पूरे दिन में हमारे साथ जो जो होता है उसका ही एक लेखा जोखा " बुरा भला " के नाम से आप सब के सामने लाने का प्रयास किया है | यह जरूरी नहीं जो हमारे साथ होता है वह सब " बुरा " हो, साथ साथ यह भी एक परम सत्य है कि सब " भला " भी नहीं होता | इस ब्लॉग में हमारी कोशिश यह होगी कि दिन भर के घटनाक्रम में से हम " बुरा " और " भला " छांट कर यहाँ पेश करे |
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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011
रविवार, 20 फ़रवरी 2011
गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा
'हमारे अंग्रेजीदा दोस्त मानें या न मानें, मैं तो यही कहूंगा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है। न लॉन की जरूरत, न कोर्ट की, न नेट की, न थापी की। मजे से किसी पेड़ से एक टहनी काट ली, गुल्ली बना ली और दो आदमी भी आ गए, तो खेल शुरू।'
क्रिकेट वर्ल्डकप के समय मुंशी प्रेमचंद की लघुकथा गुल्ली-डंडा' के ये अंश... ! चौंकें नहीं, कहानी यूं ही याद नहीं आई। उत्तर प्रदेश के सबसे हाईटेक जिले गौतमबुद्ध नगर में गुल्ली-डंडा की प्रतियोगिता अगर देखें तो पता नहीं कितनी स्मृतियों में आप भी खो जाएं।
गांव-कस्बों व शहरों की गली-मोहल्लों में कभी सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहे गुल्ली-डंडा को हिकारत भाव से देखने वालों की तादाद खासी है। इसके बावजूद एकलव्य की कर्मभूमि दनकौर में इस पारंपरिक खेल को बचाने की पुरजोर कवायद चल रही है। गुल्ली-डंडे की यह प्रतियोगिता गौतमबुद्ध नगर के दनकौर कस्बे स्थित एकलव्य स्टेडियम में पिछले 20 साल से सर्दियों में आयोजित हो रही है। प्रतियोगिता के आयोजकों की कोशिश तो इसे कबड्डी की तर्ज पर राष्ट्रीय खेलों में शुमार कराने की है। उन्हें यह हौसला प्रतियोगिता को मिल रही लोकप्रियता और स्वीकार्यता से मिला है। शुरू में खिलाड़ी परिजन से छुपकर इसमें शामिल होते थे। अब उनकी हौसलाअफजाई के लिए परिजन ही नहीं, हजारों दर्शक जुटते हैं।
गुल्ली-डंडा टीमों के नाम स्टार क्लब, दुआ क्लब, दबंग क्लब, यंग स्टार क्लब और फना क्लब हो गए हैं तो पुरस्कार भी आधुनिक हो चुके हैं। इस बार फाइनल के विजेता कदीम क्लब को हीरो होंडा मोटरसाइकिल और उप विजेता दबंग क्लब को पाच हीरो रेंजर साइकिल दी गईं। दोनों टीमों को ब्लू टूथ और इन्फ्रारेड युक्त पाच-पाच मोबाइल फोन भी दिए गए। प्रत्येक टीम में पाच-पाच खिलाड़ी हैं। अब अगले वर्ष से मंडल स्तर पर यह प्रतियोगिता कराने की योजना है।
प्रतियोगिता की आयोजक द्रोण पर्यटन संघर्ष समिति के अध्यक्ष पंकज कौशिक कहते हैं कि यहीं एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा बना धनुर्विद्या सीखी थी।
मान्यता है कि कौरवों-पाडवों ने भी धनुर्विद्या सीखने के दौरान यहा गुल्ली-डंडा खेला था। इसलिए लोग इस खेल को जीवित रखना चाहते हैं। वह बताते हैं कि इसे राष्ट्रीय खेलों में शामिल करने के लिए खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण को भी पत्र भेजा जा चुका है।
गुल्ली-डंडा के नियम
यह खेल आप खुले मैदान में खेल सकते हैं। एक ओर जहां गिल्ली 3 से 6 इंच की होती है, वहीं डंडा 12 ले 18 इंच तक लंबा हो सकता है। जमीन पर एक छोटा घेरा (गिल्ली के आकार से छोटा) बनाया जाता है। गिल्ली को घेरे के ऊपर रखा जाता है। एक खिलाडी (स्ट्राइकर) डंडे से गिल्ली को हवा में उछालता है। इस दौरान यदि विपरीत दिशा में खडा खिलाडी गिल्ली को कैच कर लेता है, तो स्ट्राइकर आउट माना जाता है। यदि गिल्ली जमीन पर गिरती है, तो सामने वाला कोई खिलाडी (फील्डर) घेरे के ऊपर रखे डंडे को तीन बार हिट करता है। यदि वह कामयाब हो जाता है, तो स्ट्राइकर आउट माना जाता है। यदि वह कामयाब नहीं हो पाता है, तो स्ट्राइकर तीन बार डंडे के सहारे गिल्ली को हवा में उछालता है और उसके प्वाइंट्स बनते हैं। सबसे अधिक प्वाइंट्स लेने वाला खिलाडी गेम जीत जाता है।
विदेशों में भी है प्रचलित ...
भारत का यह पारंपरिक खेल विदेशों में भी खूब लोकप्रिय है। कंबोडिया में कॉन-को, इटली में लिप्पा, फिलिपींस में स्याटोंग और यूनाइटेड स्टेट में पी-वी नाम से इसे जाना जाता है।
कुछ खास ...
गिल्ली-डंडा को बांग्ला में डांगुली, कन्नड में चिन्नी डंडू, मराठी में विति डंडू कहा जाता है।
खेल खेल में विकास ...
यदि बच्चे गिल्ली-डंडा खेलते हैं, तो वे किसी भी चीज को अपने नियंत्रण में लेने और बैलेंस बनाना सीखते हैं।
शनिवार, 19 फ़रवरी 2011
जेहन में बसा है 25 जून 1983 - कपिल देव
मुझे याद नहीं आता कि कभी 25 जून, 1983 मेरे जेहन से निकला हो। भारत ने उस दिन करिश्मा किया था। हम क्रिकेट में वर्ल्ड चैम्पियन बन गए थे। उस विश्व कप से पहले किसी क्रिकेट प्रेमी ने कल्पना भी नहीं की थी कि भारत को विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल होगा। विश्व कप खेलने के लिए जाने से पहले मैं अपनी मां से मिलने चंडीगढ़ गया था। उनका आशीर्वाद लेने के लिए मैंने जब उनके चरणस्पर्श किए तो उन्होंने कहा, ''कुक्कू, भगवान करे तू कप लेकर आए''। मैं तो मानता हूं कि मां के आशीर्वाद ने ही मुझे उस कप को उठाने का मौका दिया।
मैं फाइनल से पहले 22 जून को ओल्ड ट्रॉफर्ड में इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए सेमीफाइनल मैच की बात करना चाहूंगा। उस मैच में हमने जिस आत्मविश्वास के साथ मेजबान को रौंदा उससे हमारी टीम के एक-एक सदस्य को भरोसा हो गया कि हम फाइनल में वेस्टइंडीज को धोने की कुव्वत रखते है। हमने इंग्लैंड की टीम को करीब 54 ओवरों में 213 रन पर समेट दिया था। तब तक विश्व कप 60 ओवरों का होता था। मैंने तीन, मोहिन्दर अमरनाथ और रोजर बिन्नी ने दो विकेट लिए थे। हमने लक्ष्य को 51 वें ओवर में ही हासिल कर लिया था। यशपाल शर्मा और संदीप पाटिल की ठोस बल्लेबाजी की बदौलत हम छह विकेटों से मैच जीत गए।
अब आया फाइनल का दिन। लॉर्ड्स का मैदान खचाखच भरा था। सैकड़ों तिरंगे लहरा रहे थे मैदान में। पर फाइनल का श्रीगणेश हमारे लिए शुभ नहीं रहा। हम टॉस हार गए। वेस्टइंडीज के कप्तान क्लाइव लायड ने हमें पहले बल्लेबाजी करने का न्योता दिया। सच्चाई यह है कि वेस्टइंडीज के रफ्तार के सौदागरों मैल्कम मार्शल, एंडी रॉबर्ट्स, माइकल होल्डिंग और जोल गार्नर की तेज और सधी हुई गेंदबाजी के आगे हमारे बल्लेबाज कोई बहुत उम्दा बल्लेबाजी नहीं कर सके। के. श्रीकांत (57 गेंदों में 38 रन) और जिम्मी पाजी (मोहिन्दर अमरनाथ) ने 80 गेंदों में 26 रनों का योगदान दिया। हमारी टीम 55 वें ओवर में 183 रनों पर सिमट गई। हमारी तरफ से सिर्फ तीन छक्के ही लगे। श्रीकांत, संदीप पाटिल और मदन लाल ने एक-एक छक्का मारा।
भारतीय पारी की समाप्ति के बाद हम सभी एक साथ खड़े थे क्षेत्ररक्षण के लिए जाने से पहले। हमारे कुछ साथियों को कहीं न कहीं यह लग रहा था कि वेस्टइंडीज के धाकड़ बल्लेबाज हमें धो देंगे। पर मैंने सबको यही कहा कि मैच का नतीजा कुछ भी हो पर हम मैदान में लड़ेगे जरूर। वेस्टइंडीज की पारी शुरू होते ही हमें बलविंदर सिंह संधू ने गॉर्डन ग्रीनिज के रूप में एक विकेट दिलवा दिया। उसके बाद एक-दो विकेट और गिर गए पर उसके बाद विवियन रिचर्ड्स मैदान में आकर हमारे गेंदबाजों को बड़ी ही बेरहमी से मारने लगे। मेरा तो पसीना छूटने लगा। रिचर्ड्स उन दिनों जबरदस्त फार्म में चल रहे थे। उन्होंने सेमी फाइनल में पाकिस्तान की धारदार गेंदबाजी को धूल चटा दी थी। इस दौरान मेरे से मदनलाल एक और ओवर फेंकने का आग्रह करने लगे। मुझे समझ नहीं आया कि मद्दी इतना पीटने के बाद भी गेंद क्यों फेंकना चाह रहा है। खैर, मैंने उसे गेंद थमा दी, न चाहते हुए भी। उनके सामने रिचर्ड्स ही थे। उनकी एक गेंद को रिचर्ड्स ने मिड विकेट की तरफ उठा दिया। मुझे लगा कि गेंद स्टेडियम को पार कर जाएगी। पर उसी समय मैंने महसूस किया कि हवा में तैर रही गेंद मेरे पास ही गिरने के लिए आ रही है। बस, मैं तब ही उसकी तरफ भागा। नीले आकाश की ओर देखते हुए मैं गेंद की दिशा में बढ़ रहा था और साथ ही यह भी कह रहा था- ''माई, माई, माई..''। यह कहने का मकसद यह था कि उस कैच को लपकने के लिए और कोई न आए, आ रहा हो तो रुक जाए। मैं गेंद को लपकने के लिए 20-33 कदम दौड़ा और कैच कर लिया।
मैंने जैसे ही कैच किया, सारे खिलाड़ी मेरे पास आ गए। वेस्टइंडीज के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज के पवेलियन लौटने के साथ ही मुझे अपनी चंडीगढ़ में मैच देख रही मां का आशीर्वाद याद आ गया। रिचर्ड्स के बाद बाकी वेस्टइंडीज के बल्लेबाज भी जल्दी-जल्दी आऊट हो गए। उसके बाद जो कुछ वो अब इतिहास है। उन विजय के लम्हों को मैं शब्दों में नहीं उतार सकता।
उस दिन हमें लगा था कि ' India can do Wonders. '
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इस बार के विश्व कप में आज से टीम इंडिया अपना अभियान शुरू कर रही है
टीम इंडिया को हम सब की शुभकामनाएं !
गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011
सौ साल का हो जायेगा एयरमेल - 18 फरवरी 1911 - 18 फरवरी 2011
वर्तमान में ई-मेल का जमाना है क्लिक करते ही संदेश एक स्थान से दूसरे तक पहुंच जाता है किंतु पिछले दशक तक लाल नीले स्ट्रिप बार्डर वाले पत्र की खास अहमियत थी और एयरमेल सेवा ही सबसे तेज थी। हार्ड कापी को जल्द से जल्द भेजने का माध्यम आज भी एयरमेल सेवा ही बनी हुई है जिसे शुरू हुए अब सौ साल हो रहे हैं।
फ्रेंच पायलट हैनरी पिक्वइट ने पहला एयरमेल लेटरों के पैकेट को इलहाबाद से एयर लिफ्ट करके नैनी पहुंचाया था। इस पहली एयरमेल फ्लाइट के आयोजकों को भलीभांति आभास हो गया था कि वह एक इतिहास बनाने जा रहे हैं, इसी लिये इस लोक उपयोगी सेवा की शुरूआत को एक अन्य चेरिटी के काम से जोड़ते हुए शुरू किया। 18 फरवरी 1911 को हुई इस पहली फ्लाइट से भेजे गये पत्रो से हुई आय को बैंगलूर के ट्रिनिटी चर्च के एक हॉस्टल निर्माण के लिये दान कर दिया गया।
राइट्स बंधुओं के द्वारा पहली पावर फ्लाइट की कामयाबी के बाद महज सात साल बाद हुई इस ऐतिहासिक उडान में 6500 पत्र ले जाये गये थे जिनमें पं. मोतीलाल नेहरू द्वारा अपने पुत्र जवाहर लाल नेहरू को लिखे चर्चित खत के अलावा किंग जार्ज पंचम और नीदरलैंड की महारानी के नाम लिखे गये खत भी शामिल थे।
हैनरी पर भी जारी होगा डाक टिकट
विश्व की पहली एयरमेल सेवा के लिए इस्तेमाल होने वाले वायुयान को चलाने वाले फ्रेंच पाइलट हैनरी पिक्वट पर भी उनकी यादगार शुरूआत में साहसिक योगदान के लिए फ्रांस में एक स्पेशल पोस्टल स्टाप जारी किया जा रहा है।
सोमवार, 14 फ़रवरी 2011
क्या प्यार सच में सिर्फ़ एक 'केमिकल लोचा' है -- आप बताएं !!??
कहते हैं कि प्यार एक ऐसा अनमोल तोहफा है, जो जीवन को खुशियों से भर देता है। मगर वैज्ञानिकों का दावा है कि प्यार-व्यार कुछ नहीं होता, बस दिमाग में होने वाली एक रासायनिक क्रिया है।
वेलेंटाइन डे के मौके पर चीनी विशेषज्ञों ने पहली नजर के प्यार का राज खोला है। उनका दावा है कि यह दिमाग में कुछ रसायन और हार्मोन के मिलने से होने वाली रासायनिक क्रिया है। उनका कहना है कि प्यार का एक शानदार अहसास के अलावा कोई अस्तित्व नहीं है। आम तौर पर लोग मानते हैं कि खूबसूरत लड़की और हेंडसम लड़कों से अक्सर प्यार हो जाता है। किसी को किसी की आवाज भाती है, तो कोई आंखों पर फिदा हो जाता है, लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है कि प्यार के लिए व्यक्ति की बाडी लेंग्वेज, बोलने का अंदाज और उसका स्पर्श ज्यादा मायने रखता है। इनके अलावा सबसे महत्वपूर्ण होते हैं फेरोमोन्स। शरीर में स्रावित होने वाले यह रसायन व्यक्ति के सामाजिक जीवन को प्रभावित करते हैं।
पेकिंग यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर माओ लिहुआ का कहना है कि जिसे हम प्यार मानते हैं, दरअसल वो हमारे दिमाग के अनुभव के अलावा कुछ नहीं है।
यूं होता है 'प्यार': -
किसी के प्रति आकर्षित होने पर जब तंत्रिका तंत्र के जरिए फेरोमोन्स दिमाग में पहुंचकर पियुष ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन के स्रावण को बढ़ाते हैं। इससे दिल की धड़कन तेज होने के साथ सांसों की गति भी बढ़ जाती है। रक्त का संचार शरीर में तेजी से होने लगता है और आखिर में हथेली पसीजने के साथ ही प्यास लगने लगती है। व्यक्ति का दिमाग इसे प्यार मान बैठता है, जबकि असलियत में यह एक रसायनिक क्रिया है।
चलिए जाने दीजिये इनको ... आप बताएं ... आप क्या सोचते है ... क्या है प्यार -- एक अनोखा अहेसास या सिर्फ़ एक 'केमिकल लोचा' ??
जादू से झप्पी से पिघल जाता है गुस्सा ...हैप्पी हग डे ...
याद कीजिए बचपन में जब माँ को आप पर गुस्सा आता था तो आप उन्हें कैसे मनाते थे। याद आया, बिल्कुल सही आप उनके गले लग जाते थे। तब आपको पता नहीं था कि आखिर माँ के गले लगते ही उनका गुस्सा कहां चला जाता है। मगर गुस्सा चला जरूर जाता था। दरअसल जब हम किसी को गले से लगाते हैं तो शरीर के हार्मोन में बदलाव होने लगता है। गुस्से को बढ़ाने वाला मेल हार्मोन टेस्टेस्टरान कम होने लगता है और आपका गुस्सा शात हो जाता है।
ऐसा सिर्फ हम नहीं कह रहे हैं। हाल ही में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की ओर से किए गए शोध में भी यह यह बात सामने आई है कि एक जादू की झप्पी से गुस्सा तुरंत पिघल जाता है। एक समाचारपत्र में प्रकाशित खबर के अनुसार कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की ओर से कराए गए शोध में यह बात सामने आई है कि आलिंगन और स्पर्श का संबंध कई ऐसे स्वास्थ्य गुणों से है जो तनाव और पीड़ा को कम करते हैं। शोध के अनुसार इसका प्रभाव सबसे ज्यादा महिलाओं पर होता है। यानी महिलाएं नाराज हों तो उन्हें जादू की झप्पी दे कर मनाया जा सकता है।
मनोविश्लेषक डाक्टर वंदना प्रकाश ने बताया गले लगाने के साथ ही हमारे शरीर से गुस्से को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हार्मोन तेजी से कम होने लगता है। किसी को गले लगाने में प्यार का एहसास होता है, यानी जब आप किसी को गले से लगाते हैं तो उसका सीधा मतलब होता है उसके प्रति प्यार जताना। उसे यह बताना कि आपसे गलती हो गई वह आपको माफ कर दे। अगर आम भाषा में कहें तो सिर्फ एक झप्पी गुस्से को मसके की तरह पिघला सकती है।
प्यार से गले लगाने का प्रचलन हमारे देश में हमेशा से रहा है। मगर गले मिलने का ट्रेंड चला फिल्म 'मुन्ना भई एमबीबीएस' से। जब फिल्म में मुन्ना भाई सभी को जादू की झप्पी देता था तो लोगों की आखों में आसू आ जाते थे। और इस फिल्म में किसी को गले लगाने के पीछे दर्शाई गई इच्छा ने उसे जादू की झप्पी बना दिया।
वेलेंटाइन वीक में 'हग डे' संभवत: इसलिए जुड़ा ताकि यदि किसी के प्रति आपके मन में गुस्सा है तो प्यार का दिन मनाने से पहले आप उसे गले लगाकर अपने गुस्से को ठंडा कर लें और सभी के साथ मिलकर धमाल के साथ वेलेंटाइन डे मनाएं। वेलेंटाइन डे से ठीक एक दिन पहले मनाए जाने के कारण इसका महत्व भी बहुत ज्यादा होता है।
तो आइये मिल कर मानते है ... हग डे और वेलेंटाइन डे ...!!
शनिवार, 12 फ़रवरी 2011
सलिल भाई , जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
अभी ८ फरवरी की ही बात है ... कुछ लोगो के उकसाए जाने पर हम ने खुद को अपडेट करने की सोची ... और अपना फेसबुक अकाउंट खोला ... थोड़ी देर इधर उधर घुमने के बाद जब वापस जाने लगे तो देखा कि हमारे एक ब्लॉगर मित्र की फेसबुक दीवाल पर किसी जाने पहचाने के कुछ लिखा है ... पूरी जांच पड़ताल की तो पाया अरे यह तो अपने सलिल भाई है ... अरे वही चला बिहारी ब्लॉगर बनने वाले ... झट से ना हमने भी खुद तो उनसे वहाँ जोड़ने के लिए निवेदन कर लिया ... और उनकी प्रोफाइल देखने लगे ... जिस बात पर सब से पहले निगाह गई वह था उनका जन्मदिन ... जो कि ठीक ४ दिन बाद था यानी कि १२ फरवरी को ... यानी कि आज !!!!!
तो लीजिये महाराज ... इस हलकी हलकी ठण्ड में हमारी गरमा गरम बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
सलिल भाई ,
आपको क्या लगा ... हमको पता नहीं चलेगा ... धत्त महाराज ... क्या बात करते है आप भी !
हमारी ओर से जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक
बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011
जगजीत सिंह साहब - जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आज ८ फरवरी है ... आज ग़ज़लों के सरताज और हम सब के प्रिय जगजीत सिंह जी का जन्मदिन है | जगजीत सिंह साहब किसी परिचय के मोहताज नहीं है ... उनकी गायी हुयी ग़ज़लें पिछले ३ दशको से हम सब के दिलो को राहत दे रही है !
आज उनके जन्मदिन के मौके पर पेश है उनके द्वारा दिए गए एक इंटरवीयु के कुछ अंश जिस में वो अपने पसंदीदा शायरों का जिक्र कर रहे है |
वर्तमान दौर के शायरों पर बात करते हुए प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह ने कहा है कि फैज अहमद फैज इस सदी के सबसे अहम शायर हैं और फिराक के बाद उनका ही नाम जुबां पर आता है।
आठ फरवरी 69 वर्ष के हो रहे जगजीत सिंह ने कहा, मुझे लगता हैं कि फैज इस समय के सबसे अहम शायर हैं।..और इस शताब्दी के सबसे बड़े शायरों में फिराक गोरखपुरी के बाद उनका ही नाम जुबां पर आता है। उन्होंने कहा कि फैज साहब की कई गजलें उन्होंने गायी हैं और उन्हें बेहद खुशी है कि उनकी जन्मशती पर होने वाले कार्यक्रमों में उन्हें उनकी लिखी गज़ले गाने का मौका मिल रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि उन्हें पाकिस्तान से भी न्यौता मिलेगा।
अपने एलबम में गजल के चुनाव के बारे में उन्होंने बताया, शायर नहीं बल्कि मेरे लिए शायरी सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है और किसी भी गजल को एलबम के लिए चुनते वक्त मैं अपनी छवि, व्यक्तित्व, आवाज और प्रस्तुतिकरण का खास ख्याल रखता हूं।
एक अन्य शायर सुदर्शन फाकिर साहब से जुड़े संस्मरण को याद करते हुए उन्होंने कहा, फाकिर साहब जालंधर आकाशवाणी में कार्यरत है और मैं उस वक्त कालेज में पढ़ता था। मैंने उनकी कई गजलों को आकाशवाणी के लिए गाया था। गौरतलब है कि जगजीत सिंह की गायी गई फाकिर की गजल वो कागज की कश्ती.. और पत्थर के खुदा.. बेहद लोकप्रिय हुई थी। गुलजार के साथ मरासिम और टेली सीरियल मिर्जा गालिब की गजल गाने वाले जगजीत सिंह ने उनके (गुलजार) बारे में कहा, उन्मुक्त, बहुआयामी और शब्दों के चयन में समकालीन गजलकारों में उनका कोई सानी नहीं है। इसके अलावा वह अपनी गजल में लोक शब्दों का भी खुलकर प्रयोग करते हैं।
वर्तमान दौर के दूसरे नामचीन शायर जावेद अख्तर के बारे में उन्होंने कहा, जावेद साहब समकालीन उर्दू में सादे शब्दों का इस्तेमाल करने वाले बहुत महत्वपूर्ण शायर हैं। उनकी शायरी के लफ़्ज अधिक कठोर नहीं होते। इस कारण उनकी गजल अधिक लोगों तक पहुंच पाती है।
जगजीत सिंह के जावेद अख्तर के साथ सोज और सिलसिले एलबम आए हैं। शायरी में मैलोडी के बीच पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की कविताओं पर आधारित एलबम संवेदना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, वाजपेई जी के रचना संग्रह मेरी इक्यावन कविताएं में से हमने उनकी आठ रचनाएं चुनी थी और जिनमें मैलोडी कम थी उन रचनाओं को छोड़ दिया था। हालांकि, मेरी गायी उनकी सभी कविताएं मीटर में लिखी गई थी और इन्हें गाते हुए किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं आई।
जगजीत सिंह ने बताया, इसके अतिरिक्त फिराक गोरखपुरी, सुदर्शन फाकिर, कैफी आजमी, निदा फाजली, बशीर बद्र, कतील शिफाई, राजेश रेड्डी, वाजिदा तब्बुसम और नवाज देवबंदी सहित अब तक जितने भी शायरों की गज़ल और नज्में मैंने गायी है, उनमें हर किसी में कुछ न कुछ खास बात रही है।
लीजिये अब पेश है उनकी गायी हुयी एक बेहद मकबूल ग़ज़ल का विडिओ ...
जगजीत सिंह साहब को हम सब की तरफ से जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
सोमवार, 7 फ़रवरी 2011
क्या करूँ कि तुम बहुत याद आती हो ...
जीवन में कभी कभी कुछ दिन ऐसे आ जाते है जब आप यह तय नहीं कर पाते कि खुश हो या दुखी ... ऐसा ही एक दिन मेरे जीवन में आज से ठीक ५ साल पहले आया था |
७ फरवरी २००६ के दिन यूँ तो तय था कि मेरे विवाह का योग है ... और आखिर तक हुआ भी यही ... पर इस बीच कुछ ऐसा घटा जिस ने ज़िन्दगी बदल दी ना सिर्फ़ मेरी पर मेरे बड़े भाई विक्रम की भी ... !!
विक्रम मेरी बुआ जी के लड़के है और दिल्ली में रहते है अपने परिवार के साथ | उस दिन सुबह से ही घर में भागम भाग थी ... सालो बाद घर में शादी थी ... और वह भी घर में इकलौते लड़के की ... हर तरफ रोनक और चहल पहल ... बीच बीच में ढोलक की थाप और महिलायों के मंगल गीत गाने की आवाजे ... पर मैं मन ही मन डरा हुआ था ... सरिता बुआ काफी दिनों से बीमार थी ... विक्रम भईया से रोज़ हाल चाल तो ले रहा था ... पर कभी भी ऐसा कुछ नहीं बताया उन्होंने जिस से यह लगे कि सब ठीक है ... सो एक अनजाना सा डर घेरे हुए था ... साथ साथ घर के माहौल में भी घुला हुआ था ! पापा , अम्मा और मैं तीनो यही दुआ कर रहे थे कि बस आज का दिन भी आराम से गुज़र जाए ... कुछ ही घंटे ही तो बाकी थे ... पर होनी को कुछ और ही मंजूर था ... दोपहर के १ से १:३० के बीच का ही समय था ... ठीक से याद नहीं है अब ... मेरे मोबाइल पर एक कॉल आई ... देखा तो विक्रम भईया का नाम आ रहा था नंबर के साथ ... मेरी धड़कन वहीँ रुक गई ... जिस बात का डर था ... वह घटना घट चुकी थी ... मेरी बुआ ... मेरी शुन्नो बुआ ... जा चुकी थी ...
मेरी प्यारी बुआ - सरिता |
एक लम्बी लड़ाई का ऐसा अंत ... पर मुझे सच कहूँ तो ... कुछ देर बाद ... एक अजीब सा सुकून महसूस हो रहा था ... मेरी प्यारी बुआ अब चैन से सो रही थी ... हाँ जानता था ... फिर कभी ना उठने के लिए ... पर फिर भी मुझे राहत थी ... बुआ मेरी अब दर्द से आजाद थी ... फोन पर जब उनकी आवाज़ में उनका दर्द शामिल हो जाया करता था ... मैं बता नहीं सकता कलेजा हिल जाता था | बहुत खुश थी वो कि मेरी शादी हो रही है ... अक्सर ही मुझे गिनवा दिया करती थी ... देख तेरी शादी में मुझे मिलने वाली साड़ियाँ संभल कर रख लेना ... पता नहीं मैं आ सकूँ या नहीं ... शायद उनको पता था ... वो नहीं आ पाएंगी ! अम्मा से भी कहा था ... लड़की वालों से कह देना ... मेरी एक ही नन्द है ... उसकी साडी सब से अच्छी होनी चाहिए !
साडी आई भी सब से अच्छी उनके लिए ... पर पहनने वाली नहीं थी ...
विक्रम भईया और मेरे बीच सिर्फ़ ११ महीने और १२ दिन का अंतर है ... जब हम दोनों छोटे थे ... तो अक्सर ही बुआ के पास सोने को ले कर लड़ा करते थे ... दोनों एकलौते ... और दोनों ही बुआ के लाडले ... बस एक फर्क था ... मैं थोडा बदमाश था सो आसानी से रोता नहीं था ... पर भईया मेरा सीधा साधा और अक्सर ही मेरी बदमाशीयों का मुख्य शिकार ... इस लिए बुआ को भईया को चुप करने के लिए उनका ही साथ देना पड़ता था |
मेरे जिस भाई को मैं यह कह कर रुलाया करता था कि तेरी मम्मी तो गई बाज़ार तुझे नहीं ले गई ... आज उसकी मम्मी इतनी दूर जा चुकी है कि उसके साथ साथ मैं भी रो रहा हूँ ! पूरे साल एक दुसरे से अक्सर बात करने वाले हम दोनों पिछले ५ सालों से ... पता नहीं किस डर के चलते ... साल के इस एक दिन एक दुसरे से बात करने से कतराते है !
इस समय कितनी ही बातें याद आ रही है ... क्या क्या लिखूँ ... बस ... बुआ ... जहाँ भी हो अपना आशीर्वाद देना और देख देख खुश होना कि जिस आँगन में कभी तुम खेल करती थी आज तुम्हारा कार्तिक खेल रहा है !
पर बुआ ... क्या करूँ कि तुम बहुत याद आती हो ...
शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011
अब लीजिये अपने खतों की खबर - यूआईएडीआई से जुड़ा डाक विभाग
इंटरनेट के युग में ग्रामीण भारत में पोस्ट आफिस और डाकिए के महत्व और प्रासंगिकता को देखते हुए सरकार ने डाक विभाग को विशिष्ट पहचान संख्या से जोड़ दिया है ताकि लोगों को उनकी चिठ्ठिया समय पर मिल सके और उन्हें अपने खतों की स्थिति के बारे में जानकारी मिल सके।
डाक विभाग और भारतीय विशिष्ठ पहचान संख्या [यूआईडीएआई] ने इस आशय के सहमति पत्र हस्ताक्षर किया है। लोग अब यह पता कर सकते हैं कि उनकी चिठ्ठी पते पर पहुंची है या नहीं। केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने इस अवसर पर कहा कि भारत गावों का देश है। ग्रामीण भारत में आज भी डाकिया सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है। हम चाहते हैं कि सूचना के प्रवाह के इस माध्यम को प्रौद्योगिकी से जोड़ा जाए ताकि गावों में रहने वाले लोगों को फायदा हो। उन्होंने कहा कि आज भी गाव में जब अपनों का हालचाल जानने के लिए लोगों की निगाहें साइकिल पर आने वाले डाकिए पर लगी रही है। हम चाहते हैं कि डाक व्यवस्था को पूरी तरह से सूचना प्रौद्योगिकी से जोड़ा जाए ताकि आम लोगों को फायदा हो। डाक विभाग और यूआईडीएआई के बीच यह सहयोग इसी दिशा में एक प्रयास है जो देश में समावेशी विकास सुनिश्चित करेगा।
यूआईडीएआई के अध्यक्ष नंदन नीलेकणि ने कहा कि डाक विभाग को अत्याधुनिक बनाने की दिशा में यह गठजोड़ एक महत्वपूर्ण पहल है जिसके दायरे में चिठ्ठियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना, डाक से जुड़े साजो-सामान, प्रौद्योगिकी उन्नयन आदि आते हैं। उन्होंने कहा कि इसके माध्यम से अब लोगों को इस बात का पता चल सकेगा कि उनकी चिठ्ठी कहां है। कोई भी व्यक्ति आनलाइन माध्यम से इस बात का आग्रह कर सकता है कि उनकी चिठ्ठी पते पर पहुंची है या नहीं।
नीलेकणि ने कहा कि इसके तहत ऐसी व्यवस्था की गई है कि प्रणाली में इलेक्ट्रानिक माध्यम से फाइल को भेज दिया जाता है जांच उच्च प्रौद्योगिकी से जुड़ी होती है। इससे यह पता लगाया जाता है कि चिठ्ठी कहा हैं।
यूआईडीएआई, डाक विभाग के राष्ट्रीय नेटवर्क को उन्नत बनाना चाहती है और देश के सभी नागरिकों को विशिष्ठ सेवा से जोड़ना चाहता है।
इसके माध्यम से डाक विभाग का कारोबार बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। इस अवसर पर 'फ्लैट रेट पार्सल बक्से' को भी पेश किया गया जिसके माध्यम से अब उपभोक्ताओं को पैकेजिंग की परेशानी पेश नहीं आएगी। इसके माध्यम से सामानों को सुरक्षित भेजा जाना सुनिश्चित किया जा सकेगा। यह एक किलोग्राम, 2.5 किलोग्राम और 5 किलोग्राम तीन तरह का होगा। इसके स्पीड पोस्ट की तरह ही भेजा जा सकेगा।
गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011
अब आईपी एड्रेस के बगैर चलेगा इंटरनेट
इंटरनेट के लिए संख्या के रूप में दिखने वाला आइपी [इंटरनेट प्रोटोकॉल] एड्रेस शुक्रवार से नहीं दिखेगा। मगर इससे इंटरनेट काम करना नहीं बंद करेगा क्योंकि पुराने आइपी एड्रेस वर्जन-4 के स्थान पर एक नई प्रणाली इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन-6 [आइपीवी-6] को उपयोग में लाया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि इंटरनेट से जुड़े प्रत्येक कंप्यूटर को एक आइपी एड्रेस आवंटित किया जाता है। यह एड्रेस फोन नंबर के तौर पर काम करता है। इसके माध्यम से सर्फ करने वाला व्यक्ति वेबसाइटों तक पहुंचता है। साथ ही ई-मेल भी प्राप्त करता है।
अब जबकि लाखों फोन ऑनलाइन हो चुके है, आइपी एड्रेस को संख्या के रूप में आवंटित करना बंद कर दिया जाएगा। इंटरनेट प्रोटोकॉल [आइपी] वर्जन-4 की शुरुआत 1980 में की गई थी। उस समय इसे 4.1 अरब आइपी एड्रेस के लिए तैयार किया गया था। तब माना गया था कि यह संख्या कभी कम नहीं पड़ेगी क्योंकि वेब का विकास करने वालों ने सोचा था कि इंटरनेट का उपयोग केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। आइपी देने वाली अधिकृत संस्था ने बृहस्पतिवार को आइपी एड्रेस की आखिरी खेप को आवंटित कर दिया।
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