स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस के जीवन की ऐसी कुछ घटनाएं, जो रोचक है और प्रेरणास्पद भी..
देवी काली के महान साधक और स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस का जन्म बगाल के कामारपुकुर गांव में शुक्ल पक्ष फाल्गुन द्वितीया के दिन हुआ था। इस बार यह तिथि 6 मार्च को है।
उनका बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं। उन्होंने ईश्वर की प्राप्ति के लिए कठोर साधना की। वे महान विचारक और मानवता के पुजारी थे। हम उनके जीवन से संबंधित कुछ घटनाओं का उल्लेख कर रहे है, जो हम सभी के लिए अनुकरणीय हैं-
करुणा भाव : बचपन में रामकृष्ण को सभी प्यार से 'गदाधर' पुकारते थे। उनकी बालसुलभ सरलता और मुस्कान से हर कोई सम्मोहित हो जाता था। जब उन्हें पढ़ने के लिए स्कूल में भर्ती कराया गया, तो किसी सहपाठी को फ टा कुर्ता पहने देखकर उन्होंने अपना नया कुर्ता दे दिया। कई बार ऐसा होने पर एक दिन उनकी मां ने गदाधर से कहा, प्रतिदिन नया कुर्ता कहा से लाऊंगी? उन्होंने कहा- ठीक है। मुझे एक चादर दे दो। मुझे कुर्ते की आवश्यकता ही नहीं है। मित्रों की दुर्व्यवस्था देखकर उनके हृदय में करुणा उभर आती थी।
दिव्य ज्ञान : जब वे महज सात वर्ष के थे, तो उनके सिर से पिता का साया उठ गया। इसकी वजह से घर की परिस्थिति बिल्कुल बदल गई। आर्थिक कठिनाइया आने लगीं और पूरे परिवार का भरण-पोषण कठिन होता चला गया, लेकिन बालक गदाधर का साहस कम नहीं हुआ। इनके बड़े भाई रामकुमार च˜ोपाध्याय कोलकाता में एक पाठशाला के सचालक थे। वे उन्हें अपने साथ कोलकाता ले गए। रामकृष्ण बहुत निश्छल, सहज और विनयशील थे। सकीर्ण विचारों से वे बहुत दूर रहते थे। हमेशा अपने कार्य में लीन रहते। हालांकि काफी प्रयास के बावजूद जब रामकृष्ण का मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगा, तो उनके बड़े भाई रामकुमार उन्हें कोलकाता के पास दक्षिणेश्वर स्थित काली माता मंदिर ले गए और वहां पुरोहित का दायित्व सौंप दिया। उनका मन इसमें भी नहीं रम पाया। कुछ वर्ष बाद उनके बड़े भाई भी चल बसे। अंतत: इच्छा न होते हुए भी रामकृष्ण मदिर में पूजा-अर्चना करने लगे। धीरे-धीरे वे मा काली के अनन्य भक्त हो गए। बीस वर्ष की उम्र से ही साधना करते-करते उन्होंने सिद्धि प्राप्त कर ली।
विश्वास : रामकृष्ण के सबसे प्रिय शिष्य थे विवेकानंद। उन्होंने एक बार उनसे पूछा, 'महाशय! क्या आपने कभी ईश्वर को देखा है?' उन्होंने उत्तर दिया-'हा, देखा है। जिस प्रकार तुम्हें देख रहा हूं, ठीक उसी प्रकार, बल्कि उससे कहीं अधिक स्पष्टता से।' वे स्वय की अनुभूति से ईश्वर के अस्तित्व का विश्वास दिलाते थे।
मानवता का पाठ : वे अपने भक्तों को मानवता का पाठ पढ़ाते थे। एक बार उनके परम शिष्य विवेकानद हिमालय पर तप करने के लिए उनसे अनुमति मागने गए। उन्होंने कहा, 'वत्स, हमारे आसपास लोग भूख से तड़प रहे हैं। चारों ओर अज्ञान का अंधेरा छाया हुआ है और तुम हिमालय की गुफा में समाधि का आनद प्राप्त करोगे। क्या तुम्हारी आत्मा यह सब स्वीकार कर पाएगी?' उनकी बात से प्रभावित होकर विवेकानंद दरिद्र नारायण की सेवा में लग गए। मा काली के सच्चे भक्त परमहंस देश सेवक भी थे।