ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी, महावीर चक्र, (22 नवम्बर1940 - 17 नवम्बर 2018) |
आज ही के दिन दो साल पहले 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लोंगेवाला पोस्ट
पर हुई जंग के हीरो ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी नहीं रहे थे । वे 77 साल
के थे। चांदपुरी ने मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में अंतिम सांस
ली थी उनका कैंसर का इलाज चल रहा था। राजस्थान के लोंगेवाला में भारत-पाक
बॉर्डर पर बहादुरी के लिए ब्रिगेडियर चांदपुरी को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया
था।
जेपी दत्ता की फिल्म बॉर्डर लोंगेवाला की लड़ाई पर आधारित थी। इसमें सनी
देओल ने ब्रिगेडियर चांदपुरी का रोल निभाया था। तब वे मेजर थे। लोंगेवाला
में ब्रिगेडियर चांदपुरी ने करीब 120 जवानों की मदद से पाकिस्तान के 2000
सैनिकों और दुश्मन के 40 टैंकों को रोके रखा था और हरा दिया था।
पंजाब में चांदपुरी का पैतृक गांव
कुलदीप सिंह का जन्म 22 नवंबर 1940 को अविभाजित भारत के पंजाब क्षेत्र में हुआ था। उसके बाद परिवार पैतृक गांव चांदपुर रुड़की आ गया था, जो पंजाब के बलचौर में है। चांदपुरी माता-पिता की इकलौती संतान थे। उन्होंने 1962 में होशियारपुर कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इस दौरान एनसीसी के सक्रिय सदस्य भी रहे।
कुलदीप सिंह का जन्म 22 नवंबर 1940 को अविभाजित भारत के पंजाब क्षेत्र में हुआ था। उसके बाद परिवार पैतृक गांव चांदपुर रुड़की आ गया था, जो पंजाब के बलचौर में है। चांदपुरी माता-पिता की इकलौती संतान थे। उन्होंने 1962 में होशियारपुर कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इस दौरान एनसीसी के सक्रिय सदस्य भी रहे।
1962 में हुए थे सेना में भर्ती
कुलदीप सिंह 1962 में भारतीय सेना में शामिल हुए। उन्होंने चेन्नई के ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी से कमीशन प्राप्त किया और पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन का हिस्सा बने। उन्होंने 1965 और 1971 के युद्ध में भाग लिया। जंग में उनकी वीरता को काफी सराहना मिली। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र के आपातकालीन बल में सालभर तक गाजा में सेवाएं दीं। दो बार मध्यप्रदेश के महू इन्फैंट्री स्कूल में इन्स्ट्रक्टर भी रहे।
कुलदीप सिंह 1962 में भारतीय सेना में शामिल हुए। उन्होंने चेन्नई के ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी से कमीशन प्राप्त किया और पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन का हिस्सा बने। उन्होंने 1965 और 1971 के युद्ध में भाग लिया। जंग में उनकी वीरता को काफी सराहना मिली। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र के आपातकालीन बल में सालभर तक गाजा में सेवाएं दीं। दो बार मध्यप्रदेश के महू इन्फैंट्री स्कूल में इन्स्ट्रक्टर भी रहे।
पाक ने लोंगेवाला चेकपोस्ट पर किया अटैक
1971 में ये दिन भारत-पाक में छिड़ी पूरी जंग का आखिरी दिन था। 4 दिसंबर की
रात को भारत पाकिस्तान के रहीमयार खान डिस्ट्रिक्ट क्वार्टर पर अटैक करने
वाला था। किन्हीं वजहों से भारत अटैक नहीं कर पाया, पर बीपी 638 पिलर की
तरफ से आगे बढ़ते हुए पाकिस्तान ने भारत की लोंगेवाला चेकपोस्ट पर अटैक कर
दिया। यहां से उनका जैसलमेर जाने का प्लान था।
उस वक्त लोंगेवाला चेकपोस्ट सिर्फ 90 जवानों की निगरानी में थी। कंपनी के
29 जवान और लेफ्टिनेंट धर्मवीर इंटरनेशनल बॉर्डर की पैट्रोलिंग पर थे। देर
शाम उन्हें जानकारी मिली कि दुश्मन के बहुत सारे टैंक एक पूरी ब्रिगेड के
साथ लोंगेवाला पोस्ट की तरफ बढ़ रहे हैं। उस ब्रिगेड में 2 हजार से ज्यादा
जवान रहे होंगे। कुछ ही पलों बाद लश्कर का सामना भारत की सेना की छोटी सी
टुकड़ी के साथ करना था। न जमीनी न हवाई किसी तरह की मदद उस दौरान मिलना संभव
नहीं था।
भारतीय सेना के जवान मुंहतोड़ जवाब के लिए तैयारी में लग गए। कुछ ही देर बाद
पाकिस्तानी टैंकों ने गोले बरसाते हुए भारतीय पोस्ट को घेर लिया। वे आगे
बढ़ते जा रहे थे और उनके पीछे पाकिस्तानी सेना। भारतीय सेना ने जीप पर लगी
रिकॉयललैस राइफल और 81एमएम मोर्टार से जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी। शुरुआती
कार्रवाई इतनी दमदार थी कि पाकिस्तानी सेना ने कुछ दूरी पर रुककर जंग लड़ने
का फैसला किया। पाकिस्तानी दो हज़ार से ज्यादा थे और भारतीय 100 से भी कम। वो
रात इम्तिहान की रात थी। शैलिंग के थमते कुछ सुनाई दे रहा था तो गूंज रहे
शब्द ‘जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल।’
पाकिस्तानी सेना के इरादे के मुताबिक वह चेकपोस्ट पर कब्जा कर रामगढ़ से
होते हुए जैसलमेर तक जाना चाहते थे। पर भारतीय सेना के इरादे भी फौलादी थे,
जो दीवार बन कर उनके समाने खड़े थे। रात होते होते भारत की छोटी सी
टुकड़ी ने दुश्मन के 12 टैंक तबाह कर दिए थे। रातभर गोलीबारी जारी थी और
तड़के ही भारतीय वायु सेना से भी मदद मिल गई। दो हंटर विमानों ने
पाकिस्तानियों के
परखच्चे उड़ा दिए। वे बौखलाए टैंक लेकर इधर-उधर दौड़ने लगे। सुबह के बाद तक
हम पाकिस्तानी सेना को उन्हीं की हद में 8 किलोमीटर अंदर तक खदेड़ चुके थे।
जैसलमेर एयरबेस पर उस वक्त सिर्फ 4 हंटर एयरक्राफ्ट और सेना के ऑब्जर्वेशन
पोस्ट के दो विमान थे। हंटर एयरक्राफ्ट रात के अंधेरे में हमला नहीं कर
सकते थे। अब इंतजार सुबह का था। अल सुबह ही 2 हंटर विमान लोंगेवाला की तरफ
निकल पड़े। उस वक्त रोशनी इतनी कम थी कि आसमान की ऊंचाई से जमीं का अंदाजा
लगा पाना मुश्किल था। तब न तो नेविगेशन सिस्टम इतना मॉडर्न था और न ही कोई
लैंडमार्किंग थी।ऐसे में दोनों विमान जैसलमेर से लोंगेवाला तक जाने वाली
सड़क के रास्ते को देखते हुए आगे बढ़े थे और धूल के गुबार में छिपे
पाकिस्तानी टैंकों को निशाना बनाया था।
अगर ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी का कुशल नेतृत्व और जवानों का रण
कौशल न होता तो हमें यह दृश्य कभी न दिखते दुश्मन के टैंक पर चढ़ विजयी
भारतीय जवान भांगड़ा कर रहे हैं |
द्वितीय पुण्यतिथि पर हम सब की ओर से ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी जी को हार्दिक श्रद्धांजलि और शत शत नमन |
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