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शनिवार, 13 नवंबर 2010

बाल दिवस पर विशेष :- चाचा कलाम के बचपन की कहानी ... उनकी ही जुबानी !

मैंने जिंदगी से ही सीख ली है और उससे क्रमश: आगे बढ़ना सीखा है..। बचपन बहुत ही साधारण था। मैंने मध्यमवर्गीय तमिल परिवार में (15 अक्टूबर 1931) जन्म लिया था रामेश्वरम में..। द्वीप जैसा छोटा सा शहर..प्राकृतिक छटा से भरपूर..। शायद इसीलिए प्रकृति से मेरा बहुत जुड़ाव रहा। मेरे पिता जैनुलाब्दीन न तो ज्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे। वे नाविक थे और बहुत नियम के पक्के थे।
हम संयुक्त परिवार में थे। पाच भाई और पाच बहनें, चाचा के परिवार भी साथ में थे। मैं ठीक-ठीक नहीं बता सकता कि घर में कितने लोग थे या मा कितने लोगों का खाना बनाती थीं। क्योंकि घर में तीन भरे-पूरे परिवारों के साथ-साथ बाहर के लोग भी हमारे साथ खाना खाते थे। घर में खुशिया भी थीं, तो मुश्किलें भी।
मेरे जीवन पर पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार बहुत काम आए..। वे चारों वक्त की नमाज पढ़ते थे और जीवन में सच्चे इंसान थे। जब मैं आठ-नौ साल का था, मैं भी सुबह चार बजे उठता। ट्यूशन पढ़ने के बाद पिता के साथ नमाज पढ़ता, फिर कुरान शरीफ का अध्ययन करने के लिए अरेशिक स्कूल जाता था। मैं उसी उम्र में काम भी करने लगा था..। रामेश्वरम के रेलवे स्टेशन जाकर अखबार इकट्ठा करता था और रामेश्वरम की सड़कों पर बेचता था और घरों में पहुंचाता था। अखबार इकट्ठा करना कठिन था। उन दिनों धनुषकोड़ी से मेल ट्रेन गुजरती थी, जिसका वहा रुकना तय नहीं था। वहा चलती ट्रेन से अखबार के बंडल प्लेटफॉर्म पर यहा-वहा फेंके जाते थे।
एक तो मैं अपने भाइयों में छोटा था, दूसरे घर के लिए थोड़ी कमाई भी कर लेता था, इसलिए मा का प्यार मुझ पर कुछ ज्यादा ही था। मुझे अपने भाई-बहनों से दो रोटिया ज्यादा मिल जाती थीं। एक घटना याद आ रही है। मैं भाई-बहनों के साथ खाना खा रहा था। हमारे यहा चावल खूब होता था, इसलिए खाने में वही दिया जाता था, हा गेहूं पर राशनिंग थी। यानी रोटिया कम मिलती थी। जब मा ने मुझे रोटिया ज्यादा दे दीं, तो मेरे भाई ने एक बड़े सच का खुलासा किया। उन्होंने अलग ले जाकर मुझसे कहा कि मा के लिए एक भी रोटी नहीं बची और तुम्हें उन्होंने ज्यादा रोटिया दे दीं। मेरे भाई ने मुझे वह अपनी जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया था। यह सुनकर मैं मा से लिपटकर फूट-फूट कर रोया..।
मैं एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी में आया, तो इसके पीछे मेरे पाचवीं कक्षा के अध्यापक सुब्रहमण्यम अय्यर की प्रेरणा जरूर थी। उन्होंने कक्षा में बताया था कि पक्षी कैसे उड़ता है? जब मैं यह नहीं समझ पाया, तो वे सभी बच्चों को लेकर समुद्र के किनारे ले गए। उस प्राकृतिक दृश्य में कई प्रकार के पक्षी थे, जो सागर के किनारे उतर रहे थे और उड़ रहे थे। उन्होंने समुद्री पक्षियों को दिखाया, जो झुंड में उड़ रहे थे। उन्होंने पक्षियों के उड़ने के बारे में साक्षात अनुभव कराया। व्यावहारिक प्रयोग से हमने जाना कि पक्षी किस प्रकार उड़ पाता है। मेरे लिए यह सामान्य घटना नहीं थी। पक्षी की वह उड़ान मुझमें समा गई थी। बाद में भी मुझे महसूस होता था कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर पक्षियों की उड़ान का अध्ययन कर रहा हूं। उसी समय मैंने तय कर लिया था कि उड़ान में करियर बनाऊंगा। 

आशा है कि आज के दिन चाचा कलाम के बचपन की कहानी केवल बच्चो को ही नहीं हम सब को भी अपनी अपनी जिम्मेदारीयो के इमानदारी से पालन करने का पाठ सिखाएगी ! 

आप सब को बाल दिवस की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

7 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकारिये
    आप भी देश में ५० फ़ीसदी कुपोषण कम करने का संकल्प लेना है

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  2. बाल दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं ! आपने बहुत सार्थक मुद्दा उठाया है !!

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  3. इस पोस्ट में तो बहुत अच्छी बातें हैं शिवम् अंकल..... थैंक यू

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  4. शिवम् जी बहुत अच्छी प्रस्तुति. कलाम साहब का जीवन वास्तव में प्रेरणादायक है. अपनी कर्मठता , सच्चाई , ईमानदारी और देशभक्ति की वजह से कलाम साहब मेरे लिए तो प्रातः स्मरणीय हैं. बाल दिवस पर उनके जीवन का एक अंश बच्चों के लिए प्रस्तुत कर अपने बहुत बढ़िया कार्य किया है. इसके लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं .

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  5. शिवम जी

    बहुत बहुत धन्यवाद कलाम जी के बचपन से हमें रु बरु कराने के लिए |

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  6. सिवम बाबू.. आपका पोस्ट त अपने आप में अनोखा होता है... चचा कलाम का बचपन का बात सबके लिए है!

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