आज १२ जुलाई है ... विचित्र संयोग है कि आज ही के दिन भारत के तीन दिग्गजों की पुण्यतिथि होती है |
दारा सिंह (जन्म 19 नवंबर 1928; मृत्यु: 12 जुलाई 2012) ज्ञात हो कि गुरुवार १२ जुलाई २०१२ की सुबह 7.30 बजे अभिनेता महाबली दारा सिंह जी काफी दिनों तक जिंदगी और मौत से
लड़ने के बाद दुनिया से चल बसे। वह काफी दिनों तक
मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती थे। उनकी गंभीर हालत को देखते हुए
कई दिनों तक उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा था। डाक्टरों ने बताया था कि उनके
खून में ऑक्सीजन की भारी कमी थी। उनके गांव के गुरुद्वारे में उनकी सलामती
की अरदास की जा रही थी। पूरे देश ने उनकी सलामती की दुआएं मांगी। रामायण
में हनुमान बनकर भगवान लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाने वाले दारा सिंह
जी अपने असल जिंदगी में मौत से नहीं लड़ पाए। ताकत के इस प्रतीक को जो
बीमारी हुई थी उसे क्रॉनिक इन्फ्लेमेटरी डेमीलीटेटिंग पॉलीन्यूरोपैथी के
नाम से जाना जाता है। कुश्ती की दुनिया में देश विदेश में अपनी कामयाबी का
लोहा मनवाने वाले दारा सिंह जी ने 1962 में हिंदी फिल्मों से अभिनय की
दुनिया में कदम रखा। पहलवानी से पहचान तो मिली ही थी, लेकिन रामायण सीरियल
में हनुमान के किरदार ने दारा सिंह जी को हिंदुस्तान के दिलों में बसा
दिया था।
प्राण (जन्म: 12 फरवरी 1920; मृत्यु: 12 जुलाई 2013) हिन्दी
फ़िल्मों के एक प्रमुख चरित्र अभिनेता थे जो मुख्यतः अपनी खलनायक की भूमिका
के लिये जाने जाते हैं। कई बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार तथा बंगाली फ़िल्म फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड्स जीतने वाले इस भारतीय अभिनेता ने हिन्दी सिनेमा में 1940 से 1990 के दशक तक दमदार खलनायक और नायक का अभिनय किया।
उन्होंने प्रारम्भ में 1940 से 1947 तक नायक के रूप में फ़िल्मों में
अभिनय किया। इसके अलावा खलनायक की भूमिका में अभिनय 1942 से 1991 तक जारी
रखा। उन्होंने 1948 से 2007 तक सहायक अभिनेता की तर्ज पर भी काम किया।अपने उर्वर अभिनय काल के दौरान उन्होंने 350 से अधिक फ़िल्मों में काम किया। उन्होंने खानदान (1942), पिलपिली साहेब (1954) और हलाकू (1956) जैसी फ़िल्मों में मुख्य अभिनेता की भूमिका निभायी। उनका सर्वश्रेष्ठ अभिनय मधुमती (1958), जिस देश में गंगा बहती है (1960), उपकार (1967), शहीद (1965), आँसू बन गये फूल (1969), जॉनी मेरा नाम (1970), विक्टोरिया नम्बर २०३ (1972), बे-ईमान (1972), ज़ंजीर (1973), डॉन (1978) और दुनिया (1984) फ़िल्मों में माना जाता है।
सुशील कुमार चड्ढा उर्फ हुल्लड़ मुरादाबादी (जन्म: 29 मई 1942 ; मृत्यु: 12 जुलाई 2014) हुल्लड़ मुरादाबादी जी का शनिवार, 12 जुलाई 2014, की शाम करीब 4
बजे मुंबई स्थित आवास में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। हुल्लड़ मुरादाबादी के निधन की खबर से कवि साहित्य जगत
में शोक की लहर दौड़ गई।
इतनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, तथाकथित भगवानों के नाम जैसी हास्य कविताओं से भरपूर पुस्तकें लिखने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी को कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म 29 मई 1942 को गुजरावाला पाकिस्तान में हुआ था। बंटवारे के दौरान परिवार के साथ मुरादाबाद आ गए थे। बुध बाजार से स्टेशन रोड पर सबरवाल बिल्डिंग के पीछे दाहिनी ओर स्थित एक आवास में किराए पर उनका परिवार रहने लगा। बाद में पंचशील कालोनी (सेंट मैरी स्कूल के निकट, सिविल लाइंस) में उन्होंने अपना आवास बना लिया था।
आज के दिन हम सब इन तीनों दिग्गजों को शत शत नमन करते हैं |
इतनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, तथाकथित भगवानों के नाम जैसी हास्य कविताओं से भरपूर पुस्तकें लिखने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी को कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म 29 मई 1942 को गुजरावाला पाकिस्तान में हुआ था। बंटवारे के दौरान परिवार के साथ मुरादाबाद आ गए थे। बुध बाजार से स्टेशन रोड पर सबरवाल बिल्डिंग के पीछे दाहिनी ओर स्थित एक आवास में किराए पर उनका परिवार रहने लगा। बाद में पंचशील कालोनी (सेंट मैरी स्कूल के निकट, सिविल लाइंस) में उन्होंने अपना आवास बना लिया था।
आज के दिन हम सब इन तीनों दिग्गजों को शत शत नमन करते हैं |
Naman
जवाब देंहटाएंनमन ।
जवाब देंहटाएं