प्रीतिलता वादेदार (बांग्ला :
প্রীতিলতা ওয়াদ্দেদার) (5 मई 1911 – 23 सितम्बर 1932) भारतीय स्वतंत्रता
संगाम की महान क्रान्तिकारिणी थीं। वे एक मेधावी छात्रा तथा निर्भीक लेखिका
भी थी। वे निडर होकर लेख लिखती थी।
परिचय
प्रीतिलता वादेदार का जन्म 5 मई 1911 को तत्कालीन पूर्वी भारत (और अब बंगला
देश ) में स्थित चटगाँव
के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता नगरपालिका के क्लर्क थे। वे
चटगाँव के डॉ खस्तागिर शासकीय कन्या विद्यालय की मेघावी छात्रा थीं।
उन्होने सन् १९२८ में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की। इसके
बाद सन् १९२९ में उन्होने ढाका के इडेन कॉलेज में प्रवेश लिया और
इण्टरमिडिएट परीक्षा में पूरे ढाका बोर्ड में पाँचवें स्थान पर आयीं। दो
वर्ष बाद प्रीतिलता ने कोलकाता के बेथुन कॉलेज से दर्शनशास्त्र
से स्नातक परीक्षा उत्तिर्ण की। कोलकाता विश्वविद्यालय के ब्रितानी
अधिकारियों ने उनकी डिग्री को रोक दिया। उन्हें ८० वर्ष बाद मरणोपरान्त यह
डिग्री प्रदान की गयी। जब वे कॉलेज की छात्रा थीं, रामकृष्ण विश्वास से
मिलने जाया करतीं थी जिन्हें बाद में फांसी की सजा हुई। उन्होने निर्मल सेन
से युद्ध का प्रशिक्षण लिया था।
स्कूली जीवन में ही वे बालचर
- संस्था की सदस्य हो गयी थी। वहा उन्होंने सेवाभाव और अनुशासन का पाठ
पढ़ा। बालचर संस्था में सदस्यों को ब्रिटिश सम्राट के प्रति एकनिष्ट रहने
की शपथ लेनी होती थी। संस्था का यह नियम प्रीतिलता को खटकता था। उन्हें
बेचैन करता था। यही उनके मन में क्रान्ति का बीज पनपा था। बचपन से ही वह
रानी लक्ष्मी बाई के जीवन - चरित्र से खूब प्रभावित थी, उन्होंने 'डॉ खस्तागिर गवर्मेंट गर्ल्स स्कूल चटगाँव से
मैट्रिक की परीक्षा उच्च श्रेणी में पास किया। फिर इडेन कालेज ढाका से
इंटरमिडीएट की परीक्षा और ग्रेजुएशन नेथ्यून कालेज कलकत्ता से किया। यही
उनका सम्पर्क क्रान्तिकारियो से हुआ। शिक्षा उपरान्त उन्होंने परिवार की
मदद के लिए एक पाठशाला में नौकरी शुरू की। लेकिन उनकी दृष्टि में केवल
कुटुंब ही नही था , पूरा देश था। देश की स्वतंत्रता थी। पाठशाला की नौकरी
करते हुए उनकी भेट प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन से हुई।प्रीतिलता उनके
दल की सक्रिय सदस्य बनी। पहले भी जब वे ढाका में पढ़ते हुए छुट्टी में
चटगाँव आती थी तब उनकी क्रान्तिकारियो से मुलाक़ात होती थी और अपने साथ
पढने वाली सहेलियों से तकरार करती थी कि वे क्रांतिकारी अत्यंत डरपोक है।
लेकिन सूर्यसेन से मिलने पर उनकी क्रान्तिकारियो के विषय में गलतफहमी दूर
हो गयी। एक नया विश्वास कायम हो गया। वह बचपन से ही न्याय के लिए निर्भीक
विरोध के लिए तत्पर रहती थी। स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने शिक्षा विभाग के
एक आदेश के विरुद्ध दूसरी लडकियों के साथ मिलकर विरोध किया था। इसीलिए उन
सभी लडकियों को स्कूल से निकाल दिया गया।प्रीतिलता जब सूर्यसेन से मिली तब
वे अज्ञातवास में थे। उनका एक साथी रामकृष्ण विश्वास कलकत्ता के अलीपुर जेल
में था। उनको फांसी की सज़ा सुनाई गयी थी। उनसे मिलना आसान नही था।लेकिन
प्रीतिलता उनसे कारागार में लगभग चालीस बार मिली।और किसी अधिकारी को उन पर
सशंय भी नही हुआ। यह था , उनकी बुद्धिमत्ता और बहादुरी का प्रमाण। इसके बाद
वे सूर्यसेन के नेतृत्त्व कि इन्डियन रिपब्लिकन आर्मी में महिला सैनिक
बनी। पूर्वी बंगाल के घलघाट में क्रान्तिकारियो को पुलिस ने घेर लिया था
घिरे हुए क्रान्तिकारियो में अपूर्व सेन , निर्मल सेन , प्रीतिलता और
सूर्यसेन आदि थे।सूर्यसेन ने लड़ाई करने का आदेश दिया।अपूर्वसेन और निर्मल
सेन शहीद हो गये।सूर्यसेन की गोली से कैप्टन कैमरान मारा गया। सूर्यसेन और
प्रीतिलता लड़ते - लड़ते भाग गये।क्रांतिकारी सूर्यसेन पर 10 हजार रूपये का
इनाम घोषित था।दोनों एक सावित्री नाम की महिला के घर गुप्त रूप से रहे। वह
महिला क्रान्तिकारियो को आश्रय देने के कारण अंग्रेजो का कोपभाजन
बनी।सूर्यसेन ने अपने साथियो का बदला लेने की योजना बनाई। योजना यह थी की
पहाड़ी की तलहटी में यूरोपीय क्लब पर धावा बोलकर नाच - गाने में मग्न
अंग्रेजो को मृत्यु का दंड देकर बदला लिया जाए।प्रीतिलता के नेतृत्त्व में
कुछ क्रांतिकारी वह पहुचे। २३ सितम्बर १९३२ की रात इस काम के लिए निश्चित
की गयी।हथियारों से लैस प्रीतिलता ने आत्म सुरक्षा के लिए पोटेशियम साइनाइड
नामक विष भी रख लिया था। पूरी तैयारी के साथ वह क्लब पहुची।बाहर से खिड़की
में बम लगाया। क्लब की इमारत बम के फटने और पिस्तौल की आवाज़ से कापने
लगी। नाच - रंग के वातावरण में एकाएक चीखे सुनाई देने लगी।13 अंग्रेज जख्मी
हो गये और बाकी भाग गये।इस घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गयी।थोड़ी देर
बाद उस क्लब से गोलीबारी होने लगी। प्रीतिलता के शरीर में एक गोली लगी।वे
घायल अवस्था में भागी लेकिन फिर गिरी और पोटेशियम सायनाइड खा लिया। उस समय
उनकी उम्र 21 साल थी। इतनी कम उम्र में उन्होंने झांसी की रानी का रास्ता
अपनाया और उन्ही की तरह अंतिम समय तक अंग्रेजो से लड़ते हुए स्वंय ही
मृत्यु का वरण कर लिया प्रीतिलता के आत्म बलिदान के बाद अंग्रेज अधिकारियों
को तलाशी लेने पर जो पत्र मिले उनमे छपा हुआ पत्र था।
इस पत्र में छपा था कि " चटगाँव शस्त्रागार काण्ड के बाद जो मार्ग अपनाया जाएगा , वह भावी
विद्रोह का प्राथमिक रूप होगा। यह संघर्ष भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलने तक
जारी रहेगी। "
पिछले सालों मे आई हुई २ फिल्मों मे इन के बारे मे दिखाया गया था ... फिल्में थी - खेलें हम जी जान से और चटगाँव |
अमर शहीद वीरांगना प्रीतिलता वादेदार जी को उनकी ८३ वीं पुण्यतिथि पर हम सब का शत शत नमन !!
नमन !
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन रामधारी सिंह 'दिनकर' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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