गुरु दत्त (वास्तविक नाम: वसन्त कुमार शिवशंकर पादुकोणे, जन्म: 9 जुलाई, 1925 बैंगलौर, निधन: 10 अक्टूबर, 1964 बम्बई) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता,निर्देशक एवं फ़िल्म निर्माता थे। उन्होंने 1950वें और 1960वें दशक में कई उत्कृष्ट फ़िल्में बनाईं जैसे प्यासा,कागज़ के फूल,साहिब बीबी और ग़ुलाम और चौदहवीं का चाँद। विशेष रूप से, प्यासा और काग़ज़ के फूल को टाइम पत्रिका के 100 सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों की सूचि में शामिल किया गया है और साइट एन्ड साउंड आलोचकों और निर्देशकों के सर्वेक्षण द्वारा, दत्त खुद भी सबसे बड़े फ़िल्म निर्देशकों की सूचि में शामिल हैं। उन्हें कभी कभी "भारत का ऑर्सन वेल्स" (Orson Welles)  भी कहा जाता है। 2010 में, उनका नाम सीएनएन के "सर्व श्रेष्ठ 25 एशियाई अभिनेताओं" के सूचि में भी शामिल किया गया। गुरु दत्त 1950वें दशक के लोकप्रिय सिनेमा के प्रसंग में, काव्यात्मक और कलात्मक फ़िल्मों के व्यावसायिक चलन को विकसित करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी फ़िल्मों को जर्मनी, फ्रांस और जापान में अब भी प्रकाशित करने पर सराहा जाता है।
प्रारम्भिक जीवन व पारिवारिक पृष्ठभूमि
गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई 1925 को बंगलौर में शिवशंकर राव पादुकोणे व 
वसन्ती पादुकोणे के यहाँ हुआ था। उनके माता पिता कोंकण के चित्रपुर सारस्वत
 ब्राह्मण थे। उनके पिता शुरुआत के दिनों एक विद्यालय के हेडमास्टर थे जो 
बाद में एक बैंक
 के मुलाजिम हो गये। माँ एक साधारण गृहिणीं थीं जो बाद में एक स्कूल में 
अध्यापिका बन गयीं। गुरु दत्त जब पैदा हुए उनकी माँ की आयु सोलह वर्ष थी। 
वसन्ती घर पर प्राइवेट ट्यूशन के अलावा लघुकथाएँ लिखतीं थीं और बंगाली 
उपन्यासों का कन्नड़ भाषा में अनुवाद भी करती थीं।
गुरु दत्त ने अपने बचपन के प्रारम्भिक दिन कलकत्ता
 के भवानीपुर इलाके में गुजारे जिसका उनपर बौधिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव 
पड़ा। उनका बचपन वित्तीय कठिनाइयों और अपने माता पिता के तनावपूर्ण रिश्ते 
से प्रभावित था। उन पर बंगाली संस्कृति की इतनी गहरी छाप पड़ी कि उन्होंने 
अपने बचपन का नाम वसन्त कुमार शिवशंकर पादुकोणे से बदलकर गुरु दत्त रख 
लिया।
प्रारम्भिक प्रेरणा
गुरु
 दत्त की दादी नित्य शाम को दिया जलाकर आरती करतीं और चौदह वर्षीय गुरु 
दत्त दिये की रौशनी में दीवार पर अपनी उँगलियों की विभिन्न मुद्राओं से तरह
 तरह के चित्र बनाते रहते। यहीं से उनके मन में कला के प्रति संस्कार जागृत
 हुए। हालांकि वे अप्रशिक्षित थे, गुरु दत्त प्रेरित आवर्तनों का उत्पादन 
कर पाते और इसी तरह उन्होंने अपने उसे उत्तरार्द्ध से एक पेंटिंग पर आधारित
 है, एक साँप नृत्य प्रदर्शन फोटोग्राफ, उनके चाचा, बी बी बेनेगल राजी जब 
वह था के रूप में , वह कर सकता.उनकी यह कला परवान चढ़ी और उन्हें सारस्वत 
ब्राह्मणों के एक सामाजिक कार्यक्रम में पाँच रुपये का नकद पारितोषक 
प्राप्त हुआ।
जब गुरु दत्त 16 वर्ष के थे उन्होंने 1941 में पूरे पाँच साल के लिये 75 रुपये वार्षिक छात्रवृत्ति पर अल्मोड़ा
 जाकर नृत्य, नाटक व संगीत की तालीम लेनी शुरू। 1944 में जब द्वितीय 
विश्वयुद्ध के कारण उदय शंकर इण्डिया कल्चर सेण्टर बन्द हो गया गुरु दत्त 
वापस अपने घर लौट आये।
यद्यपि आर्थिक कठिनाइयों के कारण वे स्कूल जाकर अध्ययन तो न कर सके परन्तु रवि शंकर के अग्रज उदय शंकर
 की संगत में रहकर कला व संगीत के कई गुण अवश्य सीख लिये। यही गुण आगे चलकर
 कलात्मक फ़िल्मों के निर्माण में उनके लिये सहायक सिद्ध हुए।
कैरियर
फिल्मी सफर
गुरु दत्त ने पहले कुछ समय कलकत्ता जाकर लीवर ब्रदर्स फैक्ट्री में टेलीफोन
 ऑपरेटर की नौकरी की लेकिन जल्द ही वे वहाँ से इस्तीफा देकर 1944 में अपने 
माता पिता के पास बम्बई लौट आये।
उनके चाचा ने उन्हें प्रभात फ़िल्म कम्पनी पूना तीन साल के अनुबन्ध के तहत 
फ़िल्म में काम करने भेज दिया। वहीं सुप्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता वी० 
शान्ताराम ने कला मन्दिर के नाम से अपना स्टूडियो खोल रक्खा था। यहीं रहते 
हुए गुरु दत्त की मुलाकात फ़िल्म अभिनेता रहमान और देव आनन्द से हुई जो आगे
 जाकर उनके बहुत अच्छे मित्र बन गये।
उन्हें पूना में सबसे पहले 1944 में चाँद नामक फ़िल्म में 
श्रीकृष्ण की एक छोटी सी भूमिका मिली। 1945 में अभिनय के साथ ही फ़िल्म 
निर्देशक विश्राम बेडेकर के सहायक का काम भी देखते थे। 1946 में उन्होंने 
एक अन्य सहायक निर्देशक पी० एल० संतोषी की फ़िल्म हम एक हैं के लिये नृत्य निर्देशन का काम किया।
यह अनुबन्ध 1947 में खत्म हो गया। उसके बाद उनकी माँ ने बाबूराव पै, जो 
प्रभात फ़िल्म कम्पनी व स्टूडियो के सी०ई०ओ० थे, के साथ एक स्वतन्त्र सहायक
 के रूप में फिर से नौकरी दिलवा दी। वह नौकरी भी छूट गयी तो लगभग दस महीने 
तक गुरु दत्त बेरोजगारी की हालत में माटुंगा बम्बई में अपने परिवार के साथ 
रहते रहे। इसी दौरान, उन्होंने अंग्रेजी में लिखने की क्षमता विकसित की और 
इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इण्डिया नामक एक स्थानीय अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका के लिये लघु कथाएँ लिखने लगे।
देखा जाये तो उनके संघर्ष का यही वह समय था जब उन्होंने लगभग 
आत्मकथात्मक शैली में प्यासा फ़िल्म की पटकथा लिखी। मूल रूप से यह पटकथा 
कश्मकश के नाम से लिखी गयी थी जिसका हिन्दी में अर्थ संघर्ष होता है। बाद 
में इसी पटकथा को उन्होंने प्यासा के नाम में बदल दिया। यह पटकथा उन्होंने 
माटुंगा में अपने घर पर रहते हुए लिखी थी।
यही वह समय था जब गुरु दत्त ने दो बार शादी भी की; पहली बार विजया नाम 
की एक लड़की से, जिसे वे पूना से लाये थे वह चली गयी तो दूसरी बार अपने 
माता पिता के कहने पर अपने ही रिश्ते की एक भानजी सुवर्णा से, जो हैदराबाद की रहने वाली थी।
कोरियोग्राफर से लेकर अभिनेता निर्देशक तक
गुरु दत्त को प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने बतौर एक कोरियोग्राफर के रूप में काम
 पर रखा था लेकिन उन पर जल्द ही एक अभिनेता के रूप में काम करने का दवाव 
डाला गया। और केवल यही नहीं, एक सहायक निर्देशक
 के रूप में भी उनसे काम लिया गया। प्रभात में काम करते हुए उन्होंने देव 
आनन्द और रहमान से अपने सम्बन्ध बना लिये जो दोनों ही आगे चलकर अच्छे 
सितारों के रूप में मशहूर हुए। उन दोनों की दोस्ती ने गुरु दत्त को फ़िल्मी
 दुनिया में अपनी जगह बनाने में काफी मदद की।
प्रभात के 1947 में विफल हो जाने के बाद गुरु दत्त बम्बई आ गये। वहाँ 
उन्होंने अमिय चक्रवर्ती व ज्ञान मुखर्जी नामक अपने समय के दो अग्रणी 
निर्देशकों के साथ काम किया। अमिय चक्रवर्ती की फ़िल्म गर्ल्स स्कूल में और ज्ञान मुखर्जी के साथ बॉम्बे टॉकीज की फ़िल्म संग्राम
 में। बम्बई में ही उन्हें देव आनन्द की पहली फ़िल्म के लिये निर्देशक के 
रूप में काम करने की पेशकश की गयी। देव आनन्द ने उन्हें अपनी नई कम्पनी 
नवकेतन में एक निर्देशक के रूप में अवसर दिया था किन्तु दुर्भाग्य से यह 
फ़िल्म फ्लॉप हो गयी। इस प्रकार गुरु दत्त द्वारा निर्देशित पहली फिल्म थी नवकेतन के बैनर तले बनी बाज़ी जो 1951 में प्रदर्शित हुई।
मृत्यु
10 अक्टूबर 
1964 की सुबह को गुरु दत्त पेढर रोड बॉम्बे में अपने बेड रूम में मृत पाये 
गये। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने पहले खूब शराब पी उसके बाद ढेर सारी नींद
 की गोलियाँ खा लीं। यही दुर्घटना उनकी मौत का कारण बनी। इससे पूर्व भी 
उन्होंने दो बार आत्महत्या का प्रयास किया था। आखिरकार तीसरे प्रयास ने उनकी जान ले ली।
पुरस्कार
गुरु दत्त की फ़िल्म प्यासा को टाइम मैगज़ीन ने विश्व की 100 सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में स्थान दिया। 2002 में साइट और साउंड के क्रिटिक्स और डायरेक्टर्स के पोल में गुरु दत्त की दो फ़िल्मों- प्यासा और कागज़ के फूल को सर्वकालिक 160 महानतम फ़िल्मों में चुना गया।
गुरु दत्त की फ़िल्म प्यासा को टाइम मैगज़ीन ने विश्व की 100 सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में स्थान दिया। 2002 में साइट और साउंड के क्रिटिक्स और डायरेक्टर्स के पोल में गुरु दत्त की दो फ़िल्मों- प्यासा और कागज़ के फूल को सर्वकालिक 160 महानतम फ़िल्मों में चुना गया।
 आज गुरु दत्त साहब की ५४  वीं पुण्यतिथि  के अवसर पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं !!
 


 
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/10/2018 की बुलेटिन, ग़ज़ल सम्राट स्व॰ जगजीत सिंह साहब की ७ वीं पुण्यतिथि “ , में इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है |
जवाब देंहटाएंशत् शत् नमन गुरू दत्त जी बेहतरीन कलाकार थे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा आपने 👌
नमन।
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