"कल तक सबको 'उस' के दर्द का अहसास था ;
आज सब को अपनी अपनी जीत का अभिमान है !!
कल जहां रेप पीड़ितों की सूची थी ...
उन्ही मेजों पर आज नए विधायकों की सूची तैयार है !!
किसी चैनल , किसी सभा मे 'उसके' बारे मे कोई सवाल नहीं है ;
आज सब को अपनी अपनी जीत का अभिमान है !!
कल जहां रेप पीड़ितों की सूची थी ...
उन्ही मेजों पर आज नए विधायकों की सूची तैयार है !!
किसी चैनल , किसी सभा मे 'उसके' बारे मे कोई सवाल नहीं है ;
बहुतों के तन पर नई नई खादी सजी है
तभी तो सफदरजंग के आगे पटाखों की लड़ी जली है ...
तभी तो सफदरजंग के आगे पटाखों की लड़ी जली है ...
बेगैरत शोर को अब किसी का ख्याल नहीं है !!
जो लोग रोज़ लोकतन्त्र को नंगा करते हो ...
जो लोग रोज़ लोकतन्त्र को नंगा करते हो ...
उनको एक महिला की इज्ज़त जाने का अब मलाल नहीं है !
'तुम' जियो या मारो ...
'तुम' जियो या मारो ...
किस को फर्क पड़ता है ...
आओ देख लो अब यहाँ कोई शर्मसार नहीं है !!
दरअसल 'तुम्हारी' ही स्कर्ट ऊंची थी ...
दरअसल 'तुम्हारी' ही स्कर्ट ऊंची थी ...
'इस' मे 'इनका' कोई दोष नहीं ...
"जवान लड़की को सड़क पर छोड़ा ...
"जवान लड़की को सड़क पर छोड़ा ...
क्या घरवालों को होश नहीं"
"लड़का तो 'वो' भोला था ...
"लड़का तो 'वो' भोला था ...
यह सब चाउमीन की गलती है ...
वैसे एक बात बताओ लड़की घर से क्यों निकलती है ??"
चलो जो हुआ सो हुआ उसको भूलो ...
भत्ते ... नौकरी सब तैयार है ...
बस 'तुम' मुंह मत खोलो ...
चलो जो हुआ सो हुआ उसको भूलो ...
भत्ते ... नौकरी सब तैयार है ...
बस 'तुम' मुंह मत खोलो ...
तुम्हारी चीख से मुश्किल मे पड़ती सरकार है ...
अगली जीत - हार के लिए इनको तुम्हारी दरकार है ...
गुजरात - हिमाचल से निबट लिए ...
अब दिल्ली की बारी है ...
चुनावी वादा ही सही पर यकीन जानना ...
दोषियों को छोड़ा न जाएगा यह मानना ...
हम सब तुम्हारे साथ है डरना मत ...
पर बिटिया अंधेरे के बाद घर से निकलना मत ...
अंधेरा होते ही सब समीकरण बदल जाते है ...
न जाने कैसे ...
हमारे यह रक्षक ही सब से बड़े भक्षक बन जाते है ...
कभी कभी लगता है यह वो मानवता के वो दल्ले है ...
जिन्होने हर चलती बस - कार मे ...
खुद अपनी माँ , बहन , बीवी और बेटी ...
नीलाम कर रखी है !!
आज कल मन बडा खिन्न है.. समाचार चैनल गिनती बताते हैं की फ़लां फ़लां राज्य में बलात्कार और लूट-खसोट का क्या आंकडा है।
जवाब देंहटाएं"रमन्ते तत्र देवता" केवल किताब में है.... असल में हम न जानें किस ओर बढ रहे हैं........
यही तो समझ नहीं आता कि यह होता क्या जा रहा है समाज मे !
हटाएंbahut sach...
जवाब देंहटाएंneta, media... sab ke sab bik chuke.. sabko bas khud ki dikhti hai.. aur TRP..
gairat ki baat hi nahi rahi to kya kahun...
aapkee puri rachna... meri jubani hai, bas mere pass shabd nahi the, aapne shabd diya...:)
आभार मुकेश भाई !
हटाएंएक बहुत ही बेहतरीन प्रयास भाई शिवम | बहुत ही उम्दा लिखा है आपने | तबियत प्रसन्न हो गई | इस तरह के विचारों वाली टिपण्णी मैं कल कर चुका था फसबुक पर तो आज आपने इससे कविता के माध्यम से ढाल कर बात सत्य कर दी | मिडिया का जो सच अपने इस कविता के माध्यम से उजागर किया है वो अत्यंत सराहनिय प्रयास है | बस इतना कहूँगा के:
जवाब देंहटाएंकल यह सुना रहे थे दुखड़े
आज चमचम हैं मुखड़े
कौन सा नेता कैसे जीता
दिखा रहे सब के लफड़े
चिंता नहीं किसी को अब, उसकी
जो कल सबको प्यारी थी
उसका कोई मोल नहीं अब
वो कौन बेचारी दुखियारी नारी थी
कैसा गज़ब ये खेला है भैया
नहीं किसी से यारी जी
कल तेरी बारी थी मुनिया
आज किसी की है बारी
यह मिडिया, कहता है 'निर्जन'
बहुत बुरी बीमारी जी
बहुत बुरी बीमारी जी
वाह बेहद उम्दा ... जय हो !
हटाएंhttp://navbharattimes.indiatimes.com/depression-loneliness-was-filled-by-ram-singh/articleshow/17667493.cms
जवाब देंहटाएंkavita udwelit kar rahi hai shivam bhai, lekin yah jo instant reaction wala trend hai wah gambhirta se sochne nahi deta kisi mudde par. pareshani kahin aur hai. ghatnayen to kewal prateek hain. karano par chot kiye bina sambhav nahi ki ham kuritiyon ko khatm kar saken.
जवाब देंहटाएंहम सब को अब एक साथ आवाज़ उठानी होगी !
हटाएंक्या कहें ..वेदना को मार्मिक शब्द दिए हैं.
जवाब देंहटाएंजी
हटाएं
जवाब देंहटाएंजिस लड़की की छोटी आंत निकाल दी गई ....... :'( जिसे जीवन भर तरल पदार्थ पर रहना पडेगा ........ :'( बोल नहीं सकती ......... :( अब कोई सर्ज़री सहने लायक नहीं है ... :'(
वैसी लड़की किस काम की .......... :'( जिसकी चर्चा मिडिया प्रेस नेता करे ...........................
उसके लिए हम हैं न
बहुत मार्मिक रचना है. सच में, आज किसी चैनल पर उस लड़की से सम्बन्धित कोई समाचार नहीं है, जैसे किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है.
जवाब देंहटाएंयही हो रहा है !
हटाएंअत्यंत मार्मिक रचना .....ऐसे हादसे अंतस हिला देते हैं ....ईश्वर उसकी रक्षा करें यही प्रार्थना है .....!!
जवाब देंहटाएंहम भी यही दुआ करते है !
हटाएंKisi ko koi farq nahi padta na neta ko na aam aadmi ko hi aam aadmi bas 2-4 char din chilla kar chup ho jata hai neta aashwasan dekar chup ho jata hai fir usi dharre pe zindagi chalne lagti hai fir kabhi jb aisi dardnak ghatna hogi tb phir chillayenge phir chup ho jayenge bas yahi chalta rahega aise hi Mera Bharat Mahan kahlata rahega
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हो खान !
हटाएंशर्मनाक सच...... यही तो समस्या है ..... हम खुद ही इन व्यापारियों के हाथों में अपना भविष्य सौंप रहे हैं ..... कल भी वोट की कीमत थी और आज भी हम अपने सबसे कीमती वोट लुटा रहे हैं और अपनी बरबादी का जश्न मना रहे हैं ....... फिर ये बेवज़ह का रोना पीटना कैसा .... ?????????
जवाब देंहटाएंवो सुबह कभी तो आएगी !
हटाएंयकीन नहीं होता है .....कि यह 21वीं सदी का भारत है ।
जवाब देंहटाएंजितनी जल्द यकीन कर लो उतना अच्छा !
हटाएं"कल तक सबको 'उस' के दर्द का अहसास था ;
जवाब देंहटाएंआज सब को अपनी अपनी जीत का अभिमान है !!
कल जहां रेप पीड़ितों की सूची थी ...
उन्ही मेजों पर आज नए विधायकों की सूची तैयार है !!
कल लोग इस घटना को भूल भी जाएंगे .... शिंदे कहते हैं कि हम देखेंगे कि बस में रेप न हो .... यानि कि और जगह हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता ... राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के पद के लिए तैयार किया जा रहा है जो खुद बलात्कार केस के दोषी हैं .... क्या होगा देश का ?
क्या कहें ...
हटाएंहां ये सच है बिल्कुल सच कि उस लडकी की फ़िक्र चिंता किसी को भी नहीं है क्योंकि वो एक आम आदमी की बहन और बेटी थी किसी बडे रसूखदार की संतान नहीं । यही सच है इस घिनौने समाज का और इसकी बीमार मानसिकता का
जवाब देंहटाएंअफसोस ...
हटाएंक्या कहा जाए.. तभी तो मैं कहता हूँ कि इन घटनाओं पर बस कुछ दिनों तक चर्चा होती है और फिर लोग "बड़े-बड़े शहर में ऐसी छोटी-छोटी घटनाएँ होती ही रहती हैं" कहकर भूल जाते हैं.. इसीलिये मैं अधिकतर खामोश रहता हूँ, दुखी की पीड़ा कोई नहीं बाँट सकता, कम से कम मन से प्रार्थना तो कर सकते हैं!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना.. मगर आपने स्वरचित क्यों लिखा यह समझ में नहीं आया!!
सलिल दादा, 'स्वरचित' लिखने के पीछे 2 कारण है ... पहला यह कि मेरे इस ब्लॉग मे काफी सारी ऐसी पोस्टें है जिन मे दूसरे की लिखी रचनाएँ भी है !
हटाएंदूसरा कारण यह कि यह रचना जैसे अपने आप ही लिख गई यह अलग बात कि कीबोर्ड पर उँगलियाँ मेरी चल रही थी पर शब्द न जाने कहाँ से अपने आप आते जा रहे थे ... पिछले २ ३ दिनों की घटनाएँ काफी बेचैन किए हुये थी ... इस के बाद थोड़ा हल्का महसूस कर रहा हूँ !
सटीकता से यथार्थ को रखा आपने!!!
जवाब देंहटाएंपता नहीं किसे क्या मिला..
जवाब देंहटाएंहम तो इतना जानते है कि "उसे" इंसाफ नहीं मिला !
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