परिचय :
लीला नाग का जन्म ढाका के प्रतिष्ठित परिवार में 2 अक्तूबर 1900 ई.
में हुआ था। उनके पिता का नाम गिरीश चन्द्र नाग और माता का नाम कुंजलता नाग
था |
लीला नाग (बाद में लीला राय) का भारत की महिला क्रांतिकारियों में विशिष्ट
स्थान है। पर दुर्भाग्य से उन्हें अपने योगदान के अनुरूप ख्याति नहीं मिल
पाई।
शिक्षा :
उन्होंने ढाका और कलकत्ता में उच्च शिक्षा प्राप्त की। इंग्लिश मे गोल्ड
मेडेलिस्ट लीला नाग ढाका विश्वविद्यालय मे दाखिला लेने वाली प्रथम महिला थी
| जहां से उन्होने अपनी एमए की डिग्री ली |
समाजसेवा और आंदोलन :
वे शुरू से ही समाजसेवा से जुड़ी रही खास तौर पर उन्होने लड़कियों और
महिलाओं की शिक्षा दीक्षा पर विशेष ज़ोर दिया | वे आत्मरक्षा के लिए
लड़कियों और महिलाओं को मार्शल आर्ट्स सीखने के लिए भी प्रेरित करती थी |
ढाका में शिक्षा प्राप्त करते हुए वे 'मुक्ति संघ' के सम्पर्क में आई एवं
लड़कियों को शिक्षित करने के लिए 'दीपाली संघ' नामक एक संगठन बनाया।
इस संगठन की उन्होंने 'दीपाली स्कूल', 'नारी शिक्षा मन्दिर', 'शिक्षा भवन'
एवं 'शिक्षा निकेतन' आदि नाम से कई शाखाएँ खोलीं। अंग्रेज़ों
की गुप्तचर रिपोर्ट के अनुसार ऊपर से सीधी- सादी दिखने वाली इन संस्थाओं
में लड़कियों को क्रांति की शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाता था। प्रथम महिला
शहीद प्रीतिलता वड्डेदार को इन्हीं संस्थाओं में दीक्षा मिली थी।
1921 मे बंगाल मे बाढ़ आई हुई थी उसी दौरान लीला नाग की मुलाक़ात नेताजी
सुभाष चन्द्र बोस से हुई ... जो राहत कार्यों का नेतृत्व करने वहाँ आए हुये
थे | लीला नेताजी से प्रभावित हुई और राहत कार्यों मे अपना सहयोग देने के
लिए ढाका महिला कमेटी का गठन किया | नेताजी से लीला का जुड़ाव जीवन के अंतिम
पलों तक बना रहा |
1931 मे लीला नाग ने "जयश्री" नाम की एक राष्ट्रवादी पत्रिका का प्रकाशन
शुरू किया जिस का पूर्ण नियंत्रण महिलाओं के हाथ मे था ... लेखन से ले कर
प्रकाशन तक | इस पत्रिका को बहुत जल्द लोकप्रियता मिली और विभिन्न
विभूतियों ने लीला के इस प्रयास की भरपूर प्रशंसा की जिस मे प्रमुख्य तौर
पर गुरुदेव टेगौर का नाम शामिल है जिन्होने इस पत्रिका का नामकरण किया था |
लीला नाग को असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया और 6 सालों तक वे
जेल मे भी रही | 1938 मे तब के कॉंग्रेस अध्यक्ष नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
ने लीला को काँग्रेस की राष्ट्रीय प्लानिंग कमेटी मे शामिल किया |
1939 मे लीला का विवाह अनिल चन्द्र राय से हुआ | जब नेताजी बोस ने कॉंग्रेस
से इस्तीफा दिया तब इन दोनों भी नेताजी के साथ ही फॉरवर्ड ब्लॉक मे शामिल
हो गए |
1941 मे जब ढाका मे भीषण सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे तब लीला राय ने शरत
चन्द्र बोस के साथ मिल कर यूनिटी बोर्ड और नेशनल सर्विस ब्रिगेड की स्थापना
की |
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान लीला राय और उनके पति अनिल चन्द्र राय
को गिरफ्तार कर लिया गया जिस कारण "जयश्री"पत्रिका का प्रकाशन भी रोक देना
पड़ा |
1946 मे जेल से रिहा होने के बाद लीला राय को भारत की संविधान सभा के लिए चुना गया |
1947 के विभाजन के दंगों के दौरान लीला राय गांधी जी के साथ नौआखली मे
मौजूद थी ... गांधी जी के वहाँ पहुँचने से भी पहले लीला राय ने वहाँ राहत
शिविर की स्थापना कर ली थी और 6 दिनों की पैदल यात्रा के दौरान लगभग 400
महिलाओं को बचाया था |
आज़ादी के बाद लीला राय कलकते मे ही जरुरतमन्द महिलाओं और ईस्ट बंगाल के शरणार्थीयों के लिए कार्य करती रही |
कलकते मे ही 11 जून 1970 को लीला राय जी का निधन हुआ |
लीला राय और नेताजी / गुमनामी बाबा :
ऐसे सबूत मिले है जो यह दर्शाते है कि लीला राय यह जानती थी कि नेताजी
सुभाष चन्द्र बोस १९४५ की कथित विमान दुर्घटना मे मारे नहीं गए थे और उत्तर
प्रदेश के फैजाबाद मे 'गुमनामी बाबा' के रूप मे अज्ञातवास मे अपना जीवन
बिता रहे थे |
बताया जाता है कि खुद 'गुमनामी बाबा' के ही कहने पर उन्होने 7 सितंबर 1963
मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के परम मित्र दिलीप कुमार रॉय को एक पत्र लिखा
था, उन्हीं के शब्दों मे,
“I wanted to tell you something about your friend… HE is alive – in India.”
यह भी बताया जाता है कि वे समय समय पर फैजाबाद जा कर 'गुमनामी बाबा' से मुलाक़ात भी करती थीं |
फैजाबाद के राम भवन से बरामद 'गुमनामी बाबा' के समान मे 1970 का एक पत्र
ऐसा भी है जिस मे उन्होने ने लीला राय को "ली" नाम से संबोधित किया है और
लीला राय की मृत्यु पर अपनी श्रद्धांजलि दी है | ज्ञात हो कि नेताजी सुभाष
चन्द्र बोस लीला राय को "ली" कह कर ही संबोधित करते थे | गौरतलब है कि
मशहूर हैंडराइटिंग एक्सपर्ट बी लाल ने इस पत्र की जाँच के बाद नेताजी और
गुमनामी बाबा की हैंडराइटिंग को एक ही पाया है |
आज स्व॰ लीला राय जी ४५ वीं पुण्यतिथि के अवसर पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते है |
जय हिन्द !!!
नमन ।
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