दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की घृणित प्रथा के खात्मे के लिए चले निर्णायक
आंदोलन के अगुवा नेल्सन मंडेला के जीवन में महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चन्द्र
बोस के रूप में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े अलग-अलग विचारधाराओं वाले
दो पुरोधाओं की सोच का अनोखा संगम देखा जा सकता है।
मंडेला ने
महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए जहां सरकार के विरुद्ध अवज्ञा
आंदोलन शुरू किया वहीं भेदभाव की नीति से मुक्ति के लिए नेताजी बोस की तरह सरकार
के खिलाफ युद्ध का सहारा भी लिया था। वह अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस [एएनसी] की
सशस्त्र इकाई 'उमखोंतो वे सिजवे' के प्रमुख रहे और उन्हें देशद्रोह तथा
अन्य आरोपों में करीब 17 साल जेल में गुजारने पड़े।
यह सम्भवत:
गांधी जी की नीतियों का ही असर था कि मंडेला देश में रंगभेद की नीति के
विरोध में खड़े हुए नई पीढ़ी के कार्यकताओं को एकजुट कर सके। महात्मा गांधी
द्वारा दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह आंदोलन के रूप में की गई शुरुआत के
वर्ष 1947 में भारत की आजादी के रूप में मंजिल तक पहुंचने से दक्षिण
अफ्रीका में वांछित परिवर्तन की उम्मीद पैदा हुई। मंडेला को महात्मा गांधी
द्वारा शुरू किए गए उपनिवेश विरोधी आंदोलन को सम्पन्न करने वाला नेता भी
कहा जाता है।
रंगभेद की नीति के खिलाफ नरम और गरम रवैया अपनाने
वाले मंडेला पर हालांकि अहिंसा का ज्यादा गहरा असर था और उन्होंने बाद में
माना था कि रंगभेद के खिलाफ उनकी पार्टी द्वारा हिंसा का रास्ता अपनाया
जाना कई मायनों में गलत था।
मंडेला से जुडे तथ्यों से पता चलता है
कि रंगभेद नीति के प्रतीक स्थलों को बम से उड़ाकर विरोध दर्ज कराने का मकसद
किसी की जान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं था। मंडेला की नजर में युद्ध
किसी बात का विरोध करने का आखिरी रास्ता है।
18 जुलाई 1918 को
दक्षिण अफ्रीका के ट्रांस्की में जन्मे नेल्सन मंडेला ने अपने साहस, दृढ़
संकल्प और प्रेरणादाई व्यक्तित्व के बलबूते रंगभेद की नीति को खत्म करने के
बाद देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होकर अपना नाम
इतिहास के पन्नों में दर्ज कराया।
मंडेला के जीवन से जुड़े
दस्तावेजों पर नजर डालने से पता चलता है कि वह अपने परिवार में स्कूल जाने
वाले पहले शख्स थे और उनकी शिक्षिका दिनगाना गावे ने उन्हें 'नेल्सन' नाम
दिया था। मंडेला मेधावी छात्र थे लेकिन राजनीति में सक्रियता से उनकी
शिक्षा पर असर पड़ा था। फोर्ट हेयर यूनीवर्सिटी में अध्ययन के दौरान
विश्वविद्यालय की नीतियों के खिलाफ छात्रसंघ की मुहिम में शामिल होने की
वजह से उन्हें यूनीवर्सिटी से निकाल दिया गया था।
देश में रंगभेद
नीति की समर्थक नेशनल पार्टी की वर्ष 1948 में जीत के बाद मंडेला राजनीति
के मैदान में आ गए। मंडेला ने वर्ष 1952 में एएनसी के अवज्ञा आंदोलन की
अगुवाई की।
मंडेला ने महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलकर देश के
अश्वेत लोगों में नई चेतना पैदा की, वहीं दासता के प्रतीक स्थलों तथा
सरकारी भवनों पर हमले के अभियान की भी अगुवाई की। उन्हें देश में हिंसा
फैलाने तथा कई अन्य गम्भीर आरोपों में पांच अगस्त 1962 को गिरफ्तार कर लिया
गया। उन पर मुकदमा चला और 12 जून 1964 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
मंडेला को रॉबेन द्वीप पर बनी जेल में रखा गया। आजीवन कारावास की सजा
मिलने के बावजूद मंडेला का रंगभेद नीति के खिलाफ आंदोलन का जुनून कम नहीं
हुआ। उन्होंने जेल में बंद अश्वेत लोगों को लामबंद करना शुरू किया। उनकी इस
कोशिश की वजह से इस जेल को 'मंडेला यूनीवर्सिटी' कहा जाने लगा।
फरवरी 1985 में तत्कालीन राष्ट्रपति पी डब्ल्यू बोथा ने मंडेला को आंदोलन
का रास्ता छोड़ने की कीमत पर रिहाई की पेशकश की जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।
दक्षिण अफ्रीकी सरकार पर मंडेला को मुक्त करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने
पर मंडेला को 11 फरवरी 1990 को रिहा कर दिया गया। उन्हें वर्ष 1993 में
नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। 27 अप्रैल 1994 को देश में पहली बार
श्वेत और अश्वेत लोगों की भागीदारी वाले चुनाव में एएनसी की जोरदार जीत के
बाद मंडेला ने 10 मई 1994 को दक्षिण अफ्रीका का पहला अश्वेत राष्ट्रपति
बनने की उपलब्धि हासिल कर ली।
सभी मैनपुरी वासियों की ओर से नेल्सन मंडेला को उनकी जयंती पर शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20 -07-2019) को "गोरी का शृंगार" (चर्चा अंक- 3402) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
शिक्षाप्रद लेख।
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