पूरे दिन में हमारे साथ जो जो होता है उसका ही एक लेखा जोखा " बुरा भला " के नाम से आप सब के सामने लाने का प्रयास किया है | यह जरूरी नहीं जो हमारे साथ होता है वह सब " बुरा " हो, साथ साथ यह भी एक परम सत्य है कि सब " भला " भी नहीं होता | इस ब्लॉग में हमारी कोशिश यह होगी कि दिन भर के घटनाक्रम में से हम " बुरा " और " भला " छांट कर यहाँ पेश करे |
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सोमवार, 13 अप्रैल 2009
शनिवार, 11 अप्रैल 2009
सरफरोशी की तमन्ना
सरफरोशी की तमन्ना
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू-ऐ-कातिल में है.
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बात-चीत, देखता हूँ मैं जिसे वोह चुप तेरी महफिल में है.
ए शहीद-ऐ-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफिल में है.
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
वक्त आने पे बता देंगे तुझे ए आसमान, हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है.
खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूचा-ऐ-कातिल में है.
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
है लिए हथियार दुश्मन ताक़ में बैठा उधर, और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
हाथ जिन में हो जूनून कट ते नही तलवार से, सर जो उठ जाते हैं वोह झुकते नही ललकार से.
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न, जा हथेली पर लिए लो बढ़ चले हैं ये क़दम.
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफिल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
यूं खडा मकतल में कातिल कह रहा है बार बार, क्या तमन्ना-ऐ-शहादत भी किसी के दिल में है.
दिल में तूफानों की टोली और नसों में इन्किलाब, होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल में है,
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. देखना है ज़ोर कितना बाज़ुय कातिल में है ||
बुधवार, 8 अप्रैल 2009
मैं मैनपुरी हूँ.....
मैं मैनपुरी हूँ.....
कभी मुझे अपने उपर गुरुर था।
मेरे शहर के लोग बेहद ज़हीन और इल्म पसंद थे।
लोग एक दुसरे से मोहब्बत से मिलते थे.जबान और बयान मैं अंतर नही था।
दिलो मैं हर एक के लिए अदब था.हर और खुशी थी मासूमों के चेहरे पर खुदा का नूर था।
जेहन मैं इंसानियत थी.मैं रोशन थी.......मैं मैनपुरी थी......
आज मैं उदास हूँ मेरे शहर के लोग परेशान हैं।
सियासी नही है फ़िर भी हेरान हैं।
वक्त थम गया है लोग रुक गए हैं।
जेहन मैं नफरत है.मोहब्बत और खुलूस दिलो से दूर है जबान तल्ख है.
मैं मैनपुरी हूँ .....मुझे मोहब्बत पसंद है
कोई आए समझाए की मैं वो ही हूँ .....जहाँ हर दिल एक है....
बुजुर्गों का सरमाया ही यहाँ के लोगों के असली जागीर है.......
मैं मैनपुरी हूँ.....
गुरुवार, 2 अप्रैल 2009
भला - बुरा ,बुरा - भला ||
भला बुरा , बुरा भला है ,खोटे पर सब खरा भला है |
झूट सच का क्या पता है ,एक गम एक बड़ी बला है ,
चल ढाल सब एक जैसी ,सारा कुछ ही नापा तुला है |
सच के सर जब धुँआ उठे तो ,झूट आग में जला हुआ है ,
भला बुरा ,बुरा भला है ,खोटे पर सब खरा भला है |
काला है तो काला होगा ,मौत का ही मसाला होगा,
चूना कत्था ज़िन्दगी तो सुपारी जैसा छाला होगा |
पाप ने जना नहीं तो पापियों ने पाला होगा,
भूख से निकल गया था ,भूख से निकला होगा |
भला बुरा , बुरा भला है ,खोटे पर सब खरा भला है |
वोह जो अब कहीं नहीं है उस पे भी तो यकीं नहीं है ,
रहेता है जो फलक फलक पे ,उसका घर भी ज़मी नहीं है |
अक्कल का ख्याल अगर हो , शक्ल से भी हसी नहीं है ,
पहेले हर जगह पे था वोह, सुना है अब वोह कहीं नहीं है |
बुरा भला है , भला बुरा है ||
----- गुलज़ार
बुधवार, 1 अप्रैल 2009
खट्टे मीठे "वादे"
इस फल की एक खासियत, जो की इसको उगाने वाले बताते है, यह है की यह कभी भी खट्टा नहीं निकलता | वैसे आज तक हमने तो कभी भी एकदम मीठा "वादा" खाया नहीं ,थोड़ा बहुत खट्टा तो हर "वादा" निकला | इस बार के "वादे" हम ने अभी तक चखे नहीं है पर उम्मीद है की अबकी बार एक आध मीठा "वादा" तो खाने को मिलेगा !!!!
आगे जैसी हरी इच्छा !!!!!
अग्निपथ
एक पत्र छाह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ अग्निपथ;
तू न थमेगा कभी तू न मुदेगा कभी तू न रुकेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.
ये महा दृश्य हैं,
चल रहा मनुष्य हैं,
अश्रु, स्वेत, रक्त से लथपथ लथपथ लथपथ ..
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.
ना, ये तो है मुमिकन ।
मुश्किल नहीं है काय॔ कुछ भी,
करके देखो,
हौसला हो दिल में अगर
करके देखो ।
पहला कदम राह पर तुम
रखके देखो
सफलता चूमेगी पैर तुम्हारे
करके देखो॓ ।
कहे कोई तुमसे अगर
ये है नामुमिकन,
कहो तुम जाकर उनसे
ना, ये तो है मुमिकन ।
मत घबराओ भैया तुम,
मन में हिम्मत भरके देखो,
भरोसा खुद पे करके देखो
हो जाएगा तुमसे भी यह
प॒यत्न जरा तुम करके देखो॓ ।
और चतुर्भुज नाथ गायब हो गए !!!!
राम नवमी को पूरा एक साल हो जायगा जब चतुर्भुज नाथ के पहली वार दर्शन हुये थे |
होते भी केसे वह मैनपुरी नरेश के आराद्य जो थे वह तो किले मे ही रहते थे , पहले राजा
पूजते थे उनके वाद ताले मे रहते थे | कभी फिर पूजा हुई या नही चतुर्भज नाथ ही जाने |
बिगत वर्ष राम नवमी पर राजा जी के राम मंदिर गये तो देखा एक श्याम वर्ण की
आकर्षक प्रतिमा और मूर्तियों के साथ रखी है| पूछने पर पता चला की यह राजा साहब
दुआर पूजित चतुर्भुज नाथ की प्रतिमा है , किले से मन्दिर मे लाकर रखी गयी है|
क्या पता था वह पहले और आखरी दर्शन होगे ? दो तीन माह बाद पता चला की एक दिन
चतुर्भुज नाथ का विग्रह मन्दिर से गायब है !! जो आज तक गायव है लोगो द्वारा पुजारी
से पूछने उसने बताया की विग्रह नहलाते समय था ,बाद मे गायब हो गया | किला प्रसाशको
बाद मे पुलिस को भी बताया , लेकिन कुछ नही होना था तो नही हुआ | जेसी चतुर्भज नाथ की
मर्जी !! लगता है बाहर ही जाना था, इसी लिये किले से बाहर आये
थे !!