मैं मैनपुरी हूँ.....
कभी मुझे अपने उपर गुरुर था।
मेरे शहर के लोग बेहद ज़हीन और इल्म पसंद थे।
लोग एक दुसरे से मोहब्बत से मिलते थे.जबान और बयान मैं अंतर नही था।
दिलो मैं हर एक के लिए अदब था.हर और खुशी थी मासूमों के चेहरे पर खुदा का नूर था।
जेहन मैं इंसानियत थी.मैं रोशन थी.......मैं मैनपुरी थी......
आज मैं उदास हूँ मेरे शहर के लोग परेशान हैं।
सियासी नही है फ़िर भी हेरान हैं।
वक्त थम गया है लोग रुक गए हैं।
जेहन मैं नफरत है.मोहब्बत और खुलूस दिलो से दूर है जबान तल्ख है.
मैं मैनपुरी हूँ .....मुझे मोहब्बत पसंद है
कोई आए समझाए की मैं वो ही हूँ .....जहाँ हर दिल एक है....
बुजुर्गों का सरमाया ही यहाँ के लोगों के असली जागीर है.......
मैं मैनपुरी हूँ.....
rat ke bad din to aata hee hai, narayan narayan
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,सशक्त अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनायें ,स्वागत आपका ,
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये ,यह तेवर आपको आगे ले जायेंगे
आपका ही
डॉ.भूपेन्द्र
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है . मेरा भी साईट देखे और टिप्पणी दे
जवाब देंहटाएंसही लिखा हृदेश जी.पढ़ कर दिल भर आया.जब मैं मैनपुरी आता हूँ तो दिल भर आता है.यहाँ के लोग अभी भी पूरी तरह से जागरूक नहीं है.आपका प्रयास बेहद कबीलेतारीफ है.आपको दिल से बधाई.सुधीर शाक्य
जवाब देंहटाएंनॉएडा