ऐ मेरे वतन के लोगों एक हिन्दी देशभक्ति गीत है जिसे कवि प्रदीप ने लिखा था और जिसे संगीत सी॰ रामचंद्र
ने दिया था। ये गीत चीन युद्ध के दौरान मारे गए भारतीय सैनिकों को समर्पित
था। यह गीत तब मशहूर हुआ जब लता मंगेशकर ने इसे नई दिल्ली में गणतंत्र
दिवस के अवसर पर रामलीला मैदान में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं॰ जवाहरलाल
नेहरू की उपस्थिति में गाया। । चीन
से हुए युद्ध के बाद 27 जनवरी 1963 में डेल्ही नेशनल स्टेडियम में स्वर
कोकिला लता मंगेशकर ने दिया था। यह कहा जाता है इस गाने को सुनने के बाद
नेहरु जी की ऑंखें भर आई थीं।
गीत के बोल
ऐ मेरे वतन के लोगों, तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का, लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर, वीरों ने है प्राण गंवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो, कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आए, जो लौट के घर न आए...
ये शुभ दिन है हम सब का, लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर, वीरों ने है प्राण गंवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो, कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आए, जो लौट के घर न आए...
ऐ मेरे वतन के लोगो, ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी
जो शहीद हुए हैं, उनकी, जरा याद करो कुरबानी...
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी
जो शहीद हुए हैं, उनकी, जरा याद करो कुरबानी...
जब घायल हुआ हिमालय, ख़तरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी सांस लड़े वो... जब तक थी सांस लड़े वो, फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा, सो गए अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
जब तक थी सांस लड़े वो... जब तक थी सांस लड़े वो, फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा, सो गए अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में... जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने, थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
जब हम बैठे थे घरों में... जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने, थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई सिख कोई जाट मराठा,
कोई गुरखा कोई मदरासी, कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला... सरहद पर मरनेवाला, हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर, वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
कोई गुरखा कोई मदरासी, कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला... सरहद पर मरनेवाला, हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर, वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
थी खून से लथ - पथ काया, फिर भी बंदूक उठाके
दस - दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के
जब अंत समय आया तो.... जब अंत-समय आया तो, कह गए के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारो... खुश रहना देश के प्यारो
अब हम तो सफ़र करते हैं... अब हम तो सफ़र करते हैं
दस - दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के
जब अंत समय आया तो.... जब अंत-समय आया तो, कह गए के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारो... खुश रहना देश के प्यारो
अब हम तो सफ़र करते हैं... अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने, क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं, उनकी जरा याद करो कुरबानी
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना... जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना..
जय हिंद, जय हिंद जय हिंद, जय हिंद जय हिंद, जय हिंद...
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं, उनकी जरा याद करो कुरबानी
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना... जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना..
जय हिंद, जय हिंद जय हिंद, जय हिंद जय हिंद, जय हिंद...
गीतकारः कवि प्रदीप
गायिकाः लता मंगेशकर
आज ५६ साल
बाद भी जब जब यह गीत कानों को सुनाई पड़ता है ... रोंगटे खड़े हो जाते है और
आँखें नम हो जाती है ... यकीन न आए तो खुद सुन कर अपनी राय दीजिये |
गणतन्त्र दिवस और स्वन्त्रता दिवस पर सुनाई देने वाले अमर गीतों मे एक..,बेहतरीन जानकारी ।
जवाब देंहटाएंअदभुद गीत है। लता जी ने प्राँण फूँक दिये हैं शब्दों में। काश गीत के साथ साथ शहादत का मूल्य समझ में भी आता हमें खासकर देश की बागडोर थामें हुऐ लोगों को।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा गीत, आदरणीय सुशील जोशी जी की बहुत ही अच्छी टिप्णी |
जवाब देंहटाएंसादर