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साहित्य, संगीत, रंगमंच और चित्रकला सहित विभिन्न कलाओं में महारत रखने वाले गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर मूलत: प्रकृति प्रेमी थे। वह देश विदेश चाहे जहां कहीं रहे वर्षा के आगमन पर हमेशा शांतिनिकेतन में रहना पसंद करते थे। रविंद्रनाथ अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में लंदन और यूरोप की यात्रा पर गए थे। इसी दौरान वर्षाकाल आने पर उनका मन शांतिनिकेतन के लिए मचलने लगा। उन्होंने अपने एक नजदीकी से कहा था कि वह शांति निकेतन में ही पहली बारिश का स्वागत करना पसंद करते हैं।
गुरुदेव ने गीतांजलि सहित अपनी प्रमुख काव्य रचनाओं में प्रकृति का मोहक और जीवंत चित्रण किया है। समीक्षकों के अनुसार टैगोर ने अपनी कहानियों और उपन्यासों के जरिए शहरी मध्यम वर्ग के मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से वर्णन किया है।
रविंद्रनाथ के कथा साहित्य में शहरी मध्यम वर्ग का एक नया संसार पाठकों के समक्ष आया। टैगोर के गोरा, चोखेर बाली, घरे बाहिरे जैसे कथानकों में शहरी मध्यम वर्ग के पात्र अपनी तमाम समस्याओं और मुद्दों के साथ प्रभावी रूप से सामने आते हैं। इन रचनाओं को सभी भारतीय भाषाओं के पाठकों ने काफी पसंद किया क्योंकि वे उनके पात्रों में अपने जीवन की छवियां देखते हैं।
टैगोर का जन्म सात मई 1861 को बंगाल के एक सभ्रांत परिवार में हुआ। बचपन में उन्हें स्कूली शिक्षा नहीं मिली और बचपन से ही उनके अंदर कविता की कोपलें फूटने लगीं। उन्होंने पहली कविता सिर्फ आठ साल की उम्र में लिखी थी और केवल 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई।
बचपन में उन्हें अपने पिता देवेंद्रनाथ टैगोर के साथ हिमालय सहित विभिन्न क्षेत्रों में घूमने का मौका मिला। इन यात्राओं में रविंद्रनाथ टैगोर को कई तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ा और इसी दौरान वह प्रकृति के नजदीक आए। रविंद्रनाथ चाहते थे कि विद्यार्थियों को प्रकृति के सानिध्य में अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने इसी सोच को मूर्त रूप देने के लिए शांतिनिकेतन की स्थापना की।
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रविंद्रनाथ के नाटक भी अनोखे हैं। वे नाटक सांकेतिक हैं। उनके नाटकों में डाकघर, राजा, विसर्जन आदि शामिल हैं। रविंद्रनाथ की प्रसिद्ध काव्य रचना गीतांजलि के लिए उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। बांग्ला के इस महाकवि ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सरकार द्वारा निर्दोष लोगों को गोलियां चलाकर मारने की घटना के विरोध में अपना नोबेल पुरस्कार लौटा दिया था। उन्होंने दो हजार से अधिक गीतों की भी रचना की। रविंद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से प्रभावित उनके गीत मानवीय भावनाओं के विभिन्न रंग पेश करते हैं। गुरुदेव बाद के दिनों में चित्र भी बनाने लगे थे।
७ अगस्त १९४१ को देश की इस महान विभूति का देहावसान हो गया।
' जन गन मन ' के रचयिता, भारत माता के लाल , गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को सभी मैनपुरी वासियों का शत शत नमन |
टैगोर जैसा बहुआयामी और समृद्ध जीवन कम ही लोगों का रहा है। राष्ट्रगान के रचयिता को प्रणाम!
जवाब देंहटाएंगुरूदेव को नमन!
जवाब देंहटाएंगुरुदेव टैगोर को नमन..
जवाब देंहटाएंbahut-bahut sadhubad gurudew ko barambar naman---------ye haamesa hamare prerna shrot baane rahege.
जवाब देंहटाएंजोदी तोर डाक शुने केऊ ना आशे...
जवाब देंहटाएंनमन गुरुदेव!!
प्रणाम है जन गन मन के रचियता को ...
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'बुरा-भला' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 8 अगस्त को 'गुरूदेव रविंद्रनाथ टैगोर की 71वीं पुण्यतिथि पर विशेष' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव