प्रख्यात निर्देशक, अभिनेता और पटकथा लेखक सत्यदेव दूबे का लंबी बीमारी के बाद रविवार दोपहर करीब साढ़े बारह बजे निधन हो गया। वह 75 वर्ष के थे।
सत्यदेव दूबे के पौत्र ने कहा, वह पिछले कई महीने से कोमा थे। वह मस्तिष्क आघात से पीडि़त थे और सुबह साढ़े 11 बजे अस्पताल में निधन हो गया। चर्चित नाटककार और निर्देशक सत्यदेव दूबे को इस साल सितंबर महीने में जूहू स्थित पृथ्वी थिएटर कैफे में दौरा पड़ा था और तभी से वह कोमा में थे।
पिछले कुछ समय से दूबे का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था और पिछले वर्षो में कई बार उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित सत्यदेव दूबे ने मराठी-हिंदी थिएटर में काफी ख्याति हासिल थी। उनका जन्म छत्तीसगढ़ के विलासपुर में हुआ था लेकिन उन्होंने मुंबई को अपना घर बना लिया था। मराठी सिनेमा में उन्होंने काफी नाम कमाया। उन्होंने अपने लंबे करियर में स्वतंत्रता के बाद के लगभग प्रमुख नाटककारों के साथ काम किया था।
आइये एक नज़र डालते है उनके जीवन पर ...
जीवन परिचय
सत्यदेव दुबे देश के शीर्षस्थ रंगकर्मी और फिल्मकार थे. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 1936 में जन्मे सत्यदेव दुबे देश के उन विलक्षण नाटककारों में थे, जिन्होंने भारतीय रंगमंच को एक नई दिशा दी. उन्होंने फिल्मों में भी काम किया और कई पटकथाएं लिखीं. देश में हिंदी के अकेले नाटककार थे, जिन्होंने अलग-अलग भाषाओं के नाटकों में हिंदी में लाकर उन्हें अमर कर दिया. उनका निधन 25 दिसंबर 2011 को मुंबई में हुआ.
कार्यक्षेत्र
धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग को सबसे पहले सत्यदेव दुबे ने ही लोकप्रियता दिलाई. इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली.
सम्मान और पुरस्कार
धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग को सबसे पहले सत्यदेव दुबे ने ही लोकप्रियता दिलाई. इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली.
फिल्मोग्राफी
- अंकुर - 1974 - संवाद और पटकथा
- निशांत - 1975 -संवाद
- भूमिका - 1977 - संवाद और पटकथा
- जूनून - 1978 - संवाद
- कलयुग - 1980 - संवाद
- आक्रोश - 1980 - संवाद
- विजेता - 1982 - संवाद और पटकथा
- मंडी - 1983 - पटकथा
मैनपुरी के सभी कला प्रेमियों की ओर से सत्यदेव दुबे साहब को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !
उफ़..जाते जाते!!पंडित जी को श्रद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रधांजलि ....
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंबहुत बुरा लग रहा है। विशेषकर श्याम बेनेगल की फ़िल्मों ने उनसे परिचय कराया था। धीरे-धीरे और जानकारी मिली। विनम्र श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंदुखद सूचना , जाने जाते जाते ये साल और कितने दुख देकर जाएगा । उनको हमारी श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंकला के प्रति उनके समर्पण और रंग कर्म को नमन .
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