क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी (बांग्ला:
প্রফুল্ল চাকী) (१० दिसंबर १८८८ - १ मई १९०८) का नाम भारतीय स्वतंत्रता
संग्राम के इतिहास में अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। प्रफुल्ल का
जन्म उत्तरी बंगाल
के बोगरा गाँव (अब बांग्लादेश में स्थित) में हुआ था। जब प्रफुल्ल दो वर्ष
के थे तभी उनके पिता जी का निधन हो गया। उनकी माता ने अत्यंत कठिनाई से
प्रफुल्ल का पालन पोषण किया। विद्यार्थी जीवन में ही प्रफुल्ल का परिचय
स्वामी महेश्वरानंद द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से हुआ।
प्रफुल्ल ने स्वामी विवेकानंद
के साहित्य का अध्ययन किया और वे उससे बहुत प्रभावित हुए। अनेक
क्रांतिकारियों के विचारों का भी प्रफुल्ल ने अध्ययन किया इससे उनके अन्दर
देश को स्वतंत्र कराने की भावना बलवती हो गई। बंगाल विभाजन
के समय अनेक लोग इसके विरोध में उठ खड़े हुए। अनेक विद्यार्थियों ने भी इस
आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। प्रफुल्ल ने भी इस आन्दोलन में भाग लिया।
वे उस समय रंगपुर
जिला स्कूल में कक्षा ९ के छात्र थे। प्रफुल्ल को आन्दोलन में भाग लेने के
कारण उनके विद्यालय से निकाल दिया गया। इसके बाद प्रफुल्ल का सम्पर्क
क्रांतिकारियों की युगांतर पार्टी से हुआ।
मुजफ्फरपुर काण्ड
कोलकाता का चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड
क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दण्ड देने के लिए बहुत बदनाम
था। क्रांतिकारियों ने किंग्सफोर्ड को जान से मार डालने का निर्णय लिया। यह
कार्य प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस
को सौंपा गया। ब्रिटिश सरकार ने किंग्सफोर्ड के प्रति जनता के आक्रोश को
भाँप कर उसकी सरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर मुजफ्फरपुर भेज दिया।
दोनों क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस उसके पीछे-पीछे मुजफ्फरपुर
पहुँच गए। दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन किया। इसके बाद ३० अप्रैल १९०८
ई० को किंग्सफोर्ड पर उस समय बम फेंक दिया जब वह बग्घी पर सवार होकर
यूरोपियन क्लब से बाहर निकल रहा था। लेकिन जिस बग्घी पर बम फेंका गया था उस
पर किंग्सफोर्ड नहीं था बल्कि बग्घी पर दो यूरोपियन महिलाएँ सवार थीं। वे
दोनों इस हमले में मारी गईं।
बलिदान
दोनों क्रांतिकारियों ने समझ लिया कि वे
किंग्सफोर्ड को मारने में सफल हो गए हैं। वे दोनों घटनास्थल से भाग निकले।
प्रफुल्ल चाकी ने समस्तीपुर
पहुँच कर कपड़े बदले और टिकिट खरीद कर रेलगाड़ी में बैठ गए। दुर्भाग्य से
उसी में पुलिस का सब इंस्पेक्टर नंदलाल बनर्जी बैठा था। उसने प्रफुल्ल चाकी
को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से अगली स्टेशन को सूचना दे दी। स्टेशन पर
रेलगाड़ी के रुकते ही प्रफुल्ल को पुलिस ने पकड़ना चाहा लेकिन वे बचने के
लिए दौड़े। परन्तु जब प्रफुल्ल ने देखा कि वे चारों ओर से घिर गए हैं तो
उन्होंने अपनी रिवाल्वर से अपने ऊपर गोली चलाकर अपनी जान दे दी। यह घटना १
मई, १९०८ की है। बिहार के मोकामा
स्टेशन के पास प्रफुल्ल चाकी की मौत के बाद पुलिस उपनिरीक्षक एनएन बनर्जी
ने चाकी का सिर काट कर उसे सबूत के तौर पर मुजफ्फरपुर की अदालत में पेश
किया। यह अंग्रेज शासन की जघन्यतम घटनाओं में शामिल है। खुदीराम को बाद में
गिरफ्तार किया गया था व उन्हें फांसी दे दी गई थी।
अमर क्रांतिकारी स्व ॰ प्रफुल्ल चाकी जी को शत शत नमन !
इंकलाब ज़िंदाबाद !!
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