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सोमवार, 25 जून 2012

एक रि पोस्ट - जेहन में बसा है 25 जून 1983 - कपिल देव

वह था ऐसा पल, आज तक हुआ न जिसका कल। भारत की पहली 'विश्वविजय' की याद कपिल देव की जुबानी-

मुझे याद नहीं आता कि कभी 25 जून, 1983 मेरे जेहन से निकला हो। भारत ने उस दिन करिश्मा किया था। हम क्रिकेट में व‌र्ल्ड चैम्पियन बन गए थे। उस विश्व कप से पहले किसी क्रिकेट प्रेमी ने कल्पना भी नहीं की थी कि भारत को विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल होगा। विश्व कप खेलने के लिए जाने से पहले मैं अपनी मां से मिलने चंडीगढ़ गया था। उनका आशीर्वाद लेने के लिए मैंने जब उनके चरणस्पर्श किए तो उन्होंने कहा, ''कुक्कू, भगवान करे तू कप लेकर आए''। मैं तो मानता हूं कि मां के आशीर्वाद ने ही मुझे उस कप को उठाने का मौका दिया।

मैं फाइनल से पहले 22 जून को ओल्ड ट्रॉफर्ड में इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए सेमीफाइनल मैच की बात करना चाहूंगा। उस मैच में हमने जिस आत्मविश्वास के साथ मेजबान को रौंदा उससे हमारी टीम के एक-एक सदस्य को भरोसा हो गया कि हम फाइनल में वेस्टइंडीज को धोने की कुव्वत रखते है। हमने इंग्लैंड की टीम को करीब 54 ओवरों में 213 रन पर समेट दिया था। तब तक विश्व कप 60 ओवरों का होता था। मैंने तीन, मोहिन्दर अमरनाथ और रोजर बिन्नी ने दो विकेट लिए थे। हमने लक्ष्य को 51 वें ओवर में ही हासिल कर लिया था। यशपाल शर्मा और संदीप पाटिल की ठोस बल्लेबाजी की बदौलत हम छह विकेटों से मैच जीत गए।

अब आया फाइनल का दिन। लॉ‌र्ड्स का मैदान खचाखच भरा था। सैकड़ों तिरंगे लहरा रहे थे मैदान में। पर फाइनल का श्रीगणेश हमारे लिए शुभ नहीं रहा। हम टॉस हार गए। वेस्टइंडीज के कप्तान क्लाइव लायड ने हमें पहले बल्लेबाजी करने का न्योता दिया। सच्चाई यह है कि वेस्टइंडीज के रफ्तार के सौदागरों मैल्कम मार्शल, एंडी रॉब‌र्ट्स, माइकल होल्डिंग और जोल गार्नर की तेज और सधी हुई गेंदबाजी के आगे हमारे बल्लेबाज कोई बहुत उम्दा बल्लेबाजी नहीं कर सके। के. श्रीकांत (57 गेंदों में 38 रन) और जिम्मी पाजी (मोहिन्दर अमरनाथ) ने 80 गेंदों में 26 रनों का योगदान दिया। हमारी टीम 55 वें ओवर में 183 रनों पर सिमट गई। हमारी तरफ से सिर्फ तीन छक्के ही लगे। श्रीकांत, संदीप पाटिल और मदन लाल ने एक-एक छक्का मारा।

भारतीय पारी की समाप्ति के बाद हम सभी एक साथ खड़े थे क्षेत्ररक्षण के लिए जाने से पहले। हमारे कुछ साथियों को कहीं न कहीं यह लग रहा था कि वेस्टइंडीज के धाकड़ बल्लेबाज हमें धो देंगे। पर मैंने सबको यही कहा कि मैच का नतीजा कुछ भी हो पर हम मैदान में लड़ेगे जरूर। वेस्टइंडीज की पारी शुरू होते ही हमें बलविंदर सिंह संधू ने गॉर्डन ग्रीनिज के रूप में एक विकेट दिलवा दिया। उसके बाद एक-दो विकेट और गिर गए पर उसके बाद विवियन रिच‌र्ड्स मैदान में आकर हमारे गेंदबाजों को बड़ी ही बेरहमी से मारने लगे। मेरा तो पसीना छूटने लगा। रिच‌र्ड्स उन दिनों जबरदस्त फार्म में चल रहे थे। उन्होंने सेमी फाइनल में पाकिस्तान की धारदार गेंदबाजी को धूल चटा दी थी। इस दौरान मेरे से मदनलाल एक और ओवर फेंकने का आग्रह करने लगे। मुझे समझ नहीं आया कि मद्दी इतना पीटने के बाद भी गेंद क्यों फेंकना चाह रहा है। खैर, मैंने उसे गेंद थमा दी, न चाहते हुए भी। उनके सामने रिच‌र्ड्स ही थे। उनकी एक गेंद को रिच‌र्ड्स ने मिड विकेट की तरफ उठा दिया। मुझे लगा कि गेंद स्टेडियम को पार कर जाएगी। पर उसी समय मैंने महसूस किया कि हवा में तैर रही गेंद मेरे पास ही गिरने के लिए आ रही है। बस, मैं तब ही उसकी तरफ भागा। नीले आकाश की ओर देखते हुए मैं गेंद की दिशा में बढ़ रहा था और साथ ही यह भी कह रहा था- ''माई, माई, माई..''। यह कहने का मकसद यह था कि उस कैच को लपकने के लिए और कोई न आए, आ रहा हो तो रुक जाए। मैं गेंद को लपकने के लिए 20-33 कदम दौड़ा और कैच कर लिया।
मैंने जैसे ही कैच किया, सारे खिलाड़ी मेरे पास आ गए। वेस्टइंडीज के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज के पवेलियन लौटने के साथ ही मुझे अपनी चंडीगढ़ में मैच देख रही मां का आशीर्वाद याद आ गया। रिच‌र्ड्स के बाद बाकी वेस्टइंडीज के बल्लेबाज भी जल्दी-जल्दी आऊट हो गए। उसके बाद जो कुछ वो अब इतिहास है। उन विजय के लम्हों को मैं शब्दों में नहीं उतार सकता। 

उस दिन हमें लगा था कि ' India can do Wonders. '

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह आप भी क्या क्या याद दिला देते हैं हो महाराज । मिसर जी ऊ जीत का नशा और जुनून ही अलग था सच में : ) कमाल बेमिसाल पोस्ट ।

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  2. अच्छा लगा कपिल की जुबानी सुनकर ...
    जीत अच्छी लगती है !

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  3. सुन्दर याद -

    बजरंगी जब थामते, रिचर्ड्स राक्षस कैच ।

    संजीवनी देते सुंघा, जकड़ा भारत मैच ।

    जकड़ा भारत मैच, कथा पच्चीस जून की ।

    "बुरा-भला " आभार, रोमांचित मजमून की ।

    विश्व विजय के दृश्य, पुन: ताजा हो जाते ।

    बार-बार उत्साह, हमारा रहे बढाते ।।

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    1. संतोष त्रिवेदी26 June 2012 00:07

      आज के ही दिन कप जीते थे,आज के ही दिन आपातकाल भोगे थे !
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      रविकर फैजाबादी26 June 2012 02:34

      याद राखिये वर्ल्ड कप, भूल जाय आपात |
      यह मानव फितरत सखे, समय सहे आघात |
      समय सहे आघात, कलेजा मुंह को आता |
      जैसी करनी होय, रायबरेली वही दिखाता |
      दीजे ताहि भुलाय, जीत का स्वाद चाखिये |
      कपिल पिलाया पानि, आज बस याद राखिये ||

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    2. पर भी है आपका यह लिंक |
      वहीँ पर यह आई थी टिप्पणी ||
      सादर |
      dineshkidillagi.blogspot.com

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  4. बहुत खूब ! एक एक पल याद है इस विश्व कप का .
    कपिल पा जी दा ज़वाब नहीं !

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  5. तीन दिन बाद पढ़ रहा हूँ भैया..लेकिन मस्त पोस्ट...एकदम जबरदस्त टाईप :)

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