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मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

हैप्पी बर्थडे चाचा कलाम !!

डॉ..पी.जे.अब्दुल कलाम को सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से 

जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाईयां और शुभकामनाएं !

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

आजादी का अनोखा सपना बुना था दुर्गा भाभी ने

स्वतंत्रता संग्राम की मशाल थामने वाले हाथ एक ओर जहां चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, यतीन्द्रनाथ दास और राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों के थे तो दुर्गा भाभी और सुशीला जी जैसी वीरांगनाओं के भी। पढि़ये एक निर्भीक, साहसी और क्रांति समर्पित महिला की शौर्यगाथा ...  बरेली के श्री सुधीर विद्यार्थी जी के शब्दों में ...


लखनऊ की एक प्रतिष्ठित शिक्षा संस्था है 'लखनऊ माण्टेसरी इंटर कालेज'। इसकी स्थापना प्रसिद्ध क्रांतिकारी दुर्गा भाभी ने आजादी के बाद की थी। लखनऊ वे 1940 में ही आ गयी थीं। मॉडल हाउस में जहां श्रीयुत मोहनलाल गौतम रहा करते थे, उस मकान के बीच का हिस्सा उन्होंने किराए पर ले लिया और कैण्ट रोड पर पांच बच्चों को लेकर 'लखनऊ माण्टेसरी' की स्थापना की थी। यह स्कूल ही आज लखनऊ माण्टेसरी इंटर कालेज के नाम से जाना जाता है। भाभी के निधन के बाद इस विद्यालय के प्रांगण में भाभी की सीमेण्ट की आवक्ष प्रतिमा लग गई है। मैं भाभी के इस स्मारक के सामने खड़ा उनकी स्मृतियों में खो जाता हूं...

जब भगत सिंह की 'पत्नी' बनीं दुर्गा भाभी

क्रांतिकारी आन्दोलन में भाभी अपने पति भगवतीचरण वोहरा के साथ सक्रिय थीं। भगवतीचरण देश की मुक्ति के लिए चलाए जा रहे सशस्त्र क्रांतिकारी संग्राम के मस्तिष्क थे। वे बहुत बौद्धिक क्रांतिकारी थे। उन्होंने 'नौजवान भारत सभा' के घोषणापत्र के साथ ही गांधी जी के 'कल्ट ऑफ द बम' के जवाब में 'बम का दर्शन' जैसे तर्कपूर्ण दस्तावेजों को लिपिबद्ध किया था। क्रांतिकारी दल को वे भरपूर आर्थिक मदद भी देते थे। जिन दिनों साइमन कमीशन भारत आया तो देश भर में उसके विरोध में जबरदस्त प्रदर्शन हुए। ऐसे ही एक अभियान का नेतृत्व करते हुए लाला लाजपत राय पर पुलिस की लाठियां पड़ीं जिसमें वे बुरी तरह घायल होकर शहीद हो गए। चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में भगतसिंह और राजगुरु ने लाहौर की धरती पर पुलिस अफसर सॉण्डर्स को मार कर इसका बदला ले लिया। इस घटना से देश मानो सोते से जाग उठा। अब समस्या यह थी कि भगतसिंह को लाहौर से बाहर किस तरह निकाला जाए। भगतसिंह अपने केश कटवाकर एक सिख युवक से सिर पर हैट लगाए 'साहब' में तब्दील हो गए और दुर्गा भाभी अपने तीन वर्षीय बेटे शची को गोद में लेकर भगतसिंह के साथ उनकी पत्नी के रूप में कलकत्ता निकल गई। यह बहुत साहसपूर्ण कार्य था जिसे भाभी ने अत्यन्त सूझबूझ से सम्पन्न कर डाला। भगवतीचरण भी भाभी का यह कृत्य देखकर दंग रह गए। उनके मुंह से एकाएक निकला- 'तुम्हें आज समझा।'

कलकत्ता पहुंचकर भगतसिंह चुप नहीं बैठे। यहां यतीन्द्रनाथ दास से मिलकर दीर्घकालीन योजनाएं बनाई और ब्रिटिश सरकार के जनविरोधी कानूनों को पास किए जाने के विरोध में 8 अप्रैल 1929 को संसद भवन में उन्होंने बटुकेश्वर दत्त क साथ मिलकर बम विस्फोट करने के साथ ही क्रांतिकारी दल की नीतियों और कार्यक्रमों में छपे हुए पर्चे फेंके और अपनी गिरफ्तारी दे दी। कौन जाने कि इस अभियान पर जाने से पहले भाभी और सुशीला दीदी ने अपने रक्त से तिलक कर उन्हें अंतिम विदाई दी थी। इसके बाद भगतसिंह वाले मुकदमें में गिरफ्तार क्रांतिकारियों की मदद के लिए चन्दा मांगने वाली 40-50 महिलाओं में भाभी भी शामिल रहती थीं। जो मिलता उससे क्रांतिकारियों के लिए सामान आदि खरीदा जाता। कोई पैसा इधर-उधर हो जाए, यह संभव नहीं था। दल के संकट के समय भाभी यहां से वहां संदेश पहुंचाने का काम भी बड़ी सतर्कता से करती रहीं।
क्रांतिकारी दल की ओर से भगतसिंह को जबरदस्ती जेल से छुड़ाने की योजना बनी तो उस हमले में प्रयुक्तदल की ओर से भगतसिंह को जबरदस्ती जेल से छुड़ाने की योजना बनी किंतु उस हमले में प्रयुक्त किये जाने वाले बमों का रावी तट पर परीक्षण करते हुए दुर्घटनावश भगवतीचरण शहीद हो गए। वह 28 मई 1930 का दिन था जब भाभी ने चुपचाप अपना सुहाग पोंछ डाला था। उन क्षणों में भैया आज़ाद ने उन्हें धैर्य बंधाते हुए कहा था- 'भाभी, तुमने देश के लिए अपना सर्वस्व दे दिया है। तुम्हारे प्रति हम अपने कर्तव्य को कभी नहीं भूलेंगे।'
भैया आजाद का स्वर सुनकर भाभी के होठों पर दृढ़ संकल्प की एक रेखा खिंच गई थी उस दिन। वे उठ बैठीं। बोलीं- 'पति नहीं रहे, लेकिन दल का काम रुकेगा नहीं। मैं करूंगी..।' और वे दूने वेग से क्रांति की राह पर चल पड़ीं। अपने तीन साल के बेटे की परवाह नहीं की। वे बढ़ती गई, जिस राह पर जाना था उन्हें। रास्ते में दो पल बैठकर कभी सुस्ताई नहीं, छांव देखकर कहीं ठहरी नहीं। चलती रहीं- निरन्तर। जैसे चलना ही उनके लिए जीवन का ध्येय बन गया हो। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को जेल से छुड़ाने के लिए आजाद चले तो भाभी ने उनसे आग्रह किया- 'संघर्ष में मुझे भी साथ चलने दें, यह हक सर्वप्रथम मेरा है।' आजाद ने इसकी स्वीकृति नहीं दी। वह योजना भी कामयाब नहीं हो पाई। कहा जाता है कि भगतसिंह ने स्वयं ही इसके लिए मना कर दिया था।

और गोली चला दी भाभी ने

भाभी जेल में भगतसिंह से मिलीं। फिर लाहौर से दिल्ली पहुंची। गांधी जी वहीं थे। यह कराची कांग्रेस से पहले की बात है। भगतसिंह की रिहाई के सवाल को लेकर भाभी गांधी जी के पास गई। रात थी। कोई साढ़े ग्यारह का वक्त था। बैठक चल रही थी। नेहरू जी वहीं घूम रहे थे। वे सुशीला दीदी और भाभी को लेकर अंदर गए। गांधी जी ने देखा तो कहा- 'तुम आ गई हो। अपने को पुलिस में दे दो। मैं छुड़ा लूंगा।'
गांधी जी ने समझा कि वे अपने संकट से मुक्ति पाने आई हैं। भाभी तुरंत बोलीं- 'मैं इसलिए नहीं आई हूं। दरअसल, मैं चाहती हूं कि जहां आप अन्य राजनीतिक बंदियों को छुड़ाने की बात कर रहे हैं वहां भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को छुड़ाने की शर्त भी वायसराय के सामने रखें।'
गांधी जी इसके लिए सहमत नहीं थे। भाभी सारी स्थिति समझ गई और उन्हें प्रणाम करके वापस चली आई। फिर वे शची को लेकर बम्बई पहुंचीं। वहां पृथ्वी सिंह आजाद और सुखदेव राज के साथ लेमिंग्टन रोड पर गवर्नर पर गोलियां चलाई। पुलिस कोई भेद न पा सकी। ड्राइवर के बयानों से पता चला कि गोलियां चलाने वालों में लम्बे बालों वाला लड़का था। भाभी के बाल लम्बे थे ही। कद छोटा-सा। किसी को अनुमान न था कि इस कांड के पीछे कोई स्त्री भी हो सकती है। खोजबीन में लम्बे बालों को रखने के शौकीन युवक पकड़कर पीटे गए। उसके बाद पता नहीं कैसे भाभी को फरार घोषित कर दिया गया। वारंट में उनका नाम लिखा था 'शारदा बेन' और उनके पुत्र शची का 'हरीश'। लाहौर के भाभी के तीन मकान जब्त हो गए थे। इलाहाबाद के भी दो। भगवतीचरण के वारंट पर पहले ही सब कुछ कुर्क हो चुका था। श्वसुर ने जो 40 हजार रुपए दिए थे, उनमें से कुछ क्रांतिकारी कार्यो पर व्यय हो गए थे। बाकी जिस परिचित सज्जान के यहां रखे गए थे वे मिले नहीं। कितना कुछ सहा उन दिनों भाभी ने। बताती थीं मुझे कि उन्हीं दिनों राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन ने उन्हें बहुत स्नेहपूर्वक कहा था- 'बेटी, मेरे यहां आकर रहो।' भाभी उनके पास 5-6 महीने रहीं। फिर चली आई। अपने को गिरफ्तार कराया। बयान देने के लिए उन पर बहुत जोर डाला गया। लेकिन भाभी झुकने वाली कहां थीं? हार मान गए पुलिस वाले।

भाभी को देखता था तो बार-बार होठों पर आ जाता था- 'भाभी एक अनवरत यात्रा हैं।'

पर इस दीर्घ यात्रा में एकाएक 14 अक्टूबर 1999 को विराम लग गया..।

आजाद भारत में भाभी को आदर और उपेक्षा दोनों मिले। सरकारों ने उन्हें पैसे से तौलना चाहा। कई वर्ष पहले पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने उन्हें 51 हजार रुपए भेंट किए। भाभी ने वे रुपए वहीं वापस कर दिए। कहा- 'जब हम आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, उस समय किसी व्यक्तिगत लाभ या उपलब्धि की अपेक्षा नहीं थी। केवल देश की स्वतंत्रता ही हमारा ध्येय था। उस ध्येय पथ पर हमारे कितने ही साथी अपना सर्वस्व न्योछावर कर गए, शहीद हो गए। मैं चाहती हूं कि मुझे जो 51 हजार रुपए दिए गए हैं, उस पैसे से यहां शहीदों का एक बड़ा स्मारक बनाने की शुरुआत की जाए जिससे क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का अध्ययन और अध्यापन हो क्योंकि देश की नई पीढ़ी को इसकी बहुत आवश्यकता है।
देश के स्वतंत्र होने के बाद की राजनीति भाभी को कभी रास नहीं आई। अनेक शीर्ष नेताओं से निकट संपर्क होने के बाद भी वे संसदीय राजनीति से दूर बनी रहीं। 1937 की बात है, जब कुछ क्रांतिकारी साथियों ने गाजियाबाद से तार भेजकर भाभी से चुनाव लड़ने की प्रार्थना की। भाभी ने तार से ही उत्तर दिया- 'चुनाव में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। अत: लड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता।'
मुझे स्मरण है कि एक बार मैंने लिखने के उद्देश्य से भाभी से कुछ जानना चाहा तो वे बोली थीं- 'भगवतीचरण (पति) के संबंध में छोड़कर बाकी सब कुछ पूछ सकते हो। उनकी चर्चा होने पर मैं कई दिन सामान्य नहीं रह पाती।' पर जब बातचीत चली तो भाभी ने भगवती भाई के अनेक मार्मिक संस्मरण मुझे सुना दिए।
भाभी से बातें करके मैंने भारतीय क्रांतिकारी संग्राम की कितनी ही दुर्लभ स्मृतियों को जाना-सुना है। ऐसा करते हुए कई बार मैंने उन्हें रुलाया तो अनेक बार वे दर्द की गलियों में मुझे भी ले जाती रही हैं। भगतसिंह वाले मामले में जब राजनीतिक कैदियों के लिए विशेष व्यवहार की मांग को लेकर क्रांतिकारियों ने लम्बी भूख हड़ताल की तब उसमें यतीन्द्रनाथ दास 63 दिन तिन-तिल जलकर शहीद हो गए। इन्हीं यतीन्द्र की बलिदान अर्धशती पर लखनऊ के बारादरी में जब भाभी ने भरी आंखों से यतीन्द्र की याद में एक डाक टिकट जारी किया तो वह दृश्य इतना मार्मिक बन गया था कि उसे मैं आज तक भूला नहीं हूं..
भाभी ने देश और समाज की मुक्ति में ही अपनी मुक्ति का सपना देखा था। उसके लिए उन्होंने अथक संघर्ष किया। अबोध बेटे के भविष्य की चिंता नहीं की और पति का बलिदान भी उन्हें क‌र्त्तव्य पथ से विचलित नहीं कर सका। इंकलाब की आग जो उनके भीतर धधकी, वह फिर बुझी नहीं कभी। मैंने उस आंच को निकट से महसूस किया है..
आज भाभी की स्मृतियों को बहुत आस्था के साथ नई पीढ़ी को बताने की कोशिश करता हूं तो कई जगह सवाल आता है- 'दुर्गा भाभी कौन?' मैं लज्जित भी होता हूं सुनकर। फिर गर्व के साथ मुक्ति-युद्ध की उस वीरांगना की जीवनकथा को बांचता हूं एक कथावाचक की भांति। कोई तो इसे सुने!


[सुधीर विद्यार्थी]
6, पवन विहार फेज-5 विस्तार,
पो. रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली

सभी मैनपुरी वासियों की ओर से अमर क्रांतिकारी दुर्गा भाभी को शत 

शत नमन और हार्दिक विनम्र श्रद्धांजलि !

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

ऐसे भगाएं एसिडिटी

त्योहारों का मौसम शुरू हो चुका है। ऐसे में तीखा, चटपटा और मसालेदार खाना सभी को बहुत भाता है। भूख न होने पर भी लोग जरूरत से ज्यादा खा लेते हैं। नतीजा एसिडिटी यानी पेट में गैस बनने की समस्या। मामूली जान पड़ने वाली यह समस्या कभी-कभी गंभीर हो जाती है।

लक्षण : सीने और गले में जलन, मुंह में खत्र पानी आना, घबराहट होना, उल्टी आना, खाना खाने के बाद पेट भारी लगना, खाना हजम न होना, बेचैनी होना, भूख कम लगना, पेट साफ न होना। कई बार सांस लेने में भी कठिनाई होती है।

घरेलू उपाय :

-प्रतिदिन सुबह खाली पेट एक से दो गिलास पानी पिएं।

-रोजमर्रा के आहार में छाछ और दही शामिल करें। ताजे खीरे का रायता एसिडिटी का बेहतरीन उपचार है।

-हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित अनाज खूब खाएं।

-आधा गिलास ठंडा दूध रोजाना पीएं।

-एक कप पानी में कुछ बूंदें पुदीने की रस की डालकर पिएं।

-खाली पेट नारियल पानी पिएं

-आइसक्रीम खाने से राहत मिलती है।

-खाने के बाद मुंह में एक लौंग रखें।

-केला खाने से आराम मिलता है।

-धूम्रपान बिल्कुल मत करें।

-सोने के ठीक पहले खाना न खाएं।

-खाना खाने के बाद थोड़ा सा गुड़ खाने की आदत डालें। 


इस उम्मीद के साथ कि यह उपाय आपके लाभदायक सिद्ध होंगे ... और आप एसिडिटी पर विजय पायेंगे ... 

 आप सब को सपरिवार विजयदशमी की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनयें !

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

जय माँ दुर्गा - देखिये कलकत्ता की दुर्गा पूजा

मेरी पैदाइश और परवरिश दोनों कलकत्ता की है ! १९९७ में कलकात्ता छोड़ कर मैं मैनपुरी आया और तब से यहाँ का हो कर रह गया हूँ ! आज भी अकेले में कलकत्ता की यादो में खो सा जाता हूँ | कलकत्ता बहुत याद आता है , खास कर दुर्गा पूजा के मौके पर, इस लिए सोचा आज आप को अपने कलकत्ता या यह कहे कि बंगाल की दुर्गा पूजा के बारे में कुछ बताया जाये !

यूँ तो महाराष्ट्र की गणेश पूजा पूरे विश्व में मशहूर है, पर बंगाल में दुर्गापूजा के अवसर पर गणेश जी की पत्नी की भी पूजा की जाती है।

जानिए और क्या खास है यहां की पूजा में।

[षष्ठी के दिन]

मां दुर्गा का पंडाल सज चुका है। धाक, धुनुचि और शियूली के फूलों से मां की पूजा की जा रही है। षष्ठी के दिन भक्तगण पूरे हर्षोल्लास के साथ मां दुर्गा की प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। यह दुर्गापूजा का बोधन, यानी शुरुआत है। इसी दिन माता के मुख का आवरण हटाया जाता है।

[कोलाबोऊ की पूजा]
सप्तमी के दिन दुर्गा के पुत्र गणेश और उनकी पत्नी की विशेष पूजा होती है। एक केले के स्तंभ को लाल बॉर्डर वाली नई सफेद साड़ी से सजाकर उसे उनकी पत्नी का रूप दिया जाता है, जिसे कोलाबोऊ कहते हैं। उन्हें गणेश की मूर्ति के बगल में स्थापित कर पूजा की जाती है। साथ ही, दुर्गा पूजा के अवसर एक हवन कुंड बनाया जाता है, जिसमें धान, केला आम, पीपल, अशोक, कच्चू, बेल आदि की लकडि़यों से हवन किया जाता है। इस दिन दुर्गा के महासरस्वती रूप की पूजा होती है।
[108 कमल से पूजा]
माना जाता है कि अष्टमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध किया था, इसलिए इस दिन विशेष पूजा की जाती है। 108 कमल के फूलों से देवी की पूजा की जाती है। साथ ही, देवी की मूर्ति के सामने कुम्हरा (लौकी-परिवार की सब्जी) खीरा और केले को असुर का प्रतीक मानकर बलि दी जाती है। संपत्ति और सौभाग्य की प्रतीक महालक्ष्मी के रूप में देवी की पूजा की जाती है।
[संधि पूजा]
अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट, यानी कुल 48 मिनट के दौरान संधि पूजा की जाती है। 108 दीयों से देवी की पूजा की जाती है और नवमी भोग चढ़ाया जाता है। इस दिन देवी के चामुंडा रूप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इसी दिन चंड-मुंड असुरों का विनाश करने के लिए उन्होंने यह रूप धारण किया था।

[सिंदूर खेला व कोलाकुली]

दशमी पूजा के बाद मां की मूर्ति का विसर्जन होता है। श्रद्धालु मानते हैं कि मां पांच दिनों के लिए अपने बच्चों, गणेश और कार्तिकेय के साथ अपने मायके, यानी धरती पर आती हैं और फिर अपनी ससुराल, यानी कैलाश पर्वत चली जाती हैं। विसर्जन से पहले विवाहित महिलाएं मां की आरती उतारती हैं, उनके हाथ में पान के पत्ते डालती हैं, उनकी प्रतिमा के मुख से मिठाइयां लगाती हैं और आंखों (आंसू पोंछने की तरह) को पोंछती हैं। इसे दुर्गा बरन कहते हैं। अंत में विवाहित महिलाएं मां के माथे पर सिंदूर लगाती हैं। फिर आपस में एक-दूसरे के माथे से सिंदूर लगाती हैं और सभी लोगों को मिठाइयां खिलाई और बांटी जाती है। इसे सिंदूर खेला कहते हैं। वहीं, पुरुष एक-दूसरे के गले मिलते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं। यहाँ सब एक दुसरे को विजय दशमी की बधाई 'शुभो बिजोया' कह कर देते है | यहाँ एक दुसरे को रसगुल्लों से भरी हंडी भेंट करना का भी प्रचालन है |

[मां की सवारी]

वैसे तो हम सब जानते है कि माँ दुर्गा सिंह की सवारी करती हैं, पर बंगाल में पूजा से पहेले और बाद में माँ की सवारी की चर्चा भी जोरो से होती है | यह माना जाता है कि यह उनकी एक अतरिक्त सवारी है जिस पर वो सिंह समेत सवार होती हैं |
जैसी कि जानकारी मिली है इस वर्ष देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं और पालकी की सवारी कर लौटेंगी।

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्मदिन पर

 
आज पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्मदिन के अवसर पर 
 
मैं सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से उनको शत शत नमन करता हूँ |
 
 
 
जय जवान ...
 
 
जय किसान ...


जय हिंद !!

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