जतींद्रनाथ मुखर्जी |
उपनाम : बाघा जतीन
जन्मस्थल : कायाग्राम, कुष्टिया जिला बांग्लादेश
मृत्युस्थल: बालेश्वर,ओड़ीशा
आन्दोलन: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
प्रमुख संगठन: युगांतर
बाघा जतीन ( बांग्ला में বাঘা যতীন (उच्चारणः बाघा जोतिन) ( ०७ दिसम्बर, १८७९ - १० सितम्बर , १९१५) के बचपन का नाम जतीन्द्रनाथ मुखर्जी (जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय) था। वे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कार्यकारी दार्शनिक क्रान्तिकारी थे। वे युगान्तर पार्टी के मुख्य नेता थे। युगान्तर पार्टी बंगाल में क्रान्तिकारियों का प्रमुख संगठन थी।
प्रारंभिक जीवन
जतींद्र नाथ मुखर्जी का जन्म जैसोर जिले में सन् १९७९ ईसवी में हुआ था।
पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता का देहावसान हो गया। माँ ने बड़ी
कठिनाई से उनका लालन-पालन किया। १८ वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक पास
कर ली और परिवार के जीविकोपार्जन हेतु स्टेनोग्राफी सीखकर कलकत्ता
विश्वविद्यालय से जुड़ गए। वह बचपन से हई बड़े बलिष्ठ थे। सत्यकथा है कि २७
वर्ष की आयु में एक बार जंगल से गुजरते हुए उनकी मुठभेड़ एक बाघ (रॉयल
बेन्गाल टाइगर) से हो गयी। उन्होंने बाघ को अपने हंसिये से मार गिराया था।
इस घटना के बाद जतींद्र नाथ "बाघा जतीन" नाम से विख्यात हो गए थे।
क्रांतिकारी जीवन
उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने बंग-भंग की योजना बनायी। बंगालियों ने इसका
विरोध खुल कर किया। जतींद्र नाथ मुखर्जी का नया खून उबलने लगा। उन्होंने
साम्राज्यशाही की नौकरी को लात मार कर आन्दोलन की राह पकड़ी। सन् १९१० में
एक क्रांतिकारी संगठन में काम करते वक्त जतींद्र नाथ 'हावड़ा षडयंत्र केस'
में गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें साल भर की जेल काटनी पड़ी।
जेल से मुक्त होने पर वह 'अनुशीलन समिति' के सक्रिय सदस्य बन गए और
'युगान्तर' का कार्य संभालने लगे। उन्होंने अपने एक लेख में उन्हीं दिनों
लिखा था-' पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का
लक्ष्य है। देसी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्मनिर्णय द्वारा
जीवनयापन का अवसर देना हमारी मांग है।' क्रांतिकारियों के पास आन्दोलन के
लिए धन जुटाने का प्रमुख साधन डकैती था। दुलरिया नामक स्थान पर भीषण डकैती
के दौरान अपने ही दल के एक सहयोगी की गोली से क्रांतिकारी अमृत सरकार घायल
हो गए। विकट समस्या यह खड़ी हो गयी कि धन लेकर भागें या साथी के प्राणों की
रक्षा करें! अमृत सरकार ने जतींद्र नाथ से कहा कि धन लेकर भागो। जतींद्र
नाथ इसके लिए तैयार न हुए तो अमृत सरकार ने आदेश दिया- 'मेरा सिर काट कर ले
जाओ ताकि अंग्रेज पहचान न सकें।' इन डकैतियों में 'गार्डन रीच' की डकैती
बड़ी मशहूर मानी जाती है। इसके नेता जतींद्र नाथ मुखर्जी थे। विश्व युद्ध
प्रारंभ हो चुका था। कलकत्ता में उन दिनों राडा कम्पनी बंदूक-कारतूस का
व्यापार करती थी। इस कम्पनी की एक गाडी रास्ते से गायब कर दी गयी थी जिसमें
क्रांतिकारियों को ५२ मौजर पिस्तौलें और ५० हजार गोलियाँ प्राप्त हुई थीं।
ब्रिटिश सरकार हो ज्ञात हो चुका था कि 'बलिया घाट' तथा 'गार्डन रीच' की
डकैतियों में जतींद्र नाथ का हाथ था।
अंतिम समय
सन् १९१० में बाघा जतिन |
९ सितंबर १९१५ को पुलिस ने जतींद्र नाथ का गुप्त अड्डा 'काली पोक्ष'
(कप्तिपोद) ढूंढ़ निकाला। जतींद्र नाथ साथियों के साथ वह जगह छोड़ने ही
वाले थे कि राज महन्ती नमक अफसर ने गाँव के लोगों की मदद से उन्हें पकड़ने
की कोशश की। बढ़ती भीड़ को तितरबितर करने के लिए जतींद्र नाथ ने गोली चला
दी। राज महन्ती वहीं ढेर हो गया। यह समाचार बालासोर के जिला मजिस्ट्रेट
किल्वी तक पहुंचा दिया गया। किल्वी दल बल सहित वहाँ आ पहुंचा। यतीश नामक एक
क्रांतिकारी बीमार था। जतींद्र उसे अकेला छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे।
चित्तप्रिय नामक क्रांतिकारी उनके साथ था। दोनों तरफ़ से गोलियाँ चली।
चित्तप्रिय वहीं शहीद हो गया। वीरेन्द्र तथा मनोरंजन नामक अन्य क्रांतिकारी
मोर्चा संभाले हुए थे। इसी बीच जतींद्र नाथ का शरीर गोलियों से छलनी हो
चुका था। वह जमीन पर गिर कर 'पानी-पानी' चिल्ला रहे थे। मनोरंजन उन्हें उठा
कर नदी की और ले जाने लगा। तभी अंग्रेज अफसर किल्वी ने गोलीबारी बंद करने
का आदेश दे दिया। गिरफ्तारी देते वक्त जतींद्र नाथ ने किल्वी से कहा- 'गोली
मैं और चित्तप्रिय ही चला रहे थे। बाकी के तीनों साथी बिल्कुल निर्दोष
हैं। 'इसके अगले दिन भारत की आज़ादी के इस महान सिपाही ने अस्पताल में सदा
के लिए आँखें मूँद लीं।।
भारत माता के इस 'बाघ' अमर क्रांतिकारी स्व ॰ बाघा जतीन जी को शत शत नमन !
इंकलाब ज़िंदाबाद !!
नमन ।
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