नेट पर खबरे पड़ते हुए जब इस खबर पर नज़र पड़ी तो बड़ा अफसोस हुआ !
कालजयी कहानीकार सआदत हसन मंटो ने लुधियाना के समराला के छोटे से गांव पपड़ौदी का नाम देश-विदेश में रोशन किया। 11 मई, 1912 को जन्में मंटो की आज जन्म शताब्दी है, पर विडंबना यह है कि उनको उनके गांव ने ही भुला दिया है। गांव में उनकी स्मारक के नाम पर सिर्फ एक मंटो यादगारी लाइब्रेरी है।
कुछ बुजुर्गो को छोड़कर गांव का कोई भी व्यक्ति मंटो के बारे में नहीं जानता। सरकार ने भी आज तक इस प्रसिद्ध कहानीकार की यादगारी के लिए कोई कदम नहीं उठाया। यही नहीं, जिस मकान में मंटो का जन्म हुआ, वह वर्ष 1962 में ही नीलाम हो चुका है। अब वहां गांव के पूर्व सरपंच राम सिंह का आशियाना है। राम सिंह बताते हैं कि उनके दादा ने सरकार से यह मकान खरीदा था। गांव में एक भी ऐसी जगह नहीं, जहां पर मंटो का नाम तक लिखा हो। मंटो का जन्म मियां गुलाम हसन के घर हुआ था। विभाजन के बाद मंटो अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए थे। पंजाबी साहित्य सभा [नई दिल्ली] की ओर से गांव के गुरुद्वारा साहिब में मंटों की यादों को सहेजने के लिए बेशक लाइब्रेरी तो बना दी गई है, लेकिन गुरुद्वारा साहिब के ग्रंथी के कमरे की एक शेल्फ पर चलने वाली इस लाइब्रेरी में मंटो की मात्र दो किताबें ही हैं।
इस उम्मीद के साथ कि देर से ही सही पर अब सरकार अपनी नींद से जागेगी और इस कालजयी कहानीकार की यादों को सहेजने मे कुछ रुचि लेगी ...
सआदत हसन मंटो को उनके १०० वे जन्मदिन पर हमारा सलाम !
शायद आपके इस प्रयास से सरकार की नीद खुले,...
जवाब देंहटाएंसआदत हसन मंटो को उनके १०० वे जन्मदिन पर मेरा नमन,.....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
Janamdin ki badhai ho
जवाब देंहटाएंis awasar par hamara bhi salam!
जवाब देंहटाएंprastuti ke liye dhanyavad!
acchi jankari di aapne ,maine bhi kabhi nhi suna thanks,,
जवाब देंहटाएंइस देश से और उम्मीद भी क्या किया जा सकता है जो मंटो जैसे को भूल गया । आभार आपका उन्हें याद दिलाने के लिए शिवम भाई
जवाब देंहटाएंहमारा भी सलाम।
जवाब देंहटाएंजहां रचनाओं की कॉपीराइट ही समय-विशेष के बाद समाप्त हो जाती हो,वहां मकान की बिसात ही क्या!
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