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बुधवार, 28 अप्रैल 2010

शुक्र है हमारे माननीय "जैसे" भी सही पर "ऐसे" नहीं !!


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हमारे माननीय दूसरों से बेहतर हैं! शायद आपको विश्वास न हो क्योंकि आप उन्हें संसद में जोर-जोर से चिल्लाते, झगड़ते देखते हैं। लेकिन दूसरे देशों के सांसदों के व्यवहार को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि गनीमत है। हमारे सांसद तो विधेयकों की प्रतियां फाड़ते हैं और सदन की कार्यवाही नहीं चलने देते। लेकिन विदेशी सांसद इनसे कहीं बढ़ कर हैं। जी हां, यूक्रेन की संसद में जो कुछ हुआ, उसके मुकाबले तो हमारे माननीय काफी 'अनुशासित' हैं।

मंगलवार को यूक्रेन के बंदरगाह शहर क्रिमिया में रूस की नौसेना को और अगले 25 वर्ष तक रखे जाने के समझौते को लेकर संसद में जो बहस शुरू हुई, वह शब्दों की बौछार से अंडों की बारिश में बदल गई। इसके बाद 'स्मोक बम' भी फेंका गया, जिससे पूरा सदन धुएं से भर गया।

हुआ यह कि समझौते के अनुमोदन के लिए जैसे ही संसद में मतदान शुरू हुआ, वैसे ही विपक्षी सदस्यों ने हंगामा आरंभ कर दिया। फिर कुछ सदस्यों ने नाराज होकर स्पीकर को निशाना बनाकर एक स्मोक बम और अंडे फेंके। स्पीकर के अंगरक्षकों ने तुरंत छतरी खोली और उन्होंने शरण ली। इसके बावजूद स्पीकर अपना कोट खराब होने से रोक नहीं सके!

जैसा मंगलवार को हुआ, वैसी ही अनुशासनहीनता यूरोप और एशिया के अन्य देशों की संसद में पहले भी देखी गई है। दक्षिण कोरिया, ताइवान, बोलीविया, तुर्की, यूनान जैसे देशों में ऐसी घटनाएं आम हैं। इसका इतिहास गवाह है।

अब अगर यह कहा जाये कि 'शुक्र है हमारे माननीय "जैसे" भी सही पर "ऐसे" नहीं ' तो क्या गलत होगा ?? आप ही बताये !!

4 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे संसद में जो दीखते हैं वो तो केवल "tip of the iceberg" हैं ! अंदर ही अंदर ऐसा कोई दुष्कर्म नहीं जो ये न करते हों ...

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  2. प्रेरणा तो यहीं से मिलती है.....जुताकंद भी तो बुश से ही शुरू हुआ था..

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