वैसे मैं अपने पोस्टो में अपने बारे में बहुत कम ही कुछ लिखता हूँ ... पर कल से इतना पेट्रोल ... पेट्रोल सुन रहा हूँ कि एक काफी पुरानी हरकत याद आ गयी ... तो सोचा आप सबको भी बता दूं !
हम लोग जहाँ क्रिकेट खेला करते थे वहां पास में दमकल कर्मियों का क्वाटर हुआ करता था जहाँ 2 3 आवारा कुत्ते भी रहा करते थे जो कि जूठन के चक्कर में काफी हद तक पालतू हो गए थे उन दमकल वालों के ! अक्सर ही हमारी गेंद उन क्वाटरों में चली जाया करती थी और काफी बहस और विनती करने के बाद ही मिला करती थी ! पता नहीं क्यों पर उन दमकल वालों को शायद हम लोगो का वहां खेल पसंद नहीं था ... उन्होंने उन कुत्तो में से एक को कुछ ऐसा ट्रेंड किया कि अब जब भी हमारी गेंद वहां जाए वह कुत्ता हमारी गेंद ले कर बैठ जाया करे और कुछ ही देर में कुछ गेंद के चीथड़े चीथड़े कर दिया करे ! जब ऐसा काफी बार हो गया तो हम सब बड़े परेशान हुए ... अब रोज़ रोज़ गेंद कहाँ से लायी जाए ... किसी को भी रोज़ रोज़ गेंद के लिए पैसे नहीं मिल सकते थे घर से ... ऐसे में हमारे एक मित्र के चाचा जी ने एक उपाए बताया ... जो हम सब को काफी कारगर लगा ... मित्र बंगाली थे तो उन को ही प्लान का सब से जरुरी काम थमाया गया ... उस कुत्ते के खाने के लिए मछली का इंतज़ाम करना ... वो भी लगातार 2 3 दिन तक ... अब हम लोग जानबूझ कर गेंद उस कुत्ते के आगे डालने लगे ... कुत्ता हाल गेंद लपक लेता पर जैसे ही वो गेंद पर दांत लगाने को होता हम लोग उसके आगे मछली डाल देते ... वह गेंद छोड़ देता और बड़े चाव से मछली खाने बैठ जाता ... 3 दिन रोज़ ऐसा कर के हम लोगो ने उसको इतना ट्रेंड कर दिया कि अब वो इंतज़ार करने लगा था गेंद के बदले मछली का ... यहाँ प्लान का दूसरा चरण शुरू करना था हम लोगो को ... जब यह पक्का हो गया कि अब यह कुत्ता गेंद नहीं फाडेगा हम लोगो ने अपने प्लान के अनुसार उस कुत्ते को मछली
दिखा कर अपने पास बुलाया और हम में से दो उसको मछली खिलने लगे और बाकी चुपचाप उसके पीछे पहुँच गए
जहाँ हमारे पास एक बड़ी सा इंजेक्शन था जिस में पेट्रोल था ... कुत्ता मछली में इतना मगन था कि उसको पता ही नहीं चला कब हम लोगो ने बड़े आराम से उसके पूरे पिछवाड़े पर पेट्रोल का छिडकाव कर दिया वो भी पूरे काएदे से ... थोड़ी ही देर में पेट्रोल ने अपना काम शुरू कर दिया और कुत्ते को भी उसका असर पता चलने लगा ... कभी वो गोल गोल घुमने लगता कभी अपनी दम काटने लगता पर पेट्रोल का असर पूरे शबाब पर था ... बेचारा कुत्ता लगभग 1 घंटा काफी परेशान रहा साथ साथ उसके बाकी साथी भी जो यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर माजरा है क्या ??? कुत्ते पर तरस तो अब जब यह लिख रहा हूँ तब भी आ रहा है पर यह भी सत्य है कि दोबारा उस कुत्ते ने तो क्या किसी कुत्ते ने हम लोगो की गेंद पर अपना कब्ज़ा ज़माने की कोशिश नहीं की !
सोच रहा हूँ क्या ऐसा कुछ इस सरकार के साथ नहीं किया जा सकता... नाक में दम तो इसने भी कर ही रखा है सब के ...
वैसे आपकी क्या राय है ???