पूरे दिन में हमारे साथ जो जो होता है उसका ही एक लेखा जोखा " बुरा भला " के नाम से आप सब के सामने लाने का प्रयास किया है | यह जरूरी नहीं जो हमारे साथ होता है वह सब " बुरा " हो, साथ साथ यह भी एक परम सत्य है कि सब " भला " भी नहीं होता | इस ब्लॉग में हमारी कोशिश यह होगी कि दिन भर के घटनाक्रम में से हम " बुरा " और " भला " छांट कर यहाँ पेश करे |
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रविवार, 29 अप्रैल 2012
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012
अभी तो मैं जवान हूँ ... अभी तो मैं जवान हूँ - जोहरा सहगल के 100 वे जन्मदिन पर विशेष
प्रसिद्ध नृत्यांगना और अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री जोहरा सहगल आज यानि 27 अप्रैल 2012 को 100 साल की हो गई । इस मौके पर उनकी बेटी किरण सहगल अपनी मां को एक विशेष उपहार देने की तैयारी में हैं। किरण ने अपनी मां के जीवन पर एक किताब लिखी है जोहरा सहगल फैटी। इस किताब में किरण ने एक सख्त मिजाज और अपने वजन को लेकर हमेशा चिंतित रहने वाली मां के बारे में बताया है।
कुछ दिनों पहले 67 वर्षीय किरण (प्रख्यात ओडि़शी नृत्यांगना) ने अपनी मां को उनकी जीवनी का कवर पेज दिखाया, जिस पर लिखा था जोहरा सहगल फैटी। दरअसल किरण इस शीर्षक पर अपनी मां की प्रतिक्रिया जानना चाहती थीं। यह देखते ही जोहरा ने तपाक से कहा, तुमने प्रकाशक से फैटी के साथ हिटलर लिखने को क्यों नहीं कहा। इतना कहकर वह खिलखिला पड़ीं। जोहरा का असली नाम साहिबजादी जोहरा बेगम मुमताजुल्ला खान है। उनका जन्म 27 अप्रैल, 1912 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रोहिल्ला पठान परिवार में हुआ। वह मुमताजुल्ला खान और नातीक बेगम की सात में से तीसरी संतान हैं। हालांकि जोहरा का पालन-पोषण सुन्नी मुस्लिम परंपराओं में हुआ, लेकिन वह बचपन से ही विद्रोह मानसिकता की थीं।
लाहौर से स्कूली शिक्षा और स्नातक करने के बाद जोहरा अपने मामा के साथ जर्मनी चली गई। वहां उन्होंने खुद को बुर्के से आजाद कर लिया और संगीत की शिक्षा ली। वर्ष 1935 में जोहरा जाने-माने नर्तक उदय शंकर से मिलीं और उनके डांस ग्रुप का हिस्सा बन कर पूरी दुनिया घूमीं।
1940 में अल्मोड़ा स्थित शंकर के स्कूल में नृत्य की शिक्षा देने के साथ ही उनकी मुलाकात कामेश्वर से हुई, जिनसे जोहरा ने 1942 में शादी की। फिर उन्होंने मुंबई आकर पृथ्वी थियेटर में नृत्य निर्देशक के रूप में काम करना शुरू किया, जहां वह अपनी सख्त मिजाजी के लिए जानी जाती थीं। यहीं से उनका फिल्मों का सफर भी शुरू हो गया। बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म हम दिल दे चुके सनम, कभी खुशी कभी कम, चीनी कम जैसे कई फिल्मों में काम किया।
फिल्मी सफर की दास्तान
-वर्ष 1945 में पृथ्वी थियेटर में 400 रुपये मासिक वेतन पर काम शुरू किया। इसी दौरान इप्टा ग्रुप में शामिल हुई।
-वर्ष 1946 में ख्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में धरती के लाल और चेतन आनंद की फिल्म नीचा सागर में काम किया।
-धरती के लाल भारत की पहली फिल्म थी, जिसे कान फिल्म समारोह में गोल्डन पाम पुरस्कार मिला।
-मुंबई में जोहरा ने इब्राहीम अल्काजी के प्रसिद्ध नाटक दिन के अंधेरे में बेगम कुदसिया की भूमिका निभाई।
-गुरुदत्त की वर्ष 1951 में आई फिल्म बाजी तथा राजकपूर की फिल्म आवारा के प्रसिद्ध स्वप्न गीत की कोरियोग्राफी भी की।
-1964 में बीबीसी पर रुडयार्ड किपलिंग की कहानी में काम करने के साथ ही 1976-77 में बीबीसी की टेलीविजन श्रृंखला पड़ोसी नेबर्स की 26 कडि़यों में प्रस्तोता की भूमिका निभाई।
लीजिये डालिए एक नज़र उनके फिल्मी सफर पर :-
Filmography
As an actor
Year | Title |
---|---|
1946 | Dharti Ke Lal |
1946 | Neecha Nagar |
1950 | Afsar |
1956 | Heer |
1964 | The Indian Tales of Rudyard Kipling |
1964–1965 | Doctor Who (TV series) |
1967 | The Long Duel |
1967 | Theatre 625 (TV series) |
1968 | The Vengeance of She |
1968 | The Expert (TV series) |
1969 | The Guru |
1973 | The Regiment (TV series) |
1973 | Tales That Witness Madness |
1974 | It Ain't Half Hot Mum (TV series) |
1978 | Mind Your Language (TV series) |
1983 | The Courtesans of Bombay |
1984 | The Jewel in the Crown (TV series) |
1985 | Tandoori Nights (TV series) |
1985 | Harem |
1986 | Caravaggio |
1987 | Partition |
1987 | Never Say Die |
1989 | Manika, une vie plus tard |
1989 | The Bill |
1991 | Masala |
1992 | Firm Friends |
1993 | Bhaji on the Beach |
1994 | Little Napoleons |
1995 | Amma and Family (TV series) |
1997 | Tamanna |
1998 | Not a Nice Man to Know |
1998 | Dil Se.. |
1999 | Khwaish |
1999 | Hum Dil De Chuke Sanam |
1999 | Dillagi |
2000 | Tera Jadoo Chal Gayaa |
2001 | Landmark |
2001 | Kabhi Khushi Kabhie Gham |
2001 | Zindagi Kitni Khoobsoorat Hai |
2001 | The Mystic Masseur |
2002 | Bend it Like Beckham |
2002 | Anita and Me |
2002 | Chalo Ishq Ladaaye |
2003 | Saaya |
2004 | Kaun Hai Jo Sapno Mein Aaya? |
2004 | Veer-Zaara |
2005 | Chicken Tikka Masala |
2005 | Mistress of Spices |
2007 | Cheeni Kum |
2007 | Saawariya |
लीजिये एक नज़्म भी सुनिए ... लगता है जैसे यह नज़्म ज़ोहरा जी के लिए ही लिखी गयी थी ...
मलिका पुखराज जी की आवाज़ मे "अभी तो मैं जवान हूँ"
मैनपुरी के सभी कला प्रेमियो की ओर से जोहरा सहगल जी को १०० वे जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
गुरुवार, 26 अप्रैल 2012
गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन (22/12/1887 - 26/04/1920)
गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन (22/12/1887 - 26/04/1920) |
महज 32 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए रामानुजन, लेकिन इस कम समय में भी वह गणित में ऐसा अध्याय छोड़ गए, जिसे भुला पाना मुश्किल है। अंकों के मित्र कहे जाने वाले इस जुनूनी गणितज्ञ की क्या है कहानी?
जुनून जब हद से गुजरता है, तो जन्म होता है रामानुजन जैसी शख्सियत का। स्कूली शिक्षा भी पूरी न कर पाने के बावजूद वे दुनिया के महानतम गणितज्ञों में शामिल हो गए, तो इसकी एक वजह थी गणित के प्रति उनका पैशन। सुपर-30 के संस्थापक और गणितज्ञ आनंद कुमार की मानें, तो रामानुजन ने गणित के ऐसे फार्मूले दिए, जिसे आज गणित के साथ-साथ टेक्नोलॉजी में भी प्रयोग किया जाता है। उनके फार्मूलों को समझना आसान नहीं है। यदि कोई पूरे स्पष्टीकरण के साथ उनके फार्मूलों को समझ ले, तो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से उसे पीएचडी की उपाधि आसानी से मिल सकती है।
अंकों से दोस्ती
22 दिसंबर, 1887 को मद्रास [अब चेन्नई] के छोटे से गांव इरोड में जन्म हुआ था श्रीनिवास रामानुजन का। पिता श्रीनिवास आयंगर कपड़े की फैक्ट्री में क्लर्क थे। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए वे सपरिवार कुंभकोणम शहर आ गए। हाईस्कूल तक रामानुजन सभी विषयों में अच्छे थे। पर गणित उनके लिए एक स्पेशल प्रोजेक्ट की तरह था, जो धीरे-धीरे जुनून की शक्ल ले रहा था। सामान्य से दिखने वाले इस स्टूडेंट को दूसरे विषयों की क्लास बोरिंग लगती। वे जीव विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की क्लास में भी गणित के सवाल हल करते रहते।
छिन गई स्कॉलरशिप
चमकती आंखों वाले छात्र रामानुजन को अटपटे सवाल पूछने की आदत थी। जैसे विश्व का पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी होती है? बेसिर-पैर के लगने वाले सवाल पूछने वाले रामानुजन शरारती बिल्कुल भी नहीं थे। वह सबसे अच्छा व्यवहार करते थे, इसलिए स्कूल में काफी लोकप्रिय भी थे। दसवीं तक स्कूल में अच्छा परफॉर्म करने की वजह से उन्हें स्कॉलरशिप तो मिली, लेकिन अगले ही साल उसे वापस ले लिया गया। कारण यह था कि गणित के अलावा वे बाकी सभी विषयों की अनदेखी करने लगे थे। फेल होने के बाद स्कूल की पढ़ाई रुक गई।
कम नहीं हुआ हौसला
अब पढ़ाई जारी रखने का एक ही रास्ता था। वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। इससे उन्हें पांच रुपये महीने में मिल जाते थे। पर गणित का जुनून मुश्किलें बढ़ा रहा था। कुछ समय बाद दोबारा बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी, लेकिन वे एक बार फिर फेल हो गए। देश भी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा था और उनके जीवन में भी निराशा थी। ऐसे में दो चीजें हमेशा रहीं-पहला ईश्वर पर अटूट विश्वास और दूसरा गणित का जुनून।
नौकरी की जद्दोजहद
शादी के बाद परिवार का खर्च चलाने के लिए वे नौकरी की तलाश में जुट गए। पर बारहवीं फेल होने की वजह से उन्हें नौकरी नहीं मिली। उनका स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा था। बीमार हालात में जब भी किसी से मिलते थे, तो उसे अपना एक रजिस्टर दिखाते। इस रजिस्टर में उनके द्वारा गणित में किए गए सारे कार्य होते थे। किसी के कहने पर रामानुजन श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। यहां पर श्री अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और उनके लिए 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में भी क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। यहां काम का बोझ ज्यादा न होने के कारण उन्हें गणित के लिए भी समय मिल जाता था।
बोलता था जुनून
रात भर जागकर वे गणित के नए-नए सूत्र तैयार करते थे। शोधों को स्लेट पर लिखते थे। रात को स्लेट पर चॉक घिसने की आवाज के कारण परिवार के अन्य सदस्यों की नींद चौपट हो जाती, पर आधी रात को सोते से जागकर स्लेट पर गणित के सूत्र लिखने का सिलसिला रुकने के बजाय और तेज होता गया। इसी दौरान वे इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी के गणितज्ञों संपर्क में आए और एक गणितज्ञ के रूप में उन्हें पहचान मिलने लगी।
सौ में से सौ अंक
ज्यादातर गणितज्ञ उनके सूत्रों से चकित तो थे, लेकिन वे उन्हें समझ नहीं पाते थे। पर तत्कालीन विश्वप्रसिद्ध गणितज्ञ जी. एच. हार्डी ने जैसे ही रामानुजन के कार्य को देखा, वे तुरंत उनकी प्रतिभा पहचान गए। यहां से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। हार्डी ने उस समय के विभिन्न प्रतिभाशाली व्यक्तियों को 100 के पैमाने पर आंका था। अधिकांश गणितज्ञों को उन्होने 100 में 35 अंक दिए और कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को 60 अंक दिए। लेकिन उन्होंने रामानुजन को 100 में पूरे 100 अंक दिए थे।
उन्होंने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया। प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए आर्थिक सहायता भी मिल गई। अपने एक विशेष शोध के कारण उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली, लेकिन वहां की जलवायु और रहन-सहन में वे ढल नहीं पाए। उनका स्वास्थ्य और खराब हो गया।
अंतिम सांस तक गणित
उनकी प्रसिद्घि बढ़ने लगी थी। उन्हें रॉयल सोसायटी का फेलो नामित किया गया। ऐसे समय में जब भारत गुलामी में जी रहा था, तब एक अश्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसायटी की सदस्यता मिलना बहुत बड़ी बात थी। और तो और, रॉयल सोसायटी के पूरे इतिहास में इनसे कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है। रॉयल सोसायटी की सदस्यता के बाद वह ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने।
करना बहुत कुछ था, लेकिन स्वास्थ्य ने साथ देने से इनकार कर दिया। डॉक्टरों की सलाह पर भारत लौटे। बीमार हालात में ही उच्चस्तरीय शोध-पत्र लिखा। मौत की घड़ी की टिकटिकी तेज होती गई। और वह घड़ी भी आ गई, जब 26 अप्रैल, 1920 की सुबह हमेशा के लिए सो गए और शामिल हो गए गौस, यूलर, जैकोबी जैसे सर्वकालीन महानतम गणितज्ञों की पंक्ति में।
महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की 125वीं जयंती के अवसर पर भारत सरकार द्वारा वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष और हर साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई है।
[सीमा झा जी का यह आलेख आप यहाँ भी पढ़ सकते है !]
गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन को हमारा शत शत नमन !
बुधवार, 18 अप्रैल 2012
रविवार, 15 अप्रैल 2012
शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012
बस एक छोटी सी गुज़ारिश - एक बार फिर
आज १३ अप्रैल है ... यु तो हम में से काफी लोगो की ज़िन्दगी में इस दिन का कोई न कोई ख़ास महत्व जरूर होगा ... किसी का जन्मदिन या फिर किसी की शादी की वर्षगाँठ ... कुछ भी हो सकता है ... खैर जो भी हो ... आप आज उस खास पल को याद जरूर कीजियेगा जिस पल ने आप की ज़िन्दगी को ऐसे हजारो खुशनुमा पल दिए !
बस एक छोटी सी गुज़ारिश है ... साथ साथ याद कीजियेगा उन हजारो बेगुनाह लोगो को जिन को आज के ही दिन गोलियों से भुन दिया गया सिर्फ इस लिए क्यों की वो अपने अधिकारों की बात कर रहे थे ... आज़ादी की बात कर रहे थे ... जी हाँ ... आप की रोज़मर्रा की इस आपाधापी भरी ज़िन्दगी में से मैं कुछ पल मांग रहा हूँ ... जलियाँवाला बाग़ के अमर शहीदों के लिए ... जिन को आजतक हमारी सरकार ने शहीद का दर्जा भी नहीं दिया जब कि देश को आजाद हुए भी अब ६४ साल हो जायेंगे !!!
अन्दर जाने का रास्ता ... तंग होने के कारण जनरल डायर अन्दर टैंक नहीं ले जा पाया था ... नहीं तो और भी ना जाने कितने लोग मारे जाते !! |
बाग़ की दीवालों पर गोलियों के निशान |
यहाँ से ही सिपाहियों ने भीड़ पर गोलियां चलाई थी |
हत्याकांड का एक (काल्पनिक) चित्र |
शहीद स्मारक |
सूचना |
जलियाँवाला बाग़ के सभी अमर शहीदों को हमारा शत शत नमन !!
जय हिंद !!
बुधवार, 11 अप्रैल 2012
बुरा भला है , भला बुरा है - एक रि पोस्ट
भला बुरा , बुरा भला है ,खोटे पर सब खरा भला है |
झूट सच का क्या पता है ,एक गम एक बड़ी बला है ,
चाल ढाल सब एक जैसी ,सारा कुछ ही नापा तुला है |
सच के सर जब धुँआ उठे तो ,झूट आग में जला हुआ है ,
भला बुरा ,बुरा भला है ,खोटे पर सब खरा भला है |
काला है तो काला होगा ,मौत का ही मसाला होगा,
चूना कत्था ज़िन्दगी तो सुपारी जैसा छाला होगा |
पाप ने जना नहीं तो पापियों ने पाला होगा,
भूख से निकल गया था ,भूख से निकला होगा |
भला बुरा , बुरा भला है ,खोटे पर सब खरा भला है |
'वो' जो अब कहीं नहीं है उस पे भी तो यकीं नहीं है ,
झूट सच का क्या पता है ,एक गम एक बड़ी बला है ,
चाल ढाल सब एक जैसी ,सारा कुछ ही नापा तुला है |
सच के सर जब धुँआ उठे तो ,झूट आग में जला हुआ है ,
भला बुरा ,बुरा भला है ,खोटे पर सब खरा भला है |
काला है तो काला होगा ,मौत का ही मसाला होगा,
चूना कत्था ज़िन्दगी तो सुपारी जैसा छाला होगा |
पाप ने जना नहीं तो पापियों ने पाला होगा,
भूख से निकल गया था ,भूख से निकला होगा |
भला बुरा , बुरा भला है ,खोटे पर सब खरा भला है |
'वो' जो अब कहीं नहीं है उस पे भी तो यकीं नहीं है ,
रहता है जो फलक फलक पे ,उसका घर भी ज़मी नहीं है |
अक्ल का ख्याल अगर हो , शक्ल से भी हसी नहीं है ,
अक्ल का ख्याल अगर हो , शक्ल से भी हसी नहीं है ,
पहले हर जगह पे था 'वो', सुना है अब 'वो' कहीं नहीं है |
बुरा भला है , भला बुरा है ||
----- गुलज़ार
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