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मंगलवार, 29 जून 2010

इंतज़ार ...इंतज़ार ...इंतज़ार और इंतज़ार - 40 साल से अटका पड़ा है लोकपाल बिल


लोकपाल विधेयक पिछले 40 साल से संसद में पारित नहीं हो सका है और राजनीतिक पार्टियां इसके लिए एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं। कर्नाटक के मशहूर लोकायुक्त एन संतोष हेगड़े द्वारा वहां की सरकार पर भ्रष्टाचार से लड़ाई के लिए बनी संस्था के साथ सहयोग नहीं करने के मुद्दे पर इस्तीफा देने से एक बार फिर यह विधेयक सुर्खियों में आया है।

लोकसभा में आठ बार के प्रयास के बावजूद लोकपाल विधेयक पारित नहीं हो सका है। देश के 17 राज्यों में लोकायुक्त हैं, लेकिन उनके अधिकार, कामकाज और अधिकार क्षेत्र एक समान नहीं हैं। अकसर विधायिका को जानबूझ कर लोकायुक्त के दायरे से बाहर रखा जाता है जो इस तरह की संस्थाएं बनाने के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है।

जांच के लिए लोकायुक्त का अन्य सरकारी एजेंसियों पर निर्भर होना उनके कामकाज को तो प्रभावित करता ही है, मामलों के निपटान में भी विलंब होता है।

भाजपा प्रवक्ता तरुण विजय ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा कि पार्टी ने इस विधेयक को लाने का ईमानदारी से प्रयास किया था। वाजपेई कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी और 2001 में लोकसभा में पेश किया गया। लेकिन यह पारित नहीं हो सका। उस विधेयक में प्रधानमंत्री के पद को लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया था।

कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने भी दावा किया कि संप्रग सरकार लोकपाल विधेयक के प्रति गंभीर है और इस पर सर्वानुमति कायम होते ही विधेयक को संसद में पारित कराने का प्रयास किया जाएगा।

यह विधेयक भ्रष्टाचार निरोधक संथानम समिति के निष्कर्षो का नतीजा था। प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी 1966 में अपनी एक रिर्पोट में लोकपाल गठित करने की सिफारिश की थी। लोकपाल विधेयक सांसदों के भ्रष्ट आचरण के मामलों में मुकदमे की कार्रवाई तेजी से संचालित करने का अधिकार देता है।

लोकपाल विधेयक हर प्रमुख राजनीतिक पार्टी के चुनावी एजेंडे में रहने के बावजूद 40 साल से यह संसद में पारित नहीं हो सका। 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयं स्वीकार किया था कि आज के समय में लोकपाल की आवश्यकता पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा है। उन्होंने वायदा किया था कि वह बिना देरी किए इस संबंध में कार्यवाई आगे बढ़ाएंगे।

सिंह ने एक कदम आगे बढ़ते हुए इस बात पर भी जोर दिया था कि प्रधानमंत्री के पद को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाए लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने यह प्रस्ताव नामंजूर कर दिया।

दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की थी कि लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिया जाए और इसका नाम बदलकर 'राष्ट्रीय लोकायुक्त' किया जाए। हालांकि आयोग ने भी प्रधानमंत्री को इसके दायरे से बाहर रखने का सुझाव दिया था। इसी आयोग ने सांसद निधि जैसी स्कीमों को समाप्त करने की भी सिफारिश की थी।

गृह मंत्रालय से संबद्ध संसद की एक समिति ने हालांकि लोकपाल विधेयक को 'आधा अधूरा' बताते हुए कहा था कि इसमें कई गंभीर खामियां और असमानताएं हैं। प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने कहा कि यह विधेयक केवल उच्च पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार और रिश्वत पर केंद्रित है न कि सार्वजनिक शिकायत पर।

शनिवार, 26 जून 2010

इमरजेंसी के ३५ साल बाद एक और इमरजेंसी !

अगर अभी तक आप खाद्य उत्पादों की बढ़ती कीमतों की तपिश से ही परेशान थे, तो अब महंगाई के पूरे 'तूफान' को झेलने के लिए तैयार हो जाइए। केंद्र सरकार ने एक झटके में पेट्रोल, डीजल, किरासिन और रसोई गैस की कीमतों में जबरदस्त वृद्धि का ऐलान कर दिया है। शुक्रवार आधी रात से देश भर में पेट्रोल 3.73 रुपये, डीजल दो रुपये तथा किरासिन तीन रुपये प्रति लीटर महंगा हो गया है, जबकि रसोई गैस की कीमतों में प्रति सिलेंडर 35 रुपये की बढ़ोतरी कर दी गई है।

इसी के साथ पेट्रोल और डीजल की कीमतों को बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया है। सरकार अब इनकी कीमतें तय नहीं करेगी। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह [ईजीओएम] की बैठक में पेट्रोल और डीजल की कीमत तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को देने का सैद्धांतिक तौर पर फैसला किया गया। इस फैसले से आम आदमी की जेब पर भारी बोझ पड़ना तय है, साथ ही महंगाई की आग भी और भड़केगी। इससे आने वाले दिनों में ब्याज दरों में वृद्धि का सिलसिला भी शुरू हो सकता है।

सरकार के इस फैसले का असर उसकी गठबंधन की राजनीति पर भी येन केन प्रकारेण दिखाई दे सकता है। ईजीओएम की प्रमुख सदस्य रेलमंत्री ममता बनर्जी ने बैठक का बहिष्कार किया और पेट्रो मूल्य वृद्धि पर कड़ा विरोध दर्ज करवाया है। जबकि रसायन व उंर्वरक मंत्री अलागिरी ने बैठक में हिस्सा तो लिया परंतु उनके दल डीएमके ने इस फैसले से खुद को अलग कर लिया है। हां, ईजीओएम की पिछली बैठक से गैरहाजिर रहे कृषि मंत्री शरद पवार इस बार बैठक में शामिल हुए। दूसरी ओर महंगाई के मुद्दे पर पहले से ही सरकार को कटघरे में खड़ा करते आ रहे भाजपा और वामपंथी दलों को इससे आक्रमण का बड़ा हथियार मिल गया है।

पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री मुरली देवड़ा ने बताया कि ये फैसले किरीट पारेख समिति की सिफारिशों के आधार पर किए गए हैं। सरकार ने तेल कंपनियों को पेट्रोल और डीजल की कीमत तय करने का अधिकार दे दिया है। लेकिन भविष्य में अगर कच्चे तेल [क्रूड] की कीमतें अचानक बहुत ज्यादा बढ़ती हैं तो सरकार हस्तक्षेप कर सकती है। उन्होंने माना कि इस कदम से महंगाई कुछ बढ़ेगी, लेकिन इसके अलावा और कोई चारा नहीं था। फिलहाल डीजल की कीमत सिर्फ दो रुपये प्रति लीटर बढ़ाने का फैसला किया गया है। लेकिन आगे चल कर तेल कंपनियां और वृद्धि कर सकती हैं। वजह यह है कि डीजल पर उन्हें अभी भी 3.50 रुपये का घाटा हो रहा है। किरासिन की कीमत आठ वर्ष बाद बढ़ाई गई है। इसका मतलब हुआ कि भविष्य में अंतरराष्ट्रीय बाजार में जितनी तेजी से क्रूड की कीमतें बढ़ेंगी उसी हिसाब से यहां आम आदमी पर महंगे पेट्रोल व डीजल का बोझ बढ़ेगा। हां, क्रूड सस्ता हुआ तो फिर यह बोझ कम भी हो सकता है।

इससे पहले वर्ष 2002 के राजग शासनकाल में भी पेट्रोल व डीजल की कीमतों को बाजार आधारित किया गया था। लेकिन तकरीबन डेढ़ वर्ष बाद इसे वापस ले लिया गया था। पेट्रोलियम सचिव एस। सुंदरेशन के मुताबिक चारों पेट्रोलियम उत्पादों को महंगा करने के बावजूद रसोई गैस और किरासिन पर सब्सिडी जारी रखी जाएगी। अभी इस बात का इंतजाम करना है कि तेल कंपनियों को वर्ष 2010-11 में लगभग 53 हजार करोड़ रुपये का जो घाटा होगा उसे किस तरह से उठाया जाए। अगर यह वृद्धि नहीं की जाती तो सरकार को लगभग 1 लाख 3 हजार करोड़ रुपये के समायोजन की व्यवस्था करनी पड़ती। इस लिहाज से सब्सिडी बिल कम होगा। लेकिन पेट्रोल और डीजल पर सब्सिडी अब नहीं देनी पड़ेगी।

वैसे सरकार अगर सब सांसदों के खर्चे कम कर दे तो भी शायद काफी बोझ कम हो जाए सरकारी खजाने से ! पर इन की और सरकार का ध्यान नहीं जाता क्यों कि आम आदमी है ना इन का और सरकार का बोझ ढोने के लिए !

३५ साल पहले एक इमरजेंसी लगी थी देश में और एक इमरजेंसी अब लगी है देश की जनता के बजट में |

शुक्रवार, 25 जून 2010

एनी टाइम स्नैक - फल


प्रतिदिन फल खाने से कई बीमारियों के होने की आशंका कम हो जाती है। यह ऐसा स्नैक है, जिसे कभी भी खाया जा सकता है। हम आपको बता रहे हैं किस फल में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं..

[आम] विटामिन सी और ई, पोटैशियम और आयरन युक्त फल है यह। इंस्टेंट एनर्जी का अच्छा स्रोत। आंखों के लिए फायदेमंद। एंटीआक्सीडेंट का अच्छा स्रोत है।

[सेब] डॉक्टरों के मुताबिक, रोज एक सेब खाने से पाचन क्रिया ठीक रहती है। विटामिंस से भरपूर फल। इस खाने से कोलोन कैंसर, प्रोस्टेंट, फेफड़ों का कैंसर और कोलेस्ट्रोल बढ़ने का खतरा कम करता है।

[आलूबुखारा] विटामिन सी से भरपूर फल। कैंसर प्रतिरोधी होता है। नियमित इस्तेमाल से दिल की बीमारी को दूर रखा जा सकता है।

[पपीता] इसमें एंटी आक्सीडेंट, खनिज पदार्थ और फाइबर से भरपूर। पेट के लिए बेहद फायदेमंद होता है।

[तरबूज] गर्मियों के दौरान इसे खाने में जरूर शामिल करें। इसमें कोलेस्ट्राल नहीं होता। यह आंखों के लिए भी उपयोगी होता है।

[केला] यह डिप्रेशन, एनीमिया, हाई ब्लड प्रेशर और कब्ज में लाभकारी है। इसे खाने से फौरन ताकत मिलती है। यह आपके मूड को भी अच्छा बनाए रखता है।

बुधवार, 23 जून 2010

" 'ग्रुप कैप्टन' तेंदुलकर रिपोर्टिंग सर ! "


भारतीय वायु सेना [आईएएफ] मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को 'ग्रुप कैप्टन' के पद से सम्मानित करेगी और इस महान बल्लेबाज ने कहा कि वह आईएएफ से जुड़कर खुद को गौरवांवित महसूस करेंगे। सचिन को इससे पूर्व देश के सर्वोच्च खेल सम्मान 'राजीव गांधी खेल रत्न' और पद्म विभूषण से भी नवाजा जा चुका है।

आईएएफ ने एक बयान में कहा, 'सशस्त्र बल के सम्मानित रैंक की स्वीकृति अधिनियम के अंतर्गत भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर राष्ट्रपति से सचिन रमेश तेंदुलकर को भारतीय वायुसेना के 'ग्रुप कैप्टन' रैंक से नवाजने की सिफारिश की गई है।' बयान में कहा गया, 'आईएएफ से उनके [सचिन] जुड़ने से युवा पीढ़ी वायुसेना से जुड़कर देश की सेवा करने के लिए प्रेरित होंगे।' उधर मास्टर ब्लास्टर ने भी कहा कि वह आईएएफ परिवार से जुड़कर गौरवांवित महसूस करेंगे।

तेंदुलकर ने लंदन में बयान में कहा, 'यह बहुत बड़े सम्मान की बात है कि मुझे आईएएफ के ग्रुप कैप्टन के पद से सम्मानित करने लायक समझा गया। एक भारतीय होने के नाते मुझे वायुसेना से जुड़कर गर्व होगा और मैं इस सेना का ब्रांड एंबेसडर बनकर पूरा योगदान दूंगा।' वैसे अब तक कुल मिलाकर 21 लोगों को आईएएफ ने सम्मानित रैंक से नवाजा है लेकिन तेंदुलकर पहले खिलाड़ी हैं जिन्हें यह सम्मान देने की सिफारिश की गई है। वर्ष 2008 में विश्व कप विजेता टीम के कप्तान कपिल देव को प्रादेशिक सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल के सम्मानित रैंक से नवाजा गया था। रिकार्डो के बादशाह सचिन तेंदुलकर ने वनडे और टेस्ट क्रिकेट में कुल 93 रिकार्ड अंतरराष्ट्रीय शतक ठोके हैं और वह इन दोनों प्रारूपों में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं।

इस लिए अब कुछ दिनों में अगर आपको सचिन यह कहते दिखें तो चौकना नहीं ........." 'ग्रुप कैप्टन' तेंदुलकर रिपोर्टिंग सर ! "

सोमवार, 21 जून 2010

अगर यही आपके साथ हो तो क्या करेंगे आप ....??


गुजरात के भुवा गांव के लोग रविवार, 20 जून को उस वक्त सकते में आ गए, जब शेर व्यस्त रहने वाली सड़क पर आ गया। गिर अभयारण्य से सटे इस गांव के लोगों के लिए यह एक अनोखी मुलाकात रही।






सच में अगर ऐसा ही कुछ आपके साथ हो तो क्या करेंगे आप ??

ज़रा सोचे और बताएं ................. आपके जवाबो का इंतज़ार रहेगा !!

रविवार, 20 जून 2010

कार्तिक बड़ा प्यारा, पापा का दुलारा !





आज सुबह की पोस्ट मैंने एक पुत्र की हैसियत से लिखी थी और मेरी यह पोस्ट एक पिता की हैसियत से है ........आशा है आप सब को पसंद आएगी !

मेरा एक बेटा है, कार्तिक, साल का है .........पर है बहुत शैतान ! पूरा घर सारा का सारा दिन उसकी मस्ती से गूंजता रहता है | हम सब की .........खास कर मेरी........जान है वह ! यह पोस्ट मेरी ओर से मेरे पुत्र को एक छोटी सी गिफ्ट आज के इस ख़ास दिन की ! I LOVE YOU,SON !

खुशदीप भाई की आज की पोस्ट पढ़ी तब इस पोस्ट को लिखने का विचार आया | उनकी पोस्ट पर मैंने टिपण्णी दी ,
शिवम् मिश्रा said... खुशदीप भाई, यहाँ मैं आपसे थोड़ी अलग सोच रखता हूँ..................अगर ज़िन्दगी में कभी ऐसा मौका आ पड़े तो पिता भी लोरी दे सकता है !

आप को पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎँ !!


सो पेश है मेरी मनपसंद लोरी जो एक पिता गा रहा है अपने बच्चे के लिए !





आप सब को पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎँ !!

" बाप, बाप ही होता है |"


पिता


पिता…पिता जीवन है, सम्बल है, शक्ति है,


पिता…पिता सृष्टी मे निर्माण की अभिव्यक्ती है,



पिता अँगुली पकडे बच्चे का सहारा है,



पिता कभी कुछ खट्टा कभी खारा है,



पिता…पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है,



पिता…पिता धौंस से चलना वाला प्रेम का प्रशासन है,



पिता…पिता रोटी है, कपडा है, मकान है,



पिता…पिता छोटे से परिंदे का बडा आसमान है,



पिता…पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है,



पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है,



पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं,



पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं,


पिता से परिवार में प्रतिपल राग है
,


पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है,



पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ती है,



पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिती की भक्ती है,



पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ती है,



पिता…पिता रक्त निगले हुए संस्कारों की मूर्ती है,



पिता…पिता एक जीवन को जीवन का दान है,



पिता…पिता दुनिया दिखाने का एहसान है,



पिता…पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है,



पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,



पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,



तो पिता से बडा तुम अपना नाम करो,



पिता का अपमान नहीं उनपर अभिमान करो,



क्योंकि माँ-बाप की कमी को कोई बाँट नहीं सकता,



और ईश्वर भी इनके आशिषों को काट नहीं सकता,



विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है,



माँ-बाप की सेवा ही सबसे बडी पूजा है,



विश्व में किसी भी तिर्थ की यात्रा व्यर्थ हैं,



यदि बेटे के होते माँ-बाप असमर्थ हैं,



वो खुशनसीब हैं माँ-बाप जिनके साथ होते हैं,



क्योंकि माँ-बाप के आशिषों के हाथ हज़ारों हाथ होते हैं |



क्योंकि माँ-बाप के आशिषों के हाथ हज़ारों हाथ होते हैं |



-
स्व। ओम व्यास ‘ओम’




वैसे अक्सर यह दुआ एक बाप अपने बेटे के लिए करता है पर आज मैं अपने खुदा से यह मांगता हूँ कि मेरी तमाम उमर मेरे पिता को लग जाए क्यूकी किसी ने ठीक ही कहा है कि " बाप, बाप ही होता है |"

LOVE YOU PAPA.


HAPPY FATHER ' s DAY

ज़रा यह भी देखें :-

" फादर'स डे "




शुक्रवार, 18 जून 2010

महारानी के महा बलिदान दिवस पर विशेष




झाँसी की रानी


सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,


बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,


गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,


दूर फिरंगी को करने की सबने मन में
ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,


लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,


नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,


बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।


वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,


देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,


नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,


सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।


महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,


ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,


राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,


चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,


किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,


तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,


रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।


निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,


राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,


फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,


लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।


अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,


व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,


डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,


राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।


रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,


वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,


नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,


बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।


हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,


यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,


झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,


मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,


जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,


जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,


लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,


रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।


ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,


अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,


काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,


युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।


पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,


किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,


घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,


रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।


घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,


बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
-
सुभद्रा कुमारी चौहान



महाबलिदानी महारानी लक्ष्मी बाई को हम सब का शत शत नमन !

गुरुवार, 17 जून 2010

"बिना मरे स्वर्ग नहीं दिखता"



एक कहावत है,"बिना मरे स्वर्ग नहीं दिखता" ! तो साहब इस कहावत को सच होता देखा २ दिन पहले !

हुआ यह कि पिछले १ हफ्ते से हमारे मोहल्ले की बिजली सप्लाई बहुत ही ज्यादा ख़राब हो गयी थी ऊपर से 'कोड में खाज' का काम लो वोल्टेज ने किया हुआ था ! इलाके के लाइन मैन,जे ई, एस डी ओ, सब को शिकायत की गयी पर कोई भी फायेदा नहीं हुआ !

जब देखा गया कि 'पानी सर के ऊपर' जा रहा है तब यह निर्णय हुआ कि अब हम लोगो को खुद ही कुछ ना कुछ करना होगा नहीं तो ऐसे ही बैठ रहेगे बिना बत्ती और पानी के !

चाचा जात बड़े भाई साहब नीरज ने मोहल्ले के ७-८ लोगो से साथ चलने को कहा पर हर एक को कोई ना कोई 'काम' था सो तै हुआ कि हम दोनों ही बिजली दफ्तर जायेंगे और अधिकारियों से बात करेगे .......तो साहब हम दोनों ही चल पड़े बिजली दफ्तर की ओर रास्ते में मिले पुलकित और देवेश चतुर्वेदी ! वे दोनों भी साथ हो लिए |

हम चारो जब बिजली दफ्तर पहुचे तो देखते क्या है कि हम लोग तो ४ दिन से बिना बत्ती और पानी के दिन बिता रहे थे और यहाँ कुलर और पंखे चल रहे है दनदनाते हुए | आधिकारियो के विषय में जानकारी ली तो पता चला कोई है ही नहीं दफ्तर में ...................... उन अधिकारियों को फ़ोन किया गया तो कोई जवाब नहीं ..........फिर साहब एक ने उठाया तो पुछा गया आप दफ्तर कितनी देर में आ रहे है ..................जवाब आता है ४ बजे .....................जबकि उस समय १०:३० बजे थे के ...................खैर साहब यह सुनते ही हम लोगो को समझ आ गया कि अब तो 'उंगली टेडी करनी' ही होगी ! साहब बहादुर को बता दिया गया कि हम लोग आपके दफ्तर में ताले लगा रहे है अगर आप चाहते है कि यहाँ काम चलता रहे तो जल्द से जल्द यहाँ आ जाएँ !

फिर 'रघुकुल रीत' निभाते हुए हम लोगो ने बिजली दफ्तर के सभी स्टाफ को बाहर निकल दफ्तर में ताले लगवा दिए | इस पूरी करवाई के दौरान दफ्तर का चपरासी बड़ी ख़ुशी ख़ुशी हम लोग के साथ सहयोग करता दिखा ...................दफ्तर में ताले भी उसने ही लगाये !

अभी हम लोग ताले लगवा कर निबटे ही थे कि एक पुलिस जीप आती दिखी ................समझ में आ गया कि साहब लोग हमारी ही खबर लेने आ रहे है ..................खैर साहब ................वे आये और आते ही पुछा माजरा क्या है ....................हम लोगो ने पूरी बात बताई ...............तो ...............इंस्पेक्टर साहब बोले बिलकुल सही कर रहे हो लेगे रहो ..................हम लोगो को तो यह सूचना दी गयी थी कि बिजली दफ्तर में तोड़ फोड़ की जा रही है और आग लगाने की धमकी दी गयी है | अपने दो सिपाहियों को वहाँ छोड़ वे भी चले गए | पुलिस के आने की बात पता नहीं कैसे मोहल्ले तक पहुच गयी ......................फिर क्या था पूरा का पूरा मोहल्ला जैसे कि आ गया बिजली दफ्तर ..................और जहाँ हम ४ लोग थे वहाँ अब पूरा हुजूम था !

अब हम लोग कर रहे थे इंतज़ार बिजली अधिकारियो का .....................कि कब वह लोग आये और हम लोगो की शिकायत पर सुनवाई हो !

लगभग २ घंटे के इंतज़ार के बाद अधिकारी वहाँ आये और वह भी पुलिस बल के साथ फिर चली वार्ता !
उनके आश्वासन के बाद दफ्तर के ताले खुले और हम सब भी अपने घर लौटे ! इस पूरे घटना क्रम में हम लोगो को जनता का काफी सहयोग मिला साथ साथ मीडिया का भी हमे समर्थन था !

शनिवार, 12 जून 2010

जिन्होंने जज्बे से जीता जग


विश्व कप फूटबाल २०१० शुरू हो चूका है, हम में से हर एक किसी ना किसी टीम या खिलाडी का मुरीद है या रहा होगा | आइये आज जानते है कुछ ऐसे खिलाडियों के बारे में जिन्होंने अपनी लगन और जज्बे के दम पर इस जग को जीता |

पेले - फुटबॉल लीजेंड पेले भी गरीबी में ही पले-बढ़े। वे बचपन में न्यूजपेपर और मौजे से बने फुटबॉल खेला करते थे। 7 वर्ष की उम्र में वे जूतों पर पॉलिश करने का काम करते थे। पेले ने अपनी ओटोबायोग्राफी में गरीबी का चित्रण किया है।

डिएगो माराडोना -अपने सात भाई-बहनों के साथ डिएगो माराडोना विला फ्योरिटो शहर में एक ही कमरे में रहते थे। यह शहर अर्जेन्टीना में है। उनका बचपन गरीबी में बीता। गरीबी के कारण वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए, लेकिन फुटबॉल देखते ही उनकी आंखों में चमक आ जाती थी। बचपन से ही उनके बाएं पैर में गजब की ताकत थी, जिससे वे विपक्षी टीम के हौसले पस्त कर दिया करते थे। वे दुनिया के महान फुटबॉलरों में एक हैं।

रिवाल्डो - रिवाल्डो बचपन में कुपोषण का शिकार थे। किशोरावस्था में प्रवेश करने तक उनके शरीर की हड्डियां दिखने लगी थीं और दांत टूट चुके थे। दरअसल, उनके पिता रोड एक्सीडेंट में मारे गए थे। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं खोई और परिस्थितियों से जूझते हुए नामी फुटबॉलर बने। वे वर्ष 1999 में यूरोपियन फुटबॉलर ऑफ द ईयर बने। वर्ष 2002 में उन्होंने ब्राजील फुटबाल टीम को व‌र्ल्ड कप दिलाया।

एंटोनियो कसानो - एंटोनियो तब बहुत छोटे थे, जब उनके पिता ने उन्हें छोड़ दिया। उनकी मां ने ही उनका पालन-पोषण किया। अपनी मेहनत के बल पर ही एंटोनियो इटली के सबसे धुरंधर फुटबॉलर बने। इटली के छोटे-से शहर 'बारी' के एंटोनियो अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखते हैं कि मैंने अपने जीवन के 17 वर्ष गरीबी में बिताए। इसके बाद नौ वर्ष तक करोड़पति का जीवन जिया। इसका मतलब यह है कि मुझे आगे के 8 वर्ष ऐसे ही चाहिए, जैसे इस वक्त है।

कार्लोस तवेज - कार्लोस का बचपन भी बेहद तंगहाली में गुजरा, लेकिन फुटबॉलिंग टैलेंट की वजह से वे साउथ अमेरिका में बेहतरीन स्ट्राइकर बने।

रॉबर्ट डगलस - रॉबर्ट स्कॉटलैंड के नेशनल टीम के स्टार प्लेयर थे। वर्षो पहले फोर्थ वांडरर्स की ओर से खेलने के समय वे राजमिस्त्री का काम किया करते थे।

गरिंचा -मैनुअल फ्रांसिस्को डॉस सैंटोस किसी हीरो से कम नहीं हैं। प्यार से लोग उन्हें गरिंचा कहा करते। उनके पैर जन्म से ही मुड़े हुए थे। 14 वर्ष की उम्र में वे फैक्ट्री में काम करते थे। 17-18 वर्ष में उन्होंने प्रोफेशनल रूप से फुटबॉल खेलना शुरू किया। ब्राजील के दो बार विश्व कप जीतने में गरिंचा ने अहम भूमिका निभाई थी।

रोबर्टो कार्लोस -बचपन में रोबर्टो नंगे पैर बॉल में बालू भरकर खेला करते थे। बचपन में उनके परिवार की स्थिति साइकिल खरीदने तक की नहीं थी। वे अपने पिता के साथ दिन भर फार्म में भारी मशीनों को इधर से उधर ले जाने का काम करते थे। इसीलिए लोग उन्हें ह्यूंमन ऑक्स कहा करते थे। फुटबॉलर बनने के बाद उन्होंने न केवल सबसे बड़े फुटबॉल क्लब से, बल्कि सबसे लोकप्रिय और सक्सेसफुल कंट्री ब्राजील की तरफ से खेला।

स्टीव सविडान -कूड़ा इकट्ठा करने वाले स्टीव फ्रंास की नेशनल टीम के कप्तान बने।

जूलियो रिकार्डो -अर्जेन्टीना के फॉर्मर इंटरनेशनल स्ट्राइकर जूलियो पहले ग्राउंडस्कीपर का काम किया करते थे।

ग्रेफाइट -ग्रेफाइट के कुल 28 गोल ने पहली बार जर्मनी को चैंपियन बनाया था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वे पहले ब्राजील में कबाड़ी का काम करते थे?

रोनाल्डो - रियो डि जनेरियो में एक गरीब घर में पैदा होने वाले रोनाल्डो के पास एक समय बस का किराया भी नहीं था कि वे प्रोफेशनल फुटबॉलर बनने ट्रायल के लिए जा सकें। बाद में रोनाल्डो को तीन बार फीफा व‌र्ल्ड प्लेयर ऑफ द ईयर चुना गया।

क्रिस्टियानो रोनाल्डो - पुर्तगाल के इंटरनेशनल प्लेयर क्रिस्टियानो भी छुटपन में गरीब थे। आज 24 वर्ष में ही वे व‌र्ल्ड क्लास फुटबॉलर हैं। दुनिया भर में उन्हें फुटबॉलर के रूप में ही सबसे अधिक पहचाना जाता है।

मोरिनो टोरिसेली -मोरिनो बढ़ई का काम करते थे। जब वह 22 वर्ष के थे, तो जुवेंटस टीम के कोच जियोवन्नी ट्रेपेट्टोनी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। बाद में वे इटली के बेस्ट डिफेंडर बने। वे यूरो 96 और 1998 व‌र्ल्ड कप में इटली की ओर से खेले।



गुरुवार, 10 जून 2010

मेरी वह मुराद ............बिन मांगे जो पूरी हुयी !!

कभी कभी जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ घट जाती है जो आपके सोचने का नजरिया बदल, आपको एक लक्ष्य दे देती है ................मेरी परसों की पोस्ट पर की गयी एक टिपण्णी ने मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही किया है |

यह थी वह टिपण्णी :-
सतीश सक्सेना said... कलाजगत के इस गंभीर क्षति और बेहद दुखदायी घटना पर क्या प्रतिक्रिया दें ...हो सके तो इन के आश्रितों का हाल क्या है मालूम करें और अगर कोई मुसीबत में है तो मैं व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर साथ हूँगा ! चूंकि आपको इस मौके पर उनकी याद आयी है अतः यह पुण्य कार्य भी आप ही करें ! अन्यथा नयी पोस्ट के साथ हम सब कल इन्हें भूल जायेंगे ! मैं अपना पता दे रहा हूँ !
सादर


Satish Saxena


satish1954@gmail.com

+919811076451

मैंने सतीश भाई को फ़ोन किया ताकि इस विषय पर उन से बात कर सकू ...............लगभग ११ मिनट तक चली बातचीत में मुझे यह समझ गया कि यह टिपण्णी केवल भावनाओ में बह कर नहीं की गई है बल्कि सतीश भाई सच में ऐसा ही सोचते है | मैं बता नहीं सकता दिल को कितना सुकून पंहुचा उन से बात करने के बाद ! आज हमारे देश और समाज को ऐसी ही सोच वाले लोगो की बहुत जरूरत है |

यह सच है हम सब रोज़ कितनी ही पोस्टे पढ़ते है और फिर भूल जाते है .................मेरी यह पोस्ट भी दिनों में आपके जहान से निकल जाएगी पर ..................एक विनती है आपसे ..............कृपया उन चार दिनों तक मेरी पोस्ट में लिखी बातों पर गौर करें और हो सके तो आप भी ऐसा कुछ अपने आस पास करें !

ज्ञात हो कि ठीक एक साल पहले जून २००९ ही के दिन एक सड़क दुर्घटना में मंच के लोकप्रिय कवि ओम प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड सिंह गुज्जर का निधन हो गया था और ओम व्यास तथा ज्ञानी बैरागी गंभीर रूप से घायल हुए थे |

आज जब इस घटना को एक साल बीत चूका है ...................हम में से कितनो को यह दुखद घटना याद भी है .....................................शायद बहुतों को नहीं ! यही होता है ................क्यों कि हम लोग सब अपनी अपनी ज़िन्दगी में इस कदर मशरूफ है कि हम को अपने सिवाए कुछ और सूझता ही नहीं है | कौन जिया कौन मरा .......किस को क्या खबर ??
पर क्या आपने सोचा यही सब एक दिन हमारे साथ भी हो सकता है !!
तब भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा हमारे जाने से ......................अगर किसी को फर्क पड़ेगा तो सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे परिवार को !

उन कवियों के जाने का भी फर्क पड़ा है उनके परिवार पर ...................क्यों ना कुछ देर रुक कर, अपनी रोज़ कि इस भागम भाग वाली ज़िन्दगी से, हम जाने उनका हाल ! इसी सोच से प्रभावित हो कर मैंने आज कुछ लोगो को फ़ोन कर यह मालूमात करने की कोशिश करी कि क्या किसी को उस हादसे में मरे गए कवियों के परिवार के विषय में कुछ जानकारी है ...................और क्या कोई और भी मेरे इस प्रयास में मेरा साथ देगा ?

सब से पहले मेरी बात हुयी महफूज़ अली भाई से जिन्होंने अपना पूरा सहयोग देने का वादा किया उसके बाद मैंने मुंबई फ़ोन लगाया देव कुमार झा को ................पूरी बात से उनको अवगत करवाने के बाद जब मैंने उनसे सहयोग की बात कही तो यह जान बहुत ख़ुशी हुयी कि देव बाबु भी इस मुहीम में पूरा साथ देने को तैयार है |

मेरी इस मुहीम में एक सुखद मोड तब आया जब उसके बाद मैंने फ़ोन किया अपने अलबेले बड़े भाई अलबेला खत्री जी को | अलबेला जी ने पहले तो मेरी पूरी बात सुनी फिर मुझे काफी सराहा ..............उसके बाद जो खबर उन्होंने मुझे दी ...........वह यह थी कि उस दुखद हादसे में मारे गए किसी भी कवि के परिवार में कोई भी वितीय संकट नहीं है और सब लोग धीरे धीरे इस सदमे से उबार रहे है |

यह खबर केवल खबर नहीं बल्कि एक तरह से मेरी वह मुराद थी जो बिना मांगे ही पूरी हो गयी | मैं अपनी भावनाएं यहाँ शब्दों में नहीं लिख सकता पर यह एक ऐसी अनुभूति है जैसा अपने परिवार का हित जानने के बाद होती है |

आप सब को यह जान ख़ुशी होगी कि हम लोगो जिस मुहीम के यह एक जुट हो रहे थे वह पहले ही रंग ला चुकी है | अपने परिवार में सब ठीक है सिवाए इसके कि वह चार लोग जो हम सब को बहुत प्रिये थे आज हमारे बीच नहीं है |

आज एक और बात बहुत अच्छे से समझ में आ गयी कि अपने तमाम विवादों और कुछ बुराइयों के बाद भी ब्लॉगजगत आज भी किसी भी सार्थक पहल के लिए एक जुट है | भगवान् से यही दुआ करता हूँ कि यह एकता बनी रहे और हाल फिलहाल में जो भी विवाद हुए है उनका असर ब्लॉग जगत पर कम से कम हो !

मंगलवार, 8 जून 2010

पहली बरसी पर विशेष :- अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

आज से ठीक एक साल पहले हिंदी साहित्य और रंग मंच को घोर कठोर आघात लगा था उससे वह आज तक सदमे में है ! आज ही के दिन हिंदी साहित्य और रंग मंच के ४ धुरंधर खिलाडी मौत के सामने हार गए थे !
ज्ञात हो कि ठीक एक साल पहले आज ही के दिन एक सड़क दुर्घटना में मंच के लोकप्रिय कवि ओम प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड सिंह गुज्जर का निधन हो गया था और ओम व्यास तथा ज्ञानी बैरागी गंभीर रूप से घायल हुए थे | सभी विदिशा से भोपाल एक इनोवा द्वारा म।प्र. संस्मृति विभाग द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में भाग ले कर वापस आ रहे थे |
दूसरी ओर जाने माने रंगकर्मी हबीब तनवीर का भी अचानक ही निधन हो गया | सभी कला प्रेमी सदमे में आ गए इन एक के बाद एक लगे झटको से ! कोई भी इन खबरों को पचा नहीं पा रहा था | पर होनी तो घट चुकी थी ! सिवाए शोक के कोई कर भी क्या सकता था ................................ सब ने इन महान कला सेवकों को अपनी अपनी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की |

आज इस दुखद घटना को घटे एक साल हो गया है तब भी इन सब विभूतियों के खो जाने का गम एकदम ताज़ा है ................... |


हबीब तनवीर जी, आदित्य जी, नीरज पुरी जी, और लाड सिंह गुज्जर जी को सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि |

सोमवार, 7 जून 2010

त्रासदी के 25 वर्ष बाद आया फैसला - भोपाल गैस कांड के सभी आरोपी दोषी करार




भोपाल की यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी को 25 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद न्यायालय ने 23 साल की सुनवाई के बाद सोमवार को इस मामले में आठ लोगों को दोषी करार दिया और यह फैसला सुनाने वाले मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मोहन पी तिवारी मामले की सुनवाई करने वाले 19वें न्यायाधीश रहे।

गौरतलब है कि सीबीआई द्वारा इस मामले में आरोपपत्र इस घटना के लगभग तीन साल बाद एक दिसंबर 1987 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के. ए. सिसोदिया की अदालत में पेश किया गया था।

सिसोदिया के बाद मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी आर सी मिश्रा ने इस मामले की सुनवाई 30 सितंबर 1988 से शुरु की। उनके बाद लाल सिंह भाटी की अदालत में इस मामले की सुनवाई 26 जुलाई 1989 से 27 नवंबर 1991 तक चली।

मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी गुलाब शर्मा ने इस प्रकरण की सुनवाई के बाद मामले को 22 जून 1992 को सत्र न्यायालय को स्थानांतरित कर दिया और सत्र न्यायाधीश एस। पी. खरे ने 13 जुलाई 1992 से सुनवाई शुरु की।

वर्ष 1984 की दुनिया की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड के 25 साल बाद इस मामले के आठों आरोपियों को सोमवार को दोषी करार दिया गया। यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन अध्यक्ष सहित सभी आठ आरोपियों को दोषी करार दिया गया।

मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मोहन पी तिवारी ने इन आरोपियों को धारा 304 [ए] और धारा 304 के तहत दोषी करार दिया। जिन लोगों को दोषी ठहराया गया है उनके नाम हैं:- यूसीआईएल के तत्कालीन अध्यक्ष केशव महेन्द्रा, प्रबंध संचालक विजय गोखले, उपाध्यक्ष किशोर कामदार, व‌र्क्स मैनेजर जे मुकुंद, प्रोडक्शन मैनेजर एस पी चौधरी, प्लांट सुपरिंटेंडेंट के वी शे्टटी, प्रोडक्शन इंचार्ज एस आई कुरैशी और यूसीआईएल कलकत्ता। मामले की सुनवाई के दौरान सभी आरोपी अदालत में मौजूद थे।

उल्लेखनीय है कि 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी में कुल नौ लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें से यूसीआईएल के तत्कालीन व‌र्क्स मैनेजर आर बी रायचौधरी की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई।

पर सवाल यह उठता है क्या यह फैसला सही है ??
इतने लम्बे इतजार के बाद क्या इसी न्याय की आस लगाये बैठ थे सब ??
जो धाराएँ लगाई गयी है क्या वह उचित है ??
क्या इतनी बड़ी लापरवाही की बस यही सजा है ??

इस फैसले ने एक बार फिर देश की न्याय व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए है |



रविवार, 6 जून 2010

'नीला तारा' हुआ २६ साल का


आज से ठीक २६ साल पहले अपने देश भारत की राजनीती के आकाश में जन्म था यह 'नीला तारा' | यह 'नीला तारा' अपने साथ इतनी उर्जा लिए था कि उस उर्जा से झुलसे लोग आज तक अपने घावों पर मरहम लगते नज़र आते है | और कुछ के घाव तो २६ सालो के बाद आज तक भरे भी नहीं है |

बहुत से सवाल आज तक उतर के इंतज़ार में है और अगर यही हाल रहा तो कल तक भूला भी दिए जायेगे क्यों यही होता आया है अपने देश में !

आज जरूरत है एक संकल्प की कि आगे भविष्य में कभी भी ऐसी नौबत नहीं आने दी जाएगी कि अपने देश में फिर कोई 'नीला तारा' जन्म लें | और यह संकल्प लेना होगा हमारे नेतायों को ............और हमे भी |

जाने 'नीला तारा' के विषय में |

शनिवार, 5 जून 2010

हम बचत करेंगे तो ही बचेगी हमारी दुनिया !


वैज्ञानिकों का कहना है कि हर कोई अपने स्तर से प्रयास करे, तो ग्लोबल वार्रि्मग के बढ़ते दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है |

यहाँ दिए गए कुछ छोटी छोटी पर बेहद जरूरी बातों का अगर हम सब ख्याल रखे तो हम भी इस मुहीम में अपना योगदान कर सकते है !


[1. बात बिजली की]

बिजली का कोई भी उपकरण जिसे आप इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, उसको स्विच ऑफ करने के साथ ही उसका प्लग निकाल दें, जैसे मिक्सी, वाशिंग मशीन, टीवी, सेलफोन चार्जर, कंप्यूटर आदि। कारण, स्विच ऑफ होने पर भी ये बिजली खर्च करते रहते हैं।

[2. बह जाए पानी]

घर के किसी भी हिस्से में लगा कोई नल या पाइप लीक कर रहा है, तो उसे तुरंत ठीक करवाएं। ब्रश करते समय वॉश बेसिन में फालतू पानी न बहाएं। जहां तक संभव हो शॉवर का प्रयोग करने से बचें। शॉवर के स्थान पर बाल्टी का प्रयोग करें।

[3. रिचार्जेबल बैटरी]

शायद आपको पता नहीं होगा कि विभिन्न उपकरणों में प्रयोग होने वाली बैटरियां मिट्टी में दबने पर भी एसिड का रिसाव करती रहती हैं। अत: नार्मल बैटरियों के स्थान पर रिचार्ज होने वाली बैटरियों का प्रयोग करें।

[4. सार्वजनिक वाहन का इस्तेमाल]

क्या आप कम दूरी के लिए अपनी मोटरसाइकिल या कार का प्रयोग कर करते हैं? बच्चों के स्कूल में बस की सुविधा होने पर भी केवल स्टेटस दिखाने के लिए आप उन्हें निजी गाड़ी से भेजते ? जहां तक संभव हो निजी वाहनों का प्रयोग करने से बचें। हो सके तो पैदल चलने की आदत भी डालें।

[5. पेंट करवा रहे हैं]

ऑयल बेस्ड पेंट के स्थान पर लेटेक्स पेंट्स का इस्तेमाल करें। कारण, ऑयल बेस्ड पेंट अत्यधिक टॉक्सिक होता है एवं इसकी मैन्यूफैक्चरिंग में भी काफी नुकसानदेह प्रदूषणकारी तत्व निकलते हैं।

[6. डिस्पोजेबल से बचाव]

हम अपनी जरूरतों के लिए प्रकृति पर निर्भर हैं, पर ईकोलॉजिकल फुटप्रिंट का ध्यान रखना भी जरूरी है। ग्लोबल वार्रि्मग पर अंकुश लगाने के लिए इसमें कमी लानी होगी। इसका एक उपाय है डिस्पोजेबल वस्तुओं जैसे प्लास्टिक बैग्स, डिस्पोजेबल डायपर्स, प्लेट, चम्मच, गिलास इत्यादि के इस्तेमाल से बचें। पेपर नैपकिन के बजाय कपड़े के नैपकिन, यूज एंड थ्रो पेन के बजाय मेटल बॉडी पेन, पॉलीथिन बैग्स के बजाय कपड़े के थैलों इत्यादि का इस्तेमाल करें।

[7. नया वाहन]

यदि आप नई गाड़ी खरीदने जा रहे हैं, तो कोशिश करें कि ऐसी गाड़ी खरीदें, जो पेट्रोल या डीजल से चलने के साथ-साथ गैस से भी चले। पेट्रोल और डीजल के प्रयोग से निकलने वाला कॉर्बन वातावरण को दूषित करता है।

[8. सीएफल या एलईडी]

रोशनी के लिए घर में साधारण बल्ब और ट्यूबलाइट का प्रयोग करने के स्थान पर सीएफएल या एलईडी लाइट का प्रयोग करें। इससे वातावरण कम गर्म होता है।

[9. छिलकों में है बड़ा दम]

घर में प्रतिदिन निकलने वाले सब्जियों और फलों के छिलकों को कूड़े में फेंकने के स्थान पर किसी साफ जगह एकत्र कर लें। बाद में इन्हें किसी जानवरों के खाने के लिए डाल दें। यदि ऐसा करना संभव न हो, तो मिट्टी युक्त किसी गमले में डालें। इनसे प्राकृतिक खाद बन जाएगी।

[10. प्राकृतिक रोशनी]

घर बनवाते समय इस बात का ध्यान रखें कि प्रत्येक कमरे में अधिक से अधिक प्राकृतिक रोशनी और ताजी हवा आने की व्यवस्था हो। इससे घर का वातावरण स्वच्छ रहेगा और हर समय बिजली की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।

[11. दूर रहें केमिकल से]

घर के अंदर कीड़े-मकोड़ों को मारने के लिए केमिकलयुक्त पदार्र्थो का इस्तेमाल करने के स्थान पर हर्बल वस्तुओं का प्रयोग करें। इसी प्रकार घर के लॉन और गमलों में लगे पौधों में केमिकलयुक्त कीटनाशकों का प्रयोग करने से बचें। केमिकलयुक्त कीटनाशक न केवल पेड़-पौधों के लिए नुकसानदेह होते हैं, बल्कि ये तितलियों, चिड़ियों और अन्य लाभदायक नन्हें जंतुओं के लिए भी घातक सिद्ध होते हैं, जिससे पर्यावरण में अंसतुलन पैदा होता है।

[12. पेड़-पौधे लगाएं]

घर के आसपास जैसे फुटपाथ या नजदीकी पार्क में छायादार पेड़-पौधे लगाएं। इनसे वातावरण बेहतर बनेगा। साथ ही फुर्सत के पलों में इनके नीचे आराम से आप अपना समय बिता सकेंगे ।

[13. कांच-अन्य धातु की बोतल]

फ्रिज में पानी रखने के लिए आप हर दो-चार साल में नए डिजाइन वाली प्लास्टिक की बोतलें अवश्य खरीदते होंगे। ये बोतलें स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक हैं। कारण, प्लास्टिक बनाने में प्रयोग होने वाला केमिकल पानी के संपर्क में आकर अपना दुष्प्रभाव छोड़ता है। इनके स्थान पर कांच या अन्य धातु की बोतलें प्रयोग करें।

[14. रसोई है अहम]

पर्यावरण की रक्षा में आपकी रसोई प्रमुख भूमिका निभाती है। रसोई में काम करते वक्त सारी सामग्री पहले से अपने करीब रख लें। ऐसा न हो कि गैस का चूल्हा जल रहा है और आप हींग या मेथी ढूंढ़ने में समय बर्बाद कर रहे हैं।

[15. कागज का प्रयोग]

जब तक बहुत आवश्यक न हो ई-मेल या अन्य किसी कंटेंट या फोटो का प्रिंट न कर कागज की बर्बादी रोंकें। ध्यान रखें कि यह बढि़या कागज दूसरी तरफ भी प्रयोग किया जा सकता है। इसी प्रकार डाक के लिफाफों का पुन: प्रयोग करें। रंग-बिरंगे कार्र्डो से छोटे-छोटे गिफ्ट टैग या रुपये रखने के लिए आकर्षक लिफाफे तैयार किए जा सकते हैं। कागज की बचत का मतलब है पेड़ों की रक्षा।

बुधवार, 2 जून 2010

तुम यह कैसा सुख पाते हो............................... ??


तुम बाज़ क्यों नहीं आते हो रुलाने से ...........
ज़िन्दगी वैसे भी बहुत कडवी होती है.........
ऊपर से तुम आइना दिखाते हो................

हम सब को यु रुला रुला कर तुम यह कैसा सुख पाते हो ?


क्यों नहीं लिखते तुम औरो की तरह.........

कि सब ठीक चल रहा है .................

हर कोई हंस रहा है.............

नहीं है कोई गम किसी को..........

हर किसी का पेट भरा है .............

क्यों सच लिखते हो................... ??

बदले में क्या पा जाते हो ...............??

हो कोई जवाब तो जरूर बतलाना ...................

क्यों हर बार रुला जाते हो .....................??

तुम यह कैसा सुख पाते हो............................... ??



( युवा कवि दिलीप को समर्पित )

मंगलवार, 1 जून 2010

आज का पत्रकार

में आज का पत्रकार ।
मुझे गरीबों की मजबूरी से क्या सरोकार । ।
जीता हूँ ,मैं रईशों की जिंदगी ।
बिन AC मेरा जीवन बेकार । ।
मैं तो करूंगा चापलूसी उसकी।
कमाई होगी ऊपरी जिसकी । ।
पैसा ईमान मेरा भगवान् मेरा ।
बिन पैसा , मेरा जीवन बेकार । ।
मैं देख कर भी नहीं देखता अपराध , भ्रस्टाचार ।
जब तक आता रहे मेरा टैक्स हर बार ।

(नोट : आज के भ्रष्ट पत्रकारों को समर्पित एक लघु रचना । )
पाठक बताएँ ये संहारक है या नहीं

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