जाने माने सारंगी वादक और शास्त्रीय गायक उस्ताद सुलतान खान का रविवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। खान 71 साल के थे और पिछले दो महीने से बीमार चल रहे थे। वे अपने पीछे परिवार में संगीत की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र साबिर खान को छोड़ गए हैं। उस्ताद खान को वर्ष 2010 में देश के प्रतिष्ठित पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया था।
मीठे साजों में शुमार सारंगी के फनकार खान ने 'पिया बसंती रे' और 'अलबेला सजन आयो रे' जैसे मशहूर गीतों में भी अपनी आवाज दी। उनके परिवार के सदस्यों ने कहा कि पद्म भूषण से सम्मानित खान जोधपुर के सारंगी वादकों के परिवार से ताल्लुक रखते थे। वह पिछले कुछ समय से डायलिसिस पर थे। उन्हें कल जोधपुर में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा।
सारंगी वादन के क्षेत्र में नई जान फूंकने का श्रेय खान को ही जाता है। उनकी अपने वाद्य पर गजब की पकड़ थी लेकिन उनकी आवाज भी उतनी ही सुरीली थी। वह 11 वर्ष की आयु में ही पंडित रविशंकर के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुति दे चुके थे। यह पेशकश उन्होंने वर्ष 1974 में जॉर्ज हैरीसन के 'डार्क हॉर्स वर्ल्ड टूर' में दी थी। खान राजस्थान के सारंगी वादकों के परिवार में जन्मे। शुरुआत में उन्होंने अपने पिता उस्ताद गुलाम खान से तालीम ली। बाद में उन्होंने इंदौर घराने के जाने माने शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खां से संगीत के हुनर सीखे।
खुद को सारंगी वादक के तौर पर स्थापित करने के बाद उस्ताद सुल्तान खान ने लता मंगेशकर, खय्याम, संजय लीला भंसाली जैसी फिल्म जगत की हस्तियों और पश्चिमी देशों के संगीतकारों के साथ काम किया।
मीठे साजों में शुमार सारंगी के फनकार खान ने 'पिया बसंती रे' और 'अलबेला सजन आयो रे' जैसे मशहूर गीतों में भी अपनी आवाज दी। उनके परिवार के सदस्यों ने कहा कि पद्म भूषण से सम्मानित खान जोधपुर के सारंगी वादकों के परिवार से ताल्लुक रखते थे। वह पिछले कुछ समय से डायलिसिस पर थे। उन्हें कल जोधपुर में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा।
सारंगी वादन के क्षेत्र में नई जान फूंकने का श्रेय खान को ही जाता है। उनकी अपने वाद्य पर गजब की पकड़ थी लेकिन उनकी आवाज भी उतनी ही सुरीली थी। वह 11 वर्ष की आयु में ही पंडित रविशंकर के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुति दे चुके थे। यह पेशकश उन्होंने वर्ष 1974 में जॉर्ज हैरीसन के 'डार्क हॉर्स वर्ल्ड टूर' में दी थी। खान राजस्थान के सारंगी वादकों के परिवार में जन्मे। शुरुआत में उन्होंने अपने पिता उस्ताद गुलाम खान से तालीम ली। बाद में उन्होंने इंदौर घराने के जाने माने शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खां से संगीत के हुनर सीखे।
खुद को सारंगी वादक के तौर पर स्थापित करने के बाद उस्ताद सुल्तान खान ने लता मंगेशकर, खय्याम, संजय लीला भंसाली जैसी फिल्म जगत की हस्तियों और पश्चिमी देशों के संगीतकारों के साथ काम किया।
फिल्म 'हम दिल दे चुके सनम' में आपका गया हुआ 'अलबेला सजन घर आयो री' बेहद मकबूल हुआ था ... इस गाने में आपने शंकर महादेवन के साथ जुगलबंदी की थी !
लीजिये पेश है उनका एक ओर बेहद मकबूल गीत ...
"कटे नाही रात मोरी ... पिया तोरे कारण ..."
मैनपुरी के सभी संगीत प्रेमियों की ओर से खान साहब को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !
एक लुप्तप्राय वाद्ययंत्र के अमर वादक के निधन पर श्रद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंखान साहब को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंउस्ताद को श्रद्धांजलि! मैं अक्सर "पिया बसंती रे" सुनता हूँ।
जवाब देंहटाएंउन्हें हमारी श्रद्धांजलि और हमारा नमन
जवाब देंहटाएंउन्हें हमारी श्रद्धांजलि और हमारा नमन
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