राजेश खन्ना (29 December 1942 - 18 July 2012) |
" बाबू मोशाय,
हम सब तो रंगमंच की कठपुतलिया हैं ... जिसकी डोर उस ऊपर वाले के हाथों में
है जहाँपनाह , कब कौन कहाँ कैसे उठेगा ये कोई नहीं जानता ... हा हा हा ...
बाबू मोशाय जिंदगी और मौत उस ऊपरवाले के हाथ में है उसे ना आप बदल सकते हैं
ना हम "
अपने बाबू मोशाए को जाते जाते भी
यह सीख दे कर जाने वाला 'आनंद' आज ही के दिन सन २०१२ सच मे चला गया ... फिर कभी भी लौट कर न
आने के लिए ... और कमाल की बात यह कि हम रो भी नहीं सकते ... हमारे रोते ही
फिर नाराजगी भरी आवाज़ सुनाई देगी ... "पुष्पा, मुझसे ये आसू नहीं देखे जाते, आई हेट टीयर्स ..." साथ साथ अपना दर्द भी वो बयां कर देगा ... " ये तो मै ही जानता हूं कि जिंदगी के आखिरी मोड़ पर कितना अंधेरा है ... मै मरने से पहले मरना नहीं चाहता ..."
वैसे कितना सही कहता था न वो ... " किसी बड़ी खुशी के इंतजार में हम अपनी ज़िन्दगी मे ये छोटे-छोटे खुशियों के मौके खो देते हैं... "
सुनते है उस खुदा के घर जो देर से जाता है उसको सज़ा मिलती है ... पर यहाँ भी अपना हीरो आराम से बच निकलेगा यह कहते हुये ... "
मै देर से आता नहीं हूं लेकिन क्या करूं, देर हो जाती है इसलिए माफी का
हकदार हूं, अगर फिर भी किसी ने ना माफ किया हो तो मै यही कहना चाहता हूं हम
को माफी दे दो साहिब... "
तीसरी पुण्यतिथि पर स्व॰ राजेश खन्ना जी को सभी मैनपुरी वासियों की ओर से शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि |
श्रद्धाँजलि बाबू मोशाय ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ४ का चक्कर - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंजिंदगी इक सफ़र है सुहाना ..
जवाब देंहटाएंनमन है राजेश खन्ना जो को ...