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बुधवार, 5 मई 2010

ना जी ना ........विलुप्त नहीं हुई बस बदल गई हैं पंरंपराएं !!


पैर छू कर प्रणाम करना एक अदब एक इज्जत होती थी। जिसे संस्कार के रूप में भी आंका जाता था पर अब ये नमस्ते, हाय हेलो तक सीमित होकर रह गई है। कार्तिक के दादाजी घर आए तो वह दादू-दादू कहकर चिपक गया। तो दादू ने भी उसे प्यार से ढेर सारा दे डाला। लेकिन फिर पापा ने उसे डांटते हुए पैर छू कर आर्शीवाद लेने को कहा। जिसपर वह बिदक कर बोला अरे दादू तो मेरे फ्रेंड है। और फिर बडे़ प्यार से उन्हें बाय कहकर कोचिंग चला गया।

ऐसा नहीं है कि वह उनको प्यार नहीं करता या फिर उनका सम्मान नहीं करता। बस उसे पाव छूना अटपटा सा लगता है, उसे यह पसंद नहीं। वो नमस्ते से ही अपना काम चला लेता है। आज के इस दौर में जहा सब कुछ बदल रहा है। वहा युवाओं की सोच भी बदल रही है। वे बड़ों को सम्मान देते हैं, उनका आदर भी करते हैं। लेकिन वे पुरानी सभ्यताओं के नाम पर कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं।

भारतीय सभ्यता की निशानी बड़ों के पांव छूकर आर्शीवाद लेना एक बहुत ही पुरानी भारतीय परंपरा है। यहा पर पैर छूना सामने वाले को सम्मान देने की दृष्टि से देखा जाता है। जब भी हम किसी बड़े से मिलते हैं जिसका हम सम्मान करते हैं, तो उसका पैर छूकर उसका आर्शीवाद लेते हैं। भारतीय परंपराएं और तहजीब तो दुनिया भर में मशहूर हैं। और आर्शीवाद लेने की यह प्रक्रिया भी इसी का ही एक हिस्सा है। लेकिन आज के दौर में इसमें जरा सा बदलाव आ गया है। इनके मायने तो नहीं बदले हैं लेकिन इसे व्यक्त करने का तरीका जरूर बदल गया है।

अपना अलग है अंदाज-आज की पीढ़ी के लिए वह उनके सबसे करीब है जिसके सामने वे खुलकर खुद को व्यक्त कर सकें और न कि वह जिसके सामने वे नार्मल भी बिहेव न कर पाएं। सम्मान करने के लिए अपनापन चाहिए न कि सिर्फ ऊपरी दिखावा। ऐसे में यह जेनरेशन रिश्तों को एक नया रूप देने में लगी है जिससे वक्त की इस तेज दौड़ में जाने-अंजाने भी उसके अपनों का साथ न छूटे। जो चीज आज की जेनरेशन को नहीं भाती वे उसे करना तो दूर उसके बारे में सोचते भी नहीं हैं।

एक और युवा वेदांश का सोचना भी कुछ ऐसा ही है। वह कहता है कि मुझे पैर छूना अच्छा नहीं लगता। मैंने कभी भी किसी भी अपने बड़े से व्यक्ति से बूरी तरह बात नहीं की। क्योंकि मैं उनका सम्मान करता हूं। लेकिन पैर छूना, नहीं। वह नहीं। हर किसी की अपनी सोच होती है। और मेरी नजर में सम्मान देना ज्यादा जरूरी है और वह कैसे दिया जा रहा है वह नहीं हैं |

वैसे पैर छूने के भी कई फायदे है, कई लोगों का मानना है कि पैर छूने से सामने वाले की सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह आपके अंदर होता है। इसके साइंटिफिक मायने से भी बहुत फायदे हैं।

आज यह परंपरा शहरों में अपने मायने जरूर खोती जा रही है। लेकिन गांवों में आज भी यह जीवित है। यह जरूर है कि समय के साथ इस जेनरेशन ने हर बात में अपनी दखलंदाजी जरूर शुरू कर दी है लेकिन आज भी यह अपनी जड़ों से जुड़ी है। अपनों के लिए इसके दिल में आज भी वहीं सम्मान है बस जरूरत है उसे गलत न समझकर उसकी बातों को और उसके विचारों को समझने की कोशिश करने की।जब बड़े बड़े मसले बातो से सुलझ सकते है तो क्या हम अपने छोटो को थोडा समझा कर या उनको समझ कर जीवन में और मिठास नहीं घोल सकते ??

9 टिप्‍पणियां:

  1. पैर छूने को लेकर एक बात यह भी प्रचलित है कि झुकने (पैर छूने) से एक तरह का व्यायाम हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी दिनभर में 20-25 लोगों के पैर छू लिए जाते हैं। संभव है कि इससे उनकी सेहत भी दुरूस्त रहती है।अलबत्ता, शहरों में जरूर परंपराएं और सम्मान के तरीके बदल गए हैं।

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  2. बहुत अच्छा लगा इस तरह के विचार पढना। गांव शहर क्या, दिल में परंपराएं जीवित होनी चाहिए।

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  3. पैर छुने से कोई दिक्कत नही, लेकिन जब मन मै इज्जत हो तो ही छुने चाहिये, ओर यह प्रथा गलत भी नही

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  4. शिवम बाबू .. आप त एकदम सेंटीमेंटल बना दिए हमको. हम त घर में सुरुए से छोटा बच्चा के सामने सब बड़ा का गोड़ छूते थे, बस हमको देखिए के बचवो सीख गया. असल माए बाप नहीं ई सब बात मानता है त बच्चा को का दोस दीजिएगा. शहर का एक फैसन का त बतिए आप नहीं बताए, गोड़ छूने के खातिर हथवा नीचे ले जाएगा अऊर ठेहुना के पासे से हथवा हटा लेता है. बताइए तो, ई त कोनो बाते नहीं हुआ.

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  5. जिनके प्रति श्रद्धाभाव उपजता है हाथ अपने आप बढ़ जाते हैं उनके पाँव छूने के लिये ।

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  6. @ चला बिहारी ब्लॉगर बनने:- वैसे आज कल पैर छुए कहाँ जाते है ..............घुटने से ही काम चलाया जाता है !! आर एकगो बात बोले ........जयादा सेंटी मत होईयेगा नहीं तो मेंटल हो जायेगे कहे देते है !!

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  7. शिवम बाबू,
    अपनी अपनी श्रद्दा है, अपना अपना प्रेम है। जिसके लिए मन में प्रेम और आदर हो उसकी इज़्ज़त में तो माथा नमन के लिए झुक ही जाता है...

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  8. आपकी बात सोलह आने सच है ,,और परम्पराओं से ही नैतिकता जिन्दा है

    http://athaah.blogspot.com/

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  9. आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास!
    बहुत बढ़िया!

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