शत शत नमन !!
वन्दे मातरम !!
शत शत नमन !!
जवाब देंहटाएंमिश्र जी, जन्मदिन की हार्दिक बधाइयाँ ...
जवाब देंहटाएंशहीद सुखदेव के लिए मन से नमन !
शहीद सुखदेवजी को शत शत नमन.....
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
नमन, अंग्रेजों का अन्याय सर्वविदित है।
जवाब देंहटाएंअच्छा संयोग ।
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें ।
नमन इस वीर शहीद को...... जन्मदिन की शुभकामनायें स्वीकारें....
जवाब देंहटाएंशत नमन मेरा तुम्हें!!
जवाब देंहटाएंशिवम् भाई, मुझे तो शहीद चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों से जुडी घटनाओं, इनके जीवन चरित्र इत्यादि को पढना या जानना हमेशा ही अच्छा लगता है, चाहे कितनी बार ही रीपीट क्यों न हो ..... पोस्ट के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंभारत माँ के इस सच्चे सपूत सुखदेव को मैर शत शत नमन, यह अग्रेज आज भी नही बदले...हमीं इन के जुल्म भुल गये हे.....
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
अमर शहीद सुखदेव जी को नमन!
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिवस की शुभकामनाएँ!
शहीद सुखदेवजी को शत शत नमन....
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं !