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'हॉकी के जादूगर' ध्यानचंद के जन्म दिन पर 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल भी है। आओ कुछ बातें करें हॉकी की ....
[पुराना है इतिहास]
ओलंपिक खेलों से भी काफी पुराना है हॉकी का खेल। दुनिया की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में इस खेल का प्रमाण मिलता है। अरब, ग्रीक, रोमन, परसियन, सभी किसी न किसी रूप में अपने तरीके से हॉकी खेलते थे। बेशक वह इस खेल का पुराना रूप था। धीरे-धीरे विकसित होते हुए यह आधुनिक रूप में आया। आधुनिक हॉकी यानी फील्ड हॉकी का विकास किया था ब्रिटेन के लोगों ने। यह समय था 19वीं सदी के आसपास का। [भारत में हॉकी]
भारत में हॉकी लाने वाले ब्रिटिशर्स ही थे। उस समय स्कूलों मे यह छात्रों का फेवरेट गेम हुआ करता था। धीरे-धीरे इस गेम की लोकप्रियता बढ़ने लगी। भारत में पहला हॉकी क्लब कोलकाता में बना। इसके बाद मुंबई और पंजाब में।
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[बलबीर का करिश्मा]
वर्ष 1928-1956 की अवधि को भारतीय हॉकी का स्वर्णकाल माना जाता है। ध्यानचंद के अलावा एक और नाम इस दौरान सबकी जुबान पर था। यह नाम था बलबीर सिंह। तीन दशक तक यह सितारा भारतीय हॉकी टीम में चमकता रहा। महज यह संयोग कहा जा सकता है कि अलग-अलग पांच खिलाड़ियों का नाम बलबीर सिंह था। बलबीर सिंह ने भारतीय हॉकी टीम की जीत में अपना अहम रोल निभाया था। आज भी हॉकी के दिग्गज और संभावनाशील खिलाड़ी हैं, जो भारत का नाम रोशन कर रहे हैं। इनमें धनराज पिल्लई, दिलीप टर्की, प्रबोध टर्की, बलजीत सिंह, तुषार खांडेकर जैसे कई खिलाड़ियों का नाम लिया जा सकता है।
[दद्दा की जादूगरी]
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'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद सिंह को लोग प्यार और सम्मान से कहते थे-दद्दा। जबकि उनके नाम में चंद शब्द जोड़ा था उनके कोच पंकज गुप्ता ने। उनकी प्रतिभा देखकर उन्हें यह आभास हो चुका था कि हॉकी के आसमान पर सितारों के बीच अगर कोई चांद बनने की काबिलियत रखता है, तो वह ध्यान सिंह ही हैं।
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और हां, लेजेंड क्रिकेटर सर डॉन ब्रैडमैन ने उनका खेल देखकर कहा था कि वे हॉकी से गोल ऐसे दागते हैं, जैसे कि वे क्रिकेट के बल्ले से रन बना रहे हों।
हॉकी के इस बादशाह का जन्म 29 अगस्त, 1905 को हुआ था। उन्होंने आर्मी से अपना करियर शुरू किया। यहीं उनकी प्रतिभा की पहचान हुई। वे सेंटर फॉरवर्ड पोजीशन पर खेलते थे। उनके गोल करने के जादुई कारनामे को देखकर पूरा खेल जगत हतप्रभ रह जाता था। कहते हैं कि उनकी प्रतिभा की भनक हिटलर को लगी, तो उसने ध्यानचंद को जर्मन आर्मी ज्वाइन करने का ऑफर दे दिया था। दद्दा की जादूगरी कमाल की थी। उनकी कैप्टनशिप में भारत ने ओलंपिक में तीन बार गोल्ड मेडल जीता था। उन्हें पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया।
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दद्दा को सम्मान देने के खातिर ही देश में कई जगह उनकी हॉकी खेलने की मुद्रा में मूर्तियां लगाई गई हैं। जैसे, इंडिया गेट के नजदीक नेशनल स्टेडियम में और आंध्र प्रदेश के मेडक में। विदेशों में भी हॉकी बॉल पर स्टिक की मास्टरी प्रदर्शित करते हुए स्टेचू लगाए गए हैं। वियाना और ऑस्ट्रिया रेजिडेंट्स ने भी उन्हें इस सम्मान से नवाजा है।
दद्दा ध्यानचंद को सभी मैनपुरी वासियों का शत शत नमन |
हॉकी का जादूगर कहाने वाले एकमात्र खिलाड़ी!! सलाम!!
जवाब देंहटाएंहॉकी के जादूगर को नमन।
जवाब देंहटाएंहॉकी के इस जादूगर को नमन.. ध्यानचंद खिलाडी के अलावा एक देशभक्त भी थे.. आज कल खेल में व्यापार की भावना है देश-भक्ति की नहीं... और रही बात हॉकी की.. वह तो पता नहीं किस गर्त में चली गई है।
जवाब देंहटाएंकल 31/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
आपका बहुत बहुत आभार यशवंत !
हटाएंहॉकी और इसके जादूगर के बारे में बहुत सारी नई जानकरी मिली |
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आभार |
नमन है जादूगर और उसकी जादूगरी को ...
जवाब देंहटाएंबहुत देर से आपके इस ब्लॉग का अनुसरण शुरू किया,उसके लिए माफ़ी छठा हूँ । दद्दा को शत - शत नमन ।
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