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बुधवार, 3 मार्च 2010

यही जीना हैं दोस्तों... तो फिर मरना क्या हैं??????

शहर की इस दौड में दौड के करना क्या है?
यही जीना हैं दोस्तों... तो फिर मरना क्या हैं?
पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िकर हैं......भूल गये भींगते हुए टहलना क्या हैं.......
सीरियल के सारे किरदारो के हाल हैं मालुम......पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुरसत कहाँ हैं!!!!!!
अब रेत पर नंगे पैर टहलते क्यों नहीं........?????
१०८ चैनल हैं पर दिल बहलते क्यों नहीं!!!!!!!
इंटरनेट पे सारी दुनिया से तो टच में हैं.......लेकिन पडोस में कौन रहता हैं जानते तक नहीं!!!!
मोबाईल, लैंडलाईन सब की भरमार हैं.........ज़िगरी दोस्त तक पहुंचे ऐसे तार कहाँ हैं!!!!
कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद हैं??????
कब जाना था वो शाम का गुजरना क्या हैं!!!!!!!
तो दोस्तो इस शहर की दौड में दौड के करना क्या हैं??????
अगर यही जीना हैं तो फिर मरना क्या हैं!!!!!!!!


( कही पढ़ा था तो सोच आपको भी पढ़वाया जाये ! )

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब , आपने ऐसे सवालो को सामने रखा है जिसका जवाब शायद ही किसी के पास हो ।

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  2. स्वागत है.... दोस्त ख़ुशी हुयी की आप की वापसी हुयी...धमाकेदार ढंग से एंट्री करने के लिए शुक्रिया.

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  3. सबसे पहले नमस्कार करूँगा। उसके बाद आपको धन्यवाद कहना चाहूँगा, एक अनूठी रचना से रूबरू करवाने के लिए। उम्मीद करता हूँ, घर में सब ठीक होगा, और आप अब निरंतर हमसे ब्लॉग़ के मार्फत मिलते रहेंगे।

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आपकी टिप्पणियों की मुझे प्रतीक्षा रहती है,आप अपना अमूल्य समय मेरे लिए निकालते हैं। इसके लिए कृतज्ञता एवं धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।

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