आज से ठीक २७ साल पहले अपने देश भारत की राजनीती के आकाश में जन्म था यह 'नीला तारा' | यह 'नीला तारा' अपने साथ इतनी उर्जा लिए था कि उस उर्जा से झुलसे लोग आज तक अपने घावों पर मरहम लगते नज़र आते है | और कुछ के घाव तो २७ सालो के बाद आज तक भरे भी नहीं है |
बहुत से सवाल आज तक उतर के इंतज़ार में है और अगर यही हाल रहा तो कल तक भूला भी दिए जायेगे क्यों यही होता आया है अपने देश में !
आज जरूरत है एक संकल्प की कि आगे भविष्य में कभी भी ऐसी नौबत नहीं आने दी जाएगी कि अपने देश में फिर कोई 'नीला तारा' जन्म लें | और यह संकल्प लेना होगा हमारे नेतायों को ............और हमे भी |
जाने 'नीला तारा' के विषय में |
इसे एक बुरा स्वपन समझ कर भुला देना ही बेहतर है । अच्छा है आगे की सोचें ।
जवाब देंहटाएंडॉ दराल साहब की टिप्पणी से मैं भी पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूँ...
जवाब देंहटाएंआज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि-
जवाब देंहटाएंदर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है
दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास।
जवाब देंहटाएंइस तरह की घटनाएं देश का इतिहास बनाती/बिगाड़ती रहती हैं...
जवाब देंहटाएंभिडरांवाला ज़िन्दा होता तो शायद आज भी बसों से उतारकर धर्म के अनुसार अलग-अलग कतारों में खडे करके निर्दोष लोगों को भूना जा रहा होता। आज भी कनिष्क जैसे कई जहाज़ बम से उडाये जा रहे होते। "नीला तारा" और ऐसे अन्य ऑपरेशंस में भारतीय सेना और अर्ध-सैनिक बलों के वीर जवानों ने बहुत कुर्बानियाँ दी हैं। बेशक उनमें से बहुत से शहीद मैनपुरी के भी रहे होंगे।
जवाब देंहटाएंइस नीले तारे के बारे में न सोचना ही बेहतर है! हमें आगे बढ़ते जाना चाहिए!
जवाब देंहटाएं....इतिहास गवाह है
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