आज रुस्तम ए हिन्द स्व ॰ दारा सिंह जी की दूसरी पुण्यतिथि है ... 2 साल पहले आज ही के दिन उनका लंबी बीमारी के बाद निधन हुआ था !
इंडिया के आयरन मैन
गौरतलब है कि कई दिनों तक अभिनेता महाबली दारा सिंह जी जिंदगी और मौत से
लड़ने के बाद गुरुवार १२ जुलाई २०१२ की सुबह 7.30 बजे दुनिया से चल बसे। वह काफी दिनों तक
मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती थे। उनकी गंभीर हालत को देखते हुए
कई दिनों तक उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा था। डाक्टरों ने बताया था कि उनके
खून में ऑक्सीजन की भारी कमी थी। उनके गांव के गुरुद्वारे में उनकी सलामती
की अरदास की जा रही थी। पूरे देश ने उनकी सलामती की दुआएं मांगी। रामायण
में हनुमान बनकर भगवान लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाने वाले दारा सिंह
जी अपने असल जिंदगी में मौत से नहीं लड़ पाए। ताकत के इस प्रतीक को जो
बीमारी हुई थी उसे क्रॉनिक इन्फ्लेमेटरी डेमीलीटेटिंग पॉलीन्यूरोपैथी के
नाम से जाना जाता है। कुश्ती की दुनिया में देश विदेश में अपनी कामयाबी का
लोहा मनवाने वाले दारा सिंह जी ने 1962 में हिंदी फिल्मों से अभिनय की
दुनिया में कदम रखा। पहलवानी से पहचान तो मिली ही थी, लेकिन रामायण सीरियल
में हनुमान के किरदार ने दारा सिंह जी को हिंदुस्तान के दिलों में बसा
दिया था।
अखाड़े से फिल्मी दुनिया का सफर
अखाड़े से फिल्मी दुनिया तक का सफर दारा सिंह जी के लिए काफी चुनौती भरा
रहा। दारा सिंह रंधावा का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के
धरमूचक गांव में बलवंत कौर और सूरत सिंह रंधावा के घर हुआ था।
जार्ज गारडियांको को हराकर बने विश्व चैंपियन
दारा सिंह जी अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान थे।
उन्होंने 1959 में विश्व चैंपियन जार्ज गारडियांको को कोलकाता में
कामनवेल्थ खेल में हराकर विश्व चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया। साठ के
दशक में पूरे भारत में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला रहा। दारा
सिंह जी ने अपने घर से ही कुश्ती की शुरूआत की थी।
भारतीय कुश्ती को दिलाई पहचान
दारा सिंह जी और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी
और धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियां जीतकर अपने गांव
का नाम रोशन करना शुरू कर दिया और भारत में अपनी अलग पहचान बनाने की
कोशिश में जुट गए थे।
सिंगापुर से लौटकर बने चैंपियन
1947 में दारा सिंह जी सिंगापुर चले गए। वहां रहते हुए उन्होंने भारतीय
स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन तरलोक सिंह को पराजित कर
कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैंपियनशिप जीती थी। उसके बाद उनका विजयी
रथ अन्य देशों की ओर चल पड़ा और एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशों में
अपनी धाक जमाकर वे 1952 में भारत लौट आए। भारत आकर सन 1954 में वे भारतीय
कुश्ती चैंपियन बने थे।
अपराजेय रहे दारा सिंह जी
उसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंगकाग
को परास्त कर दिया था। दारा सिंह जी ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा
किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं। आखिरकार अमेरिका के विश्व
चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व
चैंपियन बन गए। 1983 में उन्होंने अपराजेय पहलवान के रूप में कुश्ती से
संन्यास ले लिया।
दारा सिंह जी का प्रेम
जब दारा सिंह जी ने पहलवानी के क्षेत्र में अपार लोकप्रियता प्राप्त कर ली
तभी उन्हें अपनी पसंद की लड़की सुरजीत कौर मिल गई। आज दारा सिंह जी के
भरे-पूरे परिवार में तीन बेटियां और दो बेटे हैं। दारा सिंह ने अपने समय
की मशहूर अदाकारा मुमताज के साथ हिंदी की स्टंट फिल्मों में प्रवेश किया
और कई फिल्मों में अभिनेता बने। यही नहीं कई फिल्मों में वह निर्देशक व
निर्माता भी बने।
हनुमान बन बटोरी लोकप्रियता
उन्हें टीवी धारावाहिक रामायण में हनुमानजी के अभिनय से अपार लोकप्रियता
मिली जिसके परिणाम स्वरूप भाजपा ने उन्हें राज्यसभा की सदस्यता भी प्रदान
की। उन्होंने कई फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए थे। वर्ष 2007 में आई जब
वी मेट उनकी आखिरी फिल्म थी। वर्ष 2002 में शरारत, 2001 में फर्ज, 2000
में दुल्हन हम ले जाएंगे, कल हो ना हो, 1999 में ज़ुल्मी, 1999 में दिल्लगी
और इस तरह से अन्य कई फिल्में। लेकिन वर्ष 1976 में आई रामायण में जय
बजरंग बली, हनुमानजी का किरदार निभाकर लाखों दिलों को जीत लिया था।
'रुस्तम ए हिन्द' स्व ॰ दारा सिंह जी को सभी की ओर से शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि |
उनका व्यक्तित्व बड़ा ही सौम्य था। उन्होंने देश का गौरव बढ़ाया। लेख के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत उत्तम !
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