सदस्य

 

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

२०१० का लेखा जोखा !

2010 Ka Lekha-Jokha Video

नव वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनायें !!



बस इतना ही कह सकता हूँ ...

इस रिश्ते को यूँही बनाये रखना,
दिल में यादो के चिराग जलाये रखना,
बहुत प्यारा सफ़र रहा 2010 का,
अपना साथ 2011 में भी बनाये रखना!
नव वर्ष की शुभकामनायें!


आपको और परिवार में सभी को नव वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनायें !!

गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैय्या - आठ माह का गर्भ बिकाऊ है!

बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैय्या, कहावत तो प्रचलित है, लेकिन एक व्यक्ति ने अपने अजन्मे बच्चे को बेचने के लिए विज्ञापन देकर इंसानियत को शर्मसार कर दिया। विज्ञापन देने वाला व्यक्ति हरियाणा के यमुनानगर का रहने वाला बताया गया है।
मंगलवार को एक समाचार पत्र में एक व्यक्ति ने अपने अजन्मे बच्चे को गोद देने का विज्ञापन जारी कराया। विज्ञापन में दिये गए मोबाइल नंबर पर संपर्क किया गया तो विज्ञापन देने वाले व्यक्ति ने अपना नाम तविंदर कुमार धीमान निवासी- यमुनानगर बताया। तविंदर ने बताया कि उसकी पत्नी आठ माह की गर्भवती है और उन्हें पैसे की सख्त जरूरत है। इसलिए वह अपने अजन्मे बच्चे को बेचना चाहता है। उसने बताया कि उसके पास कई जरूरतमंदों के फोन आ चुके है। इसलिए अगर बच्चा चाहिए तो वे जल्दी उनसे संपर्क करें।
दूसरी ओर, समाजसेवी संस्था नौजवान वेलफेयर सोसायटी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उच्चाधिकारियों को शिकायत भेजकर विज्ञापनकर्ता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। सोसायटी को आशंका है कि इस व्यक्ति के तार किसी बच्चा बेचने के गिरोह से जुड़े हो सकते हैं।

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

अभी नहीं मिलेगी अनचाही कॉलों से राहत!

नए साल में अनचाही कॉलों से निजात मिलने की आस लगाए बैठे मोबाइल ग्राहकों को निराशा हो सकती है। माना जा रहा है कि फिलहाल टेलीकॉम ऑपरेटर इसके लिए तैयार नहीं हैं। वजह यह है कि टेलीमार्केटिंग कॉलों को रोकने के लिए जिस जरूरी ढांचे की जरूरत है, उसे तैयार करने में कंपनियों को और समय लगेगा।
सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए इसके लिए उन्होंने सरकार से चार महीने का समय भी मांगा है। हालांकि अब नई तारीख एक फरवरी उभरकर आ रही है। दूरसंचार नियामक ट्राई द्वारा इस तरह की कॉलों को बंद करने की समयसीमा पहली जनवरी 2011 तय की गई है।
ट्राई ने एक दिसंबर, 2010 को अनचाही टेलीमार्केटिंग कॉलों और एसएमएस पर दिशानिर्देश जारी किए थे। इन दिशानिर्देशों को अगले साल की शुरुआत से लागू किया जाना था। एसोसिएशन ऑफ यूनिफाइड सर्विस प्रोवाइडर्स ऑफ इंडिया [ऑस्पी] के महासचिव एससी. खन्ना ने कहा कि इस बात की संभावना कम ही है कि ऑपरेटर एक जनवरी की समयसीमा को पूरा कर पाएंगे। उन्हें ऐसी कॉलों को नियंत्रित करने को लेकर ढांचा खड़ा करने के लिए और समय की जरूरत है। इससे पहले ट्राई के दिशानिर्देशों में कहा गया था कि नियमों का उल्लंघन करने पर कंपनियों पर 2.50 लाख रुपये का भारी जुर्माना लगाया जाएगा। जिस भी कंपनी के खिलाफ लगातार शिकायतें मिलेंगी, उन्हें ब्लॉक कर दिया जाएगा। टेलीमार्केटिंग कंपनियों को '70' से शुरू होने वाला अलग फोन नंबर दिया जाएगा। ऐसे में ग्राहक उनकी पहचान कर सकेंगे और उनके पास विकल्प होगा कि वे चाहें तो टेलीमार्केटिंग कंपनियों की कॉल न उठाएं।
ट्राई ने टेलीमार्केटिंग कॉलों के लिए सात श्रेणियों की पहचान की है। इनमें बैंकिंग और वित्तीय उत्पाद, रीयल एस्टेट, शिक्षा, स्वास्थ्य, उपभोक्ता सामान और वाहन, संचार एवं मनोरंजन व पर्यटन और मौजमस्ती के लिए पर्यटन शामिल हैं।

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

सभी पीने वाले ब्लॉगर मित्र ... ज़रा ध्यान दें !!

सभी पीने वाले ब्लॉगर मित्र ... ज़रा ध्यान दें !!

 क्या आप बुरे हैंगओवर के शिकार हैं..? 

टोस्ट के साथ हनी यानी शहद का इस्तेमाल करें। एक नए शोध में यह बात कही गई है। रॉयल सोसायटी ऑफ केमेस्ट्री ने यह तथ्य खोजने का दावा किया है।
उसने कहा है कि शहद में प्राकृतिक मिठास होती है, जो शराब पीने से होने वाले हैंगओवर को दूर करती है। शोध के अनुसार फलों में पाई जाने वाली शर्करा [फ्रक्टोस] शराब के शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को नष्ट करती है।
डेली टेलीग्राफ ने शोधकर्ताओं के दल का नेतृत्व करने वाले डॉ. जॉन एम्सले के हवाले से कहा है, 'शराब भले ही थोड़ी देर की खुशी देती हो, लेकिन उससे शरीर में पैदा होने वाला एसिटेल्डीहाइड हैंगओवर पैदा करता है। यह जहरीला रसायन सिरदर्द, जुकाम और यहां तक कि उल्टी के लिए भी जिम्मेदार है। जब इस रसायन का असर कम होता जाता है, तो हैंगओवर भी खत्म हो जाता है।'
एम्सले के अनुसार, 'टोस्ट के साथ हनी का सेवन करने से शरीर में पोटेशियम और सोडियम पहुंचता है और इससे शरीर में अल्कोहल के बुरे प्रभाव नष्ट होते हैं।'

वैसे इस पोस्ट की कोई जरूरत नहीं थी पर आजकल ठण्ड बहुत है ... और पता चला है लोग बाग़ ब्लॉगर और ब्लोगस को देख देख कर पीना सीख रहे है ... तो एक ब्लॉगर होने की हसियत से मेरा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है कि नहीं ...???

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

सभी को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

आप सभी को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें इस कामना के साथ कि संता क्लाज हमारे देशवासियों को सुख, समृद्धि, शांति, स्वस्थ, प्रसन्न, भ्रष्टाचार से मुक्ति, आतंक से मुक्ति, दुखों से मुक्ति, आपसी प्रेम, सद्भाव, भाईचारा जैसे जरूरी उपहार देने अवश्य ही आयेगे ।


( और हाँ ... संता ... साथ में प्याज़, टमाटर जैसी सब्जियां भी लेते आइयेगा  !! ) 



मेर्री क्रिसमस !!!

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के बलिदान दिवस पर विशेष

राम प्रसाद बिस्मिल
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में काकोरी कांड एक ऐसी घटना है जिसने अंग्रेजों की नींव झकझोर कर रख दी थी। अंग्रेजों ने आजादी के दीवानों द्वारा अंजाम दी गई इस घटना को काकोरी डकैती का नाम दिया और इसके लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों को 19 दिसंबर 1927 को फांसी के फंदे पर लटका दिया।
अशफाक उल्ला खा
फांसी की सजा से आजादी के दीवाने जरा भी विचलित नहीं हुए और वे हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। बात नौ अगस्त 1925 की है जब चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह सहित 10 क्रांतिकारियों ने मिलकर लखनऊ से 14 मील दूर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया।
दरअसल क्रांतिकारियों ने जो खजाना लूटा उसे जालिम अंग्रेजों ने हिंदुस्तान के लोगों से ही छीना था। लूटे गए धन का इस्तेमाल क्रांतिकारी हथियार खरीदने और आजादी के आंदोलन को जारी रखने में करना चाहते थे।
इतिहास में यह घटना काकोरी कांड के नाम से जानी गई, जिससे गोरी हुकूमत बुरी तरह तिलमिला उठी। उसने अपना दमन चक्र और भी तेज कर दिया।
अपनों की ही गद्दारी के चलते काकोरी की घटना में शामिल सभी क्रांतिकारी पकडे़ गए, सिर्फ चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के 45 सदस्यों पर मुकदमा चलाया गया जिनमें से राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।
ब्रिटिश हुकूमत ने पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया जिसकी बड़े पैमाने पर निंदा हुई क्योंकि डकैती जैसे मामले में फांसी की सजा सुनाना अपने आप में एक अनोखी घटना थी। फांसी की सजा के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख मुकर्रर की गई लेकिन राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही गोंडा जेल में फांसी पर लटका दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल और अशफाक उल्ला खान को इसी दिन फैजाबाद जेल में फांसी की सजा दी गई।
फांसी पर चढ़ते समय इन क्रांतिकारियों के चेहरे पर डर की कोई लकीर तक मौजूद नहीं थी और वे हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए।
काकोरी की घटना को अंजाम देने वाले आजादी के सभी दीवाने उच्च शिक्षित थे। राम प्रसाद बिस्मिल प्रसिद्ध कवि होने के साथ ही भाषायी ज्ञान में भी निपुण थे। उन्हें अंग्रेजी, हिंदुस्तानी, उर्दू और बांग्ला भाषा का अच्छा ज्ञान था।
अशफाक उल्ला खान इंजीनियर थे। काकोरी की घटना को क्रांतिकारियों ने काफी चतुराई से अंजाम दिया था। इसके लिए उन्होंने अपने नाम तक बदल लिए। राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने चार अलग-अलग नाम रखे और अशफाक उल्ला ने अपना नाम कुमार जी रख लिया।
खजाने को लूटते समय क्रांतिकारियों को ट्रेन में एक जान पहचान वाला रेलवे का भारतीय कर्मचारी मिल गया। क्रांतिकारी यदि चाहते तो सबूत मिटाने के लिए उसे मार सकते थे लेकिन उन्होंने किसी की हत्या करना उचित नहीं समझा।
उस रेलवे कर्मचारी ने भी वायदा किया था कि वह किसी को कुछ नहीं बताएगा लेकिन बाद में इनाम के लालच में उसने ही पुलिस को सब कुछ बता दिया। इस तरह अपने ही देश के एक गद्दार की वजह से काकोरी की घटना में शामिल सभी जांबाज स्वतंत्रता सेनानी पकड़े गए लेकिन चंद्रशेखर आजाद जीते जी कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। 

सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के बलिदान दिवस पर उनको शत शत नमन !

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

विजय दिवस पर विशेष

ऊपर दी गई इस तस्वीर को देख कर कुछ याद आया आपको ?

आज १६ दिसम्बर है ... आज ही के दिन सन १९७१ में हमारी सेना ने पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था ... और बंगलादेश की आज़ादी का रास्ता साफ़ और पुख्ता किया था ! तब से हर साल १६ दिसम्बर विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है !

आइये कुछ और तस्वीरो से उस महान दिन की यादें ताज़ा करें !











आप सब को विजय दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

जय हिंद !!!

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

जश्न - ऐ - सरफरोशी !

जश्न - ऐ - सरफरोशी !
देहरादून में शनिवार, 11 दिसंबर को आइएमए की पासिंग आउट परेड में पोते के अधिकारी बनने की खुशी दादी के चेहरे पर साफ छलकी।

भारतीय तटरक्षक बल की पहली महिला असिस्टेंट कमांडेंट बनने के बाद भावना राणा (बाएं) और रुचि सांगवान ने अब एक और उपलब्धि हासिल की है। शनिवार, 11 दिसंबर को दोनों ने सफलतापूर्वक हेलीकॉप्टर पायलट की ट्रेनिंग पूरी कर ली। चेन्नई में हेलीकॉप्टर पायलट की 75वीं पासिंग आउट परेड के बाद दोनों की खुशी साफ दिखी।

देहरादून में शनिवार, 11 दिसंबर को आइएमए की पासिंग आउट परेड में कैडेट्स ने अधिकारी बनने की खुशी कुछ यूं मनाई।


ताकत वतन की हम से है ... हिम्मत वतन की हम से है ... इज्ज़त वतन की हम से है ... इंसान के हम रखवाले !

रविवार, 12 दिसंबर 2010

५५० वी पोस्ट :- सांसद हमले की ९ वी बरसी पर संसद हमले के अमर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि


आज १३ दिसम्बर है ... ९ साल पहले आज के ही दिन कुछ लोगो ने भारत के लोकतंत्र के प्रतीक संसद भवन की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी थी !


 ९ साल बाद आज यह संसद फिर हमले की शिकार है पर अब की बार अपने ही सदस्यों के हाथो !
 


संसद हमले के अमर शहीदों को पूरे हिंदी ब्लॉग जगत और सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से शत शत नमन !

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

सर्दियों में सावधानी रखें, बीमारी से बचें

आम तौर पर सर्दियों के मौसम को स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। इसके बावजूद इस मौसम में बीमारियां होती है। कुछ सावधानियां बरत कर इनसे बचा जा सकता है :-

[सर्दी-जुकाम] : नाक बहना, गले में चुभन, खांसी और बुखार की समस्या इस मौसम में ज्यादा होती है। इनसे बचने के लिए ऊनी कपड़े पहनें। गले की खिचखिच से बचने के लिए गर्म पेय पदार्थ लें। हर्बल चाय, सूप और हल्का गुनगुना पानी इस दृष्टि से सर्वथा उपयोगी हैं।

[डायबिटीज] : इस मौसम में यह मर्ज अनियत्रित हो सकता है क्योंकि भूख अधिक लगती है। इस रोग को नियत्रित रखने के लिए ब्लड शुगर जाच कराएं।

[ब्लडप्रेशर व हृदय रोग] : सर्दियों में हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत कुछ ज्यादा होती है क्योंकि सर्दियों में धमनिया सिकुड़ती है और कैलोरी की खपत कम होती है। अपने ब्लड प्रेशर, ईसीजी की जाच अवश्य कराएं।

[अर्थराइटिस] : इस मर्ज के पीड़ितों को इस मौसम में जोड़ों में दर्द बढ़ जाता है और सूजन हो जाती है। इससे बचने के लिए योग व व्यायाम करें। सुबह सैर करें। फिजियोथेरैपिस्ट की सलाह से जोड़ों से सबधित कुछ विशेष प्रकार की कसरत करें।

[स्किन एलर्जी] : इस मौसम में इसकी शिकायत सबसे अधिक होती है। त्वचा के रूखे होने से त्वचा पर सक्रमण हो सकता है। इससे बचने के लिए मेडीकेटेड साबुन का इस्तेमाल करें। सरसों के तेल से मालिश करें।

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

बीमा कराइए, बेफिक्र हो शादी रचाइए

शादी-ब्याह रचाना कोई गुड्डे गुड़ियों का खेल नहीं। शादी के खर्च और जिम्मेदारियों को देखते हुए ऐसी कहावतें अक्सर कही जाती हैं। मगर अब बीमा कंपनियों ने शादी के आयोजन को आसान बना दिया है। दरअसल बीमा कंपनियां अब शादी का बीमा भी करने लगी हैं। यानी शादी के आयोजन में किसी चीज के टूटने-फूटने, चोरी, आग लगने या लूटपाट जैसी वारदात होने पर सारा नुकसान बीमा कंपनियां उठाएंगी। यही नहीं, अगर वर-वधू, अभिभावक या भाई-बहनों की दुर्घटना की वजह से शादी की तारीख बदल जाए तो शादी से जुड़े आयोजन का पूरा पैसा भी बीमा कंपनी भुगतान करेगी।

देश में होने वाली खर्चीली और भव्य शादियों को सुरक्षित बनाने के लिए बजाज आलियांज और आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल ने इस बीमा योजना को बाजार में उतारा है। बजाज आलियांज ने 20 लाख, 35 लाख, 53 लाख और 83 लाख रुपये का विवाह बीमा पेश किया है। जिसका प्रीमियम क्रमशः 2850, 5200, 8600 और 11,200 रुपये तय किया गया है। कंपनी के मार्केटिंग प्रमुख अक्षय मेहरोत्रा ने बताया कि इस योजना को सिक्योर्ड वेडिंग प्लान के नाम से पेश किया गया है। इसमें शादी से जुड़ी किसी भी तरह की अनहोनी का सारा जिम्मा बीमा कंपनी उठाएगी।

उन्होंने बताया कि अगर किसी कारणवश शादी टल जाती है तो पहले से सुरक्षित किए गए आयोजन स्थल, खाना, पंडाल, बैंड बाजा व गाड़ी या ऐसी दूसरी व्यवस्थाओं में लगी रकम का पूरा भुगतान कंपनी करेगी। अमूमन प्रत्येक घर में शादी के दौरान नकद रुपये और जेवरात रखे होते हैं। बकौल मेहरोत्रा इनकी सुरक्षा का जिम्मा भी प्लान में सम्मिलित है। कुछ इसी तरह आईसीआईसीआई ने भी अपना प्लान निकाला है। दोनों कंपनियों के मुताबिक इस बीमा दावे का निपटारा सात से दस दिनों के अंदर किया जाएगा। जिससे आगामी तैयारी में अड़चन नहीं आए।

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

२६/११ की बरसी पर विशेष - एक रि पोस्ट

बताओ करें तो करें क्या ...................??????

हाँ हाँ यादो में है अब भी ,
क्या सुरीला वो जहाँ था ,
हमारे हाथो में रंगीन गुब्बारे थे
और दिल में महेकता समां था ..........


वो खवाबो की थी दुनिया ..........
वो किताबो की थी दुनिया ..................
साँसों में थे मचलते ज़लज़ले और
आँखों में 'वो' सुहाना नशा था |

वो जमी थी , आसमां था ...........
हम खड़े थे ,
क्या पता था ???
हम खड़े थे जहाँ पर उसी के किनारे एक गहेरा सा 'अंधा कुआँ' था ..................

फ़िर 'वो' आए 'भीड़' बन कर ,
हाथो में थे 'उनके' खंज़र ................
बोले फैंको यह किताबे , और संभालो यह सलाखें !!!
यह जो गहेरा सा 'कुआँ' है ................
हाँ .... हाँ .... 'अंधा' तो नहीं है !!
इस 'कुएं' में है 'खजाना' ......
कल की दुनिया तो 'यही' है ....


कूद जाओ ले के खंज़र ......
काट डालो जो हो अन्दर ............
तुम ही कल के हो..............


'शिवाजी'
..........



तुम ही कल के हो ...............



'सिकंदर'
................ ||






हम ने 'वो' ही किया जो 'उन्होंने' कहा,

क्युकी 'उनकी' तो 'खवहिश' यही थी ......
हम नहीं जानते यह भी कि क्यों 'यह' किया .............

क्युकी 'उनकी' 'फरमाइश' यही थी |


अब हमारे लगा 'ज़एका' 'खून' का .........
अब बताओ करें तो करें क्या ???
नहीं है 'कोई' जो हमें कुछ बताएं ..............
बताओ करें तो करें ..............

'क्या' ??????









फ़िल्म :- गुलाल ; संगीत :- पियूष मिश्रा ; गीतकार :- पियूष मिश्रा


२६/११ के सभी अमर शहीदों को सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से शत शत नमन !

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

सेकेंडों में करें डाटा सिंक - अब आ गया है - एमकैट फ्लैश लिंक

अगर आपको होम पीसी से पर्सनल नोटबुक में 6 जीबी गाने और डाटा ट्रासफर करना हों तो आप क्या करेंगे। निश्चित तौर पर आप पेनड्राइव का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन अगर इसकी कैपेसिटी ही केवल 2 या 4 जीबी की हो तो आपको डाटा ट्रासफर करने में घटों लग जाएंगे, क्योंकि पेनड्राइव से डाटा सिंक करने में काफी वक्त लगता है।

अब बाजार में एक ऐसा खास गैजेट आ गया है जो घटों के काम को मिनटों में निपटा देगा। कंप्यूटर उत्पाद बनाने वाली कंपनी एमकैट ने एक ऐसी डिवाइस लॉन्च की है जो केवल फटाफट डाटा सिंक करने के लिए ही बनी है। इस डिवाइस की कीमत है 990 रुपये।

[480 एमबीपीएस रफ्तार]
एमकैट फ्लैश लिंक नाम की यह डिवाइस पीसी से नोटबुक या नेटबुक में डाटा, फाइल, फोल्डर या आउटलुक को इंस्टैंट सिंक कर सकती है। यह डिवाइस दो कंप्यूटर्स को आपस में कनेक्ट करके उनका डाटा शेयर करती है। यह पूरी तरह से बूट-फ्री और इंस्टॉल्शन-फ्री है। 256 एमबी की बिल्टइन ऑनबोर्ड मेमोरी वाली यह डिवाइस मूवीज, म्यूजिक और डॉक्यूमेंट्स को 480 एमबीपीएस की रफ्तार से ट्रासफर कर सकती है।

[क्या है खास]

[डाटा शेयरिंग]: इस डिवाइस से दो पीसी के बीच भारी से भारी डाटा सेकेंडों में ट्रासफर हो सकता है।

[इंटरनेट शेयरिंग]: इस डिवाइस की यह भी खूबी है कि अगर आपके एक पीसी में इंटरनेट कनेक्शन है तो इस डिवाइस की मदद से दूसरे पीसी पर इंटरनेट शेयर कर सकते हैं।

[सीडी-डीवीडी शेयरिंग]: बाकी सभी खूबियों के अलावा बिना नेटवर्क केबल की मदद के इस डिवाइस के जरिए एक पीसी की सीडी-डीवीडी ड्राइव को दूसरे पीसी से कनेक्ट कर सकते हैं। नेटबुक में यह काफी फायदेमंद साबित हो सकती है क्योंकि उनमें सीडी-ड्राइव नहीं होती है।

[ऑउटलुक/फोल्डर शेयरिंग]: यह ऑउटलुक डाटा को आसानी से सिंक कर सकती है, साथ ही जरूरी फोल्डर भी ट्रासफर करके उनका बैकअप ले सकती है। सुरक्षा के लिहाज से यूजर डाटा की दो कापी भी रख सकता है।

शनिवार, 13 नवंबर 2010

बाल दिवस पर विशेष :- चाचा कलाम के बचपन की कहानी ... उनकी ही जुबानी !

मैंने जिंदगी से ही सीख ली है और उससे क्रमश: आगे बढ़ना सीखा है..। बचपन बहुत ही साधारण था। मैंने मध्यमवर्गीय तमिल परिवार में (15 अक्टूबर 1931) जन्म लिया था रामेश्वरम में..। द्वीप जैसा छोटा सा शहर..प्राकृतिक छटा से भरपूर..। शायद इसीलिए प्रकृति से मेरा बहुत जुड़ाव रहा। मेरे पिता जैनुलाब्दीन न तो ज्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे। वे नाविक थे और बहुत नियम के पक्के थे।
हम संयुक्त परिवार में थे। पाच भाई और पाच बहनें, चाचा के परिवार भी साथ में थे। मैं ठीक-ठीक नहीं बता सकता कि घर में कितने लोग थे या मा कितने लोगों का खाना बनाती थीं। क्योंकि घर में तीन भरे-पूरे परिवारों के साथ-साथ बाहर के लोग भी हमारे साथ खाना खाते थे। घर में खुशिया भी थीं, तो मुश्किलें भी।
मेरे जीवन पर पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार बहुत काम आए..। वे चारों वक्त की नमाज पढ़ते थे और जीवन में सच्चे इंसान थे। जब मैं आठ-नौ साल का था, मैं भी सुबह चार बजे उठता। ट्यूशन पढ़ने के बाद पिता के साथ नमाज पढ़ता, फिर कुरान शरीफ का अध्ययन करने के लिए अरेशिक स्कूल जाता था। मैं उसी उम्र में काम भी करने लगा था..। रामेश्वरम के रेलवे स्टेशन जाकर अखबार इकट्ठा करता था और रामेश्वरम की सड़कों पर बेचता था और घरों में पहुंचाता था। अखबार इकट्ठा करना कठिन था। उन दिनों धनुषकोड़ी से मेल ट्रेन गुजरती थी, जिसका वहा रुकना तय नहीं था। वहा चलती ट्रेन से अखबार के बंडल प्लेटफॉर्म पर यहा-वहा फेंके जाते थे।
एक तो मैं अपने भाइयों में छोटा था, दूसरे घर के लिए थोड़ी कमाई भी कर लेता था, इसलिए मा का प्यार मुझ पर कुछ ज्यादा ही था। मुझे अपने भाई-बहनों से दो रोटिया ज्यादा मिल जाती थीं। एक घटना याद आ रही है। मैं भाई-बहनों के साथ खाना खा रहा था। हमारे यहा चावल खूब होता था, इसलिए खाने में वही दिया जाता था, हा गेहूं पर राशनिंग थी। यानी रोटिया कम मिलती थी। जब मा ने मुझे रोटिया ज्यादा दे दीं, तो मेरे भाई ने एक बड़े सच का खुलासा किया। उन्होंने अलग ले जाकर मुझसे कहा कि मा के लिए एक भी रोटी नहीं बची और तुम्हें उन्होंने ज्यादा रोटिया दे दीं। मेरे भाई ने मुझे वह अपनी जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया था। यह सुनकर मैं मा से लिपटकर फूट-फूट कर रोया..।
मैं एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी में आया, तो इसके पीछे मेरे पाचवीं कक्षा के अध्यापक सुब्रहमण्यम अय्यर की प्रेरणा जरूर थी। उन्होंने कक्षा में बताया था कि पक्षी कैसे उड़ता है? जब मैं यह नहीं समझ पाया, तो वे सभी बच्चों को लेकर समुद्र के किनारे ले गए। उस प्राकृतिक दृश्य में कई प्रकार के पक्षी थे, जो सागर के किनारे उतर रहे थे और उड़ रहे थे। उन्होंने समुद्री पक्षियों को दिखाया, जो झुंड में उड़ रहे थे। उन्होंने पक्षियों के उड़ने के बारे में साक्षात अनुभव कराया। व्यावहारिक प्रयोग से हमने जाना कि पक्षी किस प्रकार उड़ पाता है। मेरे लिए यह सामान्य घटना नहीं थी। पक्षी की वह उड़ान मुझमें समा गई थी। बाद में भी मुझे महसूस होता था कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर पक्षियों की उड़ान का अध्ययन कर रहा हूं। उसी समय मैंने तय कर लिया था कि उड़ान में करियर बनाऊंगा। 

आशा है कि आज के दिन चाचा कलाम के बचपन की कहानी केवल बच्चो को ही नहीं हम सब को भी अपनी अपनी जिम्मेदारीयो के इमानदारी से पालन करने का पाठ सिखाएगी ! 

आप सब को बाल दिवस की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

आलेख प्रतियो्गिता - आपका ध्यान कहाँ है - जल्दी भेजिए अपनी प्रविष्टि

प्रतियो्गिता के लिए आलेख आमंत्रित है---- समय सीमा कम है----शीघ्र लेख भेजें

आज पर्यावरण की हानि होने से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से पूरी दुनिया को जुझना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान सामने आ रहे हैं। हम पर्यावरण की रक्षा करें एवं आने वाली पी्ढी के लिए स्वच्छ वातावरण का निर्माण करें। पर्यावरण के प्रति जागरुक करने के लिए हम एक प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं।प्रतियोगिता में सम्मिलित होने के लिए सूचना एवं नियम इस प्रकार है।

विषय -- "बचपन और हमारा पर्यावरण"

प्रथम पुरस्कार
11000/= (ग्यारह हजार रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

द्वितीय पुरस्कार
5100/= (इक्यावन सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

तृती्य पुरस्कार
2100/= (इक्की्स सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

सांत्वना पुरस्कार (10)
501/=(पाँच सौ एक रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र


1. इस प्रतियोगिता में 1 नवम्बर 2010 से 30 नवंबर 2010 तक आलेख भेजे जा सकते है.

2. प्रतियोगिता में सिर्फ़ दिए गए विषय पर ही आलेख सम्मिलित किए जाएंगे।

3. एक रचनाकार अपने अधिकतम 3 अप्रकाशित मौलिक आलेख भेज सकता है पुरस्कृत होने की स्थिति में  वह केवल एक ही पुरस्कार का हकदार होगा.

4. स्व रचित आलेख  1 नवम्बर 2010 से 30 नवंबर 2010 तक lekhcontest@gmail.com  पर भेज सकते हैं. कृपया साथ में मौलिकता का प्रमाण-पत्र एवं अपना एक अधिकतम १०० शब्दों में परिचय तथा तस्वीर भी संलग्न करें। नियमावली की कंडिका 7 से संबंध नहीं होने का का भी उल्लेख प्रमाण-पत्र में करें। आलेख कम से कम 500 एवं अधिकतम 1000 शब्दों में होने चाहिए।

आपसे निवेदन है कि प्रत्येक रचना को अलग अलग इमेल से भेजने की कृपा करें. यानि एक इमेल से एक बार मे एक ही रचना भेजे.

5. हमें प्राप्त रचनाओं मे से जो भी रचना प्रतियोगिता में शामिल होने लायक पायी जायेगी उसे हमारे सहयोगी ब्लाग "हमारा पर्यावरण" पर प्रकाशित कर दिया जायेगा, जो इस बात की सूचना होगी कि प्रकाशित रचना प्रतियोगिता में शामिल कर ली गई है।

6. 1 दिसंबर 2010 से प्रतियोगिता में सम्मिलित आलेखों का प्रकाशन  "हमारा पर्यावरण" पर प्रारंभ कर दिया जायेगा.

7. इस प्रतियोगिता में हमारा पर्यावरण, एसार्ड, एवं पर्यावरण मंत्रालय से संबंधित कोई भी व्यक्ति या उसका करीबी रिश्तेदार भाग लेने की पात्रता नहीं रखता।

8. इन रचनाओं पर  "हमारा पर्यावरण" का कापीराईट रहेगा. और कहीं भी उपयोग और प्रकाशन का अधिकार हमें होगा.

9. रचनाओं को पुरस्कृत करने का अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ "हमारा पर्यावरण" के संचालकों के पास सुरक्षित रहेगा. इस विषय मे किसी प्रकार का कोई पत्र व्यवहार नही किया जायेगा और ना ही किसी को कोई जवाब दिया जायेगा.

10. इस प्रतियोगिता के समस्त अधिकार और निर्णय के अधिकार सिर्फ़  "हमारा पर्यावरण" के पास सुरक्षित हैं. प्रतियोगिता के नियम किसी भी स्तर पर परिवर्तनीय है.

11.पुरस्कार  IASRD द्वारा प्रायोजित हैं.

12. यह प्रतियोगिता पर्यावरण के प्रति जागरुकता लाने के लिए एवं हिंदी मे स्वस्थ लेखन को बढावा देने के उद्देश्य से आयोजित की गई है.
 
(नोट:-प्रतियोगिता में ब्लॉगर के अलावा अन्य पाठक भी भाग ले सकते हैं परन्तु प्रतियोगी की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए)

सोमवार, 8 नवंबर 2010

एक शुभ समाचार .....आ गया शेर !!!!!!!!

एक शुभ समाचार .....



अभी अभी पता चला है कि महफूज़ भाई की वापसी हो चुकी है !!

उन्होंने खुद बज्ज़ पर इसका खुलासा किया है ............

लीजिये आप भी देखिये .......

 
सभी की ओर से उनको इस वापसी पर बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं ! 

शनिवार, 6 नवंबर 2010

अलविदा ! वॉकमैन....

1979 में कैसेट वॉकमैन की लॉन्चिंग म्यूजिक लवर्स के लिए किसी वरदान से कम नहीं थी। वॉकमैन ने म्यूजिक सुनने का स्टाइल ही बदल दिया। पार्को में लोग इसे कानों में लगाए जॉगिंग किया करते थे। उस वक्त इसकी गिनती सबसे पॉपुलर गैजेट्स में हुआ करती थी।
लेकिन अब यह बीते दिनों की बात होने वाली है। 3 दशक और 22 करोड़ से ज्यादा यूनिट्स बेचने के बाद कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद बनाने वाली कंपनी सोनी इलेक्ट्रॉनिक्स ने आखिरकार कैसेट वॉकमैन को फुल स्टॉप बोल दिया है। सोनी को लगता है यह गैजेट डिजिटल एज के साथ तालमेल नहीं बैठा सकता।
कैसेट वॉकमैन के खत्म होने के पीछे सबसे बड़ी वजह है डिजिटल एमपी3 प्लेयर्स, जो न केवल साइज में काफी छोटे हैं, बल्कि उनमें हजारों गाने सेव किए जा सकते हैं। सोनी के कैसेट वॉकमैन की बिक्री कम होने लगी। जबकि 1 जुलाई 1979 को पोर्टेबल कैसेट प्लेयर की लॉन्चिंग के साथ ही सोनी इलेक्ट्रॉनिक्स दुनिया की टॉप कंपनियों में शुमार हो गई थी। लॉन्चिंग के दो महीने में ही सोनी ने कैसेट वॉकमैन की 30 हजार यूनिट्स बेच दीं और एक दशक के भीतर यह संख्या 5 करोड़ तक पहुंच गई।
जब कैसेट वॉकमैन लॉन्च हुआ तो उसे बाजार से बेहद खराब प्रतिक्रिया मिली। उस वक्त बाजार में बड़े-बड़े टेप रिकॉ‌र्ड्स छाए थे, तो दुकानदारों ने कहा कि बिना रिकॉर्डिंग मैकेनिज्म वाला कैसेट प्लेयर बाजार में कैसे हिट करेगा। कैसेट वॉकमैन के डिजाइनर और सोनी के इंजीनियर नोबूतोशी किहारा के मुताबिक, उस वक्त प्रॉडक्ट्स के डिजाइनिंग स्केच हाथ से तैयार किए जाते थे। किहारा बताते हैं कि जब वे इसे डिजाइन कर रहे थे, तो उन्होंने आखें बंद कीं और ऐसे प्रोडक्ट की कल्पना की, जो किसी जॉगर के कान पर लगा हो और उसे जॉगिंग करते वक्त कोई दिक्कत न हो।
आलेख - हरेन्द्र चौधरी

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

जहां बसे हैं भारतीय, वहां होती है दीप पर्व की रौनक


दीपों की जगमगाहट से अमावस्या की काली रात को जगमग करने वाले दीप पर्व दीवाली की धूम सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर उस देश में होती है, जहां भारतीय बसे हैं।

भारत के पड़ोसी हिमालई देश नेपाल में दीवाली को 'तिहार' या 'स्वान्ति' कहा जाता है। यहां अक्टूबर या नवंबर माह में यह पर्व पांच दिन तक मनाया जाता है और इसकी परंपराएं काफी हद तक वैसी ही हैं जैसी भारत में हैं। नेपाल में पांच दिन के तिहार में पहले दिन कौवे को दूत मानते हुए उसके लिए दाना खिलाया जाता है। दूसरे दिन कुत्ते की, वफादारी के लिए पूजा की जाती है। तीसरे दिन लक्ष्मी पूजा होती है। इस दिन गाय की भी पूजा की जाती है। यह नेपाली संवत का अंतिम दिन होता है इसलिए कारोबारी इसे खूब धूमधाम से मनाते हैं।

चौथे दिन नव वर्ष मनाया जाता है। इस दिन 'महा पूजा' होती है और ईश्वर से अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती है। पांचवे दिन भाई टीका होता है, जिस दिन बहनें भाइयों की लंबी उम्र की कामन कर उसे टीका लगाती हैं।

मलेशिया में दीवाली को 'हरी दीवाली' कहा जाता है। वहां हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, साल के सातवें माह में दीवाली मनाई जाती है। इस दिन यहां सार्वजनिक अवकाश रहता है। यहां की परंपराए भी भारत जैसी ही होती हैं। सिंगापुर में परंपरागत भारतीय तरीके से 'दीपावली' मनाई जाती है। इस अवसर पर 'द हिन्दू एंडाउमेंट बोर्ड आफ सिंगापुर' सरकार के साथ मिल कर कई सांस्कृतिक आयोजन करता है।

श्रीलंका में तमिल समुदाय पूरे उत्साह से दीपावली मनाता है। सुबह सवेरे लोग स्नान कर लेते हैं। घरों के आगे रंगोली सजाई जाती है। शाम को घरों में रोशनी की जाती है और दिए जलाए जाते हैं। इसके बाद पूजा होती है और लोग एक दूसरे को मिठाई खिला कर शुभकामनाएं देते हैं। आतिशबाजी छोड़ी जाती है।

त्रिनिदाद और टोबैगो में भारतीय समुदाय के लोग दीवाली को उसी तरह मनाते हैं जिस तरह यह पर्व भारत में मनाया जाता है। न्यूजीलैंड में एशियाई मूल के लोग धूमधाम से दीवाली मनाते हैं। मुख्य आयोजन आकलैंड और वेलिंगटन में होता है। वर्ष 2003 से न्यूजीलैंड की संसद में दीवाली पर एक आधिकारिक समारोह आयोजित किया जाता है।

अमेरिका में भारतीय आबादी के बढ़ने के साथ ही दीवाली का महत्व भी बढ़ता गया। व्हाइट हाउस में पहली बार साल 2003 में दीवाली मनाई गई थी। वर्ष 2007 में कांग्रेस ने इसे आधिकारिक पर्व का दर्जा दे दिया। 2009 में व्हाइट हाउस में बराक ओबामा दीवाली में निजी तौर पर भाग लेने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए।

वर्ष 2009 में भारत की तरह अमेरिका में भी काउबाय स्टेडियम में दीवाली मेला आयोजित किया गया था जिसमें करीब एक लाख लोग आए थे। इसी साल सैन अन्तोनिया आधिकारिक दीवाली महोत्सव का आयोजन करने वाला पहला अमेरिकी शहर बन गया।

आस्ट्रेलिया, कनाडा, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, इंडोनेशिया, जापान, केन्या, मारिशस, म्यामां, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, थाईलैंड आदि में भी भारतीय मूल के लोग धूमधाम से दीवाली मनाते हैं।

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

दीपावली पर विशेष रि पोस्ट


जरा कल्पना कीजिये, मोमबत्ती, मिठाई व आतिशबाजी नहीं होते, तो हम दीवाली कैसे मनाते? इन तीन के बिना कितनी फीकी होती हमारी दीवाली । क्या दीवाली भी सामान्य त्योहारों की तरह ही बनकर नहीं रह जाती?
क्यों आप सोच में पड़ गए न!? चलो पता करते हैं इन तीन के बारे में कि वे सबसे पहले कब और कैसे आई? हमने कब जाना कि मिठाई जैसी कोई चीज है और आतिशबाजी या मोमबत्ती का प्रचलन किस तरह से शुरू हुआ? है न ये कुछ रोचक सवाल? ऐसे सवाल, जो शायद कभी आपके जेहन में न आए हों, पर अब इन्हें जानकर दीवाली के सेलिब्रेशन का मजा कुछ और बढ़ जाएगा।

[चीनी नहीं इंडियन साल्ट]


दीवाली पर मिठाइयों के साथ-साथ आपको चॉकलेट्स, टॉफियां भी उपहार में मिलती होंगी। पर चीनी के बिना ये चीजें होतीं क्या? शहद में यदि ये तैयार भी होती, तो शायद इसमें चीनी जैसा आनंद न होता।
चीनी पहली बार कब बनी? इसे जानने के पचड़े में हमें नहीं पड़ना, पर यह जरूर जान लें कि चीनी से पहले दुनिया ने शहद का प्रयोग किया। और जब चीनी का प्रयोग शुरू हुआ, तब यह महज दवाई के तौर पर इस्तेमाल होती थी। ग्रीक सभ्यता में चीनी सैकरोन कहलाती थी। भारत में चीनी मिलने के प्रमाण अन्य स्त्रोतों के अलावा, ग्रीक फिजिशियन डायोसोरिडस से भी मिला है। उन्होंने मध्यकाल में पंजाब क्षेत्र में मिलने वाली मीठे और सफेद नमक जैसी चीज को इंडियन साल्ट कहा था।

[आतिशबाजी का आविष्कार]


सही मायने में आतिशबाजी की परंपरा तब शुरू हुई, जब चीनियों ने बारूद का आविष्कार किया। वे इटली के व्यापारी मार्कोपोलो थे, जिन्हें चीन से यूरोप बारूद लाने का श्रेय दिया जाता है। धीरे-धीरे जब बारूद दुनिया भर में पॉपुलर हुआ, तो आतिशबाजी भी प्रत्येक उत्सव और त्योहारों का अंग बनने लगी। चीनी बौद्ध भिक्षु ली तियान को पटाखे का आविष्कारक मानते हैं। इस आविष्कारक को श्रद्धांजलि देने लिए ही वे हर वर्ष 18 अप्रैल के दिन को सेलिब्रेट करते हैं। यह जानना बड़ा रोचक है कि सदियों पहले लोग इन आवाजों के लिए हरे बांस का प्रयोग करते थे। चीन में किसी उत्सव या खास दिन को सेलिब्रेट करने के लिए लोग ढेर सारे हरे बांस के गट्ठर को आग में झोंककर दूर हट जाते और इसके थोड़ी देर बाद ही जोरदार धमाके का लुत्फ उठाते थे। बहरहाल, अभी जो आप लोग आतिशबाजी से रंग-बिरंगी रोशनी का आनंद लेते हो, पहले यह नहीं था। केवल नारंगी रंग की रोशनी ही हरे बांस के गट्ठर के जलने के दौरान नजर आती थी। वे इटली के रसायन विज्ञानी थे, जिन्होंने आतिशबाजी को रंगीन बनाया। दरअसल, इन्होंने ही लाल, हरे, नीले और पीले रंग पैदा करने वाले रसायन की खोज की। ये रसायन थे क्रमश: स्ट्रांशियम , बेरियम , कॉपर (नीला) और सोडियम (पीला)।
जब पोटाशियम क्लोरेट, बेरियम और स्ट्रांशियम नाइट्रेट जैसे रसायन के आविष्कार हुए, तब भारत में भी कई आतिशबाजी कंपनियां आई और पटाखों का उत्पादन तेजी से शुरू हुआ। इनमें स्टैंडर्ड फायरव‌र्क्स लिमिटेड, शिवकाशी एक ब्रांड नेम है। आज कोरिया, इंडोनेशिया, जापान के पटाखे भी आपको बाजार में मिल जाएंगे। बटरफ्लाई, स्पिनव्हील्स, फ्लॉवर पॉट्स इन खास आतिशबाजियों के नाम हैं। इनमें से कई ऐसे हैं, जिनको जलाने के लिए चिंगारी की नहीं, रिमोट की जरूरत पड़ती है।

[चर्बी से मोम तक]


प्राचीन सभ्यताओं में जानवरों के खाल की वसा और कीट पतंगों से मिले मोम को पेपर ट्यूब्स में डालकर मोमबत्ती बनाने के प्रमाण हैं। अमेरिकी कैंडल फिश नामक तैलीय मछली का उपयोग मोमबत्ती जैसी चीज बनाने के लिए करते थे। जब पैराफिन का आविष्कार हुआ, तब से चर्बी के प्रयोग की परंपरा बिल्कुल बंद हो गई।
कहते हैं मधुमक्खी के छत्ते से मोम बनाने की शुरुआत तेरहवीं सदी में हुई। इस पेशे में रहने वाले लोग घूम-घूमकर अपने कस्टमर की डिमांड के अनुसार चर्बी वाली या मधुमक्खी के छत्ते से मिले मोम से बनी मोमबत्ती बेचते थे। फिर स्टीरिक एसिड (मोम को कड़ा करने वाला केमिकल) और गुंथी हुई बातियों का इस्तेमाल होने के बाद मोमबत्ती ने नया स्वरूप ग्रहण किया। आज कई तरह की डिजाइनर मोमबत्तियां आ गई हैं। ऑयल कैंडल, फ्रेगरेंस वाली कैंडल और न जाने कितने प्रकार के कैंडल्स आप मार्केट में देख सकते हैं ।
-------------------------------------------------------------------------------------------------


क्यों कि अब सब साधन मौजूद है चलिए दीवाली मानते है !



आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

पिता पर पूत .... सईस पर घोडा .... बहुत नहीं तो थोडा थोडा !!!

आज सुबह ही लौटना हुआ दिल्ली से ....पर यह पोस्ट मेरी दिल्ली यात्रा पर नहीं है .... वह तो बाद में आएगी !
फिलहाल तो आप सब को दो चित्र दिखाने की ललक है .........लीजिये आप भी देखिये और अपनी अपनी राय दीजिये !
ललित भाई पिस्टल पर हाथ अजमाते हुए !

" मैं पापा से कुछ कम हूँ क्या ?? " उदय बाबु शायद यही पूछ रहे है पिस्टल से निशाना साधते हुए !

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

महफूज़ भाई, जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं |




महफूज़ भाई, जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं |
बस एक ही दुआ है कि
खुदा 'महफूज़' रखे हर बला से ... हर बला से !!

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

..और भी फिल्में हुई हैं 50 की...क्या आप जानते है ??


इन दिनों मुगलेआजम के प्रदर्शन की स्वर्णजयंती मनायी जा रही है। हर तरफ इस फिल्म की भव्यता, आकर्षण और महत्ता की चर्चा हो रही है, पर क्या आपको पता है कि वर्ष 1960 में मुगलेआजम के साथ-साथ कई और क्लासिक फिल्मों के प्रदर्शन ने हिंदी सिनेमा को समृद्ध बनाया था। बंबई का बाबू, चौदहवीं का चांद, छलिया, बरसात की रात, अनुराधा और काला बाजार जैसी फिल्मों ने मधुर संगीत और शानदार कथ्य से दर्शकों का दिल जीत लिया था। आज भी जब ये फिल्में टेलीविजन चैनलों पर दिखायी जाती हैं, तो दर्शक इन क्लासिक फिल्मों के मोहपाश में बंध से जाते हैं।

'छलिया मेरा नाम.हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सबको मेरा सलाम' इस गीत से बढ़कर सांप्रदायिक सौहा‌र्द्र का संदेश क्या हो सकता है? एक साधारण इंसान के असाधारण सफर की कहानी बयां करती छलिया को राज कपूर, नूतन और प्राण ने अपने बेहतरीन अभिनय और मनमोहन देसाई ने सधे निर्देशन से यादगार फिल्मों में शुमार कर दिया।

प्रयोगशील सिनेमा की तरफ राज कपूर के झुकाव की एक और बानगी उसी वर्ष जिस देश में गंगा बहती है में दिखी। राज कपूर-पद्मिनी अभिनीत और राधु करमाकर निर्देशित इस फिल्म को उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सर्वश्रेष्ठ संपादन और सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन का भी फिल्मफेयर पुरस्कार इस फिल्म को मिला। राज कपूर को उनके स्वाभाविक और संवेदनशील अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

राज कपूर के समकालीन अभिनेता देव आनंद की दो यादगार फिल्में बंबई का बाबू और काला बाजार भी इसी वर्ष प्रदर्शित हुई थीं। प्रेम, स्नेह और दोस्ती के धागे को मजबूत करती बंबई का बाबू में बंगाली फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने अपने आकर्षण से हिंदी फिल्मी दर्शकों को भी मंत्रमुग्ध कर दिया। देव आनंद के साथ ने सुचित्रा सेन के आत्मविश्वास को और भी बढ़ा दिया। राज खोंसला निर्देशित बंबई का बाबू में दो प्रेमियों के वियोग की पीड़ा को बखूबी चित्रित किया गया था। विवाह के बाद विदाई की ड्योढ़ी पर खड़ी युवती के हाल-ए-दिल को बयां करते गीत 'चल री सजनी अब क्या सोचें' आज भी जब कानों में गूंजता है, तो आंखें भर जाती हैं। मजरूह सुल्तानपुरी के कलम से निकले गीतों को एस. डी. बर्मन ने अपनी मधुर धुनों में सजाकर बंबई का बाबू के संगीत को यादगार बना दिया। इस फिल्म में जहां देव आनंद ने पारंपरिक नायक की भूमिका निभायी वहीं, काला बाजार में वे एंटी हीरो की भूमिका में नजर आए। वहीदा रहमान और नंदा काला बाजार में देव आनंद की नायिकाएं थीं। सचिन देब बर्मन के संगीत से सजी काला बाजार के मधुर संगीत की बानगी 'खोया खोया चांद, खुला आसमान', 'अपनी तो हर सांस एक तूफान है', 'रिमझिम के तराने लेकर आयी बरसात' जैसे कर्णप्रिय गीतों में मिल जाती है।

वर्ष 1960 में जब देव आनंद का आकर्षण चरम पर था, तब गुरूदत्ता ने भी चौदहवीं का चांद में अपनी बोलती आंखों और गजब के अभिनय से दर्शकों को सम्मोहित किया था। 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो' किसी प्रेमिका के लिए इससे बेहतर तारीफ के बोल क्या हो सकते हैं? वहीदा रहमान की खूबसूरती में डूबे गुरूदत्ता को देखने के लिए दर्शकों की बेचैनी को आज के युवा दर्शक भी समझ सकते हैं। निर्देशक मुहम्मद सादिक ने चौदहवीं का चांद की कहानी को लखनऊ की नवाबी शानौशौकत की पृष्ठभूमि में ढाल कर और भी यादगार बना दिया।

गुरूदत्ता यदि वहीदा रहमान के हुस्न के आगोश में खोए थे, तो दूसरी तरफ भारत भूषण भी उसी वर्ष प्रदर्शित हुई बरसात की रात में मधुबाला के साथ प्रेम-गीत गा रहे थे। जब सिल्वर स्क्रीन पर प्यार-मुहब्बत और जीवन के दु:ख-दर्द की कहानी कही जा रही थी, तभी रहस्य और रोमांच से भरपूर फिल्म प्रदर्शित हुई कानून। कानून के लिए बी। आर. चोपड़ा को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था। वर्ष 1960 में प्रदर्शित हुई मुख्य धारा की यादगार फिल्मों में सबसे उल्लेखनीय है अनुराधा। सर्वश्रेष्ठ फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होने के साथ-साथ अनुराधा बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में गोल्डेन बियर अवार्ड के लिए भी नामांकित की गयी। लीला नायडू और बलराज साहनी अभिनीत यह फिल्म अपनी कलात्मकता के लिए आज भी याद की जाती है!

आलेख :- सौम्या अपराजिता

रविवार, 24 अक्टूबर 2010

मैं हर एक पल का शायर हूँ ...


मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी का जन्म मार्च १९२१ को लुधियाना, पंजाब में एक मुस्लिम जमींदार परिवार में हुआ था। साहिर जी का पूरा व्यक्तित्व ही शायराना था। 25 साल की उम्र में उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था तल्खियां।

बतौर गीतकार उनकी पहली फिल्म थी बाजी, जिसका गीत तकदीर से बिगड़ी हुई तदबीर बना ले..बेहद लोकप्रिय हुआ। उन्होंने हमराज, वक्त, धूल का फूल, दाग, बहू बेगम, आदमी और इंसान, धुंध, प्यासा सहित अनेक फिल्मों के यादगार गीत लिखे। साहिर जी ने शादी नहीं की पर प्यार के एहसास को उन्होंने अपने नगमों में कुछ इस तरह पेश किया कि लोग झूम उठते। निराशा, दर्द, कुंठा, विसंगतियों और तल्खियों के बीच प्रेम, समर्पण, रूमानियत से भरी शायरी करने वाले साहिर लुधियानवी के लिखे नग्में दिल को छू जाते हैं। लिखे जाने के 50 साल बाद भी उनके गीत उतने ही जवां है जितने पहले थे,

ये वादियां से फिजाएं बुला रही हैं..

ना मुंह छुपा के जिओ और न सिर झुका के..

तुम अगर साथ देने का वादा करो, मैं यूं ही मस्त नग्में..

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं..(गुमराह)

समाज के खोखलेपन को अपनी कड़वी शायरी के मार्फत लाने वाले इस विद्रोही शायर की जरा बानगी तो देखिए,

जिंदगी सिर्फ मोहब्बत ही नहीं कुछ और भी है

भूख और प्यास की मारी इस दुनिया में

इश्क ही एक हकीकत नहीं कुछ और भी है..

इन सब के बीच संघर्ष के लिए प्रेरित करता गीत,

जिंदगी भीख में नहीं मिलती

जिंदगी बढ़ के छीनी जाती है

अपना हक संगदिल जमाने में

छीन पाओ को कोई बात बने..

बेटी की बिदाई पर एक पिता के दर्द और दिल से दिए आशीर्वाद को उन्होंने कुछ इस तरह बयान किया,

बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले..(नीलकमल)

समाज में आपसी भाईचारे और इंसानियत का संदेश उन्होंने अपने गीत में इस तरह पिरोया,

तू न हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा ..(धूल का फूल)

साहिर जी को अनेक पुरस्कार मिले, पद्म श्री से उन्हें सम्मानित किया गया, पर उनकी असली पूंजी तो प्रशंसकों का प्यार था। अपने देश भारत से वह बेहद प्यार करते थे। इस भावना को उन्होंने कुछ इस तरह बयां किया....

ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों..

उनका निधन २५ अक्टूबर १९८० को हुआ था पर ऐसे महान शायर की स्मृतियां हमेशा रहेंगी अमर।

आलेख - रमा चंद्र भट्ट

सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से साहिर लुधियानवी जी को शत शत नमन !

ब्लॉग आर्काइव

Twitter