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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

१२ फरवरी और २ खास शख़्स

आज १२ फरवरी है ... आज अमरीका के १६ वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का जन्मदिन है ! लिंकन ने अमेरिका को उसके सबसे बड़े संकट - गृहयुद्ध (अमेरिकी गृहयुद्ध) से पार लगाया। अमेरिका में दास प्रथा के अंत का श्रेय लिंकन को ही जाता है।

अब्राहम लिंकन का जन्म एक गरीब अश्वेत परिवार में हुआ था। वे प्रथम रिपब्लिकन थे जो अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उसके पहले वे एक वकील, इलिअन्स स्टेट के विधायक (लेजिस्लेटर), अमेरिका के हाउस ऑफ् रिप्रेस्न्टेटिव्स के सदस्य थे। वे दो बार सीनेट के चुनाव में असफल भी हुए।


वकालत से कमाई की दृष्टि से देखें तो अमेरिका के राष्ट्रपति बनने से पहले अब्राहम लिंकन ने बीस साल तक असफल वकालत की. लेकिन उनकी वकालत से उन्हें और उनके मुवक्किलों को जितना संतोष और मानसिक शांति मिली वह धन-दौलत बनाने के आगे कुछ भी नहीं है. उनके वकालत के दिनों के सैंकड़ों सच्चे किस्से उनकी ईमानदारी और सज्जनता की गवाही देते हैं.
लिंकन अपने उन मुवक्किलों से अधिक फीस नहीं लेते थे जो ‘उनकी ही तरह गरीब’ थे. एक बार उनके एक मुवक्किल ने उन्हें पच्चीस डॉलर भेजे तो लिंकन ने उसमें से दस डॉलर यह कहकर लौटा दिए कि पंद्रह डॉलर पर्याप्त थे. आमतौर पर वे अपने मुवक्किलों को अदालत के बाहर ही राजीनामा करके मामला निपटा लेने की सलाह देते थे ताकि दोनों पक्षों का धन मुकदमेबाजी में बर्बाद न हो जाये. इसके बदलें में उन्हें न के बराबर ही फीस मिलती था. एक शहीद सैनिक की विधवा को उसकी पेंशन के 400 डॉलर दिलाने के लिए एक पेंशन एजेंट 200 डॉलर फीस में मांग रहा था. लिंकन ने उस महिला के लिए न केवल मुफ्त में वकालत की बल्कि उसके होटल में रहने का खर्चा और घर वापसी की टिकट का इंतजाम भी किया.
लिंकन और उनके एक सहयोगी वकील ने एक बार किसी मानसिक रोगी महिला की जमीन पर कब्जा करने वाले एक धूर्त आदमी को अदालत से सजा दिलवाई. मामला अदालत में केवल पंद्रह मिनट ही चला. सहयोगी वकील ने जीतने के बाद फीस में बँटवारा करने की बात की लेकिन लिंकन ने उसे डपट दिया. सहयोगी वकील ने कहा कि उस महिला के भाई ने पूरी फीस चुका दी थी और सभी अदालत के निर्णय से प्रसन्न थे परन्तु लिंकन ने कहा – “लेकिन मैं खुश नहीं हूँ! वह पैसा एक बेचारी रोगी महिला का है और मैं ऐसा पैसा लेने के बजाय भूखे मरना पसंद करूँगा. तुम मेरी फीस की रकम उसे वापस कर दो.”
आज के हिसाब से सोचें तो लिंकन बेवकूफ थे. उनके पास कभी भी कुछ बहुतायत में नहीं रहा और इसमें उन्हीं का दोष था. लेकिन वह हम सबमें सबसे अच्छे मनुष्य थे, क्या कोई इस बात से इनकार कर सकता है?
लिंकन कभी भी धर्म के बारे में चर्चा नहीं करते थे और किसी चर्च से सम्बद्ध नहीं थे. एक बार उनके किसी मित्र ने उनसे उनके धार्मिक विचार के बारे में पूछा. लिंकन ने कहा – “बहुत पहले मैं इंडियाना में एक बूढ़े आदमी से मिला जो यह कहता था ‘जब मैं कुछ अच्छा करता हूँ तो अच्छा अनुभव करता हूँ, और जब बुरा करता हूँ तो बुरा अनुभव करता हूँ’. यही मेरा धर्म है’।

लिंकन से जुड़े प्रसंगों मे उनका अपने बेटे के प्रिंसिपल को लिखे एक खत का जिक्र आता है :- लिंकन ने इसमें वे तमाम बातें लिखी थीं जो वे अपने बेटे को सिखाना चाहते थे।

" सम्माननीय महोदय,
मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं। यह बात मेरे बेटे को भी सीखना होगी। पर मैं चाहता हूँ कि आप उसे यह बताएँ कि हर बुरे आदमी के पास भी अच्छा हृदय होता है। हर स्वार्थी नेता के अंदर अच्छा लीडर बनने की क्षमता होती है। मैं चाहता हूँ कि आप उसे सिखाएँ कि हर दुश्मन के अंदर एक दोस्त बनने की संभावना भी होती है। ये बातें सीखने में उसे समय लगेगा, मैं जानता हूँ। पर आप उसे सिखाइए कि मेहनत से कमाया गया एक रुपया, सड़क पर मिलने वाले पाँच रुपए के नोट से ज्यादा कीमती होता है।
आप उसे बताइएगा कि दूसरों से जलन की भावना अपने मन में ना लाएँ। साथ ही यह भी कि खुलकर हँसते हुए भी शालीनता बरतना कितना जरूरी है। मुझे उम्मीद है कि आप उसे बता पाएँगे कि दूसरों को धमकाना और डराना कोई अच्‍छी बात नहीं है। यह काम करने से उसे दूर रहना चाहिए।
आप उसे किताबें पढ़ने के लिए तो कहिएगा ही, पर साथ ही उसे आकाश में उड़ते पक्षियों को धूप, धूप में हरे-भरे मैदानों में खिले-फूलों पर मँडराती तितलियों को निहारने की याद भी दिलाते रहिएगा। मैं समझता हूँ कि ये बातें उसके लिए ज्यादा काम की हैं।
मैं मानता हूँ कि स्कूल के दिनों में ही उसे यह बात भी सीखना होगी कि नकल करके पास होने से फेल होना अच्‍छा है। किसी बात पर चाहे दूसरे उसे गलत कहें, पर अपनी सच्ची बात पर कायम रहने का हुनर उसमें होना चाहिए। दयालु लोगों के साथ नम्रता से पेश आना और बुरे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। दूसरों की सारी बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीजों का चुनाव उसे इन्हीं दिनों में सीखना होगा।
आप उसे बताना मत भूलिएगा कि उदासी को किस तरह प्रसन्नता में बदला जा सकता है। और उसे यह भी बताइएगा कि जब कभी रोने का मन करे तो रोने में शर्म बिल्कुल ना करे। मेरा सोचना है कि उसे खुद पर विश्वास होना चाहिए और दूसरों पर भी। तभी तो वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।
ये बातें बड़ी हैं और लंबी भी। पर आप इनमें से जितना भी उसे बता पाएँ उतना उसके लिए अच्छा होगा। फिर अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है और बहुत प्यारा भी।
आपका
अब्राहम लिंकन"

ज़िन्दगी के फ़लसफे का इतना सहज ज्ञान शायद हम समझ ही नहीं पाते और उलझे रहते है ... है न !!??

अपने ब्लॉग जगत मे भी एक सज्जन कुछ इतनी ही सहजता से ज़िन्दगी के विभिन्न रूपों से हम सब को रूबरू करवाते आ रहे है ... अपनी ही एक खास शैली मे ... जो उनको बाकी सब से एक अलग पहचान देता है ... एक खास मुकाम देता है ... और वो है ... श्री सलिल वर्मा !! 

यह एक संयोग ही है कि आज इन का भी जन्मदिन है ! जो लोग इनके ब्लॉग से वाकिफ़ है वो मेरे कथन से भी सहमत होंगे कि इन के लेखन मे हम ज़िन्दगी को एक अलग नज़रिये से देखते है ... रोज़ की भाग दौड़ मे हम बहुत ही छोटी छोटी पर जरूरी बातें नज़रअंदाज़ कर देते है ... पर सलिल दा अपने लेखन मे उन सब को समेट लाते है और कुछ इस तरह का जादू चलाते है कि हम उनके मुरीद हुये बिना नहीं मानते !!

आज उनके जन्मदिन पर इस पोस्ट के माध्यम से मैं, मेरी और आप सब की, ओर से उनको बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें देता हूँ ! 

हैप्पी बर्थड़े सलिल दा !!

9 टिप्‍पणियां:

  1. :) kya khub kaha aapne...:) hamare bade bhaiya ek dum abraham lincoln ke tarah.. sweet se :)
    bahut bahut shubhkamnayen bade bhaiya :)

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  2. सलिल जी के ब्लॉग रोजमर्रा से जुड़े होते हैं,जो आस पास के लोगों की बात कहते हैं.
    उन्हें जन्मदिन की ढेरों बधाई, शत आयु हों और यूँ ही हमें अच्छे ब्लोग्स पढवाते रहें.

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  3. सलिल जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ...

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  4. आपको पढ़ने पर एक अपनापन महसूस होता है |
    असीम शुभकामनाएं |

    सादर

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  5. शिवम बाबू!!
    अभिभूत हूँ आपके द्वारा दिए गए सम्मान से!! इतने महान व्यक्ति के चरणों में मुझे स्थान देकर आपने सादगी की प्रतिनूर्ति अब्राहम लिंकन का जो उदाहरण प्रस्तुत किया है यदि उसका एक छोटा अंश भी जीवन में उतार पाऊँ तो स्वयं को धन्य मानूंगा!!
    आभार या धन्यवाद कहकर आपके जज्बे को छोटा नहीं बनाना चाहता.. बस सिर झुकाता हूँ उस भावना के समक्ष कि इस योग्य बन सकूँ!!

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  6. बुलेटिन 'सलिल' रखिए, बिन 'सलिल' सब सूनआज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  7. सच कहा है शिवम जी ने ...
    सलिल जी को जनम दिन की बहुत बहुत बधाई ओर शुभकामाएं ...

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  8. सलिल जी का लेखन अनौखा है । सरल संवेदना से परिपूर्ण है । वे हमेशा स्वस्थ व सक्रिय रहें और इसी तरह लिखते रहें । सबको एक अनौखे संसार की सैर कराते रहें ।

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