नीरजा भनोट (अंग्रेज़ी: Neerja Bhanot, 7 सितंबर 1963- 5 सितंबर 1986) मुंबई में पैन ऍम एयरलाइन्स (अंग्रेज़ी: Pan Am Airlines)
की विमान परिचारिका थीं। 5 सितंबर 1986 के मुम्बई से न्यूयॉर्क जा रहे पैन
एम फ्लाइट 73 के अपहृत विमान में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते
हुए वे आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गईं थीं।
उनकी बहादुरी के लिये मरणोपरांत उन्हें भारत सरकार ने शान्ति काल के अपने
सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया और साथ ही पाकिस्तान
सरकार और अमरीकी सरकार ने भी उन्हें इस वीरता के लिये सम्मानित किया है।
इनकी कहानी पर आधारित २०१६ में एक फ़िल्म भी बनी, जिसमें उनका किरदार सोनम कपूर ने अदा किया।
प्रारंभिक जीवन
नीरजा का जन्म 7 सितंबर 1963 को पिता हरीश भनोट और माँ रमा भनोट की पुत्री
के रूप में चंडीगढ़ में हुआ। उनके पिता बंबई (अब मुंबई) में पत्रकारिता के
क्षेत्र में कार्यरत थे और नीरजा की प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर चंडीगढ़
के सैक्रेड हार्ट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल में हुई। इसके पश्चात् उनकी शिक्षा मुम्बई के स्कोटिश स्कूल और सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में हुई।
नीरजा का विवाह वर्ष 1985 में संपन्न हुआ और वे पति के साथ खाड़ी देश को
चली गयी लेकिन कुछ दिनों बाद दहेज के दबाव को लेकर इस रिश्ते में खटास आयी
और विवाह के दो महीने बाद ही नीरजा वापस मुंबई आ गयीं। इसके बाद उन्होंने
पैन एम में विमान परिचारिका की नौकरी के लिये आवेदन किया और चुने जाने के
बाद मियामी में ट्रेनिंग के बाद वापस लौटीं।
विमान अपहरण घटनाक्रम
मुम्बई से न्यूयॉर्क के लिये रवाना पैन ऍम-73 को कराची
में चार आतंकवादियों ने अपहृत कर लिया और सारे यात्रियों को बंधक बना
लिया। नीरजा उस विमान में सीनियर पर्सर के रूप में नियुक्त थीं और उन्हीं
की तत्काल सूचना पर चालक दल के तीन सदस्य विमान के कॉकपिट से तुरंत
सुरक्षित निकलने में कामयाब हो गये। पीछे रह गयी सबसे वरिष्ठ विमानकर्मी के
रूप में यात्रियों की जिम्मेवारी नीरजा के ऊपर थी और जब १७ घंटों के बाद
आतंकवादियों ने यात्रियों की हत्या शुरू कर दी और विमान में विस्फोटक लगाने
शुरू किये तो नीरजा विमान का इमरजेंसी दरवाजा खोलने में कामयाब हुईं और
यात्रियों को सुरक्षित निकलने का रास्ता मुहैय्या कराया।
वे चाहतीं तो दरवाजा खोलते ही खुद पहले कूदकर निकल सकती थीं किन्तु
उन्होंने ऐसा न करके पहले यात्रियों को निकलने का प्रयास किया। इसी प्रयास
में तीन बच्चों को निकालते हुए जब एक आतंकवादी ने बच्चों पर गोली चलानी
चाही नीरजा के बीच में आकार मुकाबला करते वक्त उस आतंकवादी की गोलियों की
बौछार से नीरजा की मृत्यु हुई। नीरजा के इस वीरतापूर्ण आत्मोत्सर्ग ने
उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हीरोइन ऑफ हाईजैक के रूप में मशहूरियत दिलाई।
सम्मान
नीरजा को भारत सरकार ने इस अदभुत वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र
से सम्मानित किया जो भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है।अपनी
वीरगति के समय नीरजा भनोट की उम्र २३ साल थी। इस प्रकार वे यह पदक प्राप्त
करने वाली पहली महिला और सबसे कम आयु की नागरिक भी बन गईं। पाकिस्तान सरकार की ओर से उन्हें तमगा-ए-इन्सानियत से नवाज़ा गया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का नाम हीरोइन ऑफ हाईजैक के तौर पर मशहूर है। वर्ष २००४ में उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया और अमेरिका ने वर्ष २००५ में उन्हें जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड दिया है।
"हीरोइन ऑफ हाईजैक" नीरजा भनोट की ५४ वीं जयंती पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं |
नमन नीरजा भानोट को ।
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