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बुधवार, 17 अगस्त 2016

अमर क्रान्तिकारी मदनलाल ढींगरा जी की १०७ वीं पुण्यतिथि

मदनलाल ढींगरा ( जन्म: १८ सितम्बर १८८३ - फाँसी: १७ अगस्त, १९०९)

मदनलाल ढींगरा भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी थे।
वे इंग्लैण्ड में अध्ययन कर रहे थे जहाँ उन्होने विलियम हट कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी।
यह घटना बीसवीं शताब्दी में भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की कुछेक प्रथम घटनाओं में से एक है।
इसी क्रान्तिकारी घटना से भयाक्रान्त होकर अंग्रेजों ने मोहनदास करमचन्द गान्धी को महात्मा के वेष में दक्षिण अफ्रीका से बुलाकर भारत भिजवाने की रणनीति अपनायी |

आरम्भिक जीवन

मदनलाल ढींगरा का जन्म १८ सितम्बर,सन् १८८३ को पंजाब प्रान्त के एक सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे किन्तु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं।
उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था और जब मदनलाल को भारतीय स्वतन्त्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया।
मदनलाल को जीवन यापन के लिये पहले एक क्लर्क के रूप में, फिर एक तांगा-चालक के रूप में और अन्त में एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा। कारखाने में श्रमिकों की दशा सुधारने हेतु उन्होने यूनियन (संघ) बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया।
कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में काम किया फिर अपनी बड़े भाई की सलाह पर सन् १९०६ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैण्ड चले गये जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यान्त्रिक प्रौद्योगिकी (Mechanical Engineering) में प्रवेश ले लिया।
विदेश में रहकर अध्ययन करने के लिये उन्हें उनके बड़े भाई ने तो सहायता दी ही, इंग्लैण्ड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से भी आर्थिक मदद मिली थी।

सावरकर के सानिध्य में

लन्दन में ढींगरा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा के सम्पर्क में आये।
वे लोग ढ़ींगरा की प्रचण्ड देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सावरकर ने ही मदनलाल को अभिनव भारत नामक क्रान्तिकारी संस्था का सदस्य बनाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया।
मदनलाल इण्डिया हाउस में रहते थे जो उन दिनों भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था।
ये लोग उस समय खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिन्दर पाल और काशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को मृत्युदण्ड दिये जाने से बहुत क्रोधित थे।
कई इतिहासकार मानते हैं कि इन्ही घटनाओं ने सावरकर और ढींगरा को सीधे बदला लेने के लिये विवश किया।

कर्जन वायली का वध

१ जुलाई सन् १९०९ की शाम को इण्डियन नेशनल ऐसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकठे हुए।

जैसे ही भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ हाल में घुसे, ढींगरा ने उनके चेहरे पर पाँच गोलियाँ दागी; इसमें से चार सही निशाने पर लगीं।

उसके बाद ढींगरा ने अपने पिस्तौल से स्वयं को भी गोली मारनी चाही किन्तु उन्हें पकड़ लिया गया।

अभियोग

२३ जुलाई १९०९ को ढींगरा के केस की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट में हुई। अदालत ने उन्हें मृत्युदण्ड का आदेश दिया और १७ अगस्त सन् १९०९ को फाँसी पर लटका कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी गई । मदनलाल मर कर भी अमर हो गये।
 
 
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी - मदनलाल ढींगरा जी की १०७ वीं पुण्यतिथि पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते है ! 
 
वन्दे मातरम् !!!

5 टिप्‍पणियां:

  1. पठनीय। बढ़िया जानकारी। अमर क्रन्तिकारी को नमन।

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  2. पठनीय। बढ़िया जानकारी। अमर क्रन्तिकारी को नमन।

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  3. मदन लाल धींगरा पर लिखा गया लेख अधूरी जानकारी देता है. इस नौजवान ने अदालत में इक़बाल-ए-जुर्म के साथ ऐसा देशभक्तिपूर्ण वक्तव्य दिया था कि तत्कालीन विरोधी पक्ष के नेता विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि अगर मदन लाल धींगरा जैसे कुछ और नौजवान हो जायं तो भारत में ब्रिटिश हुकूमत ज़्यादा दिन तक टिक नहीं पाएगी. मदन लाल धींगरा का अदालत में दिया गया वक्तव्य उपलब्ध है, उसे इस आलेख में सम्मिलित किया जाना चाहिए था.

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    1. कृपया उस वक्तव्य से जुड़ा कोई लिंक हो तो जरूर दें| मैं उसे इस आलेख के साथ सम्मालित करना चाहूँगा | आभार आपका |

      हटाएं

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