“जहाज के ब्रिज पर लगी कप्तान की कुर्सी पर वो शख्स शांत बैठा था ... बिना हड़बड़ी और घबराहट के, जब तक जहाज दिखता रहा, हम उन की ओर देखते रहे ... ”
वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में केवल एक अवसर ही ऐसा आया, जब पाकिस्तानी नौसेना ने भारतीय नौसेना को नुकसान पहुँचाया। 1971 के भारत पाक युद्ध के आसारों को देखते हुए भारतीय नौसेना के अधिकारियों को अंदाज़ा था कि युद्ध शुरू होने पर पाकिस्तानी पनडुब्बियाँ मुंबई बंदरगाह को अपना निशाना बनाएंगी, इसलिए उन्होंने तय किया कि लड़ाई शुरू होने से पहले सारे नौसेना फ़्लीट को मुंबई से बाहर ले जाया जाए।
जब दो और तीन दिसंबर की रात को नौसेना के पोत मुंबई छोड़ रहे थे तो उन्हें यह अंदाज़ा ही नहीं था कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस हंगोर ठीक उनके नीचे उन्होंने डुबा देने के लिए तैयार खड़ी थी।
पाकिस्तानी पनडुब्बी उसी इलाक़े में घूमती रही, इस बीच उसकी एयरकंडीशनिंग में कुछ दिक्कत आ गई और उसे ठीक करने के लिए उसे समुद्र की सतह पर आना पड़ा।
36 घंटों की लगातार मशक्कत के बाद पनडुब्बी ठीक कर ली गई, लेकिन उसकी ओर से भेजे संदेशों से भारतीय नौसेना को यह अंदाज़ा हो गया कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी दीव के तट के आसपास घूम रही है।
नौसेना मुख्यालय ने आदेश दिया कि भारतीय जल सीमा में घूम रही इस पनडुब्बी को तुरंत नष्ट किया जाए और इसके लिए एंटी सबमरीन फ़्रिगेट आईएनएस खुखरी और आईएनएस कृपाण को लगाया गया।
दोनों पोत अपने मिशन पर आठ दिसंबर को मुंबई से चले और नौ दिसंबर की सुबह होने तक उस इलाक़े में पहुँच गए जहाँ पाकिस्तानी पनडुब्बी के होने का संदेह था।
टोह लेने की लंबी दूरी की अपनी क्षमता के कारण हंगोर को पहले ही खुखरी और कृपाण के होने का पता चल गया, यह दोनों पोत ज़िग ज़ैग तरीक़े से पाकिस्तानी पनडुब्बी की खोज कर रहे थे।
उस रात भारतीय नौसेना के दो जहाजों- INS कृपाण और INS खुकरी को आदेश मिला कि पाकिस्तानी पनडुब्बी हंगोर को मार गिराया जाए। दोनों जहाजों के कमांडिंग अफसर महेंद्रनाथ मुल्ला खुद INS खुकरी पर मौजूद थे। अरब सागर में दीव के पास ये ऑपरेशन शुरू हुआ। ब्रिटिश काल के ये दोनों जहाज फ्रांस से मंगाई गई ‘हंगोर’ सबमरीन के मुकाबले तकनीकी तौर पर बहुत पिछड़े थे। भारतीय नौसैनिक जानते थे कि मुकाबला बराबरी का नहीं है, पर जंग में नियम और शर्ते नहीं होतीं।
पाकिस्तानी पनडुब्बी बहुत धीमी रफ्तार से बढ़ती रही, शाम 7:57 पर उसने ‘INS कृपाण’ पर पहला टॉरपीडो फायर किया, कृपाण ने फटने से पहले ही उसको देखकर ऐंटी सबमरीन मोर्टार से उसे नष्ट कर दिया। यह टॉरपीडो 3000 मीटर की दूरी से फ़ायर किया गया था, भारतीय पोतों को अब हंगोर की स्थिति का अंदाज़ा हो गया था।
खुकरी ने अपनी स्पीड बढ़ाई और हंगोर की तरफ बढ़ी, हंगोर ने इसी समय दूसरा टॉरपीडो फायर किया जो सीधे खुकरी के ऑयल टैंक में लगा, जहाज में तुरंत आग लग गई। पाकिस्तानी सबमरीन के कप्तान कमांडर अहमद तस्नीम ने बाद में दावा किया था कि जहाज कुल 2 मिनट में डूब गया था, जबकि सारी रिपोर्ट्स कहती हैं कि खुकरी को डुबोने के लिए बाद में 2 टॉरपीडो और फायर करने पड़े थे, उधर कृपाण को एक और टॉरपीडो लगा, जिससे उसका हल टूट गया और वो बीच समंदर में एक जगह असहाय खड़ा हो गया।
आईएनएस खुखरी |
खुकरी को डूबता देख कैप्टन मुल्ला ने बिना किसी पैनिक के नौ-सैनिकों को जहाज छोड़ने का आदेश दिया। कप्तान ने अपनी लाइफ जैकेट भी किसी दूसरे नौ-सैनिक को दे दी और जहाज के अंतिम क्षणों तक अपनी कुर्सी पर बैठे अधिक से अधिक नौसैनिकों को बचाने का आदेश देते रहे। 176 नौ-सैनिक, भारतीय नौसेना के इकलौते डूबे जहाज से बच निकलने में नाकाम रहे और इनकी ज़िम्मेदारी लेते हुए कैप्टन महेंद्रनाथ मुल्ला ने भी जल समाधि ले ली।
कैप्टेन महेंद्रनाथ मुल्ला ने नौसेना की सर्वोच्च परंपरा का निर्वाह करते हुए अपना जहाज़ नहीं छोड़ा और अपने जहाज के साथ ही जल समाधि ली। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया।
आज आईएनएस खुखरी और उसके महावीर कप्तान महेंद्रनाथ मुल्ला के ४९ वें बलिदान दिवस पर हम सब उनको अपने श्र्द्धासुमन अर्पित करते हैं।
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