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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

रफ़्तार....

छोटे होते जिले
मैनपुरी जैसे छोटे शहरों का विकास थम गया है.प्रदेश में २० लाख से कम आबादी वाले शहरों के तादात हालाकिं कम हैं.बाबजूद जिस रफ़्तार से इन जिलों का विकास होना चाहिए था उस तरह से नहीं हो सका है. राजनेतिक लालच...स्वार्थ...और वेय्क्तिगत सोच ने इन जिलों की खूबसूरती छीन ली है. ये जिले शहरी करण के शानदार नमूने कहे जा सकते हैं. सुकून....अपनापन...सादगी..दौड़ भाग से दूर जिंदगी का लुत्फ़....इन जिलों की सबसे बड़ी खूबसूरती है. ज़ेहन को सुकून और दिल को रहत देने वाली ये चीजें रफ्ता रफ्ता अब इन जिलों से नदारत जारी रहें हैं. एक खली पन इन जिलों को खाता जा रहा...
मैनपुरी जिले की सीमा तीन पडोसी जिलों को स्पर्श करती है...पहली इटावा...दूसरी फर्रुक्खावाद और तीसरी एटा,ये जिले पुरा पाषाण काल से भी सम्बद्ध हैं.जैसे पूरा पाषाण काल के सुबूत सैफई से मिलते हैं....गुप्त कल के सुबूत फर्रुक्खावाद की ज़मीन से और एटा से दिल्ली सल्तनत से नजदीक होने का प्रमाण मिलता है. मशहुर सूफी संत और इतिहासकार हजरत अमीर खुसरो इस ज़मीन की पैदाइश हैं.इस लिए इन जिलों का बनना और संवरना दोनों मायने रखता है.इन जिलों की जनता से मेरा हर दिन का नाता है.....इन लोगों से बात होती है तो जैसे ये लोग थक गए हैं.जोश..उत्साह अब यहाँ रहने वालों के चेहरे से गायब हैं.कुल मिलाकर इन जिलों में वक्त थम गया है.
बात पुरानी नहीं है....इन जिलों में बचपन की छुट्टियाँ बिताने का अलग मजा था.गावं...नाना-नानी और उनकी कहानी ये है ये इन जिलों की निशानी थीं.....अब ऐसा नहीं है....बच्चे अब दादी- नानी की कहानियों से दूर डोरे मोन और सिन चेन की दुनियां में अधिक मशरूफ है.मैं कई दादी और नानी को जनता हूँ जिन से मिलने अब उनके पोते पोती नहीं आते है.अपनों से दूर रहने का गम इनकी झुर्रियों से साफ झलकता है...सब कुछ तेज़ी से बदल रहा है.सोच संस्कार और लोकाचार.शायद यही कारण हैं कि अब इन जिलों में भी फादर्स डे...मदर्स डे...रोज़ डे...इंतजार के साथ मनाये जाने लगें हैं...नयी पीढ़ी को इन जिलों में करियर के साथ अब पढाई का भी स्कोप नजर नहीं आता है.इसीलिए इन जिलों के स्कूलों में अब पढाई का स्तर गिर रहा हैं. ये जिले बेहद छोटे हैं.....सब एक दुसरे से किसी न किसी रूप से जुड़े हैं.ऐसे में गलती की गुन्जायिश कम...लेकिन नई पीढ़ी के लिए ये किसी बंदिस से काम नहीं है...मोल...मल्टी प्लेक्स और पार्क नई पीढ़ी के लिए जैसे ये सिलेबस का हिस्सा बन गयें हैं.यही वजह है कि नई पीढ़ी इन जिलों को छोड़ कर महानगरों का रुख कर रही है.....मानो! ये जिले अब और छोटे हो रहे हैं....

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