मैं जो आप सब के लिए शिवम् हूँ ... उनके लिए शीबू था ... सिर्फ़ शीबू ... उनका एकलौता भांजा ... ना आगे कुछ ना पीछे कुछ और वो मेरे एकलौते मामा ... ना आगे कुछ ना पीछे कुछ !!
मेरी ननिहाल मुरादाबाद की है ... मंडी चौक के पास ... बल्लम मोहल्ले में ! घर के आस पास लोग मुझे वकील साहब के भांजे के रूप में जानते थे जो कि कलकत्ता से हर २ -३ साल के बाद आया करता था महीने भर के लिए ! वकील साहब के भांजे के रूप में मुझे कुछ विशेष आधिकार प्राप्त थे ... जिस में प्रमुख्य था ... किसी के भी घर में घुस कर अपनी गेंद उठा लेना ... भले ही क्रिकेट खेलते हुए लगाये गए उस शोट से अगले का कितना भी नुक्सान क्यों ना हुआ हो ... कोई और बच्चा जाता तो गेंद तो छोडिये साहब ... अच्छी खासी माँ की ... बहन की ... से उसका सत्कार होता था ... पर हम ठहरे वकील साहब के भांजे ... मजाल है जो कोई हम से कुछ कह जाए !!
पर जैसा कि आप सब को मालुम है ... हर चीज़ की एक कीमत होती है ... मेरे इस ठाठ की भी थी !!
" बेटा, पान खाने चलना है ? "
" हाँ ... हाँ ... मामा ! "
" तो चलो फिर ... अच्छा सुनो ... अपनी मामी से सब्जी वाला थैला भी ले लेना ! "
" जी मामा "
अब मामा भांजे की जोड़ी निकल ली बाज़ार में ... थोड़ी ही दूर चलने के बाद आ गई पंडित जी की पान की दुकान ...
" वकील साहब जय राम जी की ! "
" जय राम जी की ... पंडित जी ... हमारे भांजे को पान खिलाओगे ?? "
" अरे क्यों नहीं साहब ... आखिर हमारे भी तो भांजे है !! "
हम खुश ... इतनी इज्ज़त आखिर संभाले तो भी कैसे ??
अगले ही पल ... उतर गई सारी खुमारी .... जब वकील मामा ने किया यह फरमान जारी ...
" दुकान देख लो ... अब रोज़ यहाँ से हमारा पान ले जाया करना !! "
कुछ समझे आप ... नहीं ... अरे साहब ... अभी ऊपर बताया ना आपको ... ठाठ की कीमत ... यह उसकी ही किश्त थी !
मैच बहुत ही रोमांचक दौर से गुज़र रहा है ... अभी थोड़ी देर पहले ही अनुज ने पंकज को '१ टिप १ हैण्ड' के नियम के अनुसार आउट किया है और अब हम बल्लेबाजी को आये है ... अब यहाँ साफ़ कर दें कि सब बच्चो में बड़े हम ही थे सो अपनी टीम को जीताने का भार हम पर कुछ जरूरत से ज्यादा ही था ... खैर साहब ... इधर हम तैयार है ... उधर गेंदबाज़ और बाकी खिलाडी ... कि इतने में वकील साहब की आवाज़ आती है ...
" अरे भई, शीबू कभी अपने मामा के पास भी बैठ जाया करो कुछ देर ... !!! "
" जी मामा अभी आया ... बस एक ओवर बाकी है ... "
" अरे मार गोली ओवर को ... इधर आ ... "
अब जब हुकुम आ ही गया है तो मारनी ही पड़ी गोली ... पूरे मैच को ...
" जी मामा ... "
" यार ज़रा माथा दबा दे ... फिर तो तू जाने ही वाला है ... वहाँ कौन मिलेगा तुझे ... जिस का तू माथा दबाये ! "
बात सही थी ... आज भी कोई और नहीं है जो माथा दबवाता हो मेरे से ... या जिस के लिए रोज़ मैं पान लेने जाता हूँ
तब लगता था ... वकील साहब खेलने नहीं देते ... आखिर एक बच्चे से घंटे भर माथा दबवाना या उसको ले कर सब्जी के बहाने पूरे बाज़ार का चक्कर लगवाना कहाँ का तरीका है !?
आज जब पूरा एक साल होने को आ गया है आप को गए हुए ... तब समझा हूँ ... घर - बाहर की सब जिम्मेदारियों के बीच अपने एकलौते भांजे के साथ समय बिताने के बहाने थे यह सब आपके !!
ठीक गुलज़ार - पंचम की टीम जैसी अपनी भी तो एक टीम ही थी ...
या तो खुद आ जाओ ... या मुझे बुला लो !!
घर - बाहर की सब जिम्मेदारियों के बीच अपने एकलौते भांजे के साथ समय बिताने के बहाने थे यह सब आपके !!
जवाब देंहटाएंबडों की बातें पहले कहां समझ में आती है .. मामाजी को हार्दिक श्रद्धांजलि !!
मामा के पास दो माँओं का प्यार होता है भानजे के लिए।
जवाब देंहटाएंतभी उन्हे मामा कहा जाता है। जाने वालों की बहुत याद आती है।
विनम्र श्रद्धांजलि
माँ के बाद मामा का रिश्ता सर्वाधिक अपनेपन से भरा होता है - अधिकार का होता है । आप सौभाग्यशाली रहे ,अब इन बातों को तो तरसतीं है आज की पीढ़ियाँ , उन्हें ऐसा सुख कहाँ नशीब होने वाला है ,भला । मामा जी को श्रद्धासुमन अर्पण - नमन - प्रणाम । ईश्वर उनकी आत्मा को सदगति प्रदान करें ।
जवाब देंहटाएंगाजियाबाद से एक यलो एक्सप्रेस चल रही है जो आपके ब्लाग को चौपट कर सकती है, जरा सावधान रहे।
जवाब देंहटाएंबहुत ही आत्मीय संस्मरण...
जवाब देंहटाएंमामा-भांजे का प्यार ऐसा ही होता है.
पर मायूसी में ये ना कहें..."या तो खुद आ जाओ या मुझे बुला लो"..बल्कि जितना प्यार मामा से मिला है,उसका दुगुना अपने भांजे को दें...मामा की आत्मा संतृप्त हो जायेगी.
शिवम बाबू! मन को छू जाने वाली पोस्ट... सबसे पहले पढ़ी, मगर क्या लिखूँ, यह मुश्किल लग रहा था..
जवाब देंहटाएंअंतिम लाईन पर यही कहूँगा कि ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिये... आप तो भगवान पर भरोसा करते हैं..उनको मामा जी की ज़रूरत रही होगी, इसलिये बुला लिया!!
अरे शिवम भाई, यह क्या कह रहे हो जी, आप अब मामा जेसे बन कर दिखाओ ओर बच्चो को वेसे ही प्यार करो, जाने वाले तो चला गया, आप होस्सला रखे, ओर अपनी जिमेदारियां निभाये, आप के मामाजी को हार्दिक श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी पोस्ट। एक प्यारा रिश्ता, एक भावनाओं से भरी पोस्ट। मामा को विनम्र श्रद्धांजलि। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंबड़ा ही जानलेवा है
ठाठ की सही कीमत उस समय पता नहीं चलती, बाद में समझ आती है।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, राज जी, बिल्कुल ठीक कह रहे 'जितना प्यार मामा से मिला है,उसका दुगुना अपने भांजे को दें...मामा की आत्मा संतृप्त हो जायेगी'
यादें सच में बहुत तड़पाती हैं। मामा जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
अंतिम पंक्ति असहज कर रही
मामा - भांजे का रिश्ता अनोखा होता है ...
जवाब देंहटाएंसैंतीस साल का हो गया हूँ आज भी मेरे मामाजी से उतना ही प्यार मिलता हिया जितना बचपन में मिलता था ...
आपके मामा जी को हार्दिक श्रद्धांजलि !
बड़ों के जाने के बाद ही उनकी अहमियत का पता चलता है...
जवाब देंहटाएंओह शिवम भाई ,
जवाब देंहटाएंकुछ पोस्टों को पढ जाने को मन करता और उसके बाद सिर्फ़ आंखें बंद करके बैठ जाने को ...बस इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा । यादों को सहेजे रखिए
मेरा नया ठिकाना
शिवम भाई... मेरे न मामा थे न मौसी लेकिन मै जिनका मामा हूँ वो मुझे बहुत ज्यादा पसंद करते हैं... मामा और भांजे का रिश्ता बेहद आत्मीय और दुलार का होता है... जाने वाले चले जाते हैं...यादें शेष रह जाती हैं...यही जग की रीति है
जवाब देंहटाएंमामा जी को हार्दिक श्रद्धांजलि
शिवम जी,
जवाब देंहटाएंजीवन की यह रीत है.
टेनीसन के शब्दों में-
Time marches on
But memory stays
Torturing silently
The rest of our days...