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सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ की ११८ वीं जयंती

“ जाऊँगा खाली हाथ मगर,यह दर्द साथ ही जायेगा;जाने किस दिन हिन्दोस्तान,आजाद वतन कहलायेगा।

बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं, फिर आऊँगा-फिर आऊँगा; ले नया जन्म ऐ भारत माँ! तुझको आजाद कराऊँगा।।
जी करता है मैं भी कह दूँ, पर मजहब से बँध जाता हूँ; मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूँ।
 
हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा; औ' जन्नत के बदले उससे, यक नया जन्म ही माँगूँगा।। ”

अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ जी को उनकी ११८ वीं जयंती पर सादर शत शत नमन !

इंकलाब ज़िंदाबाद !

4 टिप्‍पणियां:

  1. शहीद अशफाक़उल्ला (तख़ल्लुसः हसरत वारसी) की एक और नज़्म -

    जुनूने-हुब्बेवतन का मज़ा शबाब में है,
    लहू में फिर ये रवानी रहे, रहे न रहे ।
    वतन हमेशा रहे, शाद-काम और आज़्ााद,
    हमारा क्या है, अगर हम रहे, रहे न रहे ।।

    गरदन अब हाथ से अपने ही कटानी है हमें,
    मादरे हिन्द पे ये भेंट चढ़ानी है हमें ।
    किस तरह मरते हैं, असरारे वतन भारत पर,
    सारे आलम को यही बात दिखानी है हमें ।।

    बुज़दिलों को ही सदा मौत से डरते देखा,
    गो कि सौ बार उन्हें रोज़ ही मरते देखा,
    मौत से वीर को हमने नहीं डरते देखा,
    तख़्त-ए-मौत पे भी खेल ही करते देखा ।।

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  2. शहीद अशफाक उल्ला खाँ जी को विनम्र श्रद्धांजलि

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