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गुरुवार, 5 जनवरी 2012

सैनिक धर्म

मैं भारत माँ का प्रहरी हूँ , घायल हूँ पर तुम मत रोना,
साथी घर जाकर कहना , संकेतों में बतला देना,
यदि हाल मेरे पिताजी पूछे तो,
खाली पिंजरा दिखा देना,
इतने पर भी वह न समझे तो
... तो होनी का मर्म समझा देना
यदि हाल मेरी माताजी पूछे तो
मुर्झाया फूल दिखा देना
इतने पर भी वह न समझे तो
दो बूंद आंशु बहा देना
यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो,
जलता दीप बुझा देना
इतने पर वह न समझे तो
मांग का सिंदूर मिटा देना
यदि हाल मेरा बेटा पूछे तो
माँ का प्यार जाता देना
इतने पर वह न समझे तो
सैनिक धर्म बतला देना ...

( आज फेसबुक के हल्ला बोल क्लब पर Shiv Pratap Singh Srinet जी के प्रोफाइल पर यह कविता दिखी तो मन में आया कि यह आप सब तक भी पहुंचनी चाहिए ... सो उनसे आज्ञा ले कर यहाँ प्रस्तुत कर दी )
 
जय हिंद ... जय हिंद की सेना !!!

13 टिप्‍पणियां:

  1. शायद इसकी प्रशंसा मे शब्द कम हैं..... बहुत अच्छी प्रस्तुति.... हम केवल लाईक किये और आप ब्लाग पर ले आए..... वाह शिवम भईया आज लाज़वाब हैं.... :-)

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  2. सुंदर कविता है, कई दिनों से ढूंढ रहा था। बचपन में पढी थी। आभार

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  3. यह कविता सिर झुकाने वाली वाली है!! आज बी.एस.एफ. हेडक्वार्टर्स में भी जलसा जैसा कुछ था.. उधर से ही आ रहा हूँ अभी!!

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  4. सर झुक जाता है श्रद्धा से ऐसी रचनाओं पर.

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  5. माँ का विश्वास है ... सारे धर्म निभाएगा

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  6. us shwet himon par hari bhuja se laal rang jab girta hai..balidaan amar ho jaata hai, tab ek tiranga banta hai...sainik ko salaam , jo seema par hain aur jo desh ke andar bhi tainaat hain...bahut sundar rachna...

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  7. मार्मिक कविता ...

    यद्यपि बहुत पहले सुना था इसे

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  8. एक सैनिक के मर्म को उद्धरित करती हुई सुंदर कविता ...........

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  9. क्या बेहतरीन शब्दों में सैनिक धर्म का मर्म बतलाया है.. बहुत ही बेहतरीन रचना है.. साथ-बांटने के लिए धन्यवाद..

    प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें...

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